Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 71

भूमि कमरे के उस खुले हिस्से में बैठी थी जहाँ के बड़े से कांच से सर्दियों की धूप झन झनकर आ रही थी| उसकी उंगलियाँ जल्दी जल्दी स्वेटर बुन रही थी|
उस कमरे में आती उजला दरवाजे पर ठिठक जाती है|
“अरे वहां क्यों रुक गई – अंदर आओ |”
उजला अंदर आ जाती है| भूमि मुस्कराती हुई उससे कह रही थी –
“इधर आओ – बैठो |”
“आपने मुझे बुलाया था ?”
“हाँ -|” भूमि उसे ध्यान से देखती हुई कहने लगी – “तुम्हारे बारे में ही सोच रही थी – तुम क्षितिज की देखभाल बहुत अच्छे से कर रही हो – इतनी कि उसकी नई नैनी रखने की बात तक मेरे दिमाग से निकल गई पर मैं तुम्हारे बारे में सोच रही हूँ |”
“क्या !!” हैरान नजरो से वह भूमि की ओर देखती है|
“यही कि तुम्हे याद हो या न हो पर मेरा दिल कहता है तुम्हे तुम्हारा परिवार जरुर खोजता होगा |” भूमि उसका चेहरा गौर से देखती हुई कहती रही – “कितनी प्यारी हो तुम – बिलकुल गुड़िया सी – तुम जरुर किसी अच्छे घर की होगी – पता नही तुम्हारी इस हालत के बाद तुम्हारे घर वाले, तुम्हारा पति तुम्हे कहाँ कहाँ ढूंढते होंगे |”
“क्या पता – मुझे तो कुछ याद नही – बस इतना कह सकती हूँ कि वक़्त की मार के आगे किसकी चली है !”
“मैं सोचती हूँ कि क्यों न तुम्हारी तस्वीर अख़बार में छपवा दूँ – हो सकता है तुम्हारे बारे में कोई कुछ बता सके !”
“नही नही – क्या पता इससे मुझे कुछ और परेशानी हो जाए |” घबराई हुई उजला अपने होंठ काटती हुई कह उठी|
“लेकिन ऐसा बेनामी जीवन तुम कब तक जीती रहोगी – तुम्हे अपने नाम के अलावा कुछ भी तो याद नही – क्या तुम्हे ये अजीब नही लगता ?”
“सच कहूँ तो अब अजीब नही लगता – पहले मन बहुत डरता था पर आपके पास रहते मुझे बहुत अपनापन लगता है |”
“लेकिन उजला ..!”
भूमि की बात अधूरी रह गई| तभी एक नौकर दौड़ता हुआ आता कहा उठा –
“मालकिन – छोटे मालिक सीढ़ियों से गिर गए !”
ये सुनते दोनों के चेहरे की हवाइयां उड़ गई| भूमि तेजी से कमरे से बाहर निकली और उसके पीछे पीछे उजला भी|
***
डॉक्टर आया देखकर चला गया| अरुण को ज्यादा चोट नही आई थी पर उसकी मानसिक हालत अभी भी सुधरी नही थी| अरुण फिर शराब की तरफ बढ़ा तो भूमि चीख उठी –
“अरुण !! ये क्या तमाशा लगा रखा है – क्या हालत कर रखी है अपनी – समझ नही आता कि तुम पर नाराज़ होऊ या तरस खाऊ !”
“भाभी – मैं – एक पल के लिए भी होश में नही रहना चाहता – एक पल भी होश में रहता हूँ तो वो सब कुछ मुझपर फिर से हावी हो जाता है |”
“आँखे बंद कर लेने से दिन रात में नही बदल जाता – सच को देखो – उससे लड़ने की ताकत जुटाओ – तुम्हे इस समय अपने दुःख के आगे किसी और का दुःख नजर ही नही आ रहा – तुम इतने स्वार्थी तो कभी नही थे अरुण !” भूमि का गला भर आता है जिससे वह होंठ भींचे अपने आंसू अंदर समेटने लगती है|
“अरुण !” कमरे की देहरी पर अब दीवान साहब खड़े थे|
“ओह डैड – वेलकम वेलकम |”
भूमि अरुण का ये व्यवहार आश्चर्य से देखती रह जाती है|
“अरुण – तुम्हारी तबियत कैसी है ?”
“पर डैड आज आपको मुझसे मिलने की फुर्सत कैसे मिल गई – हमारा कोई ओपिन्टमेंट भी नही था – हाँ शायद आज आपकी कोई मीटिंग नही रही होगी तो टाइम पास करने यहाँ चले आए होंगे |” कहते हुए अरुण के चेहरे पर फीकी सी हँसी तैर जाती है|
“अरुण !!” भूमि तेज किस्म की सरगोशी करती है – “तुम डैडी जी से इस तरह से कैसे बात कर सकते हो ?”
“नही बहु – उसे मत रोको – कह लेने दो दिल की बात |”
“न डैड दिल विल कहाँ है मेरे पास – मेरे पास अब न कोई जज्बात रहे और न कोई संवेदनाए – मेरे पास तो सिर्फ और सिर्फ दर्द है – हर एक उस बात का दर्द जिसे जबरन मुझे दिया गया ताकि आप संतुष्ट रहे – आपके बनाए उसूल संतुष्ट रहे – आप यही तो चाहते थे न कि मैं आपकी दुनिया के लायक बन जाऊं तो लीजिए – हूँ मैं तैयार – बिन संवेदना के हाड़ मांस का एक पुतला |” दोनों बांहे फैलाए वह हिकारत से उनकी तरफ देखता है|
“अरुण तुम शराब पी पीकर क्यों अपने को मिटा रहे हो – अपने बेटे को क्या एक पिता इस तरह से देख सकता है !!”
“पर डैड अब मैं शराब नही पीता – सच – अब शराब मुझे पीती है |” कहते हुए वह अट्टहास करने लगता है|
सेठ दीवान समझ चुके थे कि इस वक़्त उनका बेटा अपना होशो हवास पूरी तरह से गँवा चुका है, वे बेबस से वहां से चले जाते है|
उनके जाते भूमि अरुण के सामने आती हुई कहती है –
“ठीक कहा तुमने इसलिए ये शब्द तुम्हारे नही बल्कि एक शराबी के है – और शराबी का कोई रिश्ता कोई परिवार नही होता – तो मेरी भी क्या जरुरत है – तुम अपने अकेलेपन में रहना चाहते हो तो रहो शौक से – अब तुम्हे कोई यहाँ परेशान करने नही आएगा |”
“भाभी… मैं ..!”
“अब मेरा तुम्हारा कोई रिश्ता नही – मर गई तेरी भाभी – खूब पी शराब पर शराब पीकर हमारे सामने आया तो अपनी भाभी का मरा मुंह देखेगा |” बिफरती हुई भूमि तुरंत उसके कमरे से चली गई| उजला ये सब दरवाजे की ओट से देख रही थी|
***
रोजाना की तरह सुबह हुई| उजला रोजाना की भांति अरुण के कमरे की तरफ ट्रे लेकर बढ़ रही थी| दरवाजा खोलकर अंदर आते ही ट्रे मेज पर रख देती है| खट की आवाज से अरुण की नींद टूट जाती है| वह उस ओर देखता है तो देखता रह जाता है| उजला ट्रे में चाय की जगह शराब की बोतल लाई थी और बिना अरुण की ओर देखे वह उसे कप में उड़ेल रही थी|
अरुण चौककर उठ बैठता है – “ये सब क्या है ?”
पर इसके विपरीत उजला सहजता से कह उठी –
“बैड टी तो आप पीते नही – ये शराब तो आपको बहुत पसंद है न – तो इससे दिन की शुरुवात अच्छी रहेगी |” कहती हुई उजला उस कप में शराब उड़ेलने लगती है| ये देख अरुण असहज होता बोल उठता है –
“तुम होश में तो हो !!”
“जी बिलकुल पर आपको अपने होश गवाने है न तो लीजिए किस बात की हिचकिचाहट ! हाँ मुझे बनाना तो नही आता – क्या पानी डालते है या शायद नही |”
अरुण भौचक उसे देखता रहा जो बोतल की शराब कप में उड़ेलती उसमे पानी डालती है फिर उसे वापस बोतल में उड़ेलने लगती है| अब बोतल उसकी ओर बढाती हुई कह रही थी – “ओह शायद पूरी बोतल पिएंगे आप !!” अरुण गुस्से में बोतल परे हटा देता है जिससे वह उजला के हाथ से छूटकर फर्श पर गिर पड़ती है|
“उजला !! तुम मुझसे इस तरह से कैसे बात कर सकती हो ?”
“क्यों ? क्या नशे में ही हद पार की जा सकती है और आपको किस बात की हिचकिचाहट !! आप तो अपने पिता से अपनी माँ समान भाभी से भी बेहूदगी कर सकते है – आज क्षितिज आपको ऐसे देखकर आपके पास आने से डरता है तो क्या कुछ दिनों में उसे भी आदत पड़ जाएगी क्योंकि आप को खुद को बदलेंगे नही – |”
अरुण अवाक् उजला को देख रहा था जो धाराप्रवाह कहे जा रही थी –
“न आपको रिश्तो की फ़िक्र रही और न परिवार की आप तो सिर्फ अपने लिए जीते है फिर आपको किसी की संवेदनाओ और भावनाओ से क्या लेना देना – ये बस आप खुद को धोखा दे रहे है |”
अरुण अभी भी शून्य बना उसे देखता रहा|
“भगवान् के लिए इस तरह अपनों को मत तड़पाइए – आप जरा बाहर निकलकर देखिए – आपकी इस हालत का असर आप अपनों के चेहरे पर पाएँगे |”
“मैं तो खुद को सजा देता हूँ |”
“ये आपका भ्रम मात्र है – आप खुद को नही बल्कि उनको तकलीफ दे रहे है जो आपके अपने है – |”
“तुम्हे क्या पता है मेरे बारे में – मैं तंग आ चुका हूँ इस फरेबी दुनिया से अब नही कर सकता इसका और सामना |” अरुण झुन्झुलाते हुए दोनों हाथों से अपने बाल पकड़ लेता है|
“हाँ नही जानती आपको पर इतना जरुर जानती हूँ कि दूसरो की बुराई के लिए अपने अन्दर की अच्छाई पर शक नही किया जा सकता – क्या हुआ जो लोग आपको बुरा समझते है समझने दीजिए – नहीं जिम्मेदारी है आपकी हर किसी को ये समझाना – हर इन्सान की गवाही उसका अपना वक़्त होता है तो उस वक़्त को आपके पास आने का मौका तो दीजिए – आप इस दुनिया के लिए न सही कम से कम अपनों के लिए खुद को संभाल लीजिए – छोड़ दीजिए न ये शराब |” उजला के स्वर में विनती उभर आई थी|
अरुण अभी भी स्तब्ध बना हुआ था| उजला फर्श की ओर झुकी हुई थी| कमरे में कुछ पल तक मूकता छाई रही|
…………………..क्रमशः………………….

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!