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बेइंतहा सफ़र इश्क का – 99

बिफरी हुई हालत में स्टैला को छोड़ता हुआ रंजीत उस होटल के रूम से बाहर निकल जाता है| यहाँ उसे ढूंढता हुआ सैल्विन भी अब उसी फ्लोर तक पहुँच चुका था| उसके पीछे पीछे रंजीत की सिक्योरटी वाले आदमी भी थे जिन्हें देखता हुआ रंजीत सेल्विन से कहने लगता है –

“स्टैला के बारे में सब पता करो – इसकी एक एक सांस का मुझे पता चाहिए |”

कहता हुआ रंजीत लम्बे लम्बे डग से लिफ्ट की ओर बढ़ जाता है|

***
मॉल के कॉफ़ी शॉप में अभी भी आदित्य और वर्तिका साथ में बैठे थे| अचानक वर्तिका की नज़र कोने की टेबल तक जाती है जिससे वह चौंकती हुई उठ जाती है|

“क्या हुआ ?”

आदित्य उसका हैरान चेहरा देखता रहा जबकि वर्तिका अब उस कोने वाली टेबल तक पहुँच रही थी|

“तुम यहाँ बैठे हो और मैं तुम्हे कॉल कर करके परेशान हो रही थी – अगर मिलना नहीं था तो यहाँ क्यों बुलाया मुझे ?” वर्तिका नाराजगी भरे लहजे से कहती हुई अपने सामने की ओर देख रही थी जहाँ योगेश गर्दन झुकाए उदास बैठा दिख रहा था|

“तुम्हे एक कॉल की पड़ी है यहाँ मेरे जनाजे उठने का समय हो गया |”

योगेश की मरमरी आवाज पर वर्तिका हैरानगी से उसे देखती हुई अब ठीक उसके सामने बैठती हुई कहने लगी –

“कैसी बात कर रहे हो – हुआ क्या है ?”

“हुआ क्या है ? अरे यार सब खत्म हो गया |”

“मतलब ?”

“ब्रेकअप बस यही होता है मेरी हर लवस्टोरी में |”

योगेश की बात सुनते वर्तिका अब समझ गई कि क्या माजरा हो सकता है अब हैरान होने के बजाये वह योगेश को मुस्कराकर देखती हुई कह उठी –

“वैसे कौन से नंबर वाला ब्रेकअप है ये ?”

“नम्बर !! यार पंद्रह के बाद तो गिना ही नहीं मैंने |” भोलेपन से योगेश कहता है|

इसपर नाराजगी दिखाती वर्तिका उसके सर पर एक टीप मारती हुई कहने लगी – “मनाओ अपना ब्रेकअप दिवस – मैं जा रही हूँ |”

“अच्छा आ गई हो तो बता दो तो कि क्यों कॉल कर रही थी – मैं सुन लूँगा |”

“बड़ा धन्यवाद आपका – |”

“अच्छा अच्छा नाराज मत हो – बोलो |”

वर्तिका को हाथ पकड़कर बैठता हुआ योगेश बोला| दोनों को बैठा हुआ देख अब आदित्य भी उन दोनों के पास आ जाता है| आदित्य को देखते योगेश उससे हाथ मिलाते हुए उसे बैठने का संकेत देता है|

“यार सस्पेंस में मार ही दोगी क्या – बोलो भी|”

“डॉक्टर ऊष्मा के बारे में पूछना था तुमसे – जैसे क्या पसंद नापसंद है उनकी ? मुझे बस उनके बारे में सब जानना था |”

“इतना इंट्रेस्टेड क्यों हो तुम ऊष्मा पर – कही….!!” योगेश अवाक् हाव भाव के साथ कहता रहा – “यार – मतलब तुम्हे लड़कियों में इंटरेस्ट है ?”

योगेश की बात पर वर्तिका होठ सिकोड़ती हुई नाराजगी से बोल उठी – “हे यू तुम भी शुरू हो गए |”

इस बात पर आदित्य बिन आवाज के हँसने लगा था|

“तंग हो गई हूँ तुम लोगो के मजाक से |”

आदित्य को हँसते देख योगेश हँसते हुए उससे हाई फाई करता है|

“ओके तुम दोनों अपनी जुगलबंदी करो मैं चली |”

“अरे यार जस्ट किडिंग – बैठो न यार वर्तिका |”

आखिर नाराजगी भरे लहजे से वह बैठ जाती है|

“वैसे ये तो बताओ इस भरी दुनिया में ऊष्मा को उसके मरीजो के अलावा कोई उसे नहीं ढूंढता फिर तुम क्यों खोजती फिर रही हो उसे ?”

योगेश के पूछते वर्तिका कहती है – “अपने भईया के लिए |”

“गब्बर सिंह के लिए !!!”

“वो मेरे भईया है समझे |”

“अरे यार बेचारी की लाइफ में वैसे भी कोई लवस्टोरी नहीं – अगर तुम्हारे भईया से मिल गई तो उसका तो प्यार से परिचय ही नहीं होगा – सो सैड |”

“मेरे भईया ऐसे नहीं है – मुझे यकीन है वो दोनों एकदूसरे को जरुर पसंद करेंगे |”

“आई होप सो – वैसे अब तुम आदि से मिल गई हो तो वही तुम्हरी इस मामले में हेल्प कर देगा |”

योगेश की बात पर आदित्य अपनी आँखों में चमक समेटता हुआ कहने लगा – “मैं तो इनकी मदद को हरदम तैयार हूँ बस ये राजी हो जाए |”

आदित्य की मुस्कान और वर्तिका के नाराजगी के भाव पर योगेश हँसते हुए कहने लगा – “चलो तुम दोनों की प्रॉब्लम का सैलुशन तुम दोनों के पास है तो मैं चला – जाकर दो चार मरीजो को इंजेक्शन ठोकूंगा तो थोडा मेरे कलेजे को ठंडक मिलेगी |”

फिर से लटके मुंह के साथ कहता हुआ योगेश उठकर चल दिया अब बस आदित्य और वर्तिका ही शेष रह गए|

“हाँ तो बताए क्या हेल्प कर सकता हूँ आपकी ?”

“क्या तुम उनकी मुलाकात का कुछ जुगाड़ लगा सकते हो ?”

“हाँ कर तो सकता हूँ पर..|”

“पर क्या ?’

“अब इतना बड़ा काम करूँगा तो कुछ कमीशन तो बनता है न अपना – मुझे क्या मिलेगा इससे ?”

आदित्य के चेहरे पर हमेशा वाली शरारती मुस्कान थिरक रही थी ये देख अबकी वर्तिका के होंठ भी मुस्करा उठे|

वह जबरन होंठ सिकोड़ती हुई कहने लगी – “हो सकता है इससे मैं खुश हो जाऊ तो तुम्हारे साथ डेट पर जाने को राजी हो जाऊं |”

“क्या सच्ची….!!!”

“मुच्ची..|”

“तो बस समझो हो गई मुलाकात |”

इसपर दोनों साथ में मुस्कराते हुए बाहर की ओर निकलने लगते है|

***
आज शाम को ऑफिस से अरुण कुछ जल्दी ही आ गया अब वह अपने कमरे की ओर बढ़ रहा था| उसके कमरे का दरवाजा आधा खुला हुआ था उसे अंदर किसी की मौजूदगी नज़र आने ली थी जिससे वह कमरे की ओर चुपचाप बढ़ने लगता है|

उजला को अहसास भी नहीं था कि अरुण आज जल्दी आ जाएगा जिससे वह उसके आने से पहले कमरे को सहेज रही थी| उसकी वार्डरोब खोले खड़ी सामान सही से सहेज रही थी| उसकी शर्ट को टांगते टांगते खुद में ही मुस्कराती हुई कभी उसकी कमीज को अपने सीने से लगा लेती तो कभी उसकी आस्तीन को होंठो पर लगाकर शरमा लेती|

अरुण चुपचाप उसे ऐसा करते देखता दरवाजे की ओट लिए खड़ा था| वार्डरोब सहेजकर अब वह साइड टेबल पर रखे फोटोफ्रेम को दोनों हाथो के बीच लिए उसकी तस्वीर को लगातार देखती रही| वह तस्वीर अरुण की थी| वह महज तस्वीर थी पर उसे देखती हुई उजला यूँ शरमा रही थी मानों वह उसके सामने ही खड़ा हो|

ये सब औचक अरुण देखता रहा| आखिर कुछ समय बाद वह अपने कदम थोड़ा पीछे लेता आहट करते हुए कमरे की ओर बढने लगता है|

वह जानकर आहट करता है जिससे उजला संभलती हुई तुरंत ही कमरे से निकलने लगती है| वह कमरे से निकलती हुई एक नज़र उसकी ओर करती भी है पर अरुण जानकर उसे देखकर भी अनदेखा करता हुआ कमरे में आ जाता है| उजला को अजीब तो लगता है क्योंकि मंदिर वाले दिन के बाद से अरुण अन उसकी ओर देखता भी नहीं था| उजला अब चुपचाप बाहर निकल जाती है|

उसे पता था अरुण को इस वक़्त सबसे पहले चाय चाहिए होती थी फिर वह मंदिर जाता था| इससे वह तुरंत ही रसोई की ओर चली जाती है पर उसे क्या पता था कि जब तक वह चाय लाएगी तब तक अरुण मंदिर में दीया बाती कर आएगा| उसने इस बार उजला का इंतजार भी नहीं किया और जब वह चाय लेकर उसके पास आई तब भी उसने बिना उसकी ओर देखे उसे चाय रखने को कहता सिगरेट फूकता रहा| उजला भी चुपचाप चाय रखती हुई कमरे से बाहर निकल गई|

उसका मन बड़ा अजीब सा होने लगा था, मानों सब समझ कर भी उसका मन कुछ समझना नही चाह रहा था| वह अपने बुझे मन के साथ गार्डन एरिया में आ गई जहाँ वह अपना मन का दुःख बाँटने हमेशा बडी के पास चली जाती थी|

बडी भी उसे देख यूँ तेजी से पूँछ हिलाने लगता मानों उसे भी उसी का इंतजार रहता हो|

वह बडी के पास बैठती उसकी गर्दन सहलाती हुई धीरे से कहने लगी – “क्या समझ नहीं आ रहा मुझे कि आप क्यों कर रहे है मेरे साथ ऐसा ? कितनी अजीबोगरीब परिस्थिति में फंस गए है हम दोनों – पता है उजला को प्यार करने लगे है आप और ये जानकर न मैं खुश हो सकती हूँ न दुखी हो पा रही हूँ – पता नहीं ईश्वर ने अजीब किस्मत क्यों लिखी हमारी – क्या कभी आप किरन को समझ पाएँगे ? क्या मैं कभी किरन की तरह आपकी जिंदगी में लौट पाऊँगी दुबारा ? जाने क्या लिखा है हमारी किस्मत में – पाकर भी खोने का अहसास तो खोकर भी पाने का अनोखा अहसास होता है !!” एक गहरा उच्छ्वास भीतर से खींचकर बाहर उझेलती हुई वह बडी के सर पर अपना सर टिका लेती है|

उसे नहीं पता था कि अरुण दूर से उसे ही देख रहा था| वह इस वक़्त मेंशन में उस हिस्से पर खड़ा था जहा से वह उजला को साफ़ साफ़ देख पा रहा था पर वह उसे नही देख पाई थी|

हालाँकि उसकी बात वह नहीं सुन पाया लेकिन काफी देर खड़ा वह उसे यूँही देखता रहा जब तक एक कॉल नही आ गई|

फोन के उस पार योगेश था जो उसे तुरंत ही अपने पास आने को कह रहा था|

……क्रमशः…………..आप अगर पढ़ पा रहे है तो अपने अपने कमेन्ट से अपनी अपनी उपस्थिति जरुर दर्ज कराए……..

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