Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 72

निशब्दता सी कमरे में छा गई थी| अरुण उठकर उस ओर बढ़ गया था जहाँ कतारबद्ध शराब की बोतले सजी थी| उजला अनबुझी सी उसकी ओर देखने लगी जबकि अरुण की पीठ उसकी ओर थी|
वह उन बोतलों पर उंगली फिराते हुए बुदबुदा उठा –
“सब यही चाहते है न कि मैं शराब छोड़ दूँ !” वह रोष से उन बोतलों पर अब हाथ फिराने लगा था|
“तो लो आज भी मान ली सबकी बात |” कहते हुए वह एक झटके में सारी बोतलों को जमीन की ओर सरका देता है| वे सारी एक तेज आवाज के साथ जमींदोज हो गई| उजला मुस्करा उठी| वह उठ के जाती हुई कहने लगी –
“मैं अब चाय लाती हूँ आपके लिए |”
पर उस कांच की आवाज में जहाँ उजला का आखिरी शब्द दब गया वही अरुण का आखिरी कहा वाक्य भी वह नही सुन पायी जिसमे वह बेहद दर्द के साथ कह उठा था –
‘सबको लगता है मैं नशे से बाहर आ जाऊंगा पर वे नही जानते कि किसी की यादो का नशा सबसे खतरनाक होता है |’
***
खिन्न मन के साथ भूमि संस्था निकलने को तैयार थी| उसका नाश्ता अभी भी मेज का जस का तस रखा था पर उसने उधर पलटकर भी नही देखा| वह अपने पर्स में जरुरी सामान डालती ज्योंही पलटती है सामने अरुण को खड़ा पाती है| पर उसे देख पहली बार एक अनजाना भाव अपने चेहरे पर लाती वह बाहर निकलने वाली थी पर अरुण की आवाज सुन वही ठिठककर रह जाती है|
“भाभी !! नाराज हो मुझसे ?”
भूमि जानकर अपनी भावनाओ को समेटती दूसरी ओर देखने लगती है|
“भाभी – देखो मैंने आज शराब नही पी है – तभी आपके सामने आया हूँ |” अरुण नज़रे झुकाए उसके सामने खड़ा था और भूमि के चेहरे पर आश्चर्य के भाव तैर आए|
“आपसे माफ़ी मांगने आया हूँ – कबसे हिम्मत जुटा रहा था ये कहने के लिए आखिर मैंने अपनी भाभी माँ का दिल जो दुखाया है |”
भूमि हैरान उसका चेहरा देखती अब उसके पास आती बढ़कर उसके सर पर हाथ फिराती हुई कह उठी – “तूने वो जहर छोड़ दिया यही मेरे लिए बहुत है – अरुण – तुझे बता नही सकती कि आज मैं कितनी खुश हो गई हूँ कि इतने दिन बाद फिर से मेरा अरुण वापस आ गया है |” भूमि ख़ुशी के मारे उसका माथा चूम लेती है| उसकी ऑंखें ख़ुशी के मारे छलक आई थी|
“तो आपने मुझे माफ़ कर दिया ?”
“अरे पगले – माँ बेटे में कैसा बैर ?” वह कहते कहते गंभीर हो उठी – “पर अरुण तूने उस रूप में बहुत कुछ खोया है – बहुतो को नाराज़ किया है – अब तुम अपना जीवन फिर से शुरू कर रहे हो तो मैं चाहूंगी कि तुम सबसे पहले उनसे जाकर माफ़ी मांगो – तुम समझ रहे हो न कि मैं क्या कह रही हूँ ?”
“हाँ इसीलिए तो सबसे पहले मैं आपके मिलना चाहता था – अब मैं डैड के पास जाऊँगा – फिर योगेश से भी न जाने मैंने क्या क्या कह दिया – |” अरुण के हाव भाव और भी गंभीर हो जाते है|
“सब छोड़ अभी – पहले मेरे साथ बैठकर नाश्ता करो – |” वह उसका हाथ पकड़कर बैठाती हुई कहती है|
अरुण वही बैठ जाता है| भूमि अब ट्रे उसके सामने रखती हुई कहती है –
“जहर ने क्या हालत कर दी तुम्हारी !” कहती हुई उसके माथे के कोने में लगी बैडेज को शोक से देखने लगी|
अरुण अब ट्रे ध्यान से देखता हुआ पूछ उठा – “आप बिना नाश्ता किए जाने वाली थी !! मेरी वजह से न !!”
“अरे !” भूमि जानकर अरुण की बात अनसुनी करती हरिमन काका को ज्योंही आवाज लगाने वाली थी वे उसी पल कमरे में एक ट्रे लिए प्रवेश करते कह उठे –
“हम जाने थे इसलिए बिटवा का नाश्ता यही ले आए |” वे आते ट्रे का सामान उनके आगे सजाने लगते है|
“अरे वाह काका आप तो बिना कहे सब समझ जाते है |” भूमि हँसती हुई कहती है|
“अरे हमको तो पता ही नहीं चलता वो तो उजला आकर हमको बताई |” वे सामान रखते रहे|
“अच्छा !” भूमि आश्चर्य प्रकट करती अरुण की ओर देखती है|
“सच कहे तो आज ठाकुर जी के चरणों में गिरकर उन्हें दंडवत करने का मन हो रहा है – ऊपर वाले ने भी नसीब से क्या क्या दिन दिखाए |” वे अरुण को स्नेह से निहारते हुए कह उठे|
भूमि भी उसी भाव से कह उठी – “काका सब नसीब का लिखा होता तो फिर दुआए किस लिए होती|”
इस पर वे सहजता से मुस्करा उठे|
“काका आप इस वक़्त सारे काम छोड़कर सबसे पहले अरुण का कमरा ठीक कीजिए और सारा कचरा उठाकर बाहर फ़ेकिए – समझे न आप !”
“हाँ बहु जी – अब बिटवा के कमरे में उस जहर की गंध तक भी न रहेगी |” काका ख़ुशी से झूमते हुए चल देते है|
***
वर्तिका के लिए उसके दिन रात में कुछ ख़ास फर्क नही था बस हर एक दिन जैसे बीत जा रहा था| वह सूखी आँखों से कांच पर उभर आई ठंडी ओस को उंगली से दिशाहीन कर रही थी तभी कोई आवाज उसके कानो में पड़ी| वह पलटकर आवाज की दिशा में देखती है| उसके कमरे के कोने में खड़ी उसकी एक दूसरी मेड रीना मोबाईल को अपने होंठो के बहुत पास लाती फुसफुसाती हुई बोल रही थी| वर्तिका थोड़ा और ध्यान से सुनती है तो उसे जो सुनाई देता है उससे वह उसे टोकती हुई पुकार उठती है|
वह जल्दी से मोबाईल काटकर वर्तिका के सामने खड़ी हो जाती है|
“किसको क्या हुआ ? तुम किससे बात कर रही थी ?”
वर्तिका के गौर से उसे देखने पर वह थोड़ा घबरा जाती है|
“बोलो – क्या हुआ है किसी को ? मैंने सुना अभी – तुम किससे बात कर रही थी ?”
“व वो – मैंने उसको मना किया मैडम पर वो सुनती ही नही – बार बार मुझे कॉल कर रही है – अब मैं न फोन बंद करके रख देती है –|”
“कौन नही सुन रही – क्या कोई परेशान कर रहा है तुम्हे फोन पर ?”
“वो रानी है न मैडम जी – वही फोन कर रही – मैं बोली उसको कि बाद में कर पर सुनती ही नही – अब क्या करे उसका बच्चा बीमार है न इसलिए हडबडा गई है |”
“कौन रानी –|” फिर जल्दी से याद करती हुई खुद से कह उठी – “अरे हाँ वो तुमसे पहले जो रहती थी वो कहाँ गई – मैं तो उसे भूल ही बैठी|”
अभी रीना बुरी तरह घबराकर वर्तिका के सामने से हटकर उसकी ओर पानी और दवाई बढाती हुई कहती है – “मैडम जी आप ये दवाई ले लीजिए |”
वर्तिका दवाई लेती हुई पूछती है – “क्या वही रानी है – उसी का फोन आया है तुम्हारे पास ?”
वह बस धीरे से हाँ में सर हिला देती है|
“क्या हुआ है उसको – कल से देखा ही नही उसको |”
“वो नौकरी छोड़ दी उसने |”
“अच्छा क्यों ?”
इसपर वह फिर चुप्पी साध लेती है|
“बोलो न – !”
“वो क्या है मैडम जी उसने गलती की न इसलिए साहब ने उसे नौकरी से निकाल दिया – अब उसके पति के बाद से उसका यही नौकरी सहारा थी – अभी उसका बच्चा बीमार है तो दवाई के वास्ते पैसा मांग रही थी|”
वर्तिका को बात समझते देर न लगी कि रानी से क्या गलती हुई होगी| गई तो वह थी पर उस बात का खमियाजा उस रानी को भुगतना पड़ा| वह तुरंत ही उठकर कमरे से बाहर निकल गई|
अगले ही पल वह रंजीतके पास थी और उसके पास आती हुई तुरंत कहने लगी –
“भईया वो रानी को मुझे वापस अपने काम के लिए चाहिए |”
“कौन रानी ?” वह उसकी ओर गौर से देखने लगा|
“वही जिसको आपने मेरी वजह से निकाल दिया पर मुझे वो वापस अपने पास चाहिए |” वर्तिका जिद्द करती हुई बोली|
“तो क्या इसे हटाना है ?” अबकी वह दरवाजे पर खड़ी रीना की ओर इशारा करता हुआ पूछता है|
“ओहो भईया – मुझे इसे भी नही निकालना और वो भी मुझे चाहिए – बस |”
“ओको ठीक है |”
“अभी |” वह पैर पटकती जिद्द करती हुई कहती है|
इसपर रंजीतहँसते हुए उसके सर पर हाथ फिराते हुए कहता है – “ठीक है अभी तुरंत बुलवाते है |”
“नही – अभी आप बस उसे पेमेंट देकर रख लीजिए फिर वह कल से ज्वाइन कर ले |”
“जैसा हुकुम मेरी प्रिन्सेज |”
लाड से अपने भाई के कंधे से लगती हुई वर्तिका कह उठी – “आप दुनिया के सबसे अच्छे भईया हो |”
वह भी स्नेह से उसके सर पर हाथ फिराता रहा|
***
अचानक से शराब छोड़कर अरुण अपने मन की बेचैनी से परेशान हो उठा| अजीब सी कसमसाहट उसमे उभरने लगी| भाभी के जाते अब वह मुख्य हॉल से होता सीढियों की ओर बढ़ रहा था पर बार बार उसका मन जैसे उसे बार की ओर खींचने लगा जो मुख्य हॉल के एक कोने में स्थित था| कुछ सोचकर वह अपने कदम पीछे करता है फिर अचानक से मुड़ता है तो ये क्या उसका सर किसी चीज से टकराता है और आह किसी और के निकल जाती है|
वह अवाक् अपने सामने के दृश्य को देखता रहा| उसकी नजरो के सामने सीढ़ियों पर खड़ी उजला अपना सर सहला रही थी| अरुण समझ गया कि वही अपनी बेख्याली में सीढ़ियों से नीचे आती उजला से टकरा गया|
“मुझे माफ़ करना मैं तुम्हे देख नही पाया |” अरुण उसकी ओर देखता हुआ धीरे से कहता है| वह अपना सर अभी भी सहला रही थी|
पर अरुण के कहते तुरंत चौकस निगाह से उसे देखती हुई कह उठी – “आप क्यों माफ़ी मांग रहे है – गलती तो मेरी थी – आखिर सामने से मैं ही आ रही थी और वैसे भी मुझे तो आपसे सुबह वाली बात के लिए भी आपसे माफ़ी मांगनी थी|”
अरुण विस्मय भाव से उसे देखे जा रहा था और वह कहे जा रही थी|
“वो सुबह मैं जो लायी उसके लिए – अरे हाँ आपको तो चाय चाहिए होगी न – अभी लाती हूँ |” झट से कहती हुई वह सीढ़ियों से नीचे उतर जाती है| अरुण कुछ पल तक हकाबका सा उसे जाता देखता रहा फिर वह वापस अपने कमरे की ओर चल देता है| इससे वह बार में जाने की बात भूल ही बैठा था|
***
अरुण अपने पिता के केबिन में ठीक उनके सामने बैठा था| आज उनके हाव भाव में रोष के बजाये अपनेपन के भाव थे| वे अरुण को गौर से देखते हुए कह रहे थे –
“कभी कभी होश में इन्सान वो बातें नही कह पाता जो नशे में कह लेता है शायद मेरी सख्ती तुम्हारे लिए ऐसी ही रही हो खैर मुझे तुम्हारे लौटने की ज्यादा ख़ुशी है – भूल जाओ कल क्या हुआ अब ये सोचो आगे क्या करना है |”
वे हाथ बढाकर टेबल पर रखे अरुण के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए अभी भी उसकी ओर देख रहे थे| ये अपने पिता की ओर से मिला बिलकुल नया भाव था जिसपर वह भी बड़ी ख़ामोशी से सहमती में सर हिला देता है|
तभी केबिन में नॉक करके आकाश और उसके पीछे पीछे मेनका वहां प्रवेश करते है|
“आओ बैठो दोनों |” दीवान साहब आकाश और मेनका को बैठने का संकेत करते है|
आकाश अरुण को देख उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहता है – “वेलकम बैक अरुण |”
मेनका भी अरुण के बगल वाली सीट पर बैठती मुस्करा उठती है|
अब दीवान साहब के ठीक सामने उनके तीनो बच्चे थे जिससे वे भी होंठो को विस्तार देते कहने लगते है – “तुम तीनो को साथ में देखकर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है |”
वे तीनो भी मुस्कराकर एकदूसरे को देखते है|
“मैं हमेशा से सोचता था कि एक दिन ऐसा आए जब मैं अपना एम्पायर अपने बच्चो को सौंप सकूं और वो दिन शायद यही है |”
अब तीनो विस्मय भाव से दीवान साहब को देखने लगे पर वे लगातार अपनी बात कह रहे थे|
“दीवान लिमिटेड जिसने कभी टैक्सटाईल व्यवसाय से अपनी शुरुवात की थी लेकिन आज कई उद्योगों में हमारे शेयर मौजूद है – आज देश के पचास अरबपतियों में दीवानस की गिनती होती है बल्कि ग्लोबल लिस्ट में भी दीवान्स का परचम है और ये दिवान्स इंटरप्राइजेज को बनने में कोई एक दिन का समय नही लगा – मेरे पूरे चालीस साल की मेहनत है इसकी नींव में – इसे कतरा कतरा करके मैंने एम्पायर बनाया है – अपनी इक्कीस साल की उम्र से मैंने इसे बनाने का सपना देखा और इसे आज यहाँ लाकर खड़ा किया जबकि तुम तीनो जिस एम्पायर में खड़े हो वो पहले से ही बना हुआ है लेकिन इसे बनाए रखने के लिए तुम्हे मेहनत करनी है – क्योंकि पहली पोजीशन पाना जितना आसान है उससे भी मुश्किल है उसमें बने रहना – तुम लोग सोच रहे होगे न कि ये बात मैं तुम्हे क्यों बता रहा हूँ ?” वह अब केबिन में टहलते हुए अपनी बात कह रहे थे – “क्योंकि जिस चीज को बनने में वर्षो लगते है उसे बिखरने में जरा भी वक़्त नही लगता – एक सिर्फ एक गलती इस एम्पायर को ध्वस्त कर सकती है बस यही मैं तुम्हे बताना चाहता हूँ कि वो गलती तुम तीनो से हरगिज न होने पाए |” एकदम से मुड़ते हुए वे तीनो के चेहरे एकसाथ देखते हुए कह उठे|
इस पर आकाश कुछ कहने वाला था पर वे हाथ के इशारे से उसे चुप रहने का संकेत करके आगे कहने लगे –
“इसलिए मैं चाहता हूँ कि इस जिम्मेदारी को तुम तीनो में बांटा जाए ताकि फ्री हैण्ड होकर अपने अपने हिस्से की कंपनी तुम तीनो देख सको – आज से कंपनी में तुम तीनो को शेयर बराबर होगे – हालाँकि कुछ शेयर भूमि के भी है पर उन्हें अभी आकाश ही देखेगा क्योंकि अब तक आकाश ने बहुत मजबूती से कंपनी को संभाला है और यही मेरी तुम दोनों से भी उम्मीद है – यही कारण है कि मैं हमेशा से यही चाहता था कि बोर्ड ऑफ़ मेम्बर्स में परिवार के लोग ज्यादा रहे इससे कंपनी का अधिकार क्षेत्र अपना बना रहता है – तुम तीनो के शेयर बराबर होने का मतलब है तुम तीनो के अधिकार भी बराबर होंगे लेकिन ..|” वे कुछ पल का पौज़ देते आगे कहते है – “कंपनी का सीईओ आकाश ही रहेगा और तुम दोनों एमडी होगे लेकिन एमडी के अधिकार क्षेत्र कम मत समझना – ये भी बहुत जिम्मेदारी का पद है और यही मेरी अपेक्षाए भी है |”
“बिलकुल डैड |” तीनो साथ में सहमति देते है|
इससे दीवान साहब के चेहरे पर गर्वीली मुस्कान छा जाती है|
क्रमशः………..

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