Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 73

अब अकसर रूबी सेल्विन के घर रुक जाती| इस वक़्त वह उसकी बाँहों में चैन से लेटी थी| सेल्विन खुली आँखों से उसे देख रहा था| रूबी के चेहरे पर सुकून और विश्वास की गहरी शांति छाई थी जिसे जानकर नज़रन्दाज करता सेल्विन चुपचाप अपनी बांह उससे छुडाता हुआ उठ जाता है|
वह फिर रूबी को ध्यान से देखता हुआ ये ताकीद करता कि वह गहरी नींद में हो फिर बिना आहट उठकर उसका पर्स खंगालने लगता है| उसके पर्स से उसका मोबाइल और डायरी निकालकर उसे देखता हुआ उसका मोबाईल लेकर उसे अपने लैपटॉप में लगाकर कुछ डाटा ट्रांसफर करने लगता है| वह रूबी के उठने से पहले ही इस प्रोसेस को जल्दी से खत्म कर देना चाहता था| वह लगातार अपनी एक निगाह रूबी पर बनाए हुए था और रूबी सेल्विन के ख्वाबो में चैन से सोई थी|
***
अरुण को पता था कि उसने अपने यार का दिल दुखाया है तो अब उसे मनाने खुद ही उसे जाना होगा| वह इस वक़्त उसके नर्सिंग होम में था जहाँ सामने की कुर्सी पर योगेश अपने बगल में बैठे मरीज की सुनता अपने सामने की कुर्सी पर बैठे अरुण को अनदेखा कर रहा था जिसपर अरुण हलकी मुस्कान से लगातार उसे देख रहा था|
योगेश के बगल में बैठा मरीज कोई मोटा सेठ था और अपने गोलगप्पा जैसे गालो पर आते पसीने को बार बार पोछता हुआ गहरी गहरी सांस ले रहा था|
“हाँ बताए क्या परेशानी है आपको ?”
“डाक्टर साहब मुझे भूख नही लगती |”
“और ?”
“और नींद भी नही आती |”
“हम्म|” योगेश अपने सामने के लेटर पैड पर झुका हुआ हामी भरता है|
“दो कदम चलता हूँ तो घबराहट होने लगती है इसलिए गाड़ी से ही आता जाता हूँ – आपने कहा था कि पसीना निकलना जरुरी है तो मैं एक आध घंटे के लिए कमरे का एसी भी बंद कर देता हूँ – सच कहते है डोक्टर साहब बड़ा पसीना निकलता है तब |”
उस गोल गप्पा जैसे सेठ की बात सुन अरुण की हंसी छूट जाती है जिससे योगेश गंभीर आँखों से अरुण को देखकर फिर उस सेठ को देखने लगता है|
“लाइए चेक करता हूँ –|” कहता हुआ वह अपना स्थेस्कोप ढूँढने लगता है| इस पर अरुण मेज पर के एक रजिस्टर के नीचे उसे इशारा करता हुआ कहता है –
“ये रखा है |”
योगेश अरुण को जानकर अनदेखा कर रहा था इससे वह उसे बिना देखे स्थेस्कोप उठाते हुए कहता है – “पता नही कौन बोल रहा है मुझे तो वो दिखाई भी नही दे रहा |”
“क्यों डोक्टर साहब आपको इतना बड़ा आदमी दिखाई नही दे रहा – पर मुझे तो दिखाई दे रहा है|” सेठ अब अरुण की ओर ध्यान से देखता हुआ योगेश से कहता है|
लेकिन योगेश अभी भी मुंह बनाए हुए अरुण की ओर न देख कर सेठ की ओर देखता हुआ कहता है – “आप गहरी गहरी सांस लीजिए |”
“तमे समझ न रहे डोक्टर साहब – दो चार रोटी खाते मेरी भूख मर जाती है – सुबह तो बहुत अच्छी भूख लगे पर शाम होते होते तो मेरी सारी भूख ही खत्म हो जाती तब रात में दो रोटी खा कर ही सो जाता हूँ – |”
अरुण अभी भी तिरछी मुस्कान से उनकी ओर देख रहा था| तभी उस रूम में योगेश के नर्सिंग होम की नर्स नैना प्रवेश करती है| वह आँखों से अरुण को विश करके योगेश के पीछे की स्लैप पर रखे कॉफ़ी मेकर को ओन कर देती है|
“पिछली बार जो दवाई दे रहा था उससे कुछ दवाई बदल रहा हूँ – इसे आप सुबह शाम लेते रहना |” योगेश दवाई का पर्चा उसकी ओर बढ़ाते हुए कहता है|
“हाँ ये ठीक है |” वह दवाई का पर्चा देखता हुआ कहता है – “डोक्टर साहब पिछली बार से कम दवाई लिखी है आपने |”
ये सुनते योगेश वह पर्चा उसके हाथ से लेता हुआ उसमे आगे लिखकर दुबारा उसे पकडाता हुआ कहता है – “ये कुछ विटामिन और एनर्जी के टेबलेट भी है इन्हें भी आप लेते रहे |”
“हाँ अब ठीक है – तमे बहुत अच्छे डोक्टर हो |” वह ख़ुशी ख़ुशी पर्चा अपने रेशमी कुर्ते की जेब में रखता हुआ उठने लगा|
“तो डॉक्टर साहब कैसे है आप ?” अरुण फिर योगेश की ओर गौर से देखता हुआ उसे छेड़ता है|
“मैंने कहा न मुझे कोई दिखाई ही नही दे रहा |” योगेश झल्लाए हुए स्वर में बोलता है|
अब तक वह सेठ जो उस रूम से बाहर निकलने ही वाला था योगेश की बात पर रूककर फिर अरुण की ओर गौर से देखता हुआ पूछ उठा – “क्या सच में डोक्टर साहब आपको ये सज्जन नही दिखाई दे रहे पर मुझे तो दिखाई दे रहे है |” वह अपनी मोटी मोटी आँखों से कभी अरुण को देखता तो कभी योगेश को|
जहाँ अरुण के चेहरे पर हलकी स्माइल थी वही योगेश अभी भी मुंह फुलाए हुए था| सेठ की बात सुनते योगेश तुरंत भन्नाते हुए स्वर में बोल उठा – “रुकिए सेठ जी आपको इंजेक्शन लिखना तो भूल ही गया – नैना इंजेक्शन तैयार है न |”
इंजेक्शन की बात सुनते सेठ की तो जैसे हवा ही निकल गई वह तुरंत घबराते हुए बाहर निकलते हुए कहता है – “न नही – यही दवाई ठीक है – जय राम जी की डोक्टर साहब |”
उसके निकलने के अंदाज पर सभी हलके से मुस्करा उठते है|
सेठ के जाते नैना दो कॉफ़ी के कप उनके बीच में रखती मुस्कराकर उन्हें देखती बाहर निकलती हुई बोल उठी – “मैं बाकी के पेशेंट अभी होल्ड पर रखती हूँ |”
नैना बाहर चली गई पर योगेश अभी भी अरुण के विपरीत देख रहा था कि तभी उसकी आह निकल गई क्योंकि जब योगेश उसकी तरफ नही देख रहा था तब उसकी उंगली उसने गर्म कप से छुआ दी जिसपर योगेश उसपर बिगड़ उठा – “ऐसा कर पूरा कप उड़ेल दे मुझपर क्योंकि तुम्हे तो सब करने का राईट मिला है न |”
“चलो कम से कम मैं डोक्टर साहब को दिखा तो |” उस सेठ के अंदाज में बोलता हुआ अरुण कहता है|
“हाँ मुझे तो दिख रहे हो पर तुम्हे मैं कैसे दिख गया – आज अचानक से – क्यों ?”
“क्योंकि कल रात तू मेरे सपने में आया था तो सोचा आज साक्षात् देख आऊ |”
“तो ठीक है देख लिया तो अब जा |”
“अरे कॉफ़ी तो पी लूँ |” अरुण एक सिप लेता हुआ कहता है – “वैसे तेरी गालियों से ज्यादा स्ट्रोग नहीं है |”
“गाली का तो मैं तुझे महापुराण सुनाता – बहुत गुस्सा आ रहा था तुझपर |”
“ओके – अब बाहर चल फिर जो जी में आए सुना लेना |”
अरुण की बात पर योगेश थोड़ा नखरे से कहता है – “रुक जा थोड़ी देर – क्यों मेरी रोजी रोटी में लात मार रहा है – कुछ मरीज और तो देख लूँ |”
“हाँ – इस मोटे सेठ की तरह और कितनो को उल्लू बनाएगा |” मजे लेता हुआ अरुण कहता है|
“मैं उसे उल्लू नही बना रहा – उन जैसे लोगो को खुद ही उल्लू बनने में मजा आता है – ये बस हर चीज खरीदना चाहते है – इनका बस चले तो अपने हिस्से की सांस भी दूसरो से निकलवा ले और उस बचे समय में पैसा बनाते रहे – अगर मैं इससे कहता एक्सरसाई करो सब अपने आप ठीक हो जाएगा तो पता है ये क्या करता ? ये अपना डॉक्टर बदल लेता न कि अपना तौर तरीका – इसलिए जो दूसरा कमाने वाला था मैंने कमा लिया – समझे |”
“समझ गया – दुनिया के रूल में कोई फर्क नही आया – ये दुनिया हमेशा ऐसी ही रहेगी – उभोग्कर्ताओ की दुनिया है ये |”
“हाँ अरुण – ये दुनिया ऐसी ही रहेगी इसलिए दोस्त इसके साथ समझौता कर लो तो ज्यादा बैटर है |”
इसपर अरुण एक गहरा श्वास छोड़ता हुआ कप पर अपनी उंगली फेरने लगता है तब तक योगेश फोन पर नैना को अगला मरीज भेजने को कहता है|
***
रानी वापस आकर अपने काम में लग गई| वर्तिका उसकी वापसी पर ही खुश थी| वह उसे ध्यान से देखती हुई कह रही थी – “अब तो तुम्हारे घर में कोई प्रॉब्लम नही होगी न – तुम बच्चा ठीक हो जाएगा |”
“जी मैडम जी – आप बहुत भली है |”
“अरे तुम्हारे माथे पर ये चोट कैसी ?” वर्तिका अभी भी उसका चेहरा गौर से देख रही थी|
इससे वह थोड़ी घबरा गई पर जब वर्तिका दुबारा उससे पूछने लगी तो वह बताने लगी – “ये मेरे भाई ने धक्का दे दिया था तो दरवाजे की कुण्डी से लग गई |”
“तुम्हारे भाई ने तुम्हे मारा ?” वर्तिका उससे ये सवाल इस तरह करती है जैसे दुनिया की सबसे अजीब बात उसे आज पता चली हो|
“वो क्या है मैडम जी पीकर उसे खुद का ही होश नही रहता – मेरी भाभी को तो रोज ही मारता है – जब मैं उसे बचाने लगी तभी वह मेरे को धक्का दिया |” वर्तिका आश्चर्य से सब सुन रही थी और वह भी बेरोक बोले जा रही थी – “मैडम जी ये गरीबी भी न बड़ी बुरी चीज है इसके नीचे जाने कितने रिश्ते रोजाना ही कुचलते है – मेरे भाई के पास कोई नौकरी नही तो बस इसी दर्द को भुलाने मेरे भेजे पैसे से दारू पी आता है – अब मैं भी क्या करती – आदमी के बाद से मेरे को अपने भाई भाभी का ही सहारा है – जब मैं यहाँ काम पर आती तो वही मेरे बच्चे का ध्यान रखती है|”
“तो मैं तुम्हारे भाई को भी नौकरी दिला देती हूँ |” वर्तिका मासूमियत से कहती है|
इसपर रानी हलके से खुद पर हँसती हुई कहती है – “मैडम जी आप किस किस को नौकरी दिलाएंगी – वो तो पूरी गरीबो की बस्ती है और सारे गरीब लोगो का यही हाल है – अच्छा आपकी दवाई का टाइम हो गया – मैं दवाई लाती हूँ |” कहती हुई रानी उठकर दवाई निकालने लगती है जबकि वर्तिका अचरच हाव भाव से रानी की ओर देख रही थी|
***
देर शाम अरुण वापस आते पोर्च पर उतरते हुए अंदर आ ही रहा था कि किसी आवाज पर उसका ध्यान चला गया| गार्डन एरिया से क्षितिज की आवाज आ रही थी| अरुण उस ओर बढ़कर उसकी ओर देखने लगा|
क्षितिज उजला से किसी बात की जिद्द कर रहा था|
“चलो न आंटी – बडी के पास चलते है न -|”
क्षितिज की जिद्द पर उजला बार बार जाने का इंकार कर रही थी| ये देख अरुण क्षितिज को आवाज लगाता हुआ कहता है –
“क्षितिज – तुम्हे पता है न कि बडी अजनबियों संग जल्दी नही घुलता |” अरुण जानता था कि बडी योगेश तक को देखकर अभी भी भौंक देता था|
अरुण अपनी बात कहकर जाने को हुआ तो क्षितिज उसे पीछे से आवाज लगाता हुआ कह रहा था – “नही चाचू – आपको नही पता – बडी तो आंटी का बड़ा अच्छा फ्रेंड बन गया है – बेस्ट वाला फ्रेंड |”
क्षितिज की बात पर अरुण अब पलटकर उजला की ओर देखता है जो जानकर अन्यत्र देख रही थी फिर बिना कुछ कहे अरुण वापस चला जाता है|
क्रमशः………..

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