Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 67

सुबह ऑफिस जाने से पहले रूबी फिर से एक बार सेल्विन के घर के बाहर खड़ी थी| सुबह सुबह ताला देख वह लौटने ही वाली थी कि अपनी दुकान खोलने जा रहा वह पान वाला रूबी को पहचानता हुआ कह उठा –
“अरे आप तो उस दिन भी आई थी न – का हुआ – नही मिले भईया जी – कुछ जरुरत होगी आपको – |”
रूबी ठहरकर उसकी बात सुनने लगी|
वह कहता रहा – “हमारे भईया जी है हीन एसन – सबकी मदद करत है – एक दम रोबिन हुड के माफिक – कितने कितने बच्चो का भार उठाए है ये सब ह्म जानत है क्योंकि पांडे की नजर से कोई बात न छिपी रह सकत – अब हमका नही पता कि पैसा कहाँ से लाते है पर सारा का सारा पैसा बस इन्ही अच्छे काम में चुपचाप लगा देत है ये हमका पता है – तो आपको भी कुछ मदद चाहिए थी का ?”
रूबी कुछ कहती उससे पहले ही दोनों की निगाह एकसाथ सेल्विन का आना देखती है|
“लो आ गए भईया जी |”
सेल्विन उन दोनों को अनदेखा करता दरवाजा खोलकर अंदर चला गया तो रूबी भी अब उस दरवाजे के बाहर आती उसमे दस्तख देने लगती है|
दरवाजा खुला ही था| रूबी उडके दरवाजे को धीरे से खोलती संकोच से वही खड़ी रही| सेल्विन रूबी की ओर देखता हुआ कहता है
“आ जाओ अंदर |”
आवाज सुनते वह चुपचाप अंदर आ जाती है|
आज रूबी थोडा ध्यान से देखती है वह दो कमरों का घर था जिसमे बस जरुरत भर को ही सामान थे| वह इस वक़्त जिस कमरे में खड़ी थी वहां एक बेड और दो कुर्सियां, एक मेज के सिवा खास कुछ नही था| रूबी सरसरी निगाह से सब देखती अंदर आ जाती है|
“आओ बैठो – क्या लोगी चाय ! कॉफ़ी !”
“मैं ये लायी थी|” रूबी संकोच से एक छोटा पैकेट उसकी ओर बढाती हुई कहती है – “ये डेढ़ लाख है – आप रख लीजिए और बाकि भी मैं जल्दी ही लौटा दूंगी – आपको बस यही कहने उस रात भी आई थी कि इस बुरे वक़्त में आपने मेरी मदद की|”
रूबी अभी भी खड़ी थी और सेल्विन भी खड़े खड़े उसकी ओर आता हुआ कहता है – “उस रात मैं तुमसे बुरा व्यव्हार नही करना चाहता था पर क्या करता – इतनी रात तुम्हे देखकर ये भी नही बता पाया कि यहाँ आस पास का इलाका अच्छा नही है तो रात यहाँ कुछ सेफ नही रहती |”
“ठीक है और ये ..|”
रूबी इस पैकेट को उसकी ओर बढ़ा रही थी सेल्विन उसे अनदेखा करता हुआ कहता है –
“ये पैसे अपने पास मेरी अमानत जानकर रख लो – जिस दिन जरुरत होगी ले लूँगा – कम से कम इन रुपयों के बहाने तुम याद तो रखोगी मुझे |”
सेल्विन ने कुछ इस तरह से अपनी बात कही कि रूबी अब सीधे उसकी नजरो की ओर भी नही देख पाई| वह अब मोबाईल उठाकर कुछ ऑर्डर करते हुए कहता है –
“दो कॉफ़ी मंगाई है पीकर जाना |”
रूबी के पास न जाने की वजह थी न रुकने कारण वह अपने मन में ढूढ़ पायी बस मौन ही सेल्विन के इशारे पर एक कुर्सी पर बैठ गई|
कुछ ही पल में एक छोटा सा लड़का दो कॉफ़ी उनके बीच की मेज पर सजाकर चला गया|
“वैसे आपको मेरा नाम और मेरी जरुरत कैसे पता चली ?” बहुत देर की ख़ामोशी के बाद रूबी पूछ उठी|
सेल्विन एक कॉफ़ी रूबी की ओर तो दूसरी अपनी ओर रखता हुआ कहता है – “तुम्हारा रोना सुनते समझ गया कि कोई जरुरत तो है जिसने तुम्हे इतना तोड़ दिया फिर जब तक मैं तुमसे कुछ पूछता तुम बेहोश हो गई तब मेरे पास कोई चारा नही था तो तुम्हे अपने घर ले आया और बाकि का तुम्हारे पर्स से मालूम पड़ा – तुम्हारे नाम के हॉस्पिटल के बिल थे – वहां पहुँच कर तुम्हारी माँ के बारे में पता चला तो जो मैं कर सका मैंने किया |”
“जो कुछ – आपने तो सब कुछ कर दिया और वो भी ऐसे समय जब ईश्वर की आस्था पर भी अनास्था हो गई थी मेरी इसलिए आप तो मेरे लिए ईश्वर से बढ़कर है |”
“ईश्वर !! क्या वही जो खुद को कुछ मक्कार धोखेबाजो से बचा न सके और सूली पर चढ़ गए – हा हा – मेरा सच ये पैसा है जो मेरे पास था और वक़्त पर तुम्हारे काम आया |”
रूबी चौककर उसकी ओर देखती है| सेल्विन कुछ और ही लगने लगा था अपनी बात कहते कहते|
“ये पैसा ही भगवान् है – इसलिए इसकी चिंता करो और अपनी माँ की देखभाल करो जिससे वह बच सकी |”
इसके आगे रूबी कुछ न कह सकी| वह मन के अंदर कुछ तय ही नही कर पाई कि क्या वह भी सच में सेल्विन से इत्तफ़ाक तो कही नही रखती !! आदमी की जरूरते ही इन्सान को इतना बेबस कर देती है कि पल भर में उसकी आस्था अनास्था में बदल जाती है| पल भर में ही वह सेल्विन से कुछ जुड़ाव सा महसूसने लगी आखिर वक़्त की मार ने दोनों को कुछ सोचकर ही मिलाया था|
***
दीवान इंटरप्राईजेज के पोर्च के ठीक सामने आकर जो कार रूकती है उससे मेनका उतरती है| दिन की हुई विवेक से मुलाकात के बाद से उसका चेहरा उतरा हुआ था लेकिन अपने पिता के बुलाने पर उसे ऑफिस आना पड़ा था| वह अब सुनिश्चित केबिन की ओर कदम बढ़ा रही थी| रास्ते पर उसे पहचनाते लोग उसका अभिवादन करते जा रहे थे पर अपनी बेख्याली में उसने किसी की ओर भी ध्यान नही दिया|
उसके पिता के पीए मिस्टर ब्रिज आगे बढ़कर उसे कोंफ्रेंस रूम का रास्ता दिखाते है| उस रूम में आते वह देखती है कि पहले से बैठे उसके पिता और उसका बड़ा भाई आकाश बैठे थे| वह चुपचाप अंदर आती उनके संकेत पर बैठ जाती है|
“तुम सोच रही होगी कि अचानक आज मैंने तुम्हे क्यों बुलाया ?”
अपने पिता की बात पर वह चौंकती है|
“जी !!”
मेनका का दिलो दिमाग अभी भी उसके पास वापस आया नही था|
उस अंडाकार टेबल की मुख्य कुर्सी पर बैठे उसके पिता की सीधी नज़र उसपर थी जबकि कुछ कुर्सियां छोड़कर बैठा आकाश अपने सामने खुले लैपटॉप को बीच बीच में देख लेता था| उन तीनो के अलावा उस रूम में कोई नहीं था|
दीवान साहब अपनी बात कहना जारी रखते है –
“देखो मेनका मैंने सोचा था कि तुम भी अरुण की तरह पढाई पूरी करके जब आओगी तब तुम्हे कंपनी ज्वाइन करने को बोलूँगा पर तुमने पंचगनी में अपनी पढाई अधूरी छोड़कर यहाँ एडमिशन ले लिया और मुझे नही लगता कि तुम अपनी पढ़ाई को लेकर गंभीर हो – वैसे भी जो कुछ प्रैटिकल रूप से सीखा जा सकता है उसे किसी किताब में नहीं पढ़ाया जाता – अरुण ने तो मेरी बात कभी नही मानी पर तुम अगर अपनी शुरुवात सही तरीके से करोगी तो जरुर सफल रहोगी – आकाश ने अब तक मेरे साथ कंधे से कन्धा मिला कर पूरी लगन से जो इस इम्पायर को खड़ा करने में मेहनत किया है अब उसे बस आगे बढ़ाना है |”
मेनका अब औचक अपने पिता का चेहरा देखने लगी जिसका मतलब साफ था कि वह अपने पिता की बात अभी तक समझ नही पायी थी जबकि आकाश का चेहरा सपाट बना हुआ था|
“इसलिए अब मैं चाहता हूँ कि यही सही समय है कि तुम दीवान इंटरप्राईजेज का हिस्सा बनो और इसे अपनी स्किल से संभालो |”
“मैं !!” मेनका हैरानगी से इतना ही पूछ पायी|
“हाँ तुम क्योंकि बोर्ड ऑफ़ मेंबर में जितने परिवार के लोग होंगे कंपनी उतनी विश्वस्त होगी – आखिर इस कंपनी की एक शेयर होल्डर तुम भी हो – चाहता तो मैं अरुण से भी यही था पर उसने पूरी तरह से मुझे निराश किया – अब कम से कम मैं तुमसे ये अपेक्षा करता हूँ कि तुम कंपनी को निराश नही करोगी |”
“लेकिन डैडी अभी तो मेरी पढ़ाई भी पूरी नही हुई |”
“उसकी कोई जरुरत भी नही – वैसे भी तुम पर अकेले मैं कोई भार नही डाल रहा – तुम कंपनी की डाइरेक्टर होगी पर काम तुम आकाश के संरक्षण में ही करोगी – तुम कोई भी फैसला सीधे नही लोगी – तुम किसी भी डाक्यूमेंट में बिना आकाश की जानकारी के साइन तक नही करोगी – तुम अभी पूरी तरह से आकाश से सब सीखो कि किस तरह एक कंपनी एक सिस्टम की तरह काम करती है और तुम्हे उस सिस्टम को कैसे भी बस आगे बढ़ाना होता है – हाई होप मैंने अपनी बात तुम्हे अच्छे से समझा दी होगी |”
दीवान साहब अपनी बात खत्म करके कुछ पल तक मेनका को देखते रहे जो खामोश बैठी कही गुम नज़र आ रही थी|
“मेनका – इधर देखो – क्या कोई और बात है ?”
“नही डैडी – मैं समझ गई आपकी बात |” मेनका खुद को संयंत करती हुई कहती है|
इसपर आकाश मेनका के हाथ पर हाथ रखते हुए कहता है –
“डोंट वरी डैड – मुझे लगता है अरुण से बैटर मेनका जल्दी मुझसे सीखेगी –|”
मेनका बेमन की मुस्कान से अब आकाश की ओर देखती है|
“बस मेनका हमेशा इस बात का ख्याल रखना कि इस कंपनी को मैंने तिनका तिनका करके जोड़कर आज एक बड़ा इम्पायर बनाया है तो वही मैं तुमसे और आकाश और अरुण से भी यही उम्मीद रखता हुआ पर अभी तक बस आकाश ही मेरी उम्मीद पर खरा उतरा है – मैं अगर तुम्हे अधिकार दे रहा हूँ तो कुछ अपेक्षाए भी जुडी है मेरी तुमसे बस उन अपेक्षाओ को टूटने मत देना |”
कहते हुए वे खड़े होते अपने कोट का बटन लगाते हुए कहते है – “वेल अब आगे का आकाश तुम्हे समझा देगा – ओके हैव अ नाईस डे |”
कहते हुए वे उस रूम से बाहर निकल जाते है| उनके जाते आकाश अब पूरी तरह से मेनका की ओर घूमता हुआ कहता है –
“तो चले मेनका – आज मैं तुम्हे अपना ऑफिस दिखाता हूँ और साथ ही बताऊंगा कि एक सिस्टम कैसे छोटे पुरजो को अपने लिए उपयोग और उपभोग करता है क्योंकि कोई व्यक्ति कंपनी के लिए हो सकता है पर किसी कंपनी के लिए कोई व्यक्ति महत्वपूर्ण नही होता – यहाँ हमे लोगो को यूज करना सीखना आना होता है बस – लेट्स कम |”
कहते हुए आकाश उठ जाता है| अब मेनका के कंधे पर हाथ रखे वह उसके साथ बाहर निकलता है|
***
वर्तिका के लिए उसका कमरा ही उसकी सीमित दुनिया बन गई थी| दिन रात वह बस अपने कमरे में ही पड़ी रहती| उसे अपनी हालत देखकर उस चिड़िया की याद हो आती जिसे किसी सोने के पिजरे में कैद का दिया गया हो| सभी कुछ तो था उसके पास बस आजादी ही नही थी| दूर गगन में उड़ जाने की शक्ति, उमंग वह कबकी भूल चुकी थी| न उसे सोने की सुध रहती न खाने पीने का होश उसके लिए सब कुछ जैसे यंत्रवत हो रहा था|
भलेही रंजीत ने उसके लिए सारी सुख सुविधा खरीद रखी थी फिर भी वह उसकी एक अदद मुस्कान के लिए तरस कर रह गया था| जिसकी एक ख़ुशी के लिए वह सारे जहाँ की खुशियाँ निछावर कर सकता था उसके लिए भी वह ख़ुशी खोज न सका था| अपनी तमाम कोशिशो के बावजूद वह वर्तिका को अभी तक सामान्य नही देख पाया था|
वर्तिका तब से खिड़की की एक उदास धूप को बालकनी से धीरे धीरे सरकती हुई देख रही थी| उसके कमरे में हम्रेशा ही मौजूद रहने वाली एक सेविका रानी उसके पास आती हुई कहती है-
“आपकी दवाई का टाइम को गया है – दवा ले लीजिए |”
वह खड़ी रही पर वर्तिका ने एक बार भी उसकी तरफ पलटकर नही देखा तो वह दुबारा फिर अपनी बात दोहराती है| वर्तिका जानकर उसकी ओर नही देख रही थी जिससे वह बार बार अपनी बात दोहराती उससे आग्रह करती रही जिससे खीज कर एकदम से उठती हुई वर्तिका उसकी ओर तकिया फेक मारती है|
दवाई गिर गई थी पर रानी बिना देरी बेहद शांत भाव से तकिया उठाकर ऊपर रखती दुबारा दवाई निकालकर उसके सामने खड़ी होती हुई कहती है –
“दवाई टाइम पर ले लीजिए – आपके भाई साहब का यही हुकुम है |”
इस पर बिफरी हुई वर्तिका उसे घूरती हुई झटके के साथ उसके हाथ से दवाई और पानी लेकत गटकती हुई चीखी –
“लो खा ली दवा अब जहर भी हो तो वो भी दे दो इससे तो अच्छा होता मैं मर ही जाती |”
गहरी गहरी सांस लेती हुई वर्तिका अ उसके विपरीत देखने लगी जिससे वह उसकी नजरो के सामने से हट गई|
कुछ देर कमरे में निशब्दता छाई रही|
“सुनो |”
वर्तिका की आवाज पर वह दुबारा उसकी नजरो के सामने आती है|
“मुझे कुछ सामान चाहिए – ड्राईवर से कहो गाड़ी निकाले |”
“आप सामान बता दीजिए सामान आ जाएगा |”
“नही – मुझे खुद जाना है – अब जाओ यहाँ से |” जोर से चिल्लाने के कारण वर्तिका को खांसी आ जाती है इसपर वह फुर्ती से टेबल पर रखा गिलास उसकी तरफ बढाती हुई कहती है –
“अभी आपकी तबियत ठीक नही है – ऐसे में आपको बाहर नही जाना चाहिए |”
“नही – मुझे इसी वक़्त जाना है बाहर – अगर तुमने मेरी बात नही मानी तो मैं तुम्हे नौकरी से बाहर निकलवा दूंगी समझी |”
इस पर वह कुछ सहम जाती है और झट से बाहर किसी अन्य सेवक को आवाज देकर गाड़ी के लिए कहकर दुबारा वही खड़ी हो जाती है|
उसे देख वर्तिका फिर नाराज होती हुई बोली –
“अब क्या तुम अभी भी मेरे सर पर खड़ी रहोगी – बाहर जाओ – मुझे चेंज करना है |”
ये सुन रानी बाहर जाने के बजाए पीठ करके खड़ी हो जाती है इस पर थक हार कर माथा पकड़े वर्तिका बेड पर बैठ जाती है|
***
कार की ड्राइविंग सीट पर ड्राईवर बैठा था तो बगल की सीट पर उसकी देखरेख करने वाली रानी बैठी थी और पीछे की सीट पर वर्तिका| कार अपनी रफ़्तार से चली जा रही थी| कुछ ही देर में वर्तिका के निर्देश पर कार किसी सेन्ट्रल मार्किट में जाकर रूकती है|
कार के रुकते वर्तिका उतरकर उस शॉप की ओर बढ़ने लगती है तो तुरंत ही रानी भी उसके पीछे पीछे हो लेती है| वर्तिका अंदर पहुचकर एक कपड़ो की शॉप में चली जाती है|
वर्तिका के आगे एक शॉप अटेंडेंट आता सलीके से उसके आगे झुकता हुआ उसे तरह तरह की ड्रेस दिखाने लगता है| उस बड़ी ब्रांडेड दुकान में आने वाले भी बड़े लोग ही होते ओर उसे उनकी मंशा पढना अच्छे से आता था| वह एक से एक महंगी ड्रेस उसे दिखाने लगा|
वर्तिका इधर उधर कपड़े पलटती एक ड्रेस हाथ में उठाती हुई ट्रायल रूम पूछती है|
“यस मैम उधर सीढ़ी के नीचे है |”
रानी ठीक वर्तिका के पीछे खड़ी थी अब वह उसकी ओर देखती हुई कहती है –
“तुम यही ठहरो – मैं अभी आती हूँ |”
वह बेबस से हामी भरती वही खड़ी रहती है| उसके चारो ओर से गुजरती अमीर महिलाए उसे हिकारत भरी नजर से देखती तो वह अपने साधारण से कपड़ो में और भी सिमट जाती|
इधर वर्तिका जानकर उस जगह आई जहाँ काफी भीड़ थी और इसी बात का फायदा उठाकर वह सीढ़ी के नीचे बने ट्रायल रूम में न जाकर सीढियों से ऊपर चली जाती है फिर उपरी महाले से लिफ्ट लेती वह बाहर निकल जाती है| अब बाहर निकलकर सड़क पर आती वह एक टैक्सी को रोककर उसमे बैठ गई थी| इतना सब करते उसकी सांस अब फूलने लगी थी|
…………..क्रमशः…………..

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