Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 85

अरुण हैरान अपनी जगह जैसे बर्फ हो गया उसके लिए उजला का हर एक रूप समझना जैसे कोई भूल भुलैया हो गया| जबकि उजला अपनी मस्त मुस्कान के साथ क्षितिज का हाथ पकड़े आगे बढ़ती हुई पूछती है – “चले !!”
इसपर क्षितिज झट से मुस्कराकर उसका हाथ थामे अरुण के आगे बढ़ जाता है|
एक बड़ा पार्टी हॉल था जिसमे किसी फाइव स्टार होटल जैसे अरेंजमेंट थे| वेटर सॉफ्ट ड्रिंक और स्नेक्स सबको सर्व कर रहे थे| वहां शहर के लगभग बड़े बड़े चेहरे थे और अपने अपने ग्रुप में वे बात करने में मशगूल लग रहे थे|
अरुण के वहां आते कुछ उद्यमी उसे घेरे व्यावसायिक चर्चा करने लगे तो क्षितिज अब उजला का हाथ छोड़कर अपने क्लास मेट के ग्रुप में शामिल हो चुका था जिनके बीच अब वह हीरो की तरह था आखिर उसके बिहाफ पर अरुण और उजला ने खुद को विनर जो साबित किया था|
इन सबके बीच बस उजला ही अकेली रह गई थी| वह अजनबी की तरह वहां खड़ी थी जहाँ कुछ लेडिज झुण्ड में खड़ी उसे तिरछी नजरो से देख रही थी| वे बार बार उसे ऊपर से नीचे छानती हुई बीच बीच में फुसफुसाकर हँस लेती|
“मुझसे न साडी कैरी ही नही होती – वैसे भी बड़ी बोरिंग ड्रेस है |”
“यस यू आर राईट मिसेज सेंगर लेकिन शायद किसी के पास इसके अलावा कोई ऑप्शन ही न रहा हो – देखकर तो यही लगता है |” कहती हुई वह फिर होंठ दबे हँस पड़ी| उसकी बात पर बाकी की लेडिज भी अपने अपने अंदाज में हँस पड़ी|
“वैसे एक बात नही समझ आई – मिस्टर अरुण के साथ ये है कौन – क्या वाइफ है उनकी ?”
“नो नो मिसेज खान – उनकी वाईफ तो भाग गई थी न – आप शायद भूल गई है |”
“ओह यस रिमेम्बर – |”
“ये बढ़िया है – वाइफ किसी और के साथ भाग गई और हसबेंड किसी और के साथ घूम रहा है |”
“ये लेटेस्ट ट्रेंड होगा न |”
इस बात पर फिर से एकबार सभी हँस पड़ी थी|
अब उजला के लिए वहां खड़े होना मुश्किल हो गया| वह चुपचाप वहां से निकलकर आउट एरिया में आ गई| उसके लिए ये सब सुन पाना असहनीय हो रहा था| उस जगह वह अकेली खड़ी थी अपनी उदासी के साथ|
“आंटी !”
अचानक आवाज सुनकर वह पलटकर देखती है| ये क्षितिज था जो उसके सामने खड़ा हुआ था| उसके हाथ में एक प्लेट भी थी|
“आंटी आपने कहा था न कि खाना वेस्ट नही करते तो देखीए न मेरी मैम ने मुझे इतना सारा स्नैक्स दे दिया तो क्या आप मुझसे शेयर करेंगी आंटी !!”
वह अपनी मासूम नज़र से उसकी ओर देखने लगा| उजला अगले पल उसकी प्लेट देखती है जहाँ कुछ ज्यादा स्नैक्स नही थे इससे उसे समझते देर नही लगी कि शायद उसे यहाँ अकेला खड़े उसने देख लिया हो| उसकी मासूम समझ पर उसका मन मोहित हो उठा|
उजला जवाब में मुस्करा देती है| इससे क्षितिज उसकी ओर प्लेट बढाकर अपनी मुस्कान को और विस्तृत कर लेता है|
“पता है आंटी वो पियूष, चेतन सब मेरे बेस्ट वाले फ्रेंड बन गए – अब वे मुझे तंग भी नही करेंगे |”
इसपर उजला फिर हौले से मुस्करा देती है| तभी किसी और अगली आहट पर उन दोनों का साथ में ध्यान चला गया| वह अरुण था और वही आता हुआ कह रहा था – “क्षितिज ये तुम्हारे स्कूल का एसी खराब है क्या ? बहुत सफोकेशन हो गई इसलिए मैं बाहर चला आया |” वह अपना आखिरी वाक्य थोड़ा धीमे से कहता हुआ जानकर उजला की ओर नही देखता जबकि वह सीधे उसी की ओर देख रही थी और उस खुले स्पेस में अरुण के खड़े होने की वजह को साफ़ साफ़ महसूस कर पा रही थी|
तभी एक वेटर ट्रे लाता हुआ अरुण के सामने करते हुए कहता है – “सर टी प्लीज़ |”
“ओह थैंक्स |” कहता हुआ वह एक कप उठाने लगता है|
वेटर की ट्रे में दो कप थे और अरुण द्वारा एक उठा लेने पर वह खड़ा हुआ आगे कहता है – “सर आपने दो मँगाए थे !”
इसपर अरुण हडबडाते हुए उजला की ओर देखता है और यही पल था कि दोनों की निगाह आपस में मिल जाती है लेकिन जल्दी ही अपनी नज़रो को इधर उधर करते हुए जल्दबाजी में बोल उठता है – “व वो ऐसे ही निकल गया होगा खैर ले आए हो तो |” बाकी सारी हडबडाहट गहरी सांस की तरह भीतर खींचते हुए वेटर को उजला की ओर जाने का इशारा करता है|
वेटर के आते उजला चुपचाप कप उठा लेती है|
पार्टी से निकलकर अब अरुण मेंशन लौटने के लिए निकल रहा था| स्कूल के बाहर सबकी कार पार्क हो रही थी जिससे सब उसमे बैठते हुए निकल रहे थे| अरुण की कार के आते क्षितिज उस ओर दौड़ जाता है जबकि अरुण प्रिंसपल का गुड बाय स्वीकारता हुए धीरे धीरे उधर आ रहा था|
कार के पास पहुँचते वह उजला को पास ही खड़ा देख प्रश्नात्मक भाव से उसे देखता है फिर उसके अगले ही पल वह कार के पीछे की सीट की ओर निगाह करता है जहाँ क्षितिज लेटकर सो गया था इससे वह उजला को आगे बैठने का संकेत करता खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है|
कार सड़क पर दौड़ जाती है| वे साथ में थे और कुछ ज्यादा ही खामोश थे| बीच बीच में नज़र इधर उधर करके वह उसकी ओर देख लेता लेकिन उजला तो अपने बाए देख रही थी| तभी रेड लाईट पर रुकते अरुण की निगाह उजला के बालो पर गई कयोंकि उसका चेहरा अब साइड खिड़की की ओर मुड़ा था| उसकी गुथी हुई चोटी के बीच दो गुलाब टिके थे| वे शायद वही थे जो उन्हें स्कूल में प्रवेश करते वक़्त पकड़ाए गए थे| कुछ अजनबी अहसास सा जो उसके मन के भीतर से गुजर गया पर क्या वह अभी खुद भी नही समझ पाया|
सारा ट्रेफिक रुका पड़ा था तभी कोई बाबा का झुण्ड वहां से गुजरने लगा| वे सभी पैदल मार्ग से गुजर रहे थे और सब सवारी की ओर हाथ उठा उठाकर आर्शीर्वाद देते जा रहे थे| अरुण और उजला का साथ में ध्यान जब उधर गया तो एक बाबा हाथ उठाकर बोलते चलते रहे – “जोड़ी बनी रहे बच्चा |”
इससे अरुण अचकचा जाता है और यही हिचकिचाहट वह पलटकर उजला के हाव भाव में भी तलाशने लगता है जबकि वह सपाट भाव से उधर देख रही थी| ये देख अरुण के चेहरे पर आश्चर्य तैर गया|
सड़क के उस पार कोई और भी था जो उन्हें आँख फाड़े देख रहा था| वह था केकड़ा भाई जिसे उसके आदमी दोनों ओर से घेरे चल रहे थे और उसकी निगाह अरुण पर जाते वे साथ में उछल पड़े|
“भाई ये तो वहिच श्याना है |”
“हाँ भाई सही में वही है जिसने पिछली बार हमारे भाई की अच्छे से बजाई थी |”
अबकी अपने गुंडे की बात पर केकड़ा भाई बुरा सा मुंह बनाते हुए बोल उठा – “याद है और ज्यादा याद दिलाने की जरुरत नही है|”
“इसके साथ कोई चिकनी भी है – भाई बोले तो दोनों को आज के आज निपटा देते है|”
अपने सबसे जोशीले गुंडे को केकड़ा ऊपर से नीचे देखता है| हद से ज्यादा दुबला शरीर ऊपर से छोटे से चेहरे पर झऊआ भर बालो का भार पर ऑंखें ऐसी कि चाइनीज से बस थोड़ी ज्यादा ही खुली जान पड़ती| उसे इस तरह उछलते देख केकड़ा मुंह बनाते हुए बोलता है – “तू पिछली बार नही था न इसलिए उछल ले – अबकी सबसे आगे तुझे ही भेजूंगा |”
केकड़ा थोड़ा घायल लग रहा था वह अपना पैर सीधा करता हुआ थोड़ा आगे बढ़ा तो पीछे खड़ा दूसरा गुंडा बोल उठा – “भाई संभल के – आज भी आपके ग्रह ठीक नही – पिछली बार बहुत धोया था इसने आपको और आज तो आप पहले से ही घायल हो |”
इस पर केकड़ा पीछे पलटकर बुरी तरह खीजता हुआ बोला – “ये सब तुम सालो की गलती है – जब पता था उस बोरे में रुई नही लोहा है तो मेरा उसको पैर मारने से पहले चिल्लाते बे – तब तो मुंह में दही जमा रहा |”
इस पर वही पहला वाला अपनी सफाई देते हुए बोला – “भाई मेरे को क्या पता साला रुई की दूकान वाला बोर्ड लगाकर भंगार बेचता है – वैसे भाई अबकी अपन लोग बोरा चेक कर लिया करेंगे तब आप दमदार एंट्री करके बोरे में लात मारना |”
उसका उपदेश सुनकर केकड़ा का मुंह बुरु तरह बन गया| वह फिर आगे बढ़ने लगा| लेकिन फिर से उसके उसी गुर्गे से उसे रोक लिया|
“भाई मेरे को लगता है आपका ग्रह बुरा चल रहा है और आज फिर कुछ गड़बड़ होगी ?”
इससे केकड़ा फुंकारते हुए बोल उठा – “नही होगी – आज तो अपन इस श्याने का बजाने वाला है |” कहता हुआ अपने सामने से बाबा के जा रहे झुण्ड में से किसी एक की पूजा की थाली से नारियल उठा लेता है|
इसपर वह बाबा विरोध करता बस इतना बोल उठा – “जजमान क्या करते है आप ?”
“जजमान क्या होता है |” केकड़ा अपने साथी के कानो के पास आता पूछता है|
“साधू वाली कोई गाली होगी भाई |”
अपने साथी का ज्ञान पाते केकड़ा उस साधू पर भड़कते हुए बोला – “ओ डम डम बाबा – चुपचाप निकल ले – वो तो अपन साधू पर हाथ नही उठाता |”
कहता हुआ उस नारियल को जोर से जमीन में तोड़ता हुआ कहता है – “ले अपना ग्रह इससे ठीक हो जाएगा |” कहता हुआ वह किसी शूरवीर की तरह मुस्कराते हुए पलटकर अपने साथियों की ओर देखता है|
पर क्या पता था एक्शन का रियक्शन भी होगा| तभी ग्रीन लाइट होते सारा ट्रेफिक चलने लगा| इधर नारियल बिना टूटे गेंद की तरफ अरुण की कार की तरफ उछला और बदले में कार के आगे के पहिए से टकराकर वापस किसी तीर की तरह केकड़ा की तरफ आ उछला| आते ही सीधे उसके सर पर लगा और उसके अगले ही पल केकड़ा अपने साथियों की आँखों के सामने बेहोश पड़ा था और उसके साथी उसे होश में लाने उसे हिलाते हुए बोल रहे थे –
“भाई उठो वो श्याना तो जा रहा है |”
“रहने दे – वह फिर से अपन के भाई की बजाकर चला गया|”
“सच में अपन के भाई के ग्रह खराब है |”
कार अब उनकी निगाह से दूर जा चुकी थी|
अगले कुछ समय में कार मेंशन में दाखिल हो चुकी थी| अब तक क्षितिज जाग गया तो दोनों साथ में अंदर चले गए जबकि अरुण वही खड़ा सिरगेट सुलगाते किसी सोच में डूब गया था|
क्रमशः…………………………..

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