Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 82

आदमकद शीशे के ठीक सामने खड़ा आकाश वेस्ट कोट पहन रहा था और ठीक उसके पीछे खड़ा एक सर्वेंट अपने दोनों हाथो में अलग अलग कोट लिए खड़ा था| वेस्ट कोट के बटन लगाते हुए वह एक नजर खुद पर ऊपर से नीचे डालता है और तस्सली होते अपने करीने से सेट बालो को हलके हलके से स्पर्श करता सेट करने लगता है|
तभी कोई नन्हे हाथ अपनी भरसक पहुँच बनाते एक कोम्ब को उसकी ओर बढ़ाने लगता है जिससे आकाश का ध्यान उसकी ओर जाता है|
“थैंक्यू |” वह कोम्ब को उसके हाथ से लेता हुआ फिर से अपने बाल सेट करने लगता है|
उसकी देखादेखी क्षितिज भी उसी शीशे में देखता अपने पिता की नक़ल करता अपने बाल सेट करने लगा| ये देख आकाश हलके से होंठो को विस्तार दे देता है| और क्षितिज कसकर खिलखिला पड़ता है| जैसे जैसे आकाश कर रहा था क्षितिज भी ठीक वैसे ही नक़ल करता जाता|
कभी अपने कॉलर दुरुस्त करता तो कभी अपनी शर्ट का पेंट के अंदर होता चेक करता|
ये आकाश का कमरा था और उसके कमरे के खुले दरवाजे से गुजरती भूमि एक सरसरी नजर आकाश और क्षितिज पर दौड़ा देती है| क्षितिज का ये नटखटपन उसे लुभा गया पर इस वक़्त पिता पुत्र के बीच न आना ही उसने ठीक समझा और बगल के अपने कमरे में चली गई|
“हम्म – तो आज मेरा यंग मैन कहाँ के लिए तैयार हो रहा है ?” कहता हुआ आकाश अब सर्वेट को संकेत से पहनने वाला कोट बताता है जिसे वह आकाश को पहनने में मदद करने लगा|
“जहाँ डैडू वही बेटू |”
इसपर मुस्कराते हुए आकाश उसके बालो पर हाथ फेरता हुआ कमरे से बाहर निकलने लगा तो क्षितिज जल्दी से उसके पास दौड़ता हुआ आता कहता है – “डैडू रुकिए मैं भी आपके साथ चलूँगा |”
“कहाँ ?” उसकी ओर पलटते हुए आकाश पूछता है|
“आप मेरे स्कूल चल रहे है न !” क्षितिज सर उठाए अपने पिता की ओर देखता हुआ पूछता है – “आज क्रिस्मस इवेंट में मेरे स्कूल में चलना था न आपको |”
“ओह शिट – मैं तो बिलकुल भूल ही गया चलो कोई बात नही अगली बार पक्का – प्रोमिस |”
कहता हुआ आकाश निकलने का उपक्रम करने लगा तो क्षितिज दौड़कर उसके पैरो से लिपटता हुआ बोल उठा – “आपने प्रोमिस किया था कि आज आप मेरे स्कूल चलेंगे – पिछली बार भी नहीं गए थे आप |”
“फिर कभी बेटा – आज जरुरी जाना है |” कहता हुआ उसकी नन्ही बाहे अपने पैरो के इर्द गिर्द से हटाता हुआ तेजी से कमरे से बाहर हो जाता है|
“आपने प्रोमिस किया था |” पीछे खड़ा क्षितिज रुआंसी आवाज में धीरे से कहता है|
“क्षितिज…!”
भूमि ये सब देखती तुरंत क्षितिज को आवाज लगाती उसकी तरफ बढ़ती है पर तब तक रूठा हुआ क्षितिज उसके विपरीत दौड़ जाता है| आगे आगे क्षितिज तो भूमि आवाज लगाती पीछे पीछे तेजी से चल रही थी| यही समय था अरुण भी ऑफिस जाने को निकल रहा था पर क्षितिज और भूमि को इस तरह जाता हुआ देख वह भी उनकी तरफ बढ़ जाता है|
रूठा हुआ क्षितिज झट से अपने कमरे में पहुँच कर घुटनों में सर दिए बैठ जाता है| अब देहरी पर रुकी भूमि और पीछे खड़ा अरुण मायूसी से उसे इस तरह देखते रहे| अब तक उजला भी वहां आ चुकी थी लेकिन वह भी खड़ी देखती रही| उसे वजह पता ही नही थी|
“क्या हुआ है भाभी ?” अरुण धीरे से पूछता है|
भूमि का मन भारी हुआ जा रहा था इससे वह कमरे में क्षितिज के पास न जाकर वापस बाहर की ओर आती बैठ जाती है| अरुण भी भूमि के पास आकर बैठता फिर पूछता है तो भूमि बिफरे मन से कहने लगती है –
“उसके स्कूल का सोशल इवेंट है जिसमे सारे बच्चो के पेरेंट्स पार्टिसिपेट करते है और यही अपेक्षा वह हमसे रखता है – पिछली बार मैं व्यस्त थी पर इस बार तो मैं जाने को तैयार थी पर…..|” भरे मन से वह कहती रही – “हर बार मैं कोशिश तो करती हूँ कि उसकी अच्छी माँ बनू पर जाने कहाँ चूक रह जाती है मुझसे |”
“इसमें कोई शक नही आप बेस्ट माँ है लेकिन आप चाहकर भी भईया की जगह को कम्पेंशेट तो नही कर सकती न – आप परेशान मत होहिए मैं क्षितिज से बात करता हूँ |”
भूमि को दिलासा देता वह क्षितिज के पास चल देता है| वह अभी भी वैसे ही खुद में सिमटा बैठा था|
अरुण उसके पास आकर उसके बालो पर उंगलियाँ फेरता हुआ कहता है – “तो बताओ आज हम कहाँ चले घूमने – आज मेरा हीरो जो चाहेगा वही मिलेगा उसे |”
“डैडू मिलेंगे !!”
अचानक से उसके मासूम सवाल से अरुण के साथ साथ भूमि स्तब्ध रह गई|
“कोई नही जाएगा मेरे साथ और वो मेरे सारे फ्रेंड्स – सबके पेरेंट्स आएगे बस मेरे ही नही आते |”
“बेटू – मैं चलू तो !!” भूमि जल्दी से उसके पास आती कहती है|
“नही न अकेली मम्मा और न अकेले डैडू – दोनों चलेंगे या मैं अकेले स्कूल जाऊंगा |” कहता हुआ वह दुबारा तकिया में अपना चेहरा छुपा लेता है|
भूमि उसके व्यवहार पर दुखी हो उठी| वह क्षितिज को समझाना चाहती थी पर अरुण संकेत से उसे मना करता बाहर चलने को कहता है| वे बाहर आते भूमि से कहता है –
“अभी समझाने से वह नही समझेगा – डोंट वरी भाभी अभी मैं उसे स्कूल छोड़ देता हूँ – स्कूल जाएगा तो उसका मूड चेंज हो जाएगा |”
उजला क्षितिज के पास आती तकिया उठाकर फिर गद्दे के नीचे तो कभी ड्रावर खोलकर खोलकर कुछ ढूँढने में लगी थी| आहट पाते क्षितिज अचरच से उसकी तरफ देखने लगा लेकिन उजला उसे नजरंदाज करती कभी बेड के नीचे झांकती तो कभी वार्डरोब खोल कर देखने लगती| उजला को लगातार ऐसा करते देख आखिर क्षितिज पूछ उठा –
“आंटी आप क्या ढूंढ रही है ?”
“बस यही तो था – अभी मिल नही रहा – कहाँ रखा है |” कहती हुई उजला फिर खोजने का उपक्रम करने लगी|
पर क्षितिज फिर जिज्ञासा से पूछने लगा – “बताईए न आंटी आप क्या ढूंढ रही है |”
“अरे कहीं तुम्हारी पॉकेट में तो नहीं |” कहती हुई अबकी उसके पास आती उसकी पॉकेट की ओर देखती हुई कहने लगी – “चलो दिखाओ अपनी पॉकेट – यही होगी !”
“पर क्या..!!”
“क्षितिज की मुस्कान – देखो अभी अभी गायब हुई है – जरुर तुम्हारी पॉकेट में छुपी होगी |” कहती हुई उसकी टीशर्ट की पॉकेट पर उंगली डालती उसे गुदगुदी कर देती है जिससे पल में क्षितिज खिलखिला कर हँस देता है|
“देखा मैंने कहा था न – पॉकेट में छिपी थी – देखा मिल गई न |” कहती हुई वह उसका हाथ पकड़े कसकर मुस्कराती कमरे में गोल गोल घूम जाती है| उस पल कमरा भी उसकी खिलखिलाहट से भर उठता है| घूमते हुए सहसा उजला की नज़र कमरे की देहरी पर खड़े अरुण से और भूमि से जा टकराती है तो वह अपनी जगह संकुचाती खड़ी हो जाती है|
वे दोनों भी शायद क्षितिज की हँसी सुनकर आए थे| वे दोनों हैरान उन्हें देखते सोचने लगे कि बच्चे भी क्षणिक तुष्टा क्षणिक रुष्ठा होते है| अब क्षितिज का मूड कुछ बेहतर हो चुका था जिससे वह भूमि को देखते उसके पैरो से लिपट जाता है| भूमि भी उसे अपने अंक में लिए प्यार करने लगी|
“तो बिग बॉस आगे क्या प्लान है आपका ?कही घूमने जाना है या स्कूल !” अरुण क्षितिज की ओर देखता हुआ पूछ रहा था|
क्षितिज दो पल तक बारी बारी से सबका चेहरा देखता रहा फिर सोचने की मुद्रा बनाते हुए कहता है – “मैंने अपनी न्यू वाली मैम को प्रोमिस किया था कि मैं जरुर आऊंगा तो मुझे स्कूल जाना पड़ेगा |”
“हाँ तो मेरा क्षितिज किसी से झूठा प्रोमिस थोड़े करता है – चलो आज मैं खुद तुम्हे स्कूल छोड़ने चलूँगा |” कहता हुआ अरुण नन्हे क्षितिज को फूलों की तरह अपनी गोद में उठा लेता है| वह भी खिलखिला उठता है|
“तो अब जल्दी से तैयार हो जाओ – मैं बाहर वेट करता हूँ |” कहता हुआ अरुण उसे संभालकर नीचे उतार देता है|
“मैं तो सुबह से तैयार हूँ चाचू |”
“तो फिर चलो |”
अपने चाचू के बढ़े हाथ को पकड़ते सहसा क्षितिज उजला की ओर देखता हुआ कहने लगा – “आंटी आप भी चलो न मुझे छोड़ने – मैं आपको अपना स्कूल दिखाऊंगा – आज तो सैंटा भी आएगा न – हो सकता है वो आपकी भी कोई विश पूरी कर दे !” सैंटा के नाम भर लेने से उसकी नन्ही आँखों में गजब की चमक आ जाती है|
“मैं नही -|”
उजला की हिचकिचाहट देखती भूमि कह उठी – “हाँ जाओ न उजला – तुम्हारे साथ क्षितिज को बहुत अच्छा लगता है – छोड़कर वापस आ जाना |”
“हाँ मैं छोड़ते हुए फिर ऑफिस चला जाऊंगा |” अरुण भी कम शब्दों में अपनी बात रखता है|
अब उजला कुछ नही कहती जिससे वे सभी साथ में बाहर चल देते है|
***
होटल का वही पसंदीदा रूम और उसमे बेड पर आराम से लेटी हुई स्टैला और उसके सामने खड़ा आकाश जो सपाट भाव से उससे कह रहा था –
“मैं रंजीतको नहीं जानता – हमारा कॉलेज भलेही एक रहा हो लेकिन मेरा उससे कोई ताल्लुक नही था क्योंकि शुरुवात से मैंने उसे अकेला ही देखा और..|”
“और तुम्हे लड़कियों से फुर्सत नही मिलती होगी – एम ए राईट !!” आकाश की बात पूरी करती स्टैला हँस पड़ती है|
“तुम मुझे अपनी बात पूरी करने दोगी !!”
“ओक ओके – कंटिन्यु |”
“उसका बैच मेरे बैच से पहले खत्म हुआ तो जाहिर है वह मुझसे पहले भारत आया – मैं अब तक बस एक पार्टी के अलावा उससे कभी नही मिला – उसके डैड और मेरे डैड कभी बिजनेस पार्टनर हुआ करते थे पर उसके डैड की मौत के बाद क्या हुआ मुझे नही पता |”
“इस कहानी में कुछ दम नही है – कुछ और बताओ जो पता हो |”
“जो सामने है वही बता रहा हूँ |”
“पर जो छिपा है मुझे वो जानना है |”
“वो तुम खुद पता करो – मैं बस एक हेल्प कर सकता हूँ कि उस पार्टी की कुछ तस्वीरे और वीडियो है मेरे पास जिन्हें मैंने तुम्हे मेल कर दिया है – उनमे से उसके बारे में कुछ पता चल सके तो तुम वो कर सकती हो तो अब तुम मुझे वो ड्राइव दोगी ?”
“ओह डार्लिंग कितनी बच्चों की तरह जिद्द करते हो – क्या ड्राइव के पीछे क्रेजी हो |” वह नाटकीयता से अंगडाई लेती हुई कहती है|
पर उसकी बात पर बुरी तरह से उखड़ता हुआ आकाश उसके और पास आता चीख उठा – “यू आर लायर |”
“डोंट वरी तुम्हे खाली हाथ नही भेजूंगी – कुछ तो दूंगी तुम्हे |” कहती हुई वह तेजी से आकाश की गरदन पर अपनी बांहे लपेटती उसे अपनी ओर खींच लेती है|
आकाश भी लडखडाता उसके ऊपर गिर पड़ता है| वह स्टैला के ऊपर पूरी तरह से गिरा था और वह उसे कसकर अपनी बाहों में जकड़े बेतहाशा उसे चूमती हुई कह रही थी –
“जो दे रही हूँ वो लो और जो नही दूंगी उसकी जिद्द मत किया करो |”
आकाश उसकी बात से बुरी तरह खीजा हुआ था जिससे वह उससे अलग होना चाहता था पर स्टैला उसपर किसी भूखी बिल्ली की तरह यहाँ तहां नोचती हुई उत्तेजित हुई जा रही थी और उसके सामने हार मानने के अलावा आकाश के पास कोई चारा नही थी|
…………क्रमशः……………..

One thought on “बेइंतहा सफ़र इश्क का – 82

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!