Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 89

वर्तिका दौड़ती हांफती इस समय रंजीत के मेनेजर सुकेश के सामने खड़ी थी वह भी उसी हैरानगी से उसे देखने लगा क्योंकि इससे पहले उसने कभी वर्तिका को रंजीत के ऑफिस आते नहीं देखा था| लेकिन उससे भी हैरानगी का प्रश्न तो वह अब कर रही थी|
“दस साल पहले की बात है आप जरा ध्यान से सोचिए न कि आप भईया के कहने पर किसी इवेंट में गए थे या कोई और ऑफिस से गया हो ?”
“दस साल पहले |” वह आँखे नचाता हुआ बोलता है – “मैं तो सर के कहने पर कितने सारे इवेंट में जाता हूँ – आपको तो पता है सर किसी इवेंट में नहीं जाते है |”
“ओहो आप बात नहीं समझ रहे – वो कोई डिफरेंट इवेंट था |” वर्तिका खुद पर ही झुंझलाती हुई कहने लगी – “काश वो शख्स मुझे मिल जाते जिसे मैंने उस तस्वीर में बैठे देखा था – पहले वे यही नौकरी करते थे – पर अब उन्हें कहाँ ढूँढू – उनके अलावा तो मैं किसी को पहचानती भी नहीं –|”
वर्तिका उदास भाव से लौटने लगी| उसने जिस शख्स को उस तस्वीर में आगे बैठे देखा था पहले वह रंजीत के ऑफिस में ही काम करता था पर अब उसे वह कहाँ खोजे वो भी दस साल बाद| उसे एक उम्मीद का तिनका मिला था वो भी डूब गया|
वर्तिका वापस बाहर निकलती हुई कहने लगी – “यहाँ आकर भी कोई बात नहीं बनी – अब कैसे पता चलेगा कि उस संस्था के इवेंट में क्या हुआ था ?”
सुकेश भी अनबूझा सा खड़ा रहा| वह बात समझ भी नहीं पाया पर तभी वर्तिका का कहा हुआ आखिरी वाक्य जैसे ही उसने कानो में पड़ा वह चौंकता हुआ उसे पुकार बैठा –
“मैडम एक मिनट – आपने क्या संस्था बोला अभी !!”
वर्तिका भी आवाज सुन तुरंत उसकी ओर मुडती हुई बोलती है – “हाँ हाँ संस्था – क्या कुछ याद आया आपको ?”
“अरे हाँ क्यों नहीं याद आएगा – आपने ये बताया ही नहीं कि आप किसी सोशल इवेंट की बात कर रही है -|”
वर्तिका अब खुश होती उत्सुकता से उसकी ओर देखने लगी थी|
“मैं भी गया था पर जगह नही मिली तो पीछे खड़ा रहा बल्कि वहां जितने भी दर्शक थे सभी इसी ऑफिस के ही थे – अब उस बेकार प्रोग्राम के लिए कौन अपना पैसा बर्बाद करता |” वह अनभिज्ञता से हँसते हुए अपनी बात कहने लगा पर वर्तिका का सख्त होता चेहरा देखते तुरंत खुद को सँभालते हुए आगे कहने लगा – “मतलब वो गाना और प्ले देखने में हर किसी को तो इंटरेस्ट नहीं आता न तो इसीलिए मैंने ये कहा – वैसे उस दिन को मैं क्या कोई भी इस ऑफिस का बन्दा नही भूल सकता – सर ने सबको फ्री में टिकट और प्लस इन्क्रीमेंट दिया था तो उस दिन तो जाने वालो की भीड़ लग गई थी जिसका मन नहीं भी था वो भी वहां प्रोग्राम देखने पहुँच गया – क्या अजीब माहौल बन गया था सर तक को खुद जगह नही मिली तो वे तो बैक स्टेज ही चले गए – मैं खुद खड़े खड़े सोता रहा…..|”
कहते कहते सुकेश एकदम से चुप हो गया| वह समझ गया कि वह कुछ ज्यादा ही बोल गया था|
“आपने बहुत कुछ बता दिया – थैंक्यू |” एक सख्त नज़र उसपर डालती हुई बाहर को निकल गई|
बाहर निकलते निकलते वर्तिका बहुत कुछ समझ चुकी थी| ये भी कि उसके भाई के सख्त सीने में कभी कोई कोमल भावना भी थी जिसे उन्होंने क्यों मरने दिया या वक़्त ने उन्हें ऐसा करने को मजबूर कर दिया जो भी हो अब आगे का सच वह अपने भाई के मुंह से ही सुनेगी|
***
शाम को ड्यूटी ऑफ टाइम होने के बाद रूबी अपने घर से होकर देर शाम को सेल्विन के घर पहुँच गई| उसे पता था तब तक सेल्विन भी अपने घर लौट चुका होगा|
वह उसके लिए खाना बना रही थी, सेल्विन अभी अभी लौटा ठस जिससे वह कपड़े चेंज करने चला गया था| रूबी अक्सर ही उसके लिए या तो अपने घर से खाना ले आती नहीं तो यही आकर बना देती| वह झटपट मसाले डालती सब्जी को ढकती हुई आटा लगाने लगी थी|
आटा लगाते लगाते उस पल के क्षणिक एकांत में उसके मन में आकाश की कही बाते सहसा गूँज उठी ‘तुम्हे मेरे पर्सनल दायरे में आने का इतना ही शौक है तो इस शौक को पूरा क्यों नहीं करती !’ ये सोचते उसके समस्त शरीर ने झुरझुरी ली कि तभी सेल्विन ने पीछे से आते उसे जैसे ही स्पर्श किया वह बुरी तरह चौंक गई| लगभग डर ही गई|
“क्या हुआ तुम्हे ? ऐसे डर क्यों गई ?” सेल्विन हतप्रभ उसे देखता रहा जबकि रूबी उसे अपने सामने पाते एकदम से उससे लिपट गई|
“हुआ क्या |” कहता हुआ वह उसे अपनी बाँहों के घेरे में ले लेता है|
रूबी अभी भी उससे लिपटी धीरे से कहने लगी – “बहुत डर लगता है इस दुनिया से – कितनी मतलबी और धूर्त है ये दुनिया – हर वक़्त बदले में कुछ न कुछ चाहती है |” भरे लफ्जो में वह कहती जा रही थी जबकि सेल्विन की पकड़ क्रमशः ढीली होती गई|
“मन करता है ये नौकरी छोड़ दूँ पर क्या करूँ जहाँ भी जाउंगी हर बार चेहरे बदल जाएँगे पर लोगो की निगाह नहीं – कितनी धूर्तता भरी है उनकी आँखों में लेकिन उन सबमे बस एक तुम ही हो जिसकी आँखों में बस प्रेम और विश्वास मैं देखती हूँ – मन करता है तुम्हारी पनाह से कही भी दूर न जाऊं मैं |”
सेल्विन का मन कांप गया बाहें कसमसाकर छूटने लगी पर रूबी अब उन्हें और कसकर थामे थामे कह रही थी – “देखना जब हमारी शादी होगी न तब मैं ये नौकरी वौकरी सब छोड़ दूंगी और बस शाम को तुम्हारे लौटने का इंतज़ार करुँगी – तुम्हारे लिए ही मैं खूब तैयार होकर रहूंगी – हमारा अपना घर होगा फिर हमारे बच्चे होंगे उन्हें भी तो संभालना होगा – फिर दोपहर तक उनके संग समय बिताउंगी और शाम से तुम्हारे संग – कितनी खूबसूरत होगी न हमारी दुनिया !!” वह भरपूर उमंग से सेल्विन का चेहरा देखती है जहाँ लेशमात्र भी उमंग नहीं थी पर इससे पहले ही रूबी का ध्यान उसके हाव भाव पर जाता वह तुरंत ही चौंक उठी – “ये जलने की बू – ओह गॉड मेरे सब्जी !!”
वह तुरंत ही सब्जी की ढकी प्लेट उठाकर जली सब्जी को देखती खिलखिलाते हुई कह उठी – “लो हमारा प्यार देखकर तो ये सब्जी भी जल गई..|”
अपनी भरपूर मुस्कान के साथ वह पलटकर सेल्विन की ओर देखती है जो वहां से अब जा चुका था|
***
वर्तिका तो जैसे मन में सोच ही चुकी थी कि आज किसी भी तरह से उसे अपने भाई का मन टटोलना ही है और सही वक़्त उसे मिल भी गया इस वक़्त डिनर के समय वर्तिका अपने हाथ से रंजीत के लिए खाना परोस रही थी|
“अरे बस बस – आजकल तुम मुझे खिलाकर खिलाकर मोटा करने वाली हो क्या ?”
“मेरे भईया मोटे नहीं हैण्डसम है दिखने में – इतने कि कोई भी लड़की देखे तो देखती रह जाए |”
इस बात पर रंजीत कसकर हँस पड़ा पर कनखनी से देखती वर्तिका अपनी बात कह रही थी –
“क्या कभी ऐसा हुआ है भईया ? किसी इवेंट में या कोई प्ले वगैरह देखने गए हो तब ?”
“अरे नहीं बाबा कहाँ जाता हूँ मैं – चलो ये खाओ – हम्म – सब्जी तो लाजवाब बनी है लगता है ये सब तुम्हारे हाथ लगाने से टेस्टी हुई है|”
“आज नही जाते पर कभी बहुत पहले आप गए हो |”
“तुम्हे लगता है भूख नहीं लगी वरना इतना टेस्टी खाना देखने के बाद तो रुकना मुश्किल है |” कहता हुआ रंजीत हाथ पकड़कर वर्तिका को साथ की कुर्सी पर बैठा देता है और उसके आगे रखी प्लेट में खाना परोसने लगता है|
वर्तिका समझ गई थी कि अब उसे सीधे सीधे पूछना होगा|
“भईया आज मैं भूमि भाभी से मिलने गई थी |”
अपनी बात कहती हुई वह लगातार रंजीत के बदलते हुए हाव भाव देखने लगी जहाँ सच में कुछ बदल गया था|
“आप समझ गए न मैं किन भूमि भाभी की बात कर रही हूँ – आप जानते है न उन्हें ?”
“सब जानते है आखिर सोशल वर्कर है |”
“पर आप कब से जानते है ?”
रंजीत के हाथ से चम्मच सरककर प्लेट पर गिर पड़ी थी| फिर भी रंजीत अपने भावों पर नियंत्रण करता हुआ वर्तिका के विपरीत देखता हुआ कहने लगा – “अरे कोई है क्या ? मीठा तो नज़र ही नहीं आ रहा|”
“दस साल पहले से ?”
अब तक एक खानसामा आकर उसके सामने एक ट्रे पर रखी दो कटोरी कस्टर्ड रखता हुआ चुपचाप चला गया|
रंजीत उसमे से एक कटोरी उठा कर उसमे चम्मच घुमाने लगता है पर उसे मुंह तक नहीं ले जाता|
लेकिन वर्तिका अपनी नज़र अपने भाई पर ही टिकाए हुए कहने लगी – “कितना कुछ छिपा रखा है आपने अपने मन के अन्दर – सारी दुनिया से छिपाया ठीक है पर मुझसे क्यों ? एकदूसरे के अलावा हमारा आखिर है ही कौन !”
रंजीत अब वर्तिका की बिना देखे ही टेबल से उठ जाता है लेकिन वर्तिका उसका हाथ पकड़ती हुई बिफर पड़ी – “भईया आज आप इस सच से नहीं भाग सकते – अनजाने ही सही पर मैंने आपकी वो दस साल पहले की तस्वीर देख ली – कोई शब्दों से मोहब्बत छिपा सकता है पर आँखों से कैसे छिपाएगा – मान क्यों नही लेते इस सच को आप ?”
“जिस सच में कोई मायने नही उसका छिपा रहना ही सही है |” वह हलके से वर्तिका का हाथ झटककर आगे बढ़ने लगा|
पर वर्तिका नहीं रुकी और उसकी ओर तेजी से बढती हुई कह उठी – “मुझसे तो कहते है सब भूलकर आगे बढ़ो और खुद क्या कर रहे है ? सारी दुनिया से कटकर बैठे है – क्या ये सही है ? क्यों नहीं सब कुछ भूलकर आगे बढ़ते ? मैं भी तो आपको खुश होते देखना चाहती हूँ – भईया…|”
आज रंजीत के जज्बात सच में आपे से बाहर हुए जा रहे थे| वह अपनी आँखों की लुप्त नदी को वर्तिका के सामने झरते नही दिखा सकता था| वर्तिका चीखती रही पर रंजीत नहीं रुका और लम्बे लम्बे डग भरता हुआ अपने कमरे में समाता दरवाजा बंद कर लेता है| वर्तिका दरवाजे पर ठिठकी रह जाती है| वह कहाँ देख पाई कि आज अतीत किसी तूफान सा उनके मन की कोठरी ने निकलने को बेचैन हुआ जा रहा था| मुठ्ठी भींचे वह बंद आँखों के पीछे चलते चलचित्रों को आने से न रोक सका…..
क्रमशः………….
किसी ने क्यों कुरेदा उन दफन अंगारों को जिनके तले मेरा प्यार सोता था बेमौत…………..

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