
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 68
टैक्सी से उतरते तेज कदमो से चलती हुई वर्तिका जहाँ प्रवेश करती है वह एक नर्सिंग होम था| सामने से आते एक वार्ड बॉय को देख वह जल्दी से पूछती है –
“क्या अन्दर डॉक्टर है ?”
“जी हाँ – आप अंदर जाइए |”
वर्तिका उसके जाते अंदर आती बैठ जाती है| इस वक़्त अभी भी उसकी साँसे ऊपर नीचे हो रही थी| वह टेबल पर रखा गिलास उठाकर एक ही सांस में उसे खाली करते होंठ दाबे खुद को सयंत करने में लग जाती है|
“हेलो वर्तिका – अचानक कैसे आना हुआ ?” वह योगेश था जो उसी की ओर बढ़ता हुआ पूछ रहा था – “तुम कब वापस आई ?”
“वापस !! मतलब !!”
“तुम्हारे घर से पता चला कि तुम कही बाहर गई हो – मैं तो कितनी बार आया तुमसे मिलने |”
“हाँ हाँ – गयी तो थी मैं ही भूल गई|” वर्तिका की आवाज कपकपा जाती है|
“तुम ठीक तो हो न – कोई बात है क्या ?” योगेश उसका चेहरा गौर से देखते हुए पूछता है जबकि वर्तिका जैसे कुछ कहना चाहती थी पर बार बार कहने से खुद को रोक लेती है|
“योगेश – मैं – एक बात पूछना चाहती हूँ – पर कैसे पूछूँ यही समझ नही पा रही|”
वर्तिका की हिचकिचाहट पर योगेश होंठों को विस्तार देता हुआ कहता है –
“मैं जानता हूँ कि तुम क्या पूछना चाहती हो? वैसे मैं तुम्हे यहाँ अचानक देखते तुरंत समझ गया था कि तुम मेरे पास अरुण का हाल जानने आई हो – क्यों है न ?”
वर्तिका नज़रे नीची किए हामी में असर हिलाती हुई कहती है – “हाँ योगेश – मैंने जो अरुण के बारे में सुना – क्या वो सही है ?”
“मैं नही जानता कि तुमने क्या सुना पर इतना बता दूँ कि उसकी हालत अच् में बहुत खराब है – दुखी तो पहले भी था पर वह दुःख कभी छलके नहीं थे पर अब तो..|” कहते कहते योगेश के हाव भाव में तनाव नजर आने लगा था – “मैं तो उसके पास जाने से भी घबराता हूँ उसे इतना टूटा इतना बिखरा हुआ मैंने पहले कभी नही देखा – वर्तिका वो बिलकुल बावरा हो चुका है – न किसी की सुनता है और न किसी से मिलता ही है – अब और क्या कहूँ उसके बारे में ..|”
योगेश की बात सुनते वर्तिका नज़रे नीची किए आंसू बहाती दोनो हाथो से दिल थामे जैसे कोई दुआ करने लगी थी – ‘क्या मेरे टूटे प्यार ही हाय तुम्हे लग गई तो जाओ आज से तुम्हे इस गुनाह से मैंने माफ़ किया – बहुत तकलीफ देता है ये प्यार आखिर मुझसे बेहतर ये कौन समझेगा – मुझे तो मेरा प्यार न मिला पर दुआ करती हूँ कि जिसके लिए तुम्हारा दिल तड़पता है तुम उसे जरुर पा सको -|’
***
रूबी हॉस्पिटल में अपनी माँ के पास थी| अब वे उसे कुछ बेहतर लग रही थी| उन्होंने अपना सर कपडे से ढक रखा था जो उनकी कीमो थेरपी से था| रूबी गल्फ पहने अपनी माँ के हाथ को स्पर्श करती माथे से लगाती हुई कहती है –
“मम्मा तुम्हे ठीक देख बता नही सकती कितनी ख़ुशी हो रही है मुझे |” रूबी उन ममतामयी आँखों को देखती हुई कहती रही – “अब देखना हॉस्पिटल से जल्दी ठीक होकर ही निकलोगी तब हम साथ में क्रिसमस मनाएँगे |” कहते कहते रूबी की ऑंखें डबडबा आई थी|
वे अभी बोलने की हालत में नही थी पर उनकी ऑंखें अपने आप में कोई खुली किताब थी जिनकी हर तह में अपनी बेटी की तमाम कोशिशो को समझने की समझ थी| वे सिर्फ समझ सकती थी कि उनके इस दीर्धकालीन इलाज के लिए उनकी बेटी कितना कष्ट उठाती होगी| वे बस ईश्वर से इसके लिए शुक्रिया कह उठी|
वह शाम के मिलने के समय पर अपनी माँ से मिलकर अब दुबारा ऑफिस के लिए निकल रही थी| बस स्टॉप पर बस का इतंजार करते तभी कोई बुलेट ठीक उसके सामने आकर रूकती है पर रूबी उसके विपरीत रास्ते की ओर नजर किए थी इसलिए उसका रुकना वह नही देख पाई पर एक जानी पहचानी आवाज से वह तुरंत पलटकर देखती है –
“अरे आप !”
“हाँ यहाँ से गुजरते अचानक तुमपर नजर गई तो सोचा शायद तुम्हे लिफ्ट चाहिए हो |”
सेल्विन ने अपनी बात कुछ इस तरह कही कि रूबी के होंठ मुस्करा उठे|
“वैसे यहाँ कैसे ?”
“हॉस्पिटल आई थी माँ से मिलने और अब ऑफिस जा रही हूँ |”
“चलो छोड़ दूँ !”
“नहीं मैं चली जाउंगी अभी आधा ऑफ़ टाइम है मेरे पास |”
“तो चलो कॉफ़ी पी लेते है !”
अबकी फिर वह धीरे से मुस्करा दी| सेल्विन बिना कुछ कहे बुलेट स्टार्ट कर लेता है तो रूबी भी चुपचाप उसके पीछे बैठ जाती है| हिचकिचाहट में वह पीछे बैठी सीट कवर को पकड़े थी|
अगले ही पल वे किसी कॉफ़ी शॉप के बाहर थे| रूबी उतरती हुई शॉप की ओर बढ़ी ही थी कि उसे बंद देख बोल उठी|
“ये तो बंद है |”
सेल्विन बुलेट खड़ा करता कह उठा – “शिट यार – मैं कैसे भूल गया कि ये आज बंद रहती है – फालतू में तुम्हारा समय बर्बाद किया – इससे तो अच्छा था अपने घर ले जा कर कॉफ़ी पिलाता |”
“तो वही चलते है – अभी भी मेरे पास समय है |”
उनकी मुस्कान एकसार हो जाती है|
अब सेल्विन बुलेट सीधे अपने घर के बाहर रोकता हुआ झट से ताला खोलते खोलते मोबाईल से दो कॉफ़ी का ऑर्डर कर रहा था|
“वैसे कैसी है माँ तुम्हारी ?”
“काफी बेहतर है वो भी सिर्फ आपकी वजह से |”
“ओह फिर वही बात |”
“एक बार कहूँ या सौ बार पर है तो ये सच ही न – |”
तभी जल्दी ही उनके बीच कॉफ़ी आ जाती है| रूबी जहाँ बिस्तर के पैताने बैठी थी वही सेल्विन कुर्सी पर उसके ठीक सामने बैठा था| वे साथ में चुस्की लेते बाते करते रहे|
“वैसे किस ऑफिस में काम करती हो ?”
“दीवान इंटरप्राईजेज में |”
“गुड – बहुत बड़ी कंपनी है |”
“तो फायदा क्या – जब जरुरत थी तब तो ये नही बल्कि तुम काम आए – आई मीन टू से आप |” उसके शब्द लरज उठे थे|
“तुम ही ठीक है रूबी |” कहता हुआ सेल्विन उसकी ओर झुक आया था|
“मुझे अब जाना चाहिए |” रूबी सेल्विन से नज़र हटाती हुई धीरे से कहती है|
“जरुरी है !!”
कुछ पल के मौन में बस कमरे के मौन में उनकी सासों की आवाज ही सुनाई दे रही थी| रूबी वही बैठी रही तो सेल्विन उठकर उसके पास आ गया| अब वह उसके पास बिस्तर पर ही बैठ गया था|
अब उनके बीच बहुत कम फासला रह गया था| दोनों अब एकदूसरे की ओर देख रहे थे| कुछ था जो आँखों से सीधे मन के भीतर उतरता जा रहा था| सेल्विन रूबी के चेहरे की ओर बढ़ रहा था| रूबी की ऑंखें भी उसी पर ठहरी रह गई थी| वह अब उसके बालो को सहलाते उसके जिस्म पर अपनी उंगलियाँ टहला रहा था| रूबी की ऑंखें बंद हो रही थी| वह उसे अपनी बाहों में भर लेता है| न रूबी ने रोका न सेल्विन रुक पाया और दोनों को वो पल बहा कर ले गया|
***
“कहाँ से आ रही हो ?”
रंजीतकी कड़क आवाज सुनते वर्तिका दरवाजे पर ही ठिठक जाती है|
“इधर आओ |”
वर्तिका सर झुकाए रंजीतके सामने खड़ी हो जाती है|
“मैं पूछता हुआ कहाँ गई थी ?”
“मैं – मैं योगेश के यहाँ गई थी |” उसके स्वर कांप जाते है|
“क्यों गई थी वहां ?”
वर्तिका नज़रे उठाकर अपने भाई की तरफ देखती हुई कहती है –
“क्या अब मैं अपने दोस्तों से भी नही मिल सकती ?”
“तुम झूठ बोल रही हो – वो भी अपने भाई से !”
“झूठ तो आप बोलते आए है योगेश से – जब मैं यही थी तब आपने क्यों ये बोला कि मैं कही बाहर गई हूँ |”
इसपर रंजीतकी त्योरियां चढ़ जाती है|
“तो तुम साफ़ साफ़ सुन लो – मैं बिलकुल भी नही चाहता कि तुम योगेश इत्यादि से कोई भी संपर्क रखो – समझ गई तुम |”
“भईया..!!”
रंजीतके स्वर में कडवाहट आ गई थी|
“तुम क्या समझती हो – क्या मैं जानता नही कि तुम योगेश से मिलने क्यों गई थी – अरुण के बारे में जानने न !” रंजीतकहे जा रहा था और वर्तिका सर झुकाए खड़ी थी – “मुझे समझ नही आता कि आखिर तुम चाहती क्या हो – जिसने एक बार भी पलटकर तुम्हारी तरफ नही देखा उससे अब तुम्हे क्या उम्मीद है – वर्तिका एक तरफा प्रेम सिर्फ दर्द देता है |” कहते कहते एक अनजाना दर्द रंजीतके हाव भाव में उतर आया था|
“वर्तिका मैं तुमसे आज कह देता हूँ अगर तुमने अभी भी उससे हमदर्दी रखी तो ऐसा न हो कि जो सजा अभी तक मैंने उसके लिए नही सोची कही उसे उससे भी भयानक अंजाम तक मुझे न पहुँचाना पड़े |”
“नही…..|” वर्तिका के दिल से चीख निकल पड़ी|
“अब जाओ और आइन्दा न योगेश से मिलने या फिर अरुण के बारे में सोचने तक की भी कोशिश मत करना – |”
वर्तिका रोती हुई वहां से चली जाती है| उसके जाते रंजीतशराब से भरा गिलास एक ही घूँट में खाली करता गिलास सामने शीशे की दीवार पर दे मारता हुआ चीखने लगा –
“अरुण जिस तरह से तुमने मेरी बहन को तड़पाया है अगर उससे भी गिरी हालत मैंने तुम्हारी बहन की नहीं कर दी तो मेरा नाम भी रंजीतनही – अब तुम्हारी बारी है अपनी बहन के लिए रोने की |” सख्त आँखों से वह उन टूटे हुए कांच को देखता रहा जिसके हर टुकडे में उसका बिगाड़ा हुआ अक्ष नज़र आ रहा था|
..क्रमशः….