
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 74
ये सुबह भी कुछ अलग नही थी उसकी, मानो सुबह का सूरज अंगड़ाई लेकर नही बल्कि रात के आसूं पोछकर उठा हो| एक और दिन को उगते हुए अरुण खिड़की के पार देखता सिगरेट फूंक रहा था| उसका समस्त ध्यान आसमान पर धीरे धीरे उगते सूरज पर था| अकेला अपने दिन की शुरुवात करता हुआ न बादलो की हमजोली न पक्षियों का इंतज़ार बस एक फर्ज की तरह दिन की शुरुवात हो रही थी|
इससे अरुण का ध्यान अपने पीछे गया ही नही कि कब उजला आकर उसके बगल में खड़ी कुछ पल तक उसकी ओर देखती रही| फिर उसकी चूड़ियों की चुगली करते अरुण का ध्यान उसकी ओर जाता है|
“आप नीचे आ रहे है न !” वह उसके हाथ में चाय का कप पकड़ा कर तुरंत ही अपनी बात कहकर चली जाती है|
उसका कहा अरुण समझ नही सका फिर कुछ घूंट लेने के बाद वह नीचे के लिए चल देता है| वह सीढियां उतरता मुख्य हॉल से होता डाइनिंग एरिया की ओर बढ़ रहा था| ज्यो ज्यो उसके कदम उस तरफ बढ़ रहे थे कुछ आवाजे उसके कानो में पड़ रही थी जिनका एक साथ होना उसके लिए अविश्वसनीय था|
वह संशय में पड़ा दो पल तक उस ओर देखता रहा जहाँ उसे कुछ अलग ही नज़ारा दिख रहा था| क्षितिज आकाश की उंगली थामे उसे डाइनिंग एरिया तक लाता उसे पहले से बैठी भूमि से एक कुर्सी छोड़कर बैठा रहा था| आकाश जो इस वक़्त कही कॉल में व्यवस्त था उसके इशारे पर बैठ भी जाता है| अब क्षितिज अपने मम्मी पापा के बीच बैठा भरपूर मुस्कान से मुस्करा रहा था|
भूमि प्यारे से एक कौर क्षितिज को खिलाकर मुस्करा दी थी| भूमि की नजर ठहरे हुए अरुण पर जाते वह उसे इशारे से वही बुला लेती है| अरुण भूमि के बगल की कुर्सी पर बैठ जाता है| अब अपने सामने बैठी मेनका पर उसकी नज़र जाती है जो उसे गुड मोर्निंग विश करती अपने मोबाईल को फिर से स्क्रोल करने लग जाती है|
आकाश बात करते करते कॉफ़ी का सिप लेते बोल उठा – “हम्म – टू गुड – जिगना लगता है आजकल दिमाग से काम करने लगे हो – एकदम बेस्ट टेस्ट है आज की कॉफ़ी का |”
जिगना जो टेबल पर सबके लिए नाश्ता लगा रहा था ये सुनते तुरंत कुछ कहने को हुआ तो पीछे से उजला आकर उसके हाथ में कुछ और थमा जाती है इससे वह इसका श्रेय उजला को देते देते रह गया|
“हाँ पोहा भी बहुत टेस्टी बना है |” मेनका भी कहे बिना न रह सकी| उजला चुपचाप किचेन के अंदर चली जाती है|
भूमि और अरुण भी अपनी अपनी प्लेट का खाते हुए मुस्करा कर हामी भरते है| सभी को इस तरह व्यस्त देख क्षितिज चुपचाप अपनी प्लेट से कुछ मटर के दाने निकालकर मेनका की प्लेट की ओर बढाने लगा पर सामने बैठी मेनका की इस पर नज़र जाते वह झट से क्षितिज के टीप लगाती एक चम्मच मटर भरकर उसके मुंह में डाल देती है जिससे उसका नन्हा सा मुंह बन जाता है और ये देख बाकियों की हँसी छूट जाती है|
आकाश भी उसके बाल बिगाड़ता हुआ कह उठा – “शैतान !”
फिर से कोई फोन आते उसमे बात करते करते आकाश अब जाने के लिए उठ जाता है|
“गुड – मिल गई ड्राइव – मिलता हूँ तुमसे |” धीरे से कहते हुए आकाश के हाव भाव काफी खुश थे अब वह मेनका की ओर देखता हुआ पूछता है – “चले मेनका ?”
“आती हूँ भईया |” कहती हुई मेनका अब नाश्ता खत्म करके उठ जाती है|
आकाश अब घूमती निगाह से अरुण की ओर भी देखता हुआ निकल रहा था जिससे अरुण धीरे से कहता है – “मैं थोड़ी देर से आता हूँ भईया |”
आकाश अब बाहर निकल गया और उससे पीछे पीछे जाने को हुई मेनका भूमि की ओर देखती धीरे से कह उठी – “लगता है आज की कॉफ़ी वाकई बहुत अच्छी थी – आज तो भईया का मूड बड़ा अच्छा दिख रहा है नही तो हमेशा ही उनकी भौं ही तनी रहती है|”
“देख लेना मेनका कॉफ़ी का असर ज्यादा देर तक नही रहेगा – अपने नाम की तरह फिर से मूड बदल जाएगा उनका |”
भूमि की बात पर मेनका फसी सी हँसी के साथ बाहर निकल जाती है|
“अब भूमि भी अपना नाश्ता खत्म करके उठने को हुई तो क्षितिज उसका हाथ पकड़कर उसे टोकता हुआ कह रहा था – “मम्मा आपको याद है न आपको क्रिसमस विकेशन से पहले मेरे स्कूल इवेंट में आना है – डैडू ने प्रोमिस किया है आप भी आओगी न |”
“हाँ प्रोमिस बेटू |” उसके सर पर प्यार से हाथ फेरती उसका माथा चूमती हुई भूमि उठ जाती है|
अब टेबल पर अरुण और क्षितिज रह गए थे| उजला अब ट्रे में लायी कॉफ़ी अरुण के सामने और दूध का कप क्षितिज के सामने रखती है| इससे अरुण एक सरसरी निगाह उजला की ओर डालता है| उजला बिना उसकी ओर देखे वापस मुड़ने लगी तो क्षितिज की आवाज उसे पुकार उठी –
“वाओ – मुझे आज इसी कप में चाहिए था |” क्षितिज पूरे मन से कप उठाता हुआ अरुण की ओर देखता हुआ कह उठा – “चाचू आपको पता है – मुझे हिंदी रेसेटेशन में फर्स्ट प्राइज में यही कप मिला था|”
“ओह वेरी गुड |” अरुण प्यार से उसके सर पर हाथ फिराते हुए कहता है – “लगता है आजकल आप अपनी पढाई में बहुत ध्यान दे रहे हो |”
“मुझे तो पॉएम आंटी ने सिखाई थी |” क्षितिज जाती हुई उजला की ओर इशारा करता गाने लगता है – “छोटी छोटी गैया….छोटे छोटे ग्वाल…छोटो सो मेरो मदन गोपाल….|”
क्षितिज के नटखटपन पर अरुण मुस्कराते हुए कह उठा – “अच्छा ये बताओ – आज स्कूल क्यों नही गए ?”
“क्योंकि आज छुट्टी थी वरना मैं अपना स्कूल कभी मिस नही करता |” कहता हुआ अरुण के आगे अपना दांत चमका उठा|
“लकी हो भाई पर मेरी तो छुट्टी नही है और मैं चला ऑफिस |” कहते हुए उसके बाल बिगाड़ते हुए अरुण उठ जाता है|
“ओहो सबको मेरे बाल क्यों बिगाड़ने होते है |” अपना नन्हा सा मुंह बनाते हुए वह अपना बाल अब दोनों हाथो से ठीक करने लगता है|
***
अरुण का मूड सबके साथ बैठने से कुछ बेहतर हो गया था| वह अब ऑफिस जाने को तैयार होने अपनी ड्रेसिंग वार्डरोब के सामने खड़ा था| वह कुछ उलझा हुआ सा कभी कुछ निकालता कभी कुछ ढूँढने लग जाता| ऐसा करते कुछ देर में बिस्तर पर कई शर्ट और टाई इधर उधर पड़े हुए दिखाई दे रहे थे|
आखिर ऊबकर वह एक नौकर को आवाज लगाता है| अगले ही पल खुले दरवाजे से दौड़ता हुआ देवेश उसके सामने खड़ा था|
“तुमने पिछली बार कब मेरी वार्डरोब ठीक की थी –?”
“जब आपने डाटते हुए कहा था कि आपके बोले बगैर मैं आपकी चीज को हाथ न लगाऊ |” वह संकुचता हुआ बोलता है|
“हाँ तो तुम सही से सामान नही रखते हो न – अभी भी एक सामान सही जगह पर नही है – जो शर्ट मिलती है उसकी मैचिंग की टाई नही मिलती और जिसकी टाई मेरे हाथ में उसके लिए तब से शर्ट नही मिल रही – देखो उसमे |”
वह घबराया हुआ जल्दी जल्दी उसमे से कई शर्ट निकालने लगा| आखिर एक शर्ट हाथ में आते अरुण बोलता हुआ चल देता है – “तब से यही शर्ट ढूंढ रहा था पर अब इसकी मैचिंग टाई नही मिलेगी |”
वह फिर से कई टाई उसकी आँखों के सामने करता है पर उसपर झुंझलाते हुए अरुण कह उठा – “छोड़ो इसे – आधा घंटा हो गया तब से मैचिंग नही मिला पाया – अभी तो मैं जा रहा हूँ पर तुम इसे ठीक करो आज |” कहता हुआ अरुण ज्योंही कमरे से जाने को हुआ उसे देहरी पर उजला दिखी पर उसे नजरंदाज करता अरुण तुरंत बाहर निकल जाता है|
***
अरुण के जाते उजला कमरे में आती एक सरसरी नज़र कमरे में डालती है| बिस्तर पर कपड़ो का अम्बार लग चुका था| वही देवेश अभी भी वार्डरोब में घुसा सामान निकालने में लगा था|
“अरे देवेश भाई – तमे जानू छु ! आज तुम्हारे हाथ की कढ़ी खाने को बोल रहा है क्षितिज |”
आवाज सुन वह उजला की ओर देखता हुआ मुंह बनाते हुए कह उठा – “पर उजला बेन यहाँ तो मुझे देर लग जाएगी और शाम तक ठीक नही किया तो डाँट अलग से मिलेगी |”
“तो तमे कहो तो मैं ये संभाल दूँ !”
ये सुनते देवेश यूँ खुश हो गया मानो कई टनो का बोझा उसके दिमाग से उतर गया हो|
“क्या सच्ची !”
“हाँ |”
देवेश यही तो चाहता था| वह झट से सब उजला के सुपूर्त करता बाहर निकल गया पर उसे क्या पता था कि यही तो उजला चाहती थी|
देवेश के जाते वह उन कपड़ो को सहेजने लगी| एक एक शर्ट को सहेजते वह कई बार उसे अपने ह्रदय से लगाकर मुस्करा लेती| वह उस अनुभूति को अपने भीतर चुपचाप उतार रही थी जिसके कण कण में अनकहा प्रेम रसा बसा था| वह उस शर्ट को अपनी बाँहों में लिए थी जिसमे पहली बार उसने अपने प्यार को देखा था| पल में वो सारा परिदृश्य उसकी आँखों में जीवंत हो उठा| वह उसे लिए झूम ही उठी कि सहसा उसकी नज़र दरवाजे पर खड़े क्षितिज पर ठहर गई| वह तुरंत सकपकाती हुई कपड़े रखने का उपक्रम करने लगी जैसे उसने उसे देखा ही नही लेकिन क्षितिज उसकी ओर आता हुआ पूछने लगा –
“आंटी आप डांस कर रही थी ?”
“न नही तो |” वह उससे नज़र बचाती हुई कपड़े सहेजती रही|
“मैंने देखा था आप डांस कर रही थी |” क्षितिज उसकी नज़रो के सामने आता हुआ कह रहा था|
पर उससे नज़रे बचाती हुई उजला कहने लगी – “वो डांस नही था – मैं तो बस घूमती हुई सोच रही थी|”
“क्या सोच रही थी आंटी |”
उजला समझ गई कि क्षितिज भी जल्दी से उसका पीछा नही छोड़ने वाला था|
“मैं तो एक कहानी सोच रही थी |”
“कहानी !!” क्षितिज की आँखें ख़ुशी से चमक उठी|
“हाँ कहानी |” उजला अब सोच सोचकर कहने लगी – “मैं ये सोच रही थी कि एक राजकुमार जिसके पास सोने का महल था, घूमने को ढेरो हाथी घोड़े थे फिर भी वो अपने महल में क्यों उदास रहता था ?”
“क्यों रहता था ?”
“यही तो सोच रही थी मैं !”
“तो क्या सोचा मुझे बताओ न आंटी |”
“मैं सोचकर तब तुम्हे बताती हूँ |”
“कब ?”
अब उजला उसकी नजरो के सामने पंजो के बल बैठती हुई उसका चेहरा प्यार से थामती हुई कहती है – “जब तुम अपना होमवर्क कर लोगे तब – जब तक तुम अपना होमवर्क करोगे तब तक मैं ये सब ठीक भी कर लुंगी और ये बात सोच भी लुंगी – ठीक है – पर….तुम ये बात किसी से मत कहना कि मैं सोचती हुई घूम रही थी |”
“पर आप तो डांस कर रही थी !”
“बस किसी से कहना नही – ठीक है न !”
“पर क्यों !!” वह अभी भी उसकी आँखों में ऑंखें डालता हुआ पूछ रहा था|
“क्योंकि अगर किसी को मालूम पड़ गया तो हो सकता है कोई मुझे डांस टीचर रख ले फिर मैं आपके पास कैसे रहूंगी और ये बात कैसे बताउंगी कि राजकुमार अकेला क्यों रहता था ?”
“ओके डन |” क्षितिज अपनी भरपूर मुस्कान के साथ थम्सअप करता कमरे से बाहर निकलता हुआ कहता है – “पर आप सोचकर मुझे ये कहानी जरुर सुनाना – |”
नटखट क्षितिज के कमरे से जाते उजला खुद के सर पर एक टीप मारती फिर से अपने काम में लग जाती है|
***
ऑफिस जाने के रास्ते पर पड़ता ये आखिरी ट्रेफिक ब्रेक था| अरुण की कार बस मुड़ने ही वाली थी कि कार के सामने से एक व्यक्ति जेब्रा क्रोसिंग से क्रोस करके निकलने रहा था जिसपर नजर जाते अरुण तुरंत कार रुकवाकर उसे आवाज देता है|
कार अब रास्ते के किनारे खड़ी थी और कार से बाहर निकलकर अरुण उस शख्स के सामने खड़ा कह रहा था – “तुम विवेक हो न – मैंने ठीक पहचाना – |”
वह बस सहमती में हाँ में सर हिलाता है|
“कही नौकरी कर रहे हो ?”
“नही ढूढ़ रहा हूँ |”
“वाय डोन्ट यू ज्वाइन माय कंपनी !”
“मुझे सिफारिश नही चाहिए |” वह अभी भी उससे नज़रे बचाते हुए खड़ा था|
“ओके – मैं कोई सिफारिश नही कर रहा – अभी कंपनी में एचआर डिपार्टमेंट में इंटरव्यू चल रहे है – तुम उसमे ट्रराय तो कर ही सकते हो |” कहते हुए वह उसके हाथ में कोई विजिटिंग कार्ड थमाता हुआ कहता है – “ये है उस शख्स का नाम जो इंटरव्यू कर रहा है – जाकर मिल लो |”
कहता हुआ अरुण दुबारा अपनी कार में बैठ जाता है| विवेक अब उस कार्ड को लिए उसे जाता हुआ देखता रहा|
…………………क्रमशः……………..
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