Kahanikacarvan

बेइंतहा सफ़र इश्क का – 90

सेठ धनपतराय एक एक सांस बड़ी सावधानी से छोड़ते हुए अपने सामने की मेज पर रखे कागजो पर अपना सारा ध्यान लगाए थे| क्रमवत उन्हें पढ़ने के बाद वे कुछ पेपर्स को अलग रखते हुए अपने सामने बैठे शख्स की ओर देखते हुए कहते है –
“कब तक ऐसे बैठे रहोगे – देखो अभी मुझे आधा घंटा और लगेगा फिर क्यों मेरी वजह से अपने भी काम धंधे का नुक्सान कर रहे हो |” वे अपनी नाक पर टिके चश्मे की बालकनी से झांकते हुए अपने सामने शख्स के चेहरे को गौर से देख रहे थे|
वह शख्स भी उन्ही की उम्र का था और उन्ही की तरह कोट पैंट में बैठा था| वे दोनों प्रौढ़ावस्था के थे लेकिन उनके सामने बैठे शख्स की आँखों में किसी जवान की भांति चमक थी|
“तुम करो न अपना काम मैंने कब मना किया लेकिन तुम्हे लिए बिना नहीं हिलूंगा यहाँ से समझे तुम – मैं ऐसे ही नवसरी से नहीं आया हूँ |”
“बड़े जिद्दी हो तुम भी धवल भाई |”
“तो हूँ न तमारा दोस्त – तुम जिद्दी तो मैं महाजिद्दी |”
इस बात पर दोनों एकसाथ हंस पड़ते है लेकिन धनपतराय अपना सीना पकड़े धीमे से हँसते है| ये देख धवल भाई तुरंत उठकर उनकी तरफ झुकते हुए पूछते है – “तुम ठीक तो हो ?”
वे हाथ से धवल भाई को बैठने का इशारा करते हुए कहते है – “मैं ठीक हूँ – दस दिन अस्पताल वालो ने रखकर और बीमार कर दिया नहीं तो अभी तुमसे रेस लगाता तो चुटकी में पछाड़ देता तुमको |” कहते हुए वे फिर धीरे से हँस देते है|
“तुम मुझे पछाड़ दो तभी भी मैं खुश हो जाऊंगा धनपत भाई |” कहते हुए धवल भाई अपना हाथ बढ़ाकर अपने दोस्त के हाथ में हाथ रखते हुए कहते है|
“अब तुम जाओ धवल भाई – अपना हर्जा क्यों करते हो – आखिर इतने बड़े व्यवसायी हो और बस एक दोस्ती के खातिर अपना काम धंधा छोड़े बैठे हो –|” धनपतराय अब उनके हाथ पर अपना दूसरा हाथ रखते हुए कहते है|
“अरे तुम हम सब व्यवसायियों के लिए महत्वपूर्ण हो – तुम छोटी छोटी आमदनी वालो से चिट फंड के जरिए पैसा इकट्ठा करते हो और हम सब व्यवसायियों को देते है जिससे हमारा धंधा आगे चलता है और अगर ये चेन रुक गई तो हम सब क्या करेगे ?” वे भी अपने हास्य भाव से अपनी बात कहते है|
“लेकिन मेरा चिट फंड धंधा भी तुम सब व्यवसायियों पर निर्भर है – अगर समय पर तुम सब ब्याज न चुकाओ तो मैं भी कैसे उन छोटे छोटे निवेशको को उनका धन दुगना करके लौटा पाउँगा ?”
“बात तो खरी है – ये हमारी व्यवसायियों की चेन है पर धनपत भाई अब तुम्हे अपने बेटे को वापस बुलाकर अपना व्यवसाय उसे सौंप देना चाहिए क्योकि तुम्हारी तबियत अब ठीक नहीं रहती फिर तुम्हारी बेटी भी छोटी है – क्या तुमने रंजीत को खबर की अपनी तबियत की ?”
धनपतराय कहते है – “नहीं की – अभी बस उसका कोर्स खत्म होने वाला है और अगर मेरी तबियत की खबर लग गई उसे तो सब छोड़छाड़कर वापस जाएगा जो मैं नहीं चाहता |”
इससे पहले कि धवल भाई आगे कुछ कहते तभी उनके केबिन का दरवाजा खुला और एक नौजवान तेजी से अंदर प्रवेश करता हुआ सीधे धनपतराय की ओर आता हुआ कहता है – “डैड आप यहाँ ऑफिस में बैठे है जबकि आपको घर पर आराम करना चाहिए – चलिए अभी इसी वक़्त चलिए मेरे साथ |”
वह नौजवान रंजीत था और उनके बेहद पास आता आद्र मन से कह रहा था जबकि दोनों सन्न भाव से उसे देखते रहे|
“रंजीत बेटा तुम वापस कब आए ? और किसने तुम्हे मेरी तबियत की खबर की ?” धनपतराय दोनों हाथो से उसके दोनों बाजू थामे हुए कहने लगे|
“बल्कि मुझे पूछना चाहिए था कि इतनी देर से मुझे क्यों मालूम पड़ा – आपको तुरंत मुझे खबर करना चाहिए था – अब मैं आपको एक पल के लिए अकेला छोड़कर नहीं जाऊंगा |”
रंजीत की बात पर उसके पिता भावुक होते अपने दोस्त की ओर देखते हुए कहने लगे – “सुन रहे हो धवल भाई – बस इसी वजह से नहीं बताना चाहता था – अब बोलो पढाई छोड़कर क्या ये मेरी सेवा में बैठा रहेगा – क्या ये ज्यादा जरुरी है ?”
“मेरे लिए सबसे जरुरी आप ही है डैड |”
इस पर धवल भाई भी मुस्कराते हुए कहने लगे – “धनपत भाई नसीब वाले हो जो ऐसा बेटा मिला है – सुख उठाओ इसका |”
इस पर वे बस धीरे से मुस्करा देते है| अब रंजीत का ध्यान भी अपने पिता के ठीक सामने बैठे शख्स पर जाता है जिससे वे रंजीत को धवल भाई से मिलवाते हुए कहते है – “बेटा इनसे मिलो ये है शहर के जाने माने उद्योगपति धवल भाई – अपना इतना बड़ा व्यवसाय सँभालने को अकेले है फिर भी मेरी तबियत का सुनते तुरंत नवसरी से मेरे पास आ गए और सब छोड़छाड़ कर मुझे घर वापस छोड़ने की जिद्द लगाए बैठे है –|”
मिलवाते ही रंजीत उन्हें हाथ जोड़कर नमस्ते करता है|
धवल भाई हाथ उठाकर उसे आशीष देते हुए कहते है – “वैसे बड़ी लम्बी उम्र है तुम्हारी – हम बस तुम्हारी बात ही कर रहे थे – अच्छा हुआ जो तुम आ गए नहीं तो ये बड़ा जिद्दी है – तब से कह रहा हूँ आराम करो ये काम तो होता रहेगा फिर |”
उनकी बात पर प्रतिक्रिया करते धनपतराय कहते है – “अभी बहुत महत्वपूर्ण समय है धवल भाई – ये अब तक कि सबसे बड़ी चिट फंड योजना है – अगर इस बार ये सफल हो गई तो देश के मध्यमवर्ग को हम अपने विश्वास में ले लेंगे और मैं इसे किसी भी हालत में असफल नहीं होने देना चाहता – बात धन से ज्यादा विश्वास की है जो कम आय वर्ग मुझपर करता है |”
इस पर धवल भाई जल्दी से कहते है – “ठीक है ठीक है – जल्दी से निपटाओ इसे और मैं तो कहता हूँ बेटे को व्यवसाय सौंपने की तैयारी करो साथ ही उसकी शादी भी कर दो फिर उसकी पत्नी घर और तुम्हारी बेटी वर्तिका दोनों को संभाल लेगी और तुम खुद को संभाल लेना|”
“सोचता तो यही हूँ कि तुमसे दोस्ती से कही ज्यादा रिश्ता बना लूँ पर अपने बेटे पर अपना कोई फैसला मैं थोपना नही चाहता |” कहते हुए वे नज़र उठाकर रंजीत की नज़रो की ओर देखने लगे जिससे अब थोड़ी झिझक समा गई थी|
इस पर धवल भाई झट से उत्साहित होते हुए कहते है – “अरे वाह तुमने तो मेरे मुंह की बात छीन ली – फैसला तो मैं भी अपनी बेटी पर नहीं थोपना चाहता अब बस ये आपस में एकदूसरे को पसंद कर ले |”
दोनों दोस्तों की दिलचस्प मुस्कान अब रंजीत की ओर मुड़ गई थी जिससे शर्माता हुआ रंजीत उनसे परे हटता हुआ केबिन के कोने की मेज पर रखे जग से पानी निकालने लगता है|
धनपतराय आगे कहने लगे – “वैसे अभी तुम्हारी बेटी कर क्या रही है ?”
धवल भाई आगे कहते है – “वही सामाजिक कार्य और क्या ! इसके सिवा उसे कुछ सूझता ही कहाँ है |”
“ये सब भी आखिर उसने तुमसे ही सीखा है – तुमने भी तो कितनी ही संस्थाओ का पालन किया हुआ है – नहीं तो धन के साथ लोग बस गुरुर का पालन करते है पर तुमने धन के साथ साथ मान भी बहुत कमाया है और यही संस्कार तुम्हारी बेटी में भी आए है |”
धनपतराय के कहते धवल भाई सहमती देते कहने लगे – “ये सब तो ऊपर वाले की कृपा है – उसने मुझे इस लायक बनाया कि जरुरतमंदों की मदद कर पा रहा हूँ तो बस जो होता है कर देता हूँ |”
इसपर दोनों साथ में मुस्करा रहे थे कि तभी केबिन का दरवाजा खुला और उस पार से एक युवती तेजी से अन्दर प्रवेश करती हुई दोनों को साथ में अभिवादन करती हुई कहती है –
“मुझे पता था आप यही मिलेंगे इसलिए मैं भी यही चली आई|” ये भूमि थी जो सिंपल से सलवार कुर्ते में भी बेहद खूबसूरत नज़र आ रही थी| उसका सारा ध्यान उन दोनों की ओर था जबकि वह इस बात से अनजान थी कि केबिन के कोने से आती एक नज़र भी अब अब उसपर टिकी हुई थी| वह रंजीत था जो एकटक उसकी ओर देखने लगा था|
धवल भाई जल्दी से कहते है – “पहले ये बताओ नवसरी से सूरत क्या अकेले ड्राइव करके तुम आई हो ?”
“जी बिलकुल क्योंकि सूरत में मेरा अपना काम था – आपको बताया था न कि इस बार संस्था में बच्चों का पहला सोशल इवेंट मैं यही कराने वाली हूँ जिससे इकट्ठे हुए धन से मैं उनके लिए और भी बेहतर कुछ कर पाऊँगी |”
भूमि की बात पर उसके पिता धवल भाई जल्दी से कहने लगे – “धन की तुम्हे क्या समस्या है बेटी – मुझसे लेकर ऐसे ही लगा लो |”
“नहीं न पापा – ऐसा करना होता तो कबका मैं कर चुकी होती – मैं तो चाहती हूँ कि उन बच्चों का आत्मबल बढ़े और वे ये महसूस करे कि वे सब भी इसी समाज का हिस्सा है न कि इस समाज की खैरात में पलने वाले कोई बेचारे |”
“हम्म – बात तो बिलकुल सही कही तुमने – आई एम् इम्प्रेस्ड |” धनपतराय बीच में बोल उठे|
इससे भूमि अपने पर्स से एक कागजो का पुलिंदा निकालती हुई कहने लगी – “बस इसलिए मैं चाहती हूँ कि इस इवेंट की आप टिकट ले लीजिए – उन बच्चो का प्रोग्राम देखने लोग आएँगे तो उन्हें बहुत अच्छा लगेगा |”
“लेकिन धनपत कैसे आएगा उसकी तबियत ठीक नहीं है – ऐसा करो – रंजीत…|” भूमि के पिता धवल जल्दी से रंजीत की ओर नज़र करते उसे आवाज देकर अपनी ओर बुलाते है जिससे वह तुरंत उनके सामने आकर खड़ा हो जाता है| इसी एक पल भूमि और रंजीत की नज़र मिली तो धवल भाई आगे कहने लगे – “इसने मिलो ये है मेरी बेटी भूमि और ये है रंजीत धनपत भाई का बेटा – इसे तुम टिकट दे दो – ये जरुर आएगा |”
“जी |” संक्षिप्त शब्द में कहता हुआ वह अब जानकर भूमि के चेहरे की ओर देखने लगा था जबकि भूमि खुश होती हुई टिकट की ओर देख रही थी|
भूमि बेहद उमंग से एक टिकट फाड़कर उसे रंजीत की ओर बढाती बढाती एकदम से ठिठकती हुई कहने लगी – “देखिए मैं ये टिकट सिर्फ पैसो के कलेक्शन के लिए नहीं बेच रही हूँ – मैं चाहती हूँ कि उन बच्चो का प्रोग्राम भी लोग देखने के लिए आए नाकि टिकट खरीदकर बस मदद भर करे – इससे उन बच्चो का मनोबल बढ़ेगा |”
“जरुर |” कहता हुआ टिकट ले लेता है|
तब तक एक चेक पर अमाउंट लिखकर साइन करते हुए धनपतराय उसे भूमि की ओर बढ़ाते हुए कहने लगे – “ये छोटी सी भेंट मेरी ओर से उन बच्चों के लिए – ठीक होते ही तुम्हारे अगले इवेंट में मैं जरुर आऊंगा |”
“थैंक्यू अंकल – अब मैं चलती हूँ – इवेंट बस दो दिन बाद है और अभी तक बस दस टिकट ही बेच पाई हूँ मैं – आपसे मिलती हूँ इस इवेंट के बाद |” वह हाथ जोड़कर तुरंत ही हवा के झोंके की तरह केबिन से बाहर निकल जाती है|
उसे इस तरह जाते देख दोनों साथ में मुस्करा देते है| जबकि रंजीत की आँखों में कुछ बदल गया था कोई अनकहा सा शब्द उसके जेहन में गहरे से उतर गया| वह मन ही मन मुस्करा उठा जिसपर उन दोनों दोस्तों का ध्यान नहीं गया वे फिर आपस में बात करने लगे|
भूमि के निकलने के थोड़ी देर बाद रंजीत कहता है –
“डैड मैं आता हूँ अभी – शायद कार में मैं अपना मोबाईल भूल गया |” कहता हुआ बेहद सामान्य चाल से चलता हुआ वह केबिन से बाहर निकलने लगा लेकिन जैसे ही वह केबिन से पूरी तरह से बाहर निकला और केबिन का दरवाजा बंद हुआ वह अपने कदम तेज कर लेता है| वह लगभग दौड़ता हुआ बाहर की ओर निकलने लगा जिससे ऑफिस के बाकी के लोग हैरानगी से उसकी ओर देखने लगे थे|
क्रमशः……
कुछ लम्हे जो वापिस नहीं लौटते पर अपने छूटे निशाँ भी नही ले जाते साथ अपने

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