Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 76

वही अँधेरी बदबूदार जगह जहाँ आकाश पहली बार बलबन से मिलने गया था इस बार भी वह वही आया था लेकिन इस बार दीपांकर ड्राइविंग सीट पर बैठा रहा और आकाश अकेला उतरकर बलबन से मिलने जा रहा था|
बलबल अपनी जगह बैठा शराब पी रहा था| वह अकेला बैठा शायद आकाश के इंतज़ार में था| अगले ही पल आकाश उसके सामने जैसे ही नजर आया वह तुरंत खड़ा होता बोल उठा –
“आओ सेठ – देखो अपन अपनी बात का पक्का निकला – आखिर मर्द ही जबान है – ये लो यही है न वो -|” कहता हुआ वह अपनी पॉकेट से एक कागज में लिपटा कुछ उसकी ओर सरका देता है|
आकाश तुरंत उस चीज को कागज विहीन करके देखता है| वह पेन ड्राइव थी जिसे गौर से देखने के बाद वह दुबारा बलबन की ओर देखता हुआ पूछता है – “क्या सच में ये वही ड्राइव है ?”
“वही है ये – अपन ने बहुत सेटिंग करके इसे निकाला है|” कहता हुआ बलबन फिर से अपना गिलास ऊपर तक भरने लगता है|
आकाश उसे देखता हुआ सर हिलाते हुए कहता है – “गुड |” वह अपने साथ लाए एक छोटे लैपी में तुरंत उस ड्राइव को लगाते हुए चेक करने लगता है| एंटर क्लिक करते अचानक किलकारी की आवाज गूँज उठती है| आकाश की निगाह जिस स्क्रीन को अब घूरने लगी थी बलबन उसे उचककर देख रहा था| स्क्रीन में कोई नर्सरी राइम्स चलने लगी थी| आकाश समझ गया कि स्टैला ने फिर उसे बेफकूफ बनाया है और उससे भी ज्यादा गुस्सा उसे उस गुंडे पर आ रहा था|
आकाश तुरंत उस ड्राइव को निकालकर उसकी ओर फेकता है| जिससे वह उसकी बोतल से टकराती हुई जाती है| बोतल मेज से लुढ़कती हुई अब जमीन पर गिर पड़ी थी|
“मर्द की जबान !! उस औरत ने तुझे पपलू बना दिया और तू मेरे आगे डींगे हांक रहा था – मुझे लगा था तुम कुछ काम के होगे पर नही……वो स्टैला है बहुत ही पहुंची हुई चीज – तुम्हारे जैसे लोगो के बस की ये बात नहीं |”
व्यंग से कहता हुआ आकाश मुड़ने को हुआ तो बलबन चीखते हुए बोल उठा – “ए सेठ मेरे को तुम क्या छोटी चीज समझा है – अपन भी बलबन है – ऐसी तमाम औरतो को निगलकर अपन डकार भी नही मारता – अब तो इसने अपनी मर्दानगी को चैलेन्ज किया है – अब तो इसका गेम बजाना ही होगा |” वह हाथ मलते हुए कहता है|
“कोशिश करके देख लो – अगर इस बार ले आए तो मैं उसकी मुंह मांगी कीमत दूंगा और जो नही लाए तो ये काम छोड़कर चकले में जाकर दलाली करना – वही सही जगह होगी तुम जैसो पपलू की |” आकाश व्यंग भरी हँसी फेंकता हुआ तुरंत वहां से निकल जाता है|
अपने अहम् पर चोट से बलबन बुरी तरह बौखला उठा था| अबकी टेबल पर रखा गिलास तेजी से उठाकर उसे जमीन पर दे मारता है|
***
उजला के होंठो से आज मुस्कान जैसे जा ही नही रही थी वह बैठी तो क्षितिज के पास थी पर मन कही और ही उड़ा जा रहा था| क्षितिज उसकी ओर ऑंखें झपकाता हुआ पूछने लगा –
“आप हँस रही हो – मुझे भी बताओ न ?”
क्षितिज की आवाज पर उसका ध्यान टूटा तो वह तुरंत ही संभलती हुई बोली – “उस राजकुमार के बारे में सोच रही थी मैं |”
कहानी का सुनते वह तुरंत जिज्ञासु होता उसकी ओर देखता हुआ कहता है – “सच्ची आपने आगे का सोच लिया तो मुझे बताओ न कि राजकुमार क्यों उदास रहता था ?”
“हाँ सोच तो लिया |” उजला अब क्षितिज के बालो को सहलाती हुई कहती है – “वो राजकुमार किसी से मिलता जुलता नही था न इसलिए उदास रहता था |”
“तो क्यों नही मिलता था वो ?”
“डरता होगा लोगो से |”
“क्यों डरता था लोगो से ?”
“अब ये तो सोचना पड़ेगा कि राजकुमार क्यों डरता था |”
“ओहो आप सारा एक बार में क्यों नही सोच लेती हो |” वह अपनी नन्ही हथेली अपने सर पर मारता हुआ कह उठा|
“डरता था न इसलिए |”
“पर क्यों डरता था और राजकुमार होकर वो क्यों डरता था ?”
“जैसे आप डरते हो – आप भी तो प्यारे से राजकुमार हो न फिर भी डरते हो |”
“नही – मैं नही डरता किसी से |” वह तुरंत बिस्तर पर खड़ा होता हुआ कह उठा|
“डरते तो हो |”
“किसके डरता हूँ मैं ?”
“अपने दादू से |”
“नही..|”
“डरते हो इसलिए तो नहीं जाते उनके पास |”
अब सच में क्षितिज को कुछ कहते न बना तो उजला फिर आगे कह उठी – “अगर नही डरते हो तो आज उनके पास जाकर दिखाओ तो मैं मान जाउंगी कि क्षितिज सच में किसी से नही डरता|”
“हाँ मैं जा सकता हूँ |” कहता हुआ वह तुरंत बिस्तर से नीचे उतर जाता है|
“तो चलो अभी |”
“अभी..!!” अब वह डरकर दो कदम पीछे हो जाता है|
“क्या हुआ – चलो कोई बात नही – तुम डरते हो तो ये बात मैं बिलकुल सीक्रेट रखूंगी – नहीं बताउंगी किसी को |” उजला मुस्कराती हुई कहती है|
“मैं नही डरता|” उसका बाल मन धीरे से विरोध कर उठा|
उजला आखिर यही तो चाहती थी| वह धीरे से उसके पास आती उसे प्यार से देखती हुई कहने लगी – “तो चलो मैं अभी ले चलती हूँ – अगर तुम अपने दादू के पास चले गए तो मैं मान लुंगी कि तुम जीते और मैं हारी|”
ये आखिरी बात उस नन्हे मन को हौसले का पंख दे देती है जिससे वह तुरंत ही चलने को राजी हो जाता है| रात का समय था सभी अपने अपने कमरे में जा चुके थे और हमेशा की तरह आकाश रात का आखिरी डिस्कशन दीवान साहब से करके अपने कमरे में जा चुका था| अब इस वक़्त वे अपने कमरे में अकेले थे|
उजला क्षितिज को उनके कमरे की ओर ले आई| पहले तो क्षितिज को थोड़ा हौसला हुआ पर कमरे के बिलकुल पास आते वह फिर दो कदम पीछे कर लेता है ये देखते उजला उसके कान के पास आती धीरे से कहती है –
“आज तो हीरो बनने का टाइम है और ये तो तुम्हारे अपने दादू है फिर कैसा डरना – जाओ – अगर वापस आना हो तो मैं तुम्हारा बाहर वेट करुँगी |”
उजला के बाहर रुकने वाली बात उसे ज्यादा भरोसे की लगी जिससे वह हाँ में सर हिलाता हुआ छोटे छोटे कदमो से दीवान साहब के कमरे की ओर चल देता है|
उसके कमरे में जाने के कुछ पल तक उजला बाहर ही खड़ी रही फिर अगले ही पल कमरे से आती खिलखिलाहट की आवाज सुनते वह मन ही मन मुस्कराती हुई वापस चली जाती है|
***
भूमि की सुबह सबसे पहले क्षितिज को देखने से होती| वह उठते ही तुरंत उसके कमरे आती पर आज इतनी सुबह उसे उसके कमरे में न देख वह चौक जाती है और बस उजला को आवाज लगाने ही वाली थी कि बाहर से उसे अपनी ऑंखें मलता हुआ क्षितिज आता हुआ दिखता है|
“अरे इतनी सुबह कहाँ उठकर गए थे ?”
वह सामने अपनी माँ को देखता तुरंत उसे झुकने का इशारा करता उसके गले में अपनी बाहें फैला लेता है| भूमि भी उसे अपनी गोद में समेटी हुई बिस्तर पर बैठ जाती है|
अब वह अपनी माँ का चेहरा देखता हुआ कहता है – “मैं दादू के कमरे से आ रहा हूँ ?”
भूमि को आश्चर्य होता है| क्षितिज अभी भी कह रहा था – “कल रात दादू ने मुझे बहुत सारी कहानी सुनाई और सब की सब मेरी फेवरेट कहानी बन गई |”
“कहानी !! तो कल रात तुम उनके पास गए थे ?”
“मैं तो कहानी सुनते सुनते उनके पास ही सो गया था – मुझे तो पता ही नही चला |” वह खिलखिलाते हुए कहता है|
भूमि के तो आश्चर्य की सीमा न रही| आज से पहले ये कभी कहाँ हुआ था| दीवान साहब की बनाई सरहद में वे सभी कभी दाखिल नही हुए या शायद उन सबने कभी उन सरहदों को लाँघने की कोशिश भी नही की|
क्षितिज अभी भी कह रहा था – “मम्मा आपको एक सीक्रेट बताऊँ |” वह भूमि के कान के पास आता हुआ कहता है – “मैं न दादू का सारा सीक्रेट जान गया – वे न मोबाईल से कहानी पढ़ पढ़कर मुझे सुना रहे थे – मैंने देखा था |” वह यूँ खुश हो रहा था जैसे कोई राज़ उसने पता कर लिया हो |”
“अच्छा |” भूमि प्यार से उसे गले लगा लेती है|
“और पता है दादू ने कहा है वे रात में मेरे पास आकर रोज एक कहानी सुनाएँगे |”
भूमि उसे देर तक गले से लगाए बैठी रही| कुछ अच्छा सा उसे महसूस हो रहा था|
***
सुबह का वक़्त जब सब हमेशा अपने अपने कमरो की अनंत गुफा में सिमटे रहते उससे ये दिन कुछ अलग सा था| क्षितिज के कहने पर भूमि डाइनिंग टेबल पर अकेली बैठी थी तब मेनका और अरुण अपने अपने कमरे से चले आते है| आकाश भी आते खड़ा खड़ा कॉफ़ी सिप करता कांच की खिड़की से बाहर देख रहा था जैसे उसे किसी से मतलब ही न हो| तभी सबकी निगाह क्षितिज की ओर गई जो आज दीवान साहब को नही बल्कि अपने दादू की उंगली पकड़कर अपने साथ वही लिवा ला रहा था|
ये दृश्य सभी के लिए अनोखा था| वे सभी तो उनका तना हुआ चेहरा और उनका हुकुम सुनने के आदि थे बस पर आज वे मुस्कराते हुए क्षितिज के साथ आते उसकी बताई सीट पर बैठ रहे थे| उनसे नज़र मिलते आकाश उनके इशारे पर वही बैठ जाता है|
भूमि एक नजर घुमाकर देखती मुस्करा उठी थी| आज सारा परिवार एकसाथ बैठा था| आज एक पिता उसके दो बेटे, एक बेटी, एक बहु और एक पोता था|
“डैडी आपको यहाँ देखकर बहुत अच्छा लगा |” भूमि मुस्कराती हुई कह उठी|
दीवान साहब भी सबके चेहरों पर से नज़र घुमाते हुए कह रहे थे – “हाँ क्षितिज जिद्द करने लगा |” फिर जल्दी ही पुनः आगे करने लगे – “वैसे अच्छा है सभी एकसाथ दिखते है – वैसे रोजाना अब से सभी एक साथ डाइनिंग पर आएँगे |” अब आकाश की ओर देखते हुए कह रहे थे – “और आकाश ऑफिस का पर्सनल डिस्कशन भी यही हो जाएगा – आखिर अरुण और मेनका भी इसमें शामिल होना सीखेंगे |”
“यस डैड |” फरमाबदार बेटे की तरह हामी भरता है आकाश|
सहमती में अरुण और मेनका भी मुस्करा देते है|
“पर दादू आप रात का प्रोमिस नही भूलना!” सबकी मुस्कान के बीच क्षितिज झट से बोलता है|
“हाँ बिलकुल – मैं अपने प्रोमिसेस हमेशा निभाता हूँ |” दीवान साहब सहमती में मुस्कारते अब प्लेट की ओर देखने लगे पर इस बात से अनजान रहे कि उजला इस बात पर दिल मसोजे रह गई| दो दोस्तों के बीच हुआ वादा जिसे उनके बच्चो ने निभाया तो पर वक़्त ही शायद उनसे दगा कर गया|
तभी मेनका की आवाज उसके कानो में पड़ीं जो कह रही थी – “आज अगर दादा जी भी हमारे साथ होते तो कितना अच्छा लगता न !”
इस बात पर सभी एकसाथ ठहर से गए| सबको उनकी अनुपस्थिति का अहसास होने लगा| दीवान साहब कुछ ज्यादा ही चुप हो गए जिससे भूमि जल्दी से कह उठी –
“मुझे विश्वास है जिस दिन उनकी नाराजगी दूर होगी वे उस दिन जरुर वापस आ जाएँगे |”
“पर वजह तो वही रहेगी न – एस्क्युज मी – मैं आता हूँ अभी|”
सबकी नज़र अरुण पर अब तक नही गई जिसपर ये बात कुछ ज्यादा ही गहरी गुजरी और वह बहाना करता वहां से उठकर वापस चला जाता है|
सभी हैरान उसे जाता हुआ देखते रहे| उजला अपने स्थान पर खड़ी जैसे बुत ही हो गई| पता नही वक़्त और कितनी परीक्षा उन सबके लिए सोच रखे था| सभी वापस मौन अपना अपना नाश्ता करने लगे|
…………………………………………..क्रमशः……………..

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