Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 77

पूरे परिवार ने एक साथ नाश्ता किया और फिर अपने अपने काम पर चले गए लेकिन अरुण दुबारा नाश्ते की मेज पर वापस नही आया| भूमि समझती थी अरुण का मन इसलिए उसका नाश्ता उसके कमरे में भिजवा कर वह उसके सामने उपस्थित थी|
“इसकी क्या जरुरत थी भाभी – सच में भूख नही रही |”
अरुण के उदास स्वर पर भूमि हमेशा की तरह उसे संभालती हुई कह रही थी – “हाँ क्यों नही – आखिर भाभी पर कोई इलज़ाम तो रहना ही चाहिए न – कल तो दादा जी वापस आएँगे तो कहे तो कि मैंने उनके अरुण का ठीक से ख्याल नही रखा |”
“भाभी आप भी न !!”
“क्यों !! तुझे विश्वास नही कि वे वापस आएँगे !!” वे सीधे अरुण की आँखों में देखती हुई कह रही थी – “दादा जी रूठकर गए है पर एक दिन जरुर वापस आएँगे – अगर ऐसा न होता तो मंदिर से राम सीता दोनों की मूर्ति अपने साथ ले जाते पर नही – वे सिर्फ अपने साथ राम को ले गए – सीता अभी भी मंदिर में है – वे इस घर को सीता के हवाले कर गए है |”
अरुण अब भूमि के चेहरे की ओर देख रहा था जो अपनी बात कहे जा रही थी – “तो अब तुम्हारा फर्ज नही कि सीता का ख्याल तुम रखो !!”
“मैं !!”
“हाँ ये मौन भरोसा है उनका तुमपर – तो जब तक वे वापस नही आते तब तक तुम उनके मंदिर का वैसे ही ख्याल रखो जैसे वे रखते थे |”
“लेकिन मुझे तो कुछ भी नही आता |”
“मैं हूँ न – मैं तुम्हे बताउंगी – अब से हर शाम को तुम मंदिर में दीया जलाना – इन फैक्ट आज शाम से ही – मैं शाम को आकर तुम्हे इसमें मदद करुँगी – ठीक है न अब !!”
आखिर भूमि की बात सुनकर अरुण के उदास हाव भाव कुछ सहज हो उठे|
“तो चलो अब जल्दी से ब्रेकफास्ट करो और ऑफिस भी तो जाना है न तुम्हे – अब शाम को आकर मिलती हूँ तुमसे |” वे स्नेह से उसके सर पर हाथ फिराती बाहर चली जाती है|
***
वह आकाश दीवान का केबिन था जिसमे उसके ठीक सामने मेनका बैठी थी और उसके बगल में बैठा एक अन्य कर्मचारी लैपटॉप से मोबाईल कनेक्ट करके उनमे कोई सिस्टम सेटिंग कर रहा था| कुछ देर बाद वह एक अंतिम क्लिक के साथ आकाश की ओर देखता हुआ कहता है –
“सर ऑल इज डन |”
ये सुनते मेनका जल्दी से कुछ पूछने लगता है – “भईया आपके लैपटाप से मेरे मोबाईल में क्या अपडेट किया क्या है ?”
मेनका का प्रश्न पर वह कर्मचारी तुरंत कह उठता है – “मैम ये ओफिश्यल सिस्टम का लॉग इन है…|” वह आगे भी कहना चाह रहा था पर उसे बीच में टोकते हुए आकाश हाथ से उसे रुकने का इशारा करता उसे बाहर जाने को कहता है|
इसपर वह कर्मचारी तुरंत उठकर लैपटॉप आकाश की ओर करके बाहर चला जाता है| उसके जाते आकाश अब मेनका की ओर देखता हुआ कहता है –
“मैं बताता हूँ तुम्हे – मेनका हमारी कंपनी का सारा डाटा एक सिस्टम में स्टोर है – एक तरह से समझो उस सिस्टम में हमारी कंपनी का सारा पर्सनल डाटा है जिसे किसी भी अन्य की नज़रो से हमारे बचाना होता है क्योंकि वही हमारी स्ट्रेंथ है – तुम समझ रही हो न !”
मेनका मौन ही हामी में सर हिलाती है जिससे आकाश आगे कहने लगता है –
“इस सिस्टम का एक्सेस कंपनी के सभी ख़ास लोगो के पास है पर इसे लॉग इन करने का पासवर्ड सिर्फ कंपनी के सभी एमडी के पास होता है जो इससे अब इसका मेन एक्सेस तुम्हारे पास भी रहेगा – तो इसे सेफ रखना तुम्हारी जिम्मेदारी के अन्दर भी आता है -|”
“मैं इस बात का ख्याल रखूंगी |”
“तुम ऐसा करो इसमें अपना फेस लॉक लगाओ – इससे ये ज्यादा सेफ रहेगा |” अपनी बात कहकर उठते हुए आकाश अपने कोट का निचला बटन लगाते अपना लैपटॉप सेफ रखते हुए कहता है – “मैं होटल जा रहा हूँ – कुछ जरुरी हो तो कॉल कर लेना – बाय टेक केयर |”
“बाय भईया |”
दोनों साथ में उस केबिन से बाहर निकलते है| जहाँ आकाश बाहर की ओर चल देता है वही मेनका मोबाईल का स्क्रीन देखती देखती अपने केबिन की ओर आ जाती है| वह बस किसी से टकराने ही वाली थी उससे पहले ही वह शख्स उसके सामने से हट जाता है और मेनका एस्क्युज मी कहती अपने केबिन में समा जाती है|
केबिन में बैठते उसने अपना डेस्क टॉप ओन करके देखा ही था कि कोई लिफाफा उसकी तरफ सरक आता है| वह उस लिफाफे के साथ उसे देने वाले को भी अब नजर उठाकर देखती है और इसके अगले ही पल उसके चेहरे में कई हाव भाव आने लगते है|
पहले आश्चर्य का भाव तैरता है फिर अवाक् हो जाती है इसके तुरंत बाद ही उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान थिरक आती है और वह तुरंत खड़ी होती अपनी जगह से दौड़कर उस शख्स के गले लग जाती है|
“विवेक…!” वह उसे अपनी दोनों बाहों के बीच घेरती कस लेती है इसके विपरीत वह निस्तेज खड़ा अपनी दोनों हथेली मेज के कोने पर टिकाता खड़ा रहता है|
“क्या सरप्राईज किया है तुमने मुझे |” वह अभी भी उसके सीने से लगी थी जबकि वह अपने दोनों हाथ चाहकर भी उसके करीब न ला सका|
“मैं तुम्हे ये देने आया था |” विवेक मेज पर के उसी लिफाफे को दुबारा उसकी ओर बढ़ा रहा था जो अभी कुछ देर पहले उसने मेनका की ओर बढाया था| मेनका अब उससे छिटकती उस लिफाफे को खोलकर उसमे रखे कागज को खोलकर जल्दी जल्दी पढने लगती है|
अगले ही पल उसके चेहरे से मुस्कान फिर लुप्त हो जाती है| वह उदास भाव से कहने लगती है – “ये तो…!!”
“मेरा रेजिक्नेशन है |” विवेक सपाट भाव से कह रहा था|
“ये !! मैं तो तुम्हारा यहाँ होना अभी जान भी नही पायी और तुम ये दे रहे हो !! क्यों !!”
“तुम नही जान पाई पर मैंने कल ही तुम्हे देख लिया था – असल में मुझे यहाँ आना ही नही चाहिए था |” वह परेशान होता अपनी उँगलियों के बीच बाल लेता झीकते हुए कह रहा था – “पर क्या करूँ – कब से नौकरी के लिए भटक रहा था तब जाकर नौकरी मिली भी तो तुम्हारी कंपनी में – पर नही – अब मैं यहाँ काम नही कर सकता इसलिए आज मैंने सोच लिया था कि मैं तुम्हे अपना इस्तीफा दे दूंगा |”
विवेक जहाँ बेहद बुझा हुआ दिख रहा था वही मेनका आश्चर्य से उसकी ओर देखती हुई कहती है – “सिर्फ मेरी वजह से नौकरी छोड़ रहे हो ? क्यों ? पर तुम्हे क्या बताऊँ कि अचानक तुम्हे देखकर मुझे कितना अच्छा लगा – ओह विवेक |” वह फिर उसकी बाहे थामती उसके कंधे की ओर झुक जाती है|
“बस इसी कारण |” वह मेनका को खुद से अलग करता हुआ कहता है – “ यहाँ हमारे बीच प्रोफेशनल रिश्ता नही बन पाएगा |”
अबकी मेनका खुद उससे दो कदम अलग हटती हुई कहती है – “बस यही बात है तो लो मैं वादा करती हूँ कि मैं यहाँ तुम्हारे साथ पूरी तरह से प्रोफेशनल रहूंगी तो अब तो मत जाओ – |”
“लेकिन मेनका…!”
“प्लीज विवेक – बात को समझो – ये नौकरी तुम्हे तुम्हारी काबिलियत पर मिली है न कि मेरे कारण तो इसे मेरे कारण क्यों छोड़ रहे हो और रही बात ऑफिस की तो आज से कोई यहाँ जान भी नही पाएगा कि मैं तुम्हे पहले से जानती थी – बोलो अब तो ठीक है न – प्लीज….|” वह विवेक की ओर बड़े मनुहार से देखती है|
“ओके |”
“ठीक है तो बैठो और ये लेटर ..|” लिफाफे को कागज सहित वह कतरा कतरा करके डस्टबीन के हवाले करती हुई अपनी जगह पर बैठती हुई विवेक को सामने की कुर्सी पर बैठने को कहती है – “तुम मेरे सामने हो ये मेरे लिए कम बात है क्या |”
कहती हुई मेनका विवेक के निस्तेज भाव को भी अपनी भरपुर नज़र से देखने लगी थी|
***
वो इलाका घनी बस्ती का था जहाँ एक ओर आस पास चिपके हुए कतारबद्ध घर थे तो ठीक उसके विपरीत ढेरों दुकानों का जाल सा बिछा था और साथ ही लगा था कूड़े का अम्बार| दूर से ही वह हिस्सा जैसे रेशमी शहर में किसी पैबंद सा नज़र आ रहा था|
वर्तिका की कार उस बस्ती के बाहर आकर ज्योंही रूकती है सबकी नज़रे उसे चारो ओर से घेर लेती है| वर्तिका पीछे बैठी शीशे के पार उस जगह को यूँ देख रही थी मानो वह कोई और ही दुनिया थी जिसे न इससे पहले कभी न उसने देखा न सोचा था|
रानी ड्राईवर के बगल में बैठी थी और वही कार को सही जगह लगाने को निर्देश देती है| कार ज्योंही बस्तों के पास रुकी वैसे ही बस्ती के ढेरो छोटे छोटे बच्चे उस कार की ओर यूँ आकर्षित होते चले आए जैसे फूल को देखते भौरे चले आते है| वो सच में भौरे की तरह श्यामल और गुंजार करते हुए कार को चारो ओर से घेरे उसे छू छूकर देख रहे थे| वो चमकती कार उनकी आँखों को चमत्कृत कर रही थी|
ये सब होने का रानी को पहले से ही अंदाजा था इससे वह कार से झट से उतरती उन बच्चों को दूर हटाने लगती है| वर्तिका भी कार से उतर आती है| अब बच्चे कार से नजर हटाकर उसे देखने लगे थे| उसके हर अहसास में उसका वैभव प्रदर्शित हो रहा था जिसे देखते बच्चे खुद ही तितर बितर हो जाते है|
वर्तिका के कार से उतरते दो आदमी ब्लेक गोगल लगाए एकदम से आकर उसे अपने घेरे में ले लेते है| वर्तिका चौंककर उन्हें देखती फिर समझ जाती है कि ये उसकी सुरक्षा में लगे बॉडीगार्ड थे जो जरुर चुपचाप उसके पीछे पीछे आए होंगे| इस वक़्त उनका अपने आस पास होना वर्तिका को अचकचा गया|
“मेरे ऊपर कोई हमला होने वाला है जो मुझे इस तरह से घेरे हो – प्लीज़ लीव मी अलोन |” वर्तिका झीकती हुई बोली|
जवाब में वे बॉडीगार्ड एकसाथ बोल उठे – “मैम ये सर का ऑर्डर है – वी कान्ट डीनाई |”
“और ये मेरा ऑर्डर है कि मुझे कुछ देर अकेला छोड़ दो नही तो मैं यूँही खड़ी रहूंगी हिलुंगी भी नही यहाँ से |” वर्तिका घूरती हुई उनसे कहती है|
अब उनके पास कोई रास्ता नही रहता तो वे हार मानते उसके सामने से हटते हुए अपनी पॉकेट से एक वॉकी टॉकी निकालकर रानी की ओर बढ़ाते हुए कहते है – “हम यही खड़े है – कुछ भी जरुरत हो तुरंत मेसेज करना |”
वर्तिका उनपर एक ऊब भरी नज़र फेकती आगे बढ़ जाती है| ये देख रानी जल्दी से वॉकी टॉकी लिए वर्तिका के साथ साथ चलने लगती है|
उन सबसे हटकर वर्तिका राहत भरी सांस छोडती अपने चारो ओर नज़र घुमाकर देखने लगी| कितना अगला सा सब कुछ यहाँ| पहले तो उसे समझ नही आया कि वे सब घर भी हो सकते है फिर रानी उसे बताती है कि वे छोटे छोटे कतारबद्ध घर है जिनमे से हर एक में दस से बीस लोग तक रहते है|
दस से बीस !! वर्तिका हैरान रह गई| फिर कुछ आगे चलते वह हलके से लड़खड़ा जाती है तो रानी जल्दी से उसका हाथ पकड़कर उसे संभाल लेती है| उन कच्चे पक्के रास्तो पर उसके कदम बेहद अजनबी से थे| ये सोच वर्तिका अपने में ही संकुचा जाती है|
कुछ रास्ता पार करते पतली गली से गुजरती दोनों एक घर के बाहर रूकती है| वह घर के बहार कुछ अलग सा उसे लगा| उसके बाहर एक कुर्सी राखी थी जिसके अच्छे से कवर से ढककर सजाया गया था| पास ही मेज पर मेजपोश बिछाकर उसमे एक छोटा सा गुलदस्ता भी रखा था जिसमे गर्दन लटकाए एक फूल सजा था| उसके पास आते रानी जल्दी से कुर्सी पर हाथ फिराकर उसे और अच्छे से सहेजती हुए वर्तिका को उसमे बैठने की कहती है|
वर्तिका बैठ जाती है| उसके बैठते उस छोटे से घर से एक औरत गोद में नन्हे से बच्चे को लिए बाहर निकलकर वर्तिका को नमस्ते करती चुपचाप खड़ी हो जाती है|
रानी अब वर्तिका का ध्यान उसकी ओर दिलाती हुई कहती है – “मैडम जी ये है मेरी भाभी और ये है मेरा लड़का |”
वर्तिका उसके संकेत पर अब उस औरत के बगल में खड़े आठ नौ साल के बच्चे को देखने लगी जिसने एक सिकुड़ी लेकिन अच्छी कमीज पहनी थी| वर्तिका को यही सब अजीब लगा पर उसे क्या पता था कि ये रानी द्वरा की गई उसकी ओर से सबसे बेहतर व्यवस्था थी|
वर्तिका उन सबको मुस्कराकर देख रही थी लेकिन वह बच्चा उसे आश्चर्य से देख रहा था| वर्तिका, रानी, उसकी भाभी और उसका लड़का वहां थे तो उन्हें दूर से निहारती एक छोटी भीड़ का हिस्सा भी वहां मौजूद था पर किसी पास कहने को कुछ नहीं था| वर्तिका को भी कुछ कहने को समझ नही आ रहा था फिर वह अपने साथ लाए पाउच से टटोलकर एक चॉकलेट निकालकर उस बच्चे की ओर बढ़ाती हुई उसे अपने पास बुलाती है|
चॉकलेट देखते उस बच्चे की निगाह में कुछ अलग ही चमक आ गई पर उसे लेने वह आगे न आ सका| वर्तिका फिर उसे चॉकलेट लेने पास बुलाती है इस बार रानी उसे हलके से आँखों से झिड़कती लेने को इशारा करती है इससे बच्चा संकुचाता हुआ आगे बढ़कर वर्तिका के हाथ से चॉकलेट लेने लगता है|
“क्या नाम है तुम्हारा ?”
बच्चा हथेली में चॉकलेट लिए अपनी माँ की ओर देखता हुआ धीरे से कहता है – “मुन्नू |”
“सो क्यूट – किस क्लास में पढ़ते हो ?”
“तीसरे में |” वह अब जवाब देता हुआ अपने हाथ की चॉकलेट की ओर देखने लगता है| वर्तिका समझ जाती है कि वह शायद इसे खाना चाहता है इससे वह मुस्कराकर आगे कहती है – “तुम इसे फिनिश कर लो मैं तुम्हे एक और दे दूंगी |”
ये सुनते बच्चा झट से चहकता बोल उठा – “सच में !! तब तो टुन्नू के लिए मैं रखने वाला था – अब दूसरी वाली रख दूंगा|”
“टुन्नू !!” वर्तिका भौं उचकाती उसकी ओर देखती है तो वह गोद वाले बच्चे की ओर इशारा कर देता है इसपर वह मुस्कराती हुई कह उठी – “पर इस बेबी को तो चॉकलेट खाने के लिए बड़े होने में बहुत टाइम है तो तुम दोनों चॉकलेट खा सकते हो |”
“हाँ तो रोज रोज थोड़े ये अच्छी चॉकलेट मिलती है – मैं इतना बड़ा हो गया तो अब मुझे मिली – लेकिन मैं टुन्नू को जल्दी से दे दूंगा ये चॉकलेट |”
वह बच्चा अपने बचपने में बहुत गहरी बात कह गया जिसे सुनते वर्तिका चकित रह गई तो रानी होंठ भींचे कोई अनकहा दर्द अपने भीतर उतार ले गई|
वर्तिका जल्दी से अपना पाउच खंगालकर उसमे से पायी दो तीन सब चॉकलेट उस बच्चे के हाथ में पकड़ाती ही कहती है – “तुम ये सब खा लेना और मैं प्रोमिस करती हूँ कि टुन्नू को चॉकलेट के लिए वेट नही करना पड़ेगा |”
रानी अब इधर उधर देखती हुई वर्तिका के कानो के पास झुकती हुई धीरे से कहती है – “मैडम जी अब चलिए आप नही तो साब जी गुस्सा करेंगे |”
वर्तिका एक गहरा शंवास छोड़ती हुई आखिर उठ जाती है| सब कुछ उसके लिए अजनबी नया अहसास सा था इसलिए वह रानी से पूछ लेती|
“रानी तुम्हारा घर तो सड़क से बहुत दूर है तो तुम्हारा बेटा स्कूल बस तक कैसे जाता होगा ?”
“स्कूल बस !!” रानी इस अजीब प्रश्न को समझ नही पायी या समझा नही पाई कि हम गरीबो के बच्चो के नसीब में स्कूल ही बड़ी मुश्किल से आता है फिर ये स्कूल बस !!
“मैडम जी स्कूल ज्यादा दूर नही है – बस पैदल चला जाता है -|”
वर्तिका अपने में विचरती हुई चली जा रही थी| उसके कार के पास आते वे बॉडीगार्ड दुबारा उसे अपने घेरे में लेते उसे कार में आराम से बैठने देते है| वर्तिका अब कार में बैठते ही दुबारा उस दुनिया को अपनी शीशे की दुनिया के पार से देखने लगती है| तभी उसकी नज़र एक छोटी सी भीड़ पर जाती है जिसे और भी ध्यान से देखने पर वह पाती है कि वहां कोई डॉक्टर खड़ी थी जिसके आस पास काफी लोग घेरा बनाए खड़े थे|
“वो क्या सरकारी डॉक्टर है ?”
रानी अब उसकी आँखों की दिशा की ओर देखती हुई कहती है – “मेरे को नही पता पर वो डॉक्टर दीदी हर हफ्ते आती है हमारी बस्ती में -|”
“अच्छा…|”
कार आगे बढ़ी जा रही थी और वर्तिका की आँखों करे दृश्य भी लगातार बदलते जा रहे थे| पीछे छूटी हुई बस्ती मानो कोई और ही दुनिया थी जो उसकी दुनिया के आस पास भी नज़र नही आती थी|
क्रमशः………………….

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