
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 91
रंजीत भरसक तेज कदमो से भागता हुआ ऑफिस से बाहर निकल रहा था| वह ऑफिस के कोरिडोर से होता उसके आउट एरिया तक पहुंचा ही था कि बाहर के बड़े से कांच के दरवाजे के पार उसे भूमि दिख गई जिससे वह अपनी जगह थमा रहकर अपनी भागती सांसो को नियंत्रण में करता रहा|
भूमि निकलने के रास्ते पर रुककर झुकी हुई थी रंजीत थोड़ा ध्यान से देखता है तो मन ही मन मुस्करा उठता है| कितना प्यारा दृश्य था| उस मासूम चेहरे पर छाई उलझन भी उसे उतनी ही मासूम नज़र आ रही थी| रंजीत अब धीरे धीरे उसकी ओर बढ़ने लगा था| भूमि जो अभी भी झुकी हुई अपनी पायल में फस आए अपने दुपट्टे को छुड़ाने का संघर्ष कर रही थी| वह एकओर को गर्दन झुकाए थी जिससे उसके बाल एक ओर को सिमट आए हवा में अट्टखेलियाँ कर रहे थे|
पहली नज़र की दिलकश कशिश की चमक कोई भी उस वक़्त रंजीत के चेहरे पर साफ़ साफ़ देख सकता था| वह बड़ी दिलकशी से उसकी ओर बढ़ रहा था कि अभी अपनी दिल की दास्ताँ कह सुनाएगा| वह भूमि के पास आते रुका ही था कि भूमि अपनी उलझन सुलझाकर तुरंत उसकी ओर देखती है जिससे हड़बड़ाता हुआ रंजीत कह उठा –
“अरे आप !” वह चौकने का अभिनय करता भूमि की ओर बड़ी मुश्किल से देख पाया था और भूमि भी हैरानगी से उसकी ओर देख रही थी|
“कोइन्सिडेंटलली आप मिल ही गई तो क्या आप एक टिकट और दे सकती है – एक्चुली मेरा एक फ्रेंड भी इसमें इंट्रेस्टेड रहता है|”
“व्हाई नॉट |” कहती हुई भूमि खुश होती जल्दी से अपना पर्स खोलकर उसमे से टिकट निकालने लगती है|
इस एक पल तक वह लगातार भूमि के व्यस्त चेहरे को देख रहा था|
भूमि एक टिकट फाड़कर उसकी ओर बढ़ा रही थी – “ये लीजिए और उनसे कहिएगा कि वे जरुर आए |”
“जरुर कहूँगा – वैसे उसका बहुत बड़ा ग्रुप है तो अगर आपको हर्ज न हो तो क्या मैं ये सारी टिकट आपसे ले सकता हूँ – मुझे लगता है वह इनमे से काफी टिकट खरीद लेगा |”
कहता हुआ रंजीत भूमि के हाथ से पूरी टिकट लेता हुआ कहता है पर भूमि अवाक् होती कहने लगी –
“क्या सारी लेंगे ? और अगर नहीं बिकी तो सीट्स खाली रह जाएंगी फिर बच्चों को अच्छा नही लगेगा |”
कहते कहते भूमि के चेहरे पर उदासी आ गई थी पर रंजीत मुस्कराते हुए कह रहा था – “विश्वास करिए एक भी सीट्स खाली नहीं रहेगी|”
भूमि के हाथ में पकड़ी टिकट अब रंजीत के हाथ में थी| उसका चेहरा अभी भी अवाक् बना हुआ था जैसे इस बात को समझने की कोशिश कर रही हो| वह ज्योही जाने को हुई तो रंजीत फिर जल्दी से कह उठा –
“एक मिनट – वो क्या है मेरे पास अभी चेकबुक नहीं है अगर आप अपना नंबर देती तो मेरे दोस्त के लिए पेमेंट करना आसान हो जाता |”
“ओके |” कहती हुई वह एक टिकट के पीछे अपना नम्बर लिखती हुई हलके से होंठो को विस्तार देती आगे बढ़ जाती है|
भूमि को क्या पता था कि जिस बात को वह बड़ी सहजता से ले रही है उसपर रंजीत अपना दिल हार बैठा था| वह टिकट को अपने कोट के अंदर की पॉकेट में रखता हुआ कुछ पल ठहरा उसे जाता हुआ देखता रहा|
अगले दो दिन में रंजीत क्या करने वाला था ये उसके दिल को कहाँ खबर थी और आने वाले वक़्त में हालात किस कदर बदलने वाले थे न उसे इसका अहसास था|
***
रंजीत ही जानता था कि कितनी बार उसने भूमि का नम्बर सर्च किया पर कॉल करने की हिम्मत न जुटा सका पर भूमि को किया वादा जरुर उसने पूरा कर लिया था| अपने पिता के ऑफिस के अधिकतम लोगो को फ्री में टिकट और इन्क्रीमेंट देकर उन्हें भूमि के प्रोग्राम में जाने को मना चुका था| अब बस उसे खुद वहां पहुँचना था जिसके लिए वह अच्छे से तैयार होकर कई बार शीशे में खुद को चेक कर चुका था|
वह बस निकलने ही वाला था ठीक उसी वक़्त किसी तेज आवाज को सुनते उसके कदम ठिठक जाते है| उसके पिता फोन पर किसी से बेहद सख्त स्वर में नाराज होते हुए कह रहे थे –
“तुम ऐसा नहीं कर सकते – तुम्हारे मेरे बीच एग्रीमेंट हुआ था – क्या तुम ये भी भूल गए ? मैं तुम्हारे खिलाफ कोर्ट में जाऊंगा समझे तुम – समझते क्या हो – मैंने अपने काम से ज्यादा नाम कमाया है और क्या मैं उसे क्षण में गँवा दूंगा – हरगिज नहीं |”
आवाज की तल्खी सुनते रंजीत तुरंत उनके पास चला आया था| वे हैण्डसेट को कसकर पटकते हुए अपना सीना पकड़े बैठ रहे थे ये देखते रंजीत तुरंत दौड़ता हुआ उनके पास आता उन्हें संभालता है|
“आप ठीक तो है ?”
वे बैठते हुए धीरे से हामी में सर हिलाते हुए अब ध्यान से रंजीत को गौर से देखते हुए कहते है – “कही जा रहे हो ?”
“इतना जरुरी भी नहीं है – आप कहे तो रुक जाता हूँ मैं |”
“नहीं मैं ठीक हूँ – लौट कर आओ तो कुछ जरुरी बात करनी है – जाओ अपना काम निपटा कर आओ |”
“क्या सच में आप ठीक है – कहे तो डॉक्टर ..!”
“नहीं मुझे किसी की जरुरत नही है – तुम बस लौट कर आओ |”
रंजीत कुछ क्षण तक उन्हें ध्यान से देखते हुए उनकी बात पर यकीन करता हुआ उठते हुए कहता है – “मैं जल्दी ही लौट कर आता हूँ |”
वह उन्हें भरोसा देता तुरंत ही बाहर के लिए निकल जाता है|
***
अचानक से उसकी दुनिया खूबसूरत हो गई थी| वह भूमि के साथ साथ रहा और उसके चेहरे की ख़ुशी देख देख खुद भी खुश होता रहा| उसे उम्मीद भी नहीं थी कि इतने सारे लोग उसका प्ले देखने आएँगे कि बैठने तक को भी जगह नहीं रहेगी|
“आपके दोस्त को कमाल के है – वाकई उनका नेटवर्क काफी तगड़ा है – मुझे तो आधी सीट भरने की भी उम्मीद नहीं थी|”
इस पर रंजीत अपनी मुस्कान को भरसक नियंत्रण करता हुआ बस आँखों से आश्वासन देता अपने मन की बात छिपा ले जाता है| आखिर कैसे कहता कि सारे तो उसके ऑफिस के लोग ही है वह तो मौका देखकर भूमि को डिनर नाईट ले जाने का मन बना ही रहा था पर घर जल्दी पहुँचने का सोचता वह भूमि से बिना कुछ कहे वहां से जल्दी निकल जाता है|
वह जिस ख़ुशी की खुशबू समेटे अपने घर पहुँचा ही था कि एकाएक सब कुछ बदल गया| उसके घर के बाहर लोगो का हुजूम खड़ा था| वे साथ में बेहद नाराजगी के साथ खड़े उसके पिता का नाम लेकर मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे| वह हतप्रभ सब देखता रहा| जब तक कुछ समझता तब तक पुलिस की गाड़ी आकर मुख्य फाटक के सामने खड़ी हो गई और उसके अगले ही पल उसकी नज़रो के सामने ही उसके पिता को उसमे बैठाया जा रहा था|
ये देखते रंजीत दौड़ता हुआ उनके पास पहुँचा|
“ये सब क्या हो रहा है – आप इन्हें कहाँ ले जा रहे है ?”
पुलिस उस शोर में कहने की हालत में नहीं थी| पुलिस का आधा ध्यान सेठ धनपतराय को पुलिस की गाड़ी में बैठने में था तो आधा वहां उमड़ आई भीड़ को काबू करने में था|
अब तक उसके पिता रंजीत को देख चुके थे और उसे जल्दी से कहते है – “बेटा मेरे वकील के साथ तुम भी पहुँचो – मैं तुम्हे सब बताता हूँ – मुझपर विश्वास रखो |”
पुलिस ने उन्हें इससे ज्यादा कहने का अवसर नही दिया और वे उन्हें ध्यान से गाड़ी में बैठाकर भीड़ को चीरती हुई निकल गई और उनके पीछे छूटी भीड़ को कुछ पुलिस वाले हटाकर वे भी वहां से निकल गए| ये सब देखते रंजीत को कुछ समझ नहीं आया| अगले ही पल अपने पिता की कही बात को अमल करने तुरंत वह कार को वापसी के लिए मोड़ लेता है|
क्रमशः……
बज़्म – ए – आशिकी को क्या कहे कि हम दुनिया के सताए हुए है….