
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 7
स्विमिल पूल में दोनों दोस्त बहुत देर मस्ती करने के बाद अब किनारे पर आधे पानी में डूबे उस तरावट को मन तक उतार रहे थे|
“वैसे यार अरुण तेरी जिंदगी का फलसफा मेरी समझ से परे है – कभी कभी तो मैं समझ ही नही पाता कि आखिर इस जिंदगी से तू चाहता क्या है –|”
योगेश की बात पर अरुण बस धीरे से मुस्करा देता है|
“जब तेरे एक इशारे पर लड़कियां तेरे आगे पीछे नाच सकती है तब तू सबसे तनहा वक़्त काट रहा है – स्कूल कॉलेज कही भी तूने कोई गर्लफ्रेंड नही बनाई जबकि हर जगह मोस्ट एलिजबल रहा तू – अब विदेश भी हो आया पर क्या तुझे कही कोई तेरे लायक लड़की नही मिली – ऐसे कैसे पोसिबल है ?”
“तो क्या जरुरी है कि मैं अपनी जिंदगी किसी लड़की के साथ ही काटू |”
“हाँ जरुरी ही समझ – तो क्या तेरा इरादा साधू बनकर हिमालय जाने का है क्या ?”
“क्या मन का सुकून हिमालय में ही है क्या ?”
“मतलब ?”
“मुझे लगता है आधे से ज्यादा तो हिमालय अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए चले जाते होंगे – सच्चा सुकून तो किसी के लिए कुछ करने में है – दुनियादारी से भागने में नही |”
“अब तूने मुझे और उलझा दिया – अब तक मुझे यही लगता था कि ये सुख सुविधा तुझे सुकून नही देती और अब तू इसी में रहने का बोल रहा है – मुझे न तू बहुत ही काम्प्लेक्स लगता जा रहा है|”
इस पर एक ठसक भरी हंसी से हँसता हुआ अरुण कहता है – “भाई मैं बहुत ही सिम्पल व्यक्ति हूँ काम्प्लेक्स नहीं – कोई भी मुझे पढ़ सकता है – बस तकलीफ इसी बात की है कि कोई मेरा मन पढता ही नहीं है|”
“भाई पढ़ तो मैं भी नहीं पा रहा तेरा मन – तू ही बता दे कि तू इस जिंदगी से चाहता क्या है ?”
“मैं अपने लिए कुछ नही चाहता हूँ बल्कि मैं दूसरो की चाहते पूरी करना चाहता हूँ – बहुत ज्यादा इम्बेलेंस है इस दुनिया है – किसी के पास जो चीज बेहिसाब है तो किसी के पास वही चीज जरुरत भर भी नहीं – बस इसे संतुलित करना चाहता हूँ – अगर यही कर लिया इस जीवन में तो सोचूंगा कि सफल हो गया जीवन |”
अरुण की बात पर होंठ सिकोड़ते योगेश खुद को ताली बजाने से नही रोक पाता और खुश होता हुआ कहता है – “तभी तो तू सबसे अलग है |”
तभी मोबाईल की रिंग से योगेश का ध्यान टूटता है और वह बडबडाता हुआ पानी से बाहर निकलते हुए कहता है – “जरुर नर्सिंग होम से होगा – ये लोग डॉक्टर को जिन्दा नही रहने देंगे – सब कुछ बता कर आया हूँ पर देखता फोन उठाते यही पूछेंगे कहाँ है डॉक्टर साहब !! – घास चरने गए है डॉक्टर साहब – चर लेंगे तो वापस आ जाएँगे |” बुरी तरह भुनभुनाते हुए योगेश अपना मोबाईल उठा कर उसे स्पीकर में लगा देता है|
और वाकई उस ओर से यही आवाज सुनाई देती है – “कहाँ है डॉक्टर साहब ?”
ये सब देखता हुआ अरुण अपनी हंसी नही रोक पाता वही योगेश फोन को बुरी तरह घूरते हुए जबरन अपना स्वर दबाते हुए जवाब देता है – “डॉक्टर साहब बाथरूम में फिसलकर गिर गए इसलिए आज वे अपना चोट दिवस मनाएँगे और क्लिनिक कल आएँगे |”
पर योगेश ने नहीं सोचा था कि उसकी बात का प्रतिउत्तर कुछ ऐसा मिलेगा| उधर से आवाज आती है – “तो डॉक्टर साहब बाथरूम में हवाई चप्पल नही पहने थे क्या ?”
इस पर योगेश बुरी तरह से मुंह बनाता हुआ किसी तरह से अपने गुस्से में काबू करता हुआ कहता है – “हाँ हवाई चप्पल ही पहने थे इसलिए तो हवा में टंग गए |” कहता हुआ फोन डिस्कनेक्ट करता हुआ अरुण की ओर देखता है जो उसकी हालत पर अब बुरी तरह से हँस रहा था|
“ये न डॉक्टर को जीने नही देंगे – जैसे हम डॉक्टर तो इन्सान होते ही नही – न हमे छुट्टी चाहिए न हॉलिडे – हमे तो रोज रुई डिटोल से खेलना चाहिए बस – लगता है देर तक नही रुक पाउँगा शाम तक जाना ही पड़ेगा |”
अरुण भी योगेश की बात पर मुस्कराता हुआ पूल पर से निकलकर टेबल पर से सिगरेट उठाकर उसे सुलगा कर फिर आधा पानी में उतर जाता है|
“मैं कुछ ड्रिंक लेकर आता हूँ |” कहता हूँ योगेश अंदर की ओर चल देता है|
अरुण अपने ख्याल में डूबा कश लगाता हुआ गहरे पानी की ओर पीठ करे था कि तभी किसी के नर्म स्पर्श से वह अचानक से चौकता हुआ पलटता है| उसकी नज़रो के सामने और उसके बेहद करीब कोई कमसिन युवती बेहद आकर्षक अंदाज में उसे देख रही थी|
“वर्तिका – तुम – तुम कब आई – पता ही नही चला ?” अरुण सकपकाता हुआ पानी में ही उससे कुछ दूर हो जाता है जबकि वह उसी प्रकार उसके पास बनी रहती है|
“जैसे ही पता चला तुम आए हो बस भागी चली आई – तुमने मुझे क्यों नही बताया कि तुम दो दिन पहले आ रहे हो|” वह अरुण के और पास तैर कर आती हुई रूठी हुई आवाज में कहती है|
“सब कुछ अचानक डिसाइड हुआ – |”
“चलो अच्छा है – नही तो मुझे लगा था कि तुमसे पहली मुलाकात पार्टी में ही होगी |”
“पार्टी !! नही वहां भी शायद मैं न जाऊ |” अरुण अब उचककर ऊपर बैठ जाता है|
“क्यों – वो तुम्हारे ऑनर में पार्टी है और तुम्ही उसमे नही जाओगे – भला क्यों ?” वह युवती संशय से पूछती है|
“पार्टी नही है मेरी सेल लगेगी – फला फला लोगो से जबरन मुस्करा कर मिलो – या फला फला अमिर लडकियों संग दोस्ती करो – जबरन का मेरा ऐड करना है मेरा उन्हें |” गहरे कश के साथ अरुण अब सिगरेट उँगलियों में फंसाए कही और देखने लगा था|
इससे उसे पता ही नही चला कि कब वर्तिका उसके पास आकर बैठती हुई उसकी उंगलियों में फसी सिगरेट निकालकर खुद उसका गहरा कश लेती हुई कहती है – “इसलिए तो कहती हूँ – मेरे संग चक्कर चला लो तो इन सब पचड़ो से तुम्हे छुटकारा भी मिल जाएगा और तुम्हारे डैड की बड़े घर की लड़की से शादी करने की ये इच्छा भी पूरी हो जाएगी और रंजीत इंटरप्राइजेज और दिवान्स का मिलाप होकर वे साथ में नंबर वन हो जाएँगे |”
“ये नम्बर वन का खेल तब भी नही रुकेगा और तुम कब से सिगरेट पीने लगी ?” कहता हुआ उसके हाथ से सिगरेट लेता हुआ पूछता है|
“जस्ट नाव – तुम्हारा साथ देने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ |” कहती हुई वह अपनी भीगी देह उसके खुले जिस्म के पास लाती हुई उसके कंधे पर झुक जाती है|
पर अरुण उसका सर उठाकर अपने से दूर करता हुआ कहता है – “अब हम बच्चे नही है वर्तिका !”
“तभी तो कह रही हूँ कि तुम कब ये फील करोगे कि हम बच्चे नहीं है |”
वर्तिका भी उसी अंदाज में कहती अपनी गहरी गहरी ऑंखें उसकी आँखों में डालती हुई कहती है इससे अरुण कुछ असहज हो जाता है तभी वहां आते योगेश की आवाज उन्हें सुनाई देती है –
“अरे ये बार बार के फोन ने मेरी जान लेकर रखी है – मन तो करता है – समंदर में फेंक दूँ – अरे वर्तिका कब आई – लगा तुम कल ही आओगी |” अपनी बात कहता कहता वर्तिका की ओर देखता है जो बिलकुल करीब ही अरुण के बैठी थी|
“बस जैसे ही तुम्हारा मेसेज देखा तुरंत ही चली आई – वरना कैसे पता चलता कि यहाँ अकेले अकेले पार्टी चल रही है |”
वर्तिका की बात पर क्रेड उठाकर उनके बीच रखता हुआ कहता है – “पार्टी तो कबकी बर्बाद हो गई|” कहता हुआ वह एक नज़र अरुण की ओर डालता है फिर उसके घूरने पर वह तुरंत ही बात पलटते हुए आगे कहता है – “पार्टी वार्टी क्या अब तो लगता है अभी ही क्लिनिक जाना पड़ेगा |”
“ओह – |” दुखी भाव प्रदर्शित करती वर्तिका योगेश की ओर देखती है|
“तो मेरे ख्याल से तुम दोनों यहाँ रुको – मैं चलता हूँ |” वह बियर का कैन उठाकर उसके दो तीन लम्बे घूँट में खत्म करता हुआ कहता है|
इस पर वर्तिका कुछ मुस्करा कर अरुण की ओर देखती है| पर उसकी आशा के विपरीत अरुण खड़ा होता हुआ कहता है – “मैं भी चलूँगा |”
“तुम किस लिए ?” योगेश चौकता हुआ पूछता है|
वर्तिका भी उसे गौर से देखने लगी थी|
“तेरे को बताया था न क्षितिज को बाहर ले जाना है नही तो रूठ जाएगा मुझसे |”
“कब बताया तूने ?” योगेश धीरे से बोलता है|
योगेश को जाना था वो चला गया साथ ही अरुण भी उसके साथ ही अपनी कार से निकल गया पीछे छूटी वर्तिका इससे रुआंसी हो उठी और गुस्से में एक बियर का कैन उठाकर चलती चलती उसे पीती हुई अपनी कार की ओर बढ़ जाती है|
……………..तेरी दुनिया नही मेरे पास तो क्या तेरा भ्रम मेरे पास है….
क्रमशः………