Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 69

सुबह के छह बज रहे थे| मेंशन के सारे नौकर चाकर सफाई इत्यादि कामो में लगे थे| हरिमन काका कंधे पर झाड़न डाले हाथ में चाभी का गुच्छा लिए बढे जा रहे थे| उनके बढ़ते कदम एक कोने वाले कमरे के पास आकर रुक जाते है| वह झुककर ताला खोलने के लिए उस गुच्छे में से सही चाभी ढूँढने का उपक्रम करने लगते है|
“काका..!”
“क्या है बिटिया ?”
आवाज सुनकर वे नज़र घुमाकर देखते है वह उजला थी और उनकी तरफ कुछ बढाती हुई कह रही थी –
“काका – ये चाभी मुझे गैलरी में मिली है – देखिए तो किसकी है ?”
काका चाभी ध्यान से देखते हुए कहते है –
“ये चाभी !! अच्छा तो गुच्छे से गिरी होगी – तभी ताला नही खुल रहा था |” इतना कहकर वे उस चाभी से ताला खोलने लगते है|
“काका – आपसे एक बात पूछूँ ?”
“हाँ बिटिया पूछो |”
“ये कमरा इतना कोने में है कि शायद ही कोई यहाँ आता होगा – आखिर ये किसका कमरा है ?”
उजला की बात पर वे गहरा उच्छ्वास छोड़ते हुए कमरा खोलकर अन्दर आ जाते है| उजला कमरे के द्वार पर खड़ी अपनी सरसरी निगाह से कमरे को देखने लगी| कमरा बेहद बड़ा था| उस कमरे में ज्यादातर सामान ढका हुआ था| काका अंदर आते झाड़न से वहां की गर्दा साफ़ करने लगते है जिसकी उठी धूल से उनको खाँसी आ जाती है| उनके खाँसने की आवाज सुन उजला का ध्यान उनकी तरफ जाता है|
“काका – रुकिए मैं खिड़की खोल देती हूँ |” उजला बढ़कर कमरे की सभी खिड़कियाँ खोल देती है|
“बहुत समय बाद आया तभी यहाँ इतनी गर्दा जमा हो गई |” वह खाँसते खाँसते कहते है|
“आपको इतनी खाँसी आ रही है तो आप किसी और से यहाँ का काम करा लीजिए |”
“अरे नही बिटिया – आज तुम आ गई यहाँ – वैसे यहाँ मेरे सिवा किसी और को आने की इजाज़त नही है |”
“ऐसा क्यों ?”
“बस बड़े मालिक का हुकुम है |” वे बात टालने के लहजे से फिर अपने काम में लग जाते है|
“लेकिन ये कमरा है किसका ?” वह अभी भी सरसरी दृष्टी से कमरे को खंगाल रही थी|
“ये बड़ी मालकिन का कमरा था – अब उनके गुजर जाने के बाद से बस यूँही बंद रहता है – बस मैं ही कभी कभार सफाई करने आ जाता हूँ |”
“क्या ये उन्ही की तस्वीर है |”
काका दीवार पर लगी एक तस्वीर को पोछते है जिसपर अब उजला की निगाह ठहर सी गई थी| एक सौम्य गरिमामय तस्वीर वह पहचान रही थी जिसे उसने अपने घर में अपनी माँ की तस्वीर के साथ देखा था| पर उसके घर में उसकी गुजरी माँ की तस्वीर मुख्य कमरे में लगी थी जिसपर की वह रोजाना माला बदलती फिर यहाँ इस घर में अतीत कमरे में क्यों बंद है !!
“हाँ – यही थी इस घर की केंद्र पर इनके जाते जैसे सब अलग थलग होकर बिखर ग…|” आगे कहते कहते वे रूककर अपनी खाँसी सँभालने लगते है| अब उनको लगातार खाँसी आने लगी थी|
“काका – काका – क्या हुआ आपको – ऐसा करे आप यहाँ से जाइए – मैं यहाँ की सफाई कर दूंगी – नही नही – आप चिंता मत कीजिए मैं चाभी आपके हाथ में ही दूंगी |”
अपनी रुकी हुई आवाज से वे इशारे में ही उसे रोकने का प्रयास करते है पर उजला जबरन उन्हें बाहर भेज देती है|
काका के जाते उजला काम में लग जाती है कि तभी उस तस्वीर के नीचे रखे सामान को झाड़ते झाड़ते उसकी नज़र सितार पर जाती है जिसे मकड़ी के जाले ने घेर रखा था| झाड़न से झाड़ने पर उसके तार झनझना उठते है| कुछ देर के लिए उस सन्नाटे में भी जीवन की लहर दौड़ जाती है|
इससे उजला मुस्करा उठती है| वह बिना कुछ सोचे बस सितार झाड़कर उसे लेकर बैठ जाती है| उसे हाथो से स्पर्श करते जैसे कोई जलतरंग सी उसके मन में दौड़ गई | सितार के सारे तार ढीले हो पड़े थे| उजला सिद्धस्त तरह से घुडच पर हाथ रखती उसके तार कसने लगती है|
सुबह की ख़ामोशी को ओढ़े पूरा मेंशन शांत पड़ा था| सभी अपने अपने कमरे में थे| आसमान हलकी लालिमा से उदित सूर्य का स्वागत करता पक्षियों संग कलरव कर रहा था| हलकी हलकी पुरवाई सुबह के अधखिले बेल बूटों को हौले हौले सहला रही थी| सब कुछ कितनी शांति से हो रहा था कि सहसा इस ख़ामोशी के वातावरण में यकायक सितार की तरंग गूँज उठी|
सितार के तारो पर वे उंगलियाँ बड़ी सहजता से दौड़ रही थी| मानो हवा की उंगली थामे नाजुक फूल स्वता ही उड़े चले जा रहे हो| कानो में मीठा रस घोल देने वाली ध्वनि को सुनकर सभी की नींद टूट जाती है| अचम्भे से सभी अपने अपने कमरों से निकलकर आवाज पकड़ते हुए उस ओर चल देते है|
“सिर्फ माँ ही इतना सुरीला बजाती थी – उनके अलावा कौन बजा रहा है इतना सुरीला?” मेनका अचरच में उस ओर बढती बढती भूमि से टकराती है|
“पता नही |” भूमि के हाव भाव भी आश्चर्य से भरे हुए थे|
आकाश, क्षितिज, मेनका, भूमि और अरुण के वहां आते आते उनके चेहरे पर प्रश्न चिन्ह साफ़ साफ़ नज़र आ रहे थे पर इसके विपरीत दीवान साहब की त्योरियां बुरी तरह चढ़ी हुई थी| ज्यो ज्यो वे उस आवाज के नजदीक आ रहे थे त्यों त्यों उनके हाव भाव और कठोर होते जा रहे थे| आते ही वे जोर से चीखते है उनकी भारी भरकम कड़क आवाज सुन सभी का ध्यान उनकी तरफ चला जाता है| घबराहट के मारे उजला के हाथो से एकदम से सितार फिसल जाता है|
“कौन बजा रहा है सितार ?”
आवाज सुन उजला सहमी सहमी सी बाहर आती उनके सामने सर झुकाए खड़ी हो जाती है|
“सितार तुम बजा रही थी ?” वे और जोर से गरजते है|
उजला डरकर सहम जाती है – “ज जी जी !”
सब हैरान अपनी अपनी जगह खड़े रह जाते है| उसकी नजरो के सामने उजला सहमी सी खड़ी थी| वह किसी तरह से सभी की नज़रो को टटोलती दीवान साहब के पैरो पर गिर पड़ती है इससे वे दो कदम पीछे हट जाते है|
“ये क्या करती हो ?”
“मुझे माफ़ कर दीजिए – ऐसा मैंने किसी को दुःख पहुँचाने के लिए बिलकुल भी नही किया – मुझे माफ़ कर दीजिए |” उजला के आंसू फर्श पर गिरते धार सी बना लेते है| अब सभी की नजरे उजला पर टिक जाती है जो अभी भी सुबक रही थी|
उजला के आँसू देख शायद दीवान साहब का मन कुछ पसीज जाता है जिससे वे धीरे से कह उठते है – “उठो – अब आइन्दा से फिर कभी ये सितार मत छूना |” एक गहरा उच्छ्वास छोड़ते वे तुरंत ही वहां से चले जाते है|
उनके जाते आकाश भी अब वहां से चला जाता है बस मेनका, क्षितिज और अरुण अभी भी हतप्रभ उसे देख रहे थे|
भूमि अब उजला के पास आती उसे उठाती हुई कहती है – “उठो उजला |”
उजला अपने आंचल से आंसू पोछती हुई कहती है – “मुझे नही पता था कि मेरे सितार छूने से वे इतना नाराज़ हो जाएँगे – मैं किसी को नाराज नही करना चाहती थी|”
“वे तुम्हारे सितार बजाने पर नही नाराज हुए – बस उन्हें ये अच्छा नहीं लगा कि तुमने उस सितार के तारो को झंझोड़ दिया जिसकी धुन बहुत पहले ही खामोश हो चुकी थी इसी कारण वे किसी का यहाँ आना पसंद नही करते थे – तुम समझ रही हो न मैं क्या कहना चाह रही हूँ !”
“जी – मैं समझ गई |”
“चलो जो हुआ उसे भूल जाओ लेकिन एक बात जरुर कहूँगी कि तुम सितार बहुत अच्छा बजाती हो – तुमने ये कहाँ सीखा ?” भूमि उजला का चेहरा ध्यान से देखती हुई पूछती है|
“हाँ – सितार की वही मोहक तरंग – सच में सुनकर माँ की याद आ गई |” आगे आती हुई मेनका कहती है|
“जी जी नही – मैं तो बस सितार की धूल साफ कर रही थी कि उसके तार अपने आप झनझना उठे – मैं खुद भी जानती कि कैसे वह सितार मेरे हाथो में आते बज उठे –|” वह नज़रे झुकाए कहती है|
इस पर भूमि धीरे से मुस्करा देती है|
“सच्ची मम्मा वो सोंग बहुत स्वीट था – है न बुआ |” क्षितिज अब बारी बारी से भूमि और मेनका का चेहरा देखता खिल उठा था इसपर मेनका उसे गोद में लिए वहां से निकलने लगती है| वह मेनका को अब अपने स्कूल का कुछ मजेदार बात बताने लगा था|
अब तक सभी वहां से जा चुके थे पर अरुण जो सबसे पीछे खड़ा वो सारा नज़ारा देख रहा था वो आगे आता हुआ कहता है –
“वैसे उजला तुमने नौसिखियों जैसा तो नही बजाया – ऐसा तो नही कि तुम्हे सब याद आ रहा हो |”
“नही – मुझे कुछ याद नही |” उजला घबराई सी वहां से चली जाती है|
इसपर अरुण फीकी सी हँसी हँसते हुए वापस चल देता है|
अब तक हरिमन काका भी आ गए थे| जो कुछ अलग ही भाव से सारा नज़ारा देख रहे थे| भूमि सबके जाते ज्योही पीछे वापसी को मुडती है काका को देख पूछ बैठती है –
“आप खड़े क्या सोच रहे है काका ? जाइए अब कमरा बंद कर दीजिए |”
“आज बरसो बाद पूरे परिवार को एकसाथ देखकर ऑंखें जैसे पिछले वक़्त में चली गई जब बड़ी मालकिन के सामने सारा परिवार एकसाथ उठता बैठता था बस यही देखते ऑंखें ठहर सी गई बहु जी |”
भूमि गहरा श्वांस छोड़ते निरुत्तर होती चुपचाप वहां से चली जाती है|
***
“आओ – मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था – बड़े खुश नज़र आ रहे हो – कही कोई जंग जीती है क्या ?”
सेल्विन को कमरे में प्रवेश करते देख रंजीतकहता है|
“जी बिलकुल रंजीत साहब – आपके लिए खुश खबरी ही लाया हूँ – |”
“अच्छा ! तो मैं जरुर सुनना चाहूँगा |”
“रंजीत साहब मैं उन सब प्यादों को इकट्ठा कर चुका हूँ जिनसे हम ये बाजी ऐसी पलटेंगे कि शह भी हम देंगे और मात भी |”
“हूँ |” वह उसकी बात गौर से सुनने टेक लगा लेता है|
“दीवान परिवार आपकी मुट्ठी में है – अब आप जैसे चाहेंगे सब वैसा ही होगा – आज मिसेज दीवान की संस्था का मेनेजर भी मेरी पकड़ में आ चुका है जिसे बेईज्जत करके संस्था से निकाल दिया गया |”
“तो वो क्या करेगा मेरे लिए ?”
“आप समझ नही रहे कि वो मेनेजर हमारे कितने काम आ सकता है |”
“पर वो हमारा साथ क्यों देगा ?”
“बिलकुल देगा – वो चाहे न चाहे पर उसकी जरूरते उसे हमारा साथ देने को जरुर मजबूर करेंगी – ये तो मैं खुद अपनी आँखों से देख कर आ रहा हूँ कि उसका परिवार उसकी नौकरी छूट जाने पर कितना तिलमिला रहा है – रंजीतसाहब मैं बखूबी जानता हूँ कि ये भूख क्या जालिम चीज होती है जो पल में साधू को डाकू बना देती है – वो तो मुझे आपकी छत्रछाया मिल गई नही तो मैं भी औरो की तरह डिग्री लिए मारा मारा फिर रहा होता – अब मैं जान गया हूँ कि दुनिया की सबसे बड़ी चीज क्या है – ये पैसा रुपया – यही बाप बनकर सहारा देता है और माँ बनकर प्यार देता है इसके ऊपर कोई भी रिश्ता नही |” कहते कहते सेल्विन की आँखों में नागवारी के आसार नज़र आने लगते है|
क्रमशः……………

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