
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 75
समय के अंक में क्या कुछ छिपा होता है ये सिर्फ आगामी वक़्त की तलहटी पर जाकर ही पता चलता है| उजला गई तो थी अरुण के कपड़े सहेजने पर कुछ ऐसा मिल जाएगा ये उसकी कल्पना में भी नही था|
इस वक़्त मेंशन के पीछे के हिस्से में बने गार्डन एरिया के किसी एकांत कोने में वह बैठी थी और उसके पैरो के पास बडी अपनी घनी पूँछ हिलाता हुआ बैठा था| उजला अपने एकांत में फुर्सत पाकर बडी संग बैठकर अपने मन को हल्का कर लेती| इस वक़्त भी वह अपने मन की बात बडी को सुनाती हुई कह रही थी|
“कोई इतना भी प्यार करता है क्या ! वो भी बिना देखे ही कि उसके लिए अपने को मिटा ले !!” उसके सजल नयन एक ओर को झुक आए थे| उजला की हथेली के बीच डांडिया स्टिक(आपको याद हो जब अरुण पहली बार किरन को मिलने गरबा नाईट गया था तब भूल से किरन अपनी स्टिक छोड़ गई थी) थी जिसे अपने अंक में समेटे हुए वह कहे जा रही थी – “तभी तो अपना सच बताने से डर जाती हूँ कि कही मेरी वजह से वे सारी दुनिया से न बैर मोल ले ले|”
किरन की आँखों से चुपचाप एक बूँद उसके गालो पर लुढ़क जाती है| बडी भी उसके पैरो के पास लोटता हुआ कू कू करता अपना समर्थन देता रहा|
***
इस समय रंजीत के सामने बैठा सेल्विन उसकी ओर वही लैपटॉप बढ़ा रहा था जिसमे उसने रूबी के मोबाईल से लिया डाटा ट्रासफर किया था जिसे देख रंजीत खुश होता हुआ उसकी ओर कुछ नोटों की गड्डी सरका देता है|
अभी वे कुछ आगे बात करते उससे पहले ही रंजीत का मेनेजर तेज कदमो से उस कमरे के दरवाजे पर दस्तख देता प्रवेश करता है|
“सर..|”
वह हकबक सा रंजीत के सामने खड़ा था|
“बोलो सुकेश – तुम्हारे होश क्यों उड़े है ऐसे ?”
अब दो जोड़ी निगाहे उसे साथ में घूर रही थी|
“सर आपका लाइव इंटरव्यू की स्ट्रीमिंग चल रही है |”
“मेरा ? कौन सा लाइव इंटरव्यू ?” रंजीत सोफे से पीठ हटाता हुआ बोला|
“सर स्टैला नाम की रिपोर्टर ने आपका लाइव इंटरव्यू लेने का कल का प्रोग्राम रखा है जिसका एड लगातार टीवी पर दिखाया जा रहा है |”
“मैंने तो उसे मना कर दिया था – बताया था कि मैं किसी को इंटरव्यू नही देता|” रंजीत तक से हुए शब्दों में कहता है|
“लेकिन सर स्ट्रीमिंग तो कंटिन्यु है |” सुकेस कहता है|
“तो रोको उसे क्योंकि मैं जो नही करता वो नही करता |”
रंजीत की बात पर सेल्विन जल्दी से कहता है – “रंजीत साहब आप कहे तो मैं उसे अपनी भाषा में आपकी बात समझा दूं !!”
“नही सेल्विन अभी इसकी जरुरत नही है – |” अब सुकेस की ओर देखता हुआ कहता है – “बस मेरी ओर से मना कर दो और ज्यादा कुछ करने की जरुरत नही है|”
“ओके सर |” वह तुरंत ही बाहर निकल जाता है|
उसके जाते अब कमरे में तेजी से वर्तिका प्रवेश करती हुई कहती है – “भईया लंच का टाइम हो रहा है – चलिए जल्दी से |” वह लगभग उसका हाथ पकड़कर अपनी ओर खींचने लगती है|
ये देख सेल्विन सलाम करता बाहर निकल जाता है|
“आप भी न घर पर भी अपना ऑफिस खोले रहते है – चलिए |”
“हाँ हाँ चलता हूँ |”
घर के नौकर बड़ी सी डाइनिंग टेबल पर व्यंजन सजा रहे थे| रंजीत के बैठते वर्तिका जल्दी से रसोई से एक डोंगा उठाकर रंजीत के सामने रखती हुई कहती है – “भईया आज लंच पर एक सब्जी मैंने बनाई है |”
“तुमने !!” रंजीत का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया – “तुमने बनाया ?”
“क्यों !! मैं अपने भईया के लिए इतना भी कर सकती !” वर्तिका के चेहरे पर बनावटी रूठने की छाया आ जाती है|
“अरे नही – दरअसल पहली बार तुमको रसोई में देखकर मुझे कुछ आश्चर्य सा हुआ और फिर अभी तुम्हारी तबियत…|”
“मेरी तबियत अब बिलकुल ठीक है – कमरे में ऐसे ही पड़ी रहूंगी तो और बीमार पड़ जाउंगी |” वर्तिका भी अब उसके साथ वाली कुर्सी पर बैठ जाती है|
“हाँ मैं भी तो यही चाहता हूँ कि तुम पहले की तरह घूमो – फिरो हँसो – मैं हर पल बस तुम्हे खुश देखना चाहता हूँ |”
“और इसलिए मैं बाहर भी जाना चाहती हूँ |”
“हाँ बोलो कहाँ जाना चाहती हो ? योरोप !! पेरिस !! बोलो जहाँ का भी तुम नाम ले लो – वही का अभी का अभी टिकट बनवा दूंगा |”
“मैं बस्ती जाना चाहती हूँ |”
“बस्ती !!!”
“मैं वो जगह देखना चाहती हूँ जहाँ रानी रहती है |” अबकी वह रानी की ओर आँखों से इशारा करती हुई कहती है|
“बच्चा उसमे देखने लायक क्या है – वो तो स्लम एरिया है – वहां क्या करोगी तुम जाकर ?”
“मैं बस देखना चाहती हूँ |”
“लेकिन…!”
“प्लीज….भईया..|”
रंजीत हैरानी से वर्तिका को देखता अब रानी की ओर एक नज़र देखता है जिससे रानी आगे आती धीरे से कहती है – “साहब मैं मैडम को समझाई थी यही बात |”
“मैं बस जाकर देखना ही तो चाहती हूँ भईया – प्लीज |”
“ठीक है पर तुम खुद को कैसे संभालोगी वहां ?” कहते हुए वह रानी की ओर देखता हुआ कहता है – “तुम ध्यान रखना और जल्दी ले आना |”
“हाँ साब – मैं मैडम का पूरा ख्याल रखेगी – आप चिंता मत करो |” रानी हाथ जोडती हुई बोली|
“ओह प्यारे भईया|” वह लाड से अपने भाई के गले लग जाती है|
“लेकिन प्रोमिस करो कि तुम अपना अच्छे से ध्यान रखोगी |”
“ओह भईया – देखिए बातों बातों में सारा खाना ठंडा हुआ जा रहा है |” वर्तिका जल्दी से अपनी बनायीं सब्जी रंजीत की प्लेट में परोसती हुई कहती है – “पहले आप टेस्ट करके बताईए कि कैसी बनी है ?”
वर्तिका मुड़कर अपने भाई का चेहरा गौर से देखती रही| रंजीत चम्मच से एक बड़ा हिस्सा मुंह में रखते हुए कह उठा – “हूँ – अरे वाह – मेरी बहन इतना अच्छा खाना बना लेती है मुझे पता नही था – अब ये सारी सब्जी मैं अकेला खाऊंगा|” रंजीत डोंगा अपनी तरफ सरकाते हुए कहता है|
“रुकिए भईया मैं भी तो टेस्ट करूँ – क्या वाकई इतनी अच्छी सब्जी बनी है|” वर्तिका के चेहरे में गहन उत्सुकता थी|
“बिलकुल नही – अब ये सब्जी तुम्हे बिलकुल नही मिलने वाली – प्लीज तुम दूसरा कुछ खा लो |” रंजीत सब्जी के बड़े बड़े हिस्से लेकर खाने लगता है|
वर्तिका जल्दी से रंजीत की प्लेट से सब्जी लेकर टेस्ट करती है|
“छीई – ये कितनी खराब बनी है – आप भईया…!” वर्तिका अपने भींचे हुए होंठों से कहती है – “भईया आप मेरा दिल रखने के लिए ये सब्जी खा रहे है – आप मुझसे इतना प्यार करते है |”
रंजीत वर्तिका के सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहता है – “मेरी प्यारी बहन के प्यार की मिठास है इसमें |”
वर्तिका रंजीत के गले लगती बुदबुदा उठती है – ‘और एक मैं थी कि आपको छोड़कर चली जाना चाहती थी |’
वर्तिका की ऑंखें डबडबा आई थी|
***
विवेक इंटरव्यू पैनल के ठीक सामने बैठा था और उनके पूछे जाने वाले हर सवाल का जवाब दे चुका था पर शायद उन्हें अपने चुनने वाले कैंडिडेट से कुछ और ही अपेक्षाए थी|
“वेल मिस्टर विवेक आप का रिजुम हम होल्ड पर रखकर कुछ समय बाद आपको इफोर्म करते है|”
विवेक ओके कहता उठने लगता है| उठते वक़्त अपने सामने की पॉकेट से रुमाल निकालने के उपक्रम में एक कार्ड टेबल पर गिर पड़ता है| इससे पहले कि कार्ड विवेक उठाता उसके सामने बैठे व्यक्तियों में से एक व्यक्ति वो कार्ड उठाकर उसे गौर से देखता हुआ पूछ उठता है –
“क्या आप अरुण सर को पर्सनली जानते है – ये कार्ड तो उनका निजी विजिटिंग कार्ड है !”
विवेक इसपर बस धीरे से होंठो को विस्तार दे देता है| ये वही कार्ड था जिसे अरुण ने अपनी पहली भेंट में उसे दिया था|
सामने बैठे व्यक्तियों के लिए ये कार्ड ही पहचान के लिए काफी था| वे तुरंत कह उठते है –
“आप कल से ही कंपनी ज्वाइन कर सकते है – सो मिस्टर विवेक यू आर वेल्कम इन द एम्पायर ऑफ़ दिवांस |” उनके बीच में बैठा व्यक्ति पहले उठकर विवेक से हाथ मिलाता है फिर बाकी भी विवेक से क्रमशः हाथ मिलाते है इससे विवेक एक विजयी मुस्कान के साथ उस केबिन से बाहर निकल जाता है|
***
शाम तक थका वापस अपने रूम में आते अरुण अभी कोट उतारकर बैठा ही था कि उसे कमरे का दरवाजा खुलने की आहट मिली जिसपर वह बिना देखे ही कह उठता है –
“चाय मत लाना – बस स्ट्रोंग सी कॉफ़ी ला दो |” अरुण पलके मूंदे सोफे चेयर पर पसरा था कि चूड़ी की खनक से उसका ध्यान अपने बगल में चला जाता है|
पास ही उजला खड़ी ट्रे उसकी ओर बढ़ा रही थी| अरुण हैरान नज़रो से उसे देखता फिर ट्रे पर रखी कॉफ़ी को देखता हुआ पूछ उठता है – “तुम्हे कैसे पता कि मुझे कॉफ़ी चाहिए थी !!”
अरुण आश्चर्य से उजला को देखता रहा जबकि वह मौन पलके झुकाए कप उसके बगल में रखती हुई वापस चली जाती है|
वह उसके जाने तक उसका पीछा करती अपनी निगाहों को न टोक सका फिर उसके जाते एक गहरा उच्छ्वास छोड़ते वह कप उठा लेता है|
***
एक बोझिल दिन के बाद उस कॉफ़ी ने वाकई उसे तरोताजा कर दिया था| वह कुछ पल तक एक सिगरेट फूकने के बाद अगली सिगरेट को अपने होंठो के बीच दबाए अपना वार्डरोब खोलता है तो अगले ही पल उसकी ऑंखें हैरानी से फैली रह जाती है|
वह वही खड़े खड़े देवेश को आवाज लगाता है| वह फिर भागता हुआ तुरंत ही कमरे में उपस्थित हो जाता है|
“ये तुमने किया है ?”
अरुण के पूछने पर उसके हाव भाव में थोड़ी घबराहट आ जाती है इससे वह उजला का नाम बस लेने ही वाला था कि अरुण तुरंत आगे कह उठा –
“अरे घबराने की जरुरत नही है तुमने तो इतना अच्छा सेट किया है कि मुझे तो एक पल को यकीन ही नही हुआ कि ये काम तुमने किया है – |” अरुण लगभग चहकता हुआ कह रहा था – “तुमने तो ऐसा सेट कर दिया कि रोजाना आंख बंद करके भी निकालूँगा तो मुझे सारा सेट एक साथ मिल जाएगा –|” कहते हुए अरुण वार्डरोब के अन्दर हाथ डालता पीछे रखे सामान को टटोलने लगता है|
देवेश भी ऐसा कॉम्प्लीमेंट पाकर चुपचाप खुश हो लेता है|
एकाएक अरुण थोड़ा गंभीरता से पूछता है – “अच्छा यहाँ मैंने कुछ रखा था वो सामान कहाँ रखा – बस ये बता दो |”
“सामान !!” अब देवेश का गला सूखने लगा| आखिर उसने जब सामान ठीक ही नही किया तो कैसे बता पाए सामान|
“हाँ कुछ जरुरी था – बोलो बाकी का सामान कहाँ रखा है ?” अरुण अब सीधा उसके चेहरे की ओर देख रहा था|
अब देवेश के लिए जो कोम्प्लिमेंट था वो आफत बन गई आखिर उसे सच कहना पड़ा|
“वो क्या है मैं पूरा काम कर नही पाया था तो उजला दीदी ने बाकी का काम किया – तो इससे उन्ही को पता होगा |”
अरुण अब उसे कसकर घूरने लगता है|
“मैं अभी बुलाकर लाता हूँ |” कहता हूँ वह झटपट वहां से भाग जाता है|
कुछ ही पल में उजला कमरे में दाखिल होती है| देवेश तो डाँट के डर से बाहर से ही भाग गया था| अरुण अभी भी वार्डरोब के सामने खड़ा था|
“तो तुमने सारा सामान ठीक किया ?”
वह मौन ही हाँ में सर हिला देती है|
“तो बचा हुआ कुछ सामान कहाँ रखा ये बताओगी ?”
“कौन सा सामान ?” वह चौंककर पूछती है|
अरुण नाम नही ले पा रहा था पर उसे उसी डांडिया स्टिक की तलाश थी जो उसने अपनी वार्डरोब में कपड़ो के नीचे छिपाकर रखी थी|
“वो….कुछ भी ऐसा जो तुम्हे लगा हो उसे यहाँ नही होना चाहिए और तुमने उसे हटा दिया हो ?” बड़ी मुश्किल से वह हर शब्द को साधता हुआ पूछता है|
“मैंने तो सारा का सारा सामान वही रखा है – कुछ भी नही हटाया |”
“उफ़ – वो वहां नही है |”
“क्या ..??”
अरुण बुरी तरह झेल रहा था| चाहकर भी उस चीज का नाम नही ले पा रहा था और उसे सताकर आज उजला मन ही मन मुस्करा रही थी| आज अपने पिया को सताकर उसे मजा आ रहा था| वह उसी तरह भोला सा चेहरा बनाती हुई पूछती है –
“क्या थी वह चीज ?”
“कुछ था |” किसी तरह अपना गुस्सा जब्त करता हुआ सर कर दोनों हाथ फेरने लगता है – “उफ्फो – कैसे कहूँ – सुनो – तुमने कपड़ो के अलावा कुछ भी सामान यहाँ से हटाकर कही डाला हो तो प्लीज बता दो |”
अरुण जिस तरह से उसकी ओर आग्रह से देख रहा था उजला का मन उस पर दिल वार देने को हुआ पर किसी तरह अपनी मुस्कान को काबू करती वह उसी तरह से बोल उठी –
“ओह हाँ कुछ बेकार सी लकड़ी जैसा था – उसे मैंने कमरे में ही कही डाला था |” वह जानबूझकर कमरे में इधर उधर नज़रे करती हुई कहती है जबकि इस वक़्त भी उसने उस स्टिक को अपने आंचल में छिपा रखा था और मौका देखती वह एक कोने में डाल देती है| अरुण भी कमरे में नज़रे घुमाते हुए इधर उधर ढूँढने लगा कि साथ में दोनों की नज़र उस स्टिक पर पड़ी और दोनों ही साथ में उसे उठाने लपके और वही हुआ जो शायद उजला को आभास था|
अरुण हिचकिचाते हुए स्टिक लिए खड़ा कह रहा था – “माफ़ करना…मैं..|”
उजला सर सहलाती सहलाती कह रही थी – “आप क्यों माफ़ी मांगते है – गलती मेरी ही थी – मुझे तो ये बेकार की चीज लगी थी – |” उजला जानकर हैरान भाव से कह रही थी – “क्या ये आपकी है ?”
इसपर अरुण उस पर तीखी नजर उडेलता हुआ कहता है – “नही – उधार की है – वापस करनी है |” कहता हुआ वह उजला की ओर से पीठ करे उस स्टिक को दुबारा उसकी अपनी जगह पर रखने लगता है|
पर वो कहाँ देख पाया कि उसे देखती उजला की आँखों में कितना प्यार उतर आया था| उसका मन सीने में हौले हौले मचलने लगा था पर वह चुपचाप कमरे से बाहर निकल गई|
………………………….क्रमशः………………………..