Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 78

उतराती दोपहर आखिर शाम का हाथ पकड़कर खीच ही लायी| अरुण भी शाम तक जल्दी वापस आ गया| उसे अब बस भूमि के लौटने का इंतजार था|
मंदिर में बाकी की सारी तैयारी हरीमन काका के साथ उजला कर चुकी थी| अब शेष काम के लिए उजला को वही छोड़कर वे रसोई में चले जाते है क्योकि रात को क्या खाना बनेगा सिर्फ वही तय करते थे|
उजला मंदिर में अकेली बैठी सीता को देख रही थी अकेली सीता माता की मूर्ति भी यूँ लग रही थी मानो उन्हें भी अपने पूर्ण होने का इंतज़ार हो, दोनों की आँखों का इंतजार एक सा था| फिर बार बार पलटकर अरुण का इंतज़ार करती नज़रो को पीछे दौड़ा देती|
मंदिर में विशेष तौर पर राम सीता के विराजने का स्थान था जिसे उजला पुष्प से सजा रही थी कि एक आवाज पर पीछे पलटकर देखती है| अरुण फोन पर बात करते करते आ रहा था| वह पलटकर देखती है तो बस एक नजर देखती रह जाती है| केसरिया कुर्ता पर वह आज कुछ अलग लग रहा था मानो आसमान सा सारा हल्दिया रंग आज एक जगह आ मिला हो| केसरिया संग यूँ तो सौम्यता और सरलता का प्रतीक है पर आज उसमे कुछ कुछ इश्क का रंग भी घुला लग रहा था| ये देख उजला मुस्करा उठी और यही पल अरुण की सीधी नजर उसकी मुस्कान पर पड़ गई|
उजला होंठ दाबे चुपके से मुस्करा रही थी पर अरुण को लगा कि शायद उसे इस तरह देख वह उसपर हँस रही है इससे वह मन ही मन चिढ़ गया|
“हाँ भाभी – मैं कर लूँगा डोंट वरी – आप आराम से वापस आइए |” मोबाईल हाथ में लिए वह अब उजला की ओर देखता हुआ कहता है – “तो सब अरेंज हो गया – अब मैं पूजा करता हूँ |”
“आप करेंगे पूजा !!” उजला अपनी बड़ी बड़ी ऑंखें फैलाकर आश्चर्य से पूछ बैठी|
“हाँ क्यों नही – मुझे सब पता है |” अपनी हिचकिचाहट छिपाते हुए अरुण अब मंदिर की ओर देखता है जहाँ थाली में फूल से लेकर आरती की थाली तक तैयार थी| उन सबको देखता हुआ कहता है – “हाँ तो फूल, थाली सब तैयार है न – गुड |”
उजला अचरच से अरुण को देखती फिर पूछ उठी – “आप को सच में पूजा करनी आती है ?”
“हाँ क्यों नही – उसमे कौन सा रोकेट साइंस है – मुझे सब पता है |” अपनी घबराहट भरसक अपने हाव भाव के पीछे धकेलता हुआ अरुण चुपचाप मोबाईल निकालकर उसमें पूजा कैसे करे यू ट्यूब पर चलाकर एयर पौड कान से लगा लेता है| अरुण अब हलके से मुस्कराते हुए प्रतिमा के सामने आसन पर बैठ जाता है| कानो के जरिए वह सब सुनता हुआ वैसा ही करने की कोशिश करने लगा| उजला पीछे खड़ी हैरान सब देख रही थी|
वीडियो से सस्वर उसे आचमन करने को कहते रोली घोलने को कहते है पर अरुण रोली और सिंदूर में फर्क नही समझ पाता और झट से सिन्दूर की डब्बी खोलने लगता है ये देख उजला तुरंत आगे आती उसे टोकती हुई कहने लगती है –
“वो सिंदूर है – |”
लेकिन अरुण हाथ दिखाकर उसे वही रोक देता है| इससे उजला अवाक् वही खड़ी रह गई|
अरुण सिंदूर निकालकर उसमे जल मिलाकर घोलने लगता है पर पानी कुछ ज्यादा ही मिल जाता है| वह सब सुन तो रहा था पर अरुण किसी सामान को न पहचानता था और कैसे प्रयोग में लाए ये ही जानता था इससे सब गड़बड़ सरबड हो जाता है| सिंदूर उसके हाथ से फैलता अब कपड़ो तक में लग जाता है तो दीया जलाने में उससे बाती ही नहीं बनती इससे वह एक बार परेशान भाव से पीछे पलटकर उजला की ओर देखता है पर वह भी जैसे रूठी हुई जानकर दूसरी ओर देखने लगी|
कही जल गिरा तो कही घी निकालने में वह उठते वक़्त फिसलते बचा| उसे अब समझ आया कि ये सब इतना आसान भी नही था पर वह उजला के आगे हेकड़ी दिखा चुका था और अब तो वह भी जानकर उसकी ओर नही देख रही थी इससे वह उलझ सा गया| पहले तो उसने एयर पौड निकालकर एक तरफ फेका फिर एक सरसरी नज़र से उजला की ओर देखा पर वह अब भी अन्यत्र देख रही थी| वह उससे मदद मांगना चाहता था लेकिन कह न सका| वह उठकर प्रतिमा के आगे हाथ जोड़कर जाने का उपक्रम करने लगा|
वह उठकर मंदिर से बाहर निकने लगा| अभी वह बाहर निकला ही था कि घटी की आवाज सुन तुरंत पलटा| उजला अब प्रतिमा के सामने खड़ी सब सहेज रही थी| ये देख अरुण वापस उधर चला आया|
अब वह मौन ही उसके पास खड़ा था| उजला पलटकर उसकी ओर देखती है इस पल वह उसकी आँखों की मौन विनती को समझती सामान सहेजकर पूजा करने करने लगती है| वह उसके साथ खड़ा देखता रहा कि उजला सब कितने अच्छे से कर रही है|
दोनों मौन ही एक दुसरे का संकेत समझते रहे| उजला ज्यो ज्यो करने का संकेत करती अरुण चुपचाप वैसा करता| आरती की थाली में दीया बाती सजाए वह आरती करती है|
उनके बीच जैसे शब्दों की जरुरत ही नही रही| उजला ने कहा भी नही और अरुण से सारा मान भी लिया| जब आरती की बारी आई तो अरुण के आँखों के निवेदन पर उजला गाने लगी –
“नगरी हो अयोध्या सी….रघुकुल सा घराना हो….
स्वामी हो तुम्हारे जैसा…मेरा रघुराई हो…
चरण हो राघव के…जहाँ मेरा ठिकाना हो…
नगरी हो अयोध्या सी…रघुकुल सा घराना हो…
सरयू का किनारा हो..निर्मल जल धारा हो…
दरश मुझे भगवन…जिस घड़ी तुम्हारा हो…
नगरी हो अयोध्या की….रघुकुल सा घराना हो….
चरण हो राघव के..जहाँ मेरा ठिकाना हो..
वे दोनों साथ में प्रतिमा के सामने खड़े थे इसी वक़्त भूमि वहां आई और चुपचाप उनके पीछे खड़ी हो गई| उजला के स्वर क्षितिज के साथ साथ मेनका को भी वही खीच लाते है| वे तीनो चुपचाप उनके पीछे हाथ जोड़ खड़े थे|
आरती करके उजला ज्योही थाली रखती है सबको खड़ा देख संकुचा जाती है| भूमि आगे आकर आरती लेती मेनका और क्षितिज को भी आरती लेने का संकेत करती है| वे दोनों भी आरती लेते है| अब उजला सबकी हथेली में प्रसाद रख रही थी पर मारे संकोच के किसी की नज़रो की ओर नही देख पाई लेकिन भूमि की सीधी नज़र उजला के चेहरे पर थी|
अब उजला भूमि की हथेली में प्रसाद रख रही थी तब भूमि कह उठी – “भलेही अयोध्या सी नगरी न हो पर राम को तो वनवास मिला ही |”
“जी !!!” उजला चौंककर भूमि की ओर देखती है|
“बस तुम गा रही थी तो मेरे मन में ये ख्याल आया – सच में तुम बहुत अच्छा गाती हो |” फिर अरुण की ओर देखती हुई कहती है – “मैं भी इतने अच्छे से नही कर पाती तो उजला अब से रोज तुम अरुण की मदद कर दिया करो|”
उजला कुछ नही कहती बस मौन ही मेनका की हथेली में प्रसाद रखने लगती है| मेनका प्रसाद लेती चहकती हुई कहती है – “मैं भी तो सुनकर चली आई – हैरान रह गई कि इस घर के सन्नाटे में कोई गीत भी सुनाई देता है !!”
“मैं तो लड्डू खाने आया था – मुझे एक और मिलेगा !’ सबके बीच क्षितिज प्रसाद लेता हुआ कुछ इस तरह बोला कि सबके चेहरे एक साथ खिल उठे| उजला मुस्कराती हुई एक और लड्डू उसकी हथेली में रख देती है जिससे वह कसकर मुस्करा उठता है|
सबके चेहरे खिले थे पर उनके बीच उजला का मन कुछ उदास हो उठा था| मन खुद से ही प्रश्न कर उठा – ‘सबको राम का वनवास तो पता है पर सीता का वनवास कोई नही जानता |’
***
वर्तिका अब ज्यादातर कोशिश करती कि कम से कम रात के खाने पर वह अपने भाई के साथ रहे| अपने भाई के आस पास रहते उसे महसूसते उसे अहसास होता कि एक तरह से उसका भाई भी कितना अकेला है|
प्लेट से पहला कौर तोड़ती वह हलकी नजर से रंजीतकी ओर देखती हुई कहती है – “एक बात पूछूँ भईया ?”
रंजीत भी खाते खाते बेख्याली में हामी भरते हुए कहता है –
“बिलकुल पूछो |”
“आप शादी क्यों नही कर लेते ?”
रंजीत का हाथ हवा में तो ऑंखें एकदम से वर्तिका की ओर उठ गई जो अभी भी संकुचाती हुई कह रही थी – “अगर आप शादी कर लेते तो मुझे भी कंपनी के लिए भाभी मिल जाती न – तब कितना अच्छा लगता घर में |”
जल्दी ही रंजीत अपना पहलू बदलता हुआ कहता है – “तो तुम्हारे अकेलेपन के लिए मैं अपनी शामत बुला लेता – नही भाई – मैं ऐसा ही ठीक हूँ |”
“ऐसा क्यों कहते है भईया – भाभी होती तो बहुत अच्छा लगता |”
वर्तिका की बात पर रंजीत हलके से हँसता हुआ कहता है – “अच्छा अच्छा ठीक है – पहले खाना खाओ |”
“नही भईया – आज सच में मैं इस बात को लेकर बहुत सीरियस हूँ – या तो आप ही किसी को ढूंढ लो या मैं ढूंढती हूँ आपके लिए |”
“हा हा – बल्कि मुझे अपनी बहन के लिए अच्छा सा राजकुमार ढूंढना है – समझी |”
“वो सब मुझे पता नहीं पर मुझे आपके लिए तो अब कोई खोजनी ही पड़ेगी वो भी भूमि भाभी जैसी |” वर्तिका अपने आप में ही मुस्कराती हुई कह रही गई पर वह नहीं देख पायी कि इस नाम से उसके भाई के हाव भाव एकदम से बदल गए| वह हडबडाया सा अपनी नज़रे प्लेट की ओर झुका लेता है|
वर्तिका अभी भी कह रही थी – “आप नही जानते पर मैं जानती हूँ न वो सच में बहुत अच्छी है – काश वे मेरी भाभी होती – आपको पता है वे एक सोशल वर्कर भी है और आज बस्ती में जाने के बाद से मैंने डिसाइड किया कि उन बस्ती वालो के लिए मैं क्या कर सकती हूँ इसपर उन्ही की राय लुंगी – क्यों भईया मैं उनसे तो मिल सकती हूँ न !!”
जल्दी ही अपने मनोभावों को नियंत्रण करते रंजीतकहता है – “जिसमे तुम खुश हो वो सब तुम कर सकती हो – बस फिर से तुम्हे टूटते हुए मैं नही देख सकता |”
“नही होगा अब ऐसा – मुझपर विश्वास करिए |” वर्तिका अपने भाई के हाथ पर हाथ रखती पूर्ण विश्वास से कहती है|
“ठीक है – अब खाना खाओ |”
वर्तिका मुस्कराती हुई खाने की ओर झुक जाती है|
***
“नमस्कार कल्याण जी – कैसे हो ?”
सेल्विन की आवाज सुन कल्याण फाइलों से ध्यान हटाकर उसकी तरफ देखता हुआ कहता है –
“नमस्कार सेल्विन भैया – दया है आपकी – आपकी कृपा से काम मिल गया वरना भूखो मरने की नौबत आ चुकी थी|”
सेल्विन मेज के कोने पर बैठता कल्याण के कंधे अपना हाथ रखते हुए कहता है – “अरे कैसी बात करते हो – तुम्हारे जैसे ईमानदार लोग मिलते कहाँ है आजकल – वो तो इस ऑफिस की किस्मत थी जो मैं तुमसे मिला और ऑफिस को तुम मिले – क्यों सही कहा न मैंने ?”
“अरे कहाँ उठा रहे है मुझ गरीब को – !” कहकर कल्याण पुनः फ़ाइल उठाकर रैक पर रखने लगता है जैसे वह पहले रख रहा था|
“अच्छा एक बात पूछूँ – सही सही बताओगे ?”
“आप पूछिए तो सही – अपने माई बाप से भी कोई झूठ बोलता है भला !”
“अच्छा तो ये बताओ – तुमने अपनी पहली नौकरी क्यों छोड़ दी ?”
अचानक कल्याण के तेवर बदल जाते है –
“अब आप से क्या छिपाना – नौकरी छोड़ी नही – उसे लात मार कर आया – जहाँ आदमी की इज्जत न हो वहां एक क्षण भी ठहरना पाप है |”
“हूँ – पहले शायद तुम किसी सामाजिक संस्था के ऑफिस में काम करते थे न ?”
“हाँ वहां मेनेजर था|”
“लेकिन ऐसा क्या हो गया जिसके लिए तुम्हे इतनी अच्छी नौकरी छोड़नी पड़ी ?” सेल्विन जान कर कल्याण के दबे नासूर को कुरेद रहा था|
“व वो – दरअसल कुछ खास तो नही |”
“ठीक है – नही बताना चाहते तो कोई बात नही – मैं चलता हूँ |”
सेल्विन नाटकीयता से उठने का उपक्रम करता है जिसे देखते कल्याण तुरंत उसे रोकते हुए कहता है – “अब कुल जमा यही समझ लो भैया कि वहां मेरा अपमान हुआ – एक औरत से थप्पड़ खाने के बाद मैं वहां कैसे ठहरता – सबके सामने उसने तो – |”
सेल्विन इस पर जोर से हँसने लगता है| कल्याण झेप जाता है फिर सेल्विन जल्दी से स्थिति सँभालते हुए कहता है – “अजीब आदमी हो – एक औरत ने तुम पर हाथ उठाया और तुम दुम दबाकर भाग आए |” सेल्विन फिर हँसने लगता है|
“तो क्या कर पाता मैं ..?”
सेल्विन जल्दी से गंभीर होते हुए कहता है – “क्या कर पाते – अरे पूछो क्या नही कर सकते थे – अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो खुद चाहे बर्बाद हो जाता पर उस बेइज्जती का बदला जरुर लेता |”
सेल्विन की बात पर कल्याण भी सोचता हुआ कहता है – “हाँ सोचा तो था पर मैं इतने बड़े लोगो के खिलाफ क्या कर सकता हूँ – मेरे पास न दौलत है न हैसियत !”
“हौसला तो है !”
कल्याण अवाक् सेल्विन के चेहरे को देखता रहा जो कह रहा था – “सुना नही है एक तिनका भी आंख में किरकिरी पैदा कर देता है – तुम हौसला रखो बाकी मैं सब तरह से तुम्हारी मदद करूँगा – आखिर तुमने मुझे अपना भाई माना है तो क्या एक भाई अपने दूसरे भाई के लिए इतना भी नही कर सकता !”
“क्या सच सेल्विन भैया !”
“हाँ बिलकुल – हिसाब पूरा चुकता होना चाहिए – तो बढाओ अपना हाथ |”
कल्याण का हाथ खींचकर सेल्विन उससे हाथ मिला लेता है| सेल्विन के चेहरे पर जहाँ विजयी मुस्कान आ जाती है वही कल्याण गहरी सोचा में पड़ जाता है|
***
केबिन में बैठा विवेक जहाँ किसी फ़ाइल को ध्यान से देख रहा था वही उसके सामने बैठी मेनका का सारा का सारा ध्यान विवेक की ओर था|
“मैंने देख लिया है – बस तुम इसमें साइन कर दो |” कहता हुआ विवेक मेनका की ओर देखता है पर उसकी नज़रे अपनी ओर टिकी हुई देख भौं उचकाकर पूछता है – “क्या देख रही हो ?”
“यही कि तुम कितना बदल गए हो – आई मीन शक्ल सूरत से भी – ये बढ़ी हुई दाढ़ी और बढे हुए बाल एकदम बिलकुल तुम्हे अलग ही लुक देते है – तीन साल पहले के विवेक से बिलकुल अलग ही दिखते हो तुम |” वह अभी भी नज़रे गड़ाए उसे देख रही थी|
“मेरे ख्याल से तुम्हे ये फाइल देखनी चाहिए न कि मुझे – मैंने फोर्मेट देख लिया है अब तुम साइन करो – ये जरुरी है इसे आज ही फैक्स होना है |”
“हाँ तो जरुरी चीज ही तो देख रही हूँ |”
कहती हुई मेनका एक आंख दबा लेती है इसपर विवेक धीरे से मुस्करा देता है|
“वैसे तुम ऐसे ही बहुत हॉट दिखते हो |”
“इससे पहले ही तुम इससे आगे कुछ कहो – अब मुझे चलाना चाहिए |”
इस वक़्त दोनों के चेहरे मुस्करा रहे थे तभी केबिन एक नॉक के साथ खुल जाता है और दोनों एकसाथ दरवाजे से आते हुए अरुण को देखते तुरंत ही अपने हाव भाव समेट लेते है|
अरुण आते ही मेनका से कुछ कहते कहते सहसा विवेक की ओर देखता हुआ कह उठा – “विवेक ! तुम्हे यहाँ देखकर अच्छा लगा – आई थिंक न्यू अपोइन्ट स्ट्रेंथ में मैंने नाम देखा था तुम्हारा – मैंने कहा था न काबिल लोगो के लिए हमेशा नौकरी रहती है |”
विवेक हलके से होंठो को विस्तार देता अब मेनका की ओर देखता हुआ कहता है – “मैम इसे रीचेक करके लाता हूँ मैं |” कहता हुआ विवेक तुरंत ही केबिन से बाहर निकल जाता है|
मेनका भी सहज होती अब अरुण की ओर देख रही थी जो उससे कह रहा था – “अच्छा लड़का है – अनजान होते हुए भी इसने एक बार मेरी हेल्प की थी |”
इसपर मेनका बस हलके से होंठो को विस्तार दे देती है|
…………….क्रमशः…………………..

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