कतरा कतरा जीने दो….(यात्रा वृतांत)
19 अगस्त
ये जो जिंदगी है कब बहुत तेजी से हमारे पास से सरकती गुजरने लगती है पता ही नही चलता इसलिए कितने भी व्यस्त दिन हो उसमे से अपने हिस्से का लम्हा जरुर जी लेना चाहिए, क्या पता ये जिंदगी..ये लम्हा.. फिर दुबारा कब मिले !! ऐसे ही रोजाना के अभ्यस्त दिनों के बाद जब दो तीन दिन की छुट्टी एकसाथ हाथ लगी तब लगा मानो कोई अनायास बेशकीमती खजाना हाथ लग गया हो| ऐसे ही बस कुछ भी बिना प्लान उठे और अपने हिस्से का लम्हा जीने बस निकल पड़े पहाड़ो की ओर|
दिल्ली से तीन सौ किलोमीटर दूर कसौली जाने की उत्कंठा से हमने नेशनल हाइवे की चिकनी सड़क का रास्ता मानो हवा में पार करने का ठान लिया| पर निकलते निकलते दस ग्यारह बज ही गए इसलिए शाम तक हम कालका पहुँच पाए| यूँ तो कालका से ही हमे पर्वतों की झलक दिखनी शुरू हो गई लेकिन शाम होने से रात में पहाड़ चढ़ने का इरादा छोड़कर रात कालका में बितानी पड़ी जहाँ प्राचीन कालका मंदिर के दर्शन मन को जितना आनंदित कर गए वही हरियाणा की बुरी तरह टूटी सड़के, बदहाल अवस्था ने मन को बहुत आहत किया|
मंदिर के आस पास भी घना इलाका होने से पार्किंग की दिक्कत उस पर ढेरों टूरिस्ट गाड़ियों का अनचाहा रेला सब बिलकुल हौच पौच था वहां|
इन सबके बीच मंदिर से निकलते सड़क पर एकाएक हमे सड़क पार करता एक बिच्छू दिखा| बड़ा कमाल का जोशीला बिच्छू था एक सेकण्ड को भी न रुकने वाले ट्रेफिक को जाने कैसे पार कर रहा था| देखते देखते कितने टायर उसके बगल से कितनी गाड़ियाँ उसके ऊपर से गुजर गई और वह चलता रहा…ये सब देखना बेहद रोमांचकारी था| हम चाहते थे कि वह अपना सफ़र जरुर पूरा करे हमने कोशिश भी कि पर एन वक़्त पर उसने किनारे पहुंचकर ज्योंही वापसी की बस यही मौत उसके ऊपर से झट से गुजर गई| उस पल का दृश्य हमे भी स्तब्ध कर गया| लेकिन ये लम्हा भी मानो सबक दे गया कि मंजिल तक पहुँचने की कोशिश में कभी हार कर वापसी मत करना…|
20 अगस्त
अगले दिन सुबह ही हम कसौली के लिए निकल पड़े जिसकी झलक मात्र ही मन को कितना उत्साहित कर दे रही थी इसे सशब्द कह पाना कठिन है| हिमालय का द्वार पार करते आगे का रास्ता घुमावदार होता जा रहा था| साथ ही आँखों को दिखते नज़ारे मन को रोमांच की उस पहाड़ी की ओर लिए जा रहे थे कि मानो मन में ढेरों तितलियाँ उड़ने लगी हो और उड़ते उड़ते अनंत आकाश को छूने चली हो|
सामने धुली नहाई पहाड़ी धानी चुनर ओढ़े हमारा मुस्कराकर स्वागत करने को तैयार थी तो हम भी इस दिलकश नज़ारे को अपने अंक में समाने को उतने ही उत्साहित थे| हालाँकि बारिश का मौसम होने से खासी दिक्कते भी थी और इन दिनों में पहाड़ो पर चढ़ना थोड़ा रिस्की भी होता है जिसके कई नज़ारे हमे रोड डायवर्ट के रूप में कई जगह मिले| एक जगह तो कुछ समय रूककर रास्ता किलियर होने का इंतजार भी करना पड़ा| यही कारण है कि हमे रात में पहाड़ी चढ़ने से बचना चाहिए और खासकर तब जब आप यहाँ के लिए अभ्यस्त न हो|
रास्ते भर के नज़ारे को क्या ही कहूँ | सच में जो दिल महसूस करता है और जो आंखे देखती है उसे शब्दों में उतार पाना नामुमकिन होता है|
धीरे धीरे घुमावदार पहाड़ी पर चढ़ते रास्ता थोड़ा संकरा होता गया| तब भी उन रास्तो को बस ट्रक और ढेरो बड़ी छोटी गाड़ियाँ बेरोक आसानी से पार कर ले रही थी| पहाड़ो पर पहुँचते सभी वाहन नियम से वाहन चलाते है इसे समय की जरुरत ही समझे क्योंकि यहाँ सभी एकसमान रिस्क पर चल रहे होते है|
घुमावदार रास्ता पार करते एक बार बीच में गर्म चाय और पराठो का लुफ्त भी जरुर उठाया जाना चाहिए| वादियों को निहारते जो गर्म चाय की चुस्की में घुलकर बस दिल तक सीधी उतर जाती है, वैसे भी पेट का रास्ता दिल से होकर ही जाता है|
जैसे जैसे रास्ता आगे बढ़ता है संग संग आपको गुलाबांस के फूलों की कतार भी आपको मिल जाएगी| ये नाजुक और आसानी से उगने वाला मेसिनल पौधा यहाँ अच्छा खासा अपना जमावड़ बनाए था| ये शाम के चार बजे खिलता है| तो क्या हुआ ? बाकी समय और अन्य तरह के फूलों ने अपनी रंगबिरंगी रंगत से पहाड़ी को गुलजार किया हुआ है| आखिर ईश्वर की सीधी सौगात मिली है पहाड़ो को| इन ही गुलनाज नजारों से हम कसौली के सबसे ऊँचे स्थान पर पहुँच रहे थे और साथ की कुहासे का घना बादल भी| अब धीरे धीरे मौसम बदलता कुहासे के रूप में चारोंओर फ़ैल रहा था| अब नजारों की विजिबिलटी कम से कमतर होती जा रही थी| घने कुहासे के बीच रास्ता पार करते बरबस ही मुझे चेरापूंजी की याद हो आई, वहां भी लगता है जैसे हम बादलो की नगरी में प्रवेश कर गए हो|
मनकीटॉप जो एयर फ़ोर्स स्टेशन के अंदर स्थित है वैसे कसौली कैंटोनमेंट इलाके के अन्दर आता है तो जाहिर सी बात है बेहद सुरक्षित ही होगा| इस छोटे से स्थान पर इस वक़्त हम टॉप पर थे एयर फोर्स स्टेशन कसौली| कैंटोनमेंट इलाका होने से सिविलियन को वे काफी दूर से ही सुरक्षा की दृष्टि से चेक करते हुए उनका सभी इलेक्ट्रोनिक सामान और गाड़ी रखा लेते है इसी कारण यहाँ की तस्वीरे किसी सिविलियन के कैमरे में कैद होने से रह जाती है पर नजारों का क्या वे तो आँखों में ठहरे रह जाते है बस|
लेकिन हम सहजता से अन्दर पहुँच गए बस सभी के लिए समान नियम के रहते हमे भी अपने इलोक्ट्रोनिक डिवाइस गार्ड रूम के लॉकर में रखने पड़े| चुकी हम खुद भी एयर फ़ोर्स के अंग है तो हमे किसी अन्य नियम की जानकारी देने की उन्हें जरुरत नही थी लेकिन बाकी सिविलियन को जरुरी निर्देश के साथ अंदर जाने दिया जाता है|
यहाँ से अंदर जाते ऊंचाई पर केवी(केंदीय विद्यालय) को देख मन यही सोच रहा था कि इस खूबसूरत नज़रो के बीच क्या बच्चो का पढने में मन लगता होगा !! मैं होती तो पक्का नही लगता| अब हम सीधा चलते हनुमान मंदिर की ओर चल रहे थे जिसके बारे में मान्यता थी कि लक्ष्मण के लिए संजीविनी ले जाते वक्त हनुमान जी का बाया पैर यहाँ छू गया था जिससे ये स्थान आज हिन्दू आस्था के लिए काफी पूजनीय व आस्था पूर्ण जगह में से एक है|
अब हमे सीढियां पार करते ऊंचाई पर चढना था| एकदम सीधी चढ़ाई नही है पर कठिन जरुर है जिसे राम का नाम लेकर आसानी से चढ़ा जा सकता है| जब बात आस्था की हो तो किसी तर्क कुतर्क की कोई जगह नही रहती| आखिर एक एक सीढ़ी चढ़ते ऊंचाई से दिखते नज़ारे ही अपने आप में जोश में भरने को काफी थे|
धीरे धीरे पहले कैम्प फिर बाहर के नज़ारे हमारी आँखों में कैद होने लगे| पर उसी वक़्त धीरे धीरे कुहासा भी अपना जमावड़ बनाने लगा था| खैर पहाड़ी इलाके के मौसम का कुछ नही कह सकते पल में बारिश, धूप और कुहासे का संगम होता है यहाँ|
चढ़ते चढ़ते पता चला ये लम्बी ऊंचाई महज 600 मीटर है उफ्फ यकीन नही आता मैदानी और पहाड़ी नाप में कितना फर्क हो जाता है| 600 मीटर मैदानों में चलने के लिए कुछ भी नही होता| आखिर हम उस स्थान पर पहुँच ही गए जहाँ से बस जन्नत का होना महसूस किया जा सकता था| भलेही अब अच्छा खासा कुहासा उस जगह को लगातार ढकता जा रहा था पर यहाँ भी कल्पना शक्ति से हम इस बेहतरीन नज़ारे को बखूबी महसूस कर सकते थे|
अगर कुहासा न होता तो इस टॉप हिल से पूरा कसौली क्या चंडीगढ़ भी आसानी से देखा जा सकता था| पर शायद ये नज़ारे अभी हमारे भाग्य में नही थे|
मंदिर में चढाने के लिए ऊपर ही प्रसाद मिल जाता है साथ ही मन्नत का धागा भी| दुकानदार से बात करते उसने बताया कि सेना के आने से पहले यहाँ तक रास्ता बड़ा कठिन हुआ करता था पर आज कितनी सहजता से हम यहाँ आ जाते है, साथ ही हमे उस जगह की खासियत भी बताई जिसे हैरान होकर हम देखते रहे| मंदिर के आगे का प्रांगन मंदिर की देहरी से देखने पर किसी बाए पैर के तरह दिखता है| अंगूठा उसका बाहरी हिस्सा है तो हील पर मंदिर स्थित है| बेहद रोमांचकारी नज़ारा था वह|
यही बीच में स्थित है सदाबहार फर का पेड़ जिसे हम हर साल किस्मस पौधे के रूप में देखते है वो यहाँ पेड़ के रूप में स्थित है जिसपर बंधे ढेरों मन्नत के धागे जाने कितनो की उम्मीद और सपनो के कल्प होंगे| तो हमने भी एक उम्मीद का धागा उसमे बांधकर अपना सपना अपने इष्ट के हवाले कर दिया|
मंदिर पहुंचकर मालूम पड़ा हम आज बड़े ख़ास दिन वहां पहुंचे थे| आज पूजा, हवन और भंडारे की व्यवस्था थी तो भला भगवान का प्रसाद लिए कैसे वापस जाते|
एयर फ़ोर्स स्टेशन की एक सबसे ख़ास बात होती है वह चाहे चेन्नई में स्थित हो या कश्मीर में उसके अन्दर की व्यवस्था और रूप एक सामान ही रहता है| मंदिर में पूजा का कार्यक्रम भी हमारा जाना पहचाना था इसलिए हमे कही भी जाने और जुड़ने में कतई वक़्त नही लगता|
अगर आप अनास्था में भी उस मंदिर में पहुंचेंगे तब भी उस जगह का अहसास आपको अपनी जकड में यूँ रखेगा कि आप वाकई शहरों को आपाधापी पल में भूल जाएँगे| मंदिर में आरती से लेकर गिरते कुहासे के बीच प्रसाद लेने का आनंद बस कही मन के कोने में सदा के लिए अंकित रह गया|
आप अपने विश्वास को और संबल करते यहाँ मन्नत का धागा बांधकर अपने मन की बात सीधे ईश्वर तक भी पहुंचा सकते है इसलिए इसे मंकी (बन्दर) टॉप समझने के बजाये मन की टॉप समझे| ये हनुमान जी का मन की बात का टॉप हिल है| आप कह सकते है यहाँ आस्था और विश्वास का चरम आकर्षण मौजूद है|
बस यही एक खलिश रह गई कि काश मौसम कुछ मेहरबान हो जाता और हम यहाँ से दिखने वाले अद्भुत नज़ारे को अपने मन में सदा के लिए संजो पाते पर शायद उम्मीद का कतरा लिए हमे यहाँ से ऐसे ही लौटना था कि काश अगली पोस्टिंग कसौली ही हो हमारी तब यहाँ से लौटने के दिन हम धडकनों से गिनेंगे|
मनभर समय बिताने के बाद अब एयर फ़ोर्स से निकलकर हम यहाँ से माल रोड पहुंचे| कसौली एक शांत, साफ़ सुथरा, खूबसूरत पर्यटन स्थल है और कैंटोनमेंट इलाका होने से बेहद सुरक्षित भी है बस आप सचमुच के बंदरो से बचकर रहे जो आपसे खाने का सामान छिनने की ताक में रहते है|
यहाँ सबसे पहले कोलोनियल आर्किटेक्चर की मिसाल 1844 के निर्मित क्राइस्ट चर्च को अन्दर और बाहर से देखकर गुजरे समय को कुछ पल के लिए महसूस कर सकते है कि किस तरह से कसौली को अपने सुख साधन के लिए अंग्रेजो ने विकसित किया था| यही से आप कुछ मंदिर और सेंट मेरी स्कूल जैसे प्राचीन स्कूल को देखकर आप बस खो सकते है| सेन्ट्रल रिसर्च इंस्टीटयूट को भी बाहर से देखकर इसकी उपयोगिता और स्थिति को बखूबी समझ सकते है|
कसौली जैसे छोटे हिल स्टेशन को आप पैदल भी खंगाल सकते है| माल रोड में स्थित पार्किंग में गाडी को पार्क करके माल के बाज़ार और सड़को पर पैदल चलते खाने पीने का लुफ्त भी भरपूर उठाया जा सकता है| तिब्बती स्वाद के थुपका और पकोड़ी चाय का लुफ्त लेते कुछ देर हम सड़क पर पैदल चलते रहे|
होकी के जादूगर ध्यानचंद के नाम पर बने चौराहे पर तस्वीर उतारते आप उनका ओजस महसूस कर सकते है| यकीनन यही तो रह जाता है शेष….हमारा नाम| शरीर की उम्र तो कभी न कभी तो घट ही जाती है इसलिए जिसकी उम्र नही घटती हमे उसपर काम करना चाहिए और वो है हमारे नाम की जो हमारे योगदान से सदियों तक याद किया जा सकता है|
यही से सोसाइड पॉइंट और सनसेट पॉइंट पर जाकर भी ऊंचाई से अद्भुत नज़ारे को अपने कैमरे में कैद कर सकते है पर आज तो मौसम मेहरबान ही नही हो रहा था| लगातार कुहासा घना ही होता जा रहा था तो तय था इन जगह जाने का कोई अर्थ ही नही| बाकी खूबसूरत नज़ारे तो भर रास्ते भी हमारे साथ साथ रहे|
लगभग पूरा दिन बिता लेने के बाद समय कम होने से हमे अब नीचे उतरना था| ये सबसे कष्टमय था आखिर ये भीना भीना अहसास कौन कमबख्त छोड़ना चाहता था| हम तो इसी पहाड़ी पर ठहरकर वक़्त को रुका हुआ महसूस करना चाहते थे| पहाड़ी पर तो मेरा दिल बसता है फिर चाहे वह नीलगिरी की पहाड़ी हो या कालिम पोंग की| हर बार पहाड़ी पर पहुंचकर मेरा मन यही कहता है अगर जन्नत कही है तो बस यही है यही है….
भारी मन से लौटते रास्ते के पहाड़ी झरने और मौसम ने हमारा मन सच में फिर जीत लिया अब टॉप से नज़ारे न दिखने का मलाल कही गुम हो चुका था|
फिर उन्ही घुमावदार रास्ते से होते हम उन्ही मैदानी आफतो से फिर से आ मिले| अब चिपचिपे मौसम और गर्मी में सांसे तक चुभ रही थी इसलिए लौटने की उदासी कोई भी हमारे चेहरे पर देख सकता था| पर लौटना तो था ही और सामना भी करना था उसी चिपचिपे मौसम का जो मैदानी इलाको का सबसे गन्दा मौसम है|
अब रात चंडीगढ़ में बिताने का तय करते कल हमारी वापसी थी इसलिए तब तक ऑनलाइन होटल बुक कर चुके थे| वैसे घूमने के समय ऑनलाइन होटल बुकिग सबसे बेस्ट रहता है|
सुकना लेक की तलहटी में बैठकर सुकून के दो पल भी आपको कुछ हद तक मन में फिर वही पहाड़ी वाली ताजगी लौटा देते है| इसलिए इसे दो बार हमने देखा एक पिछली शाम को और दूसरा इस सुबह और दोनों बार ये भीड़ से गुलजार ही मिला|
21 अगस्त
रात चंडीगढ़ में बिताने के बाद अगली सुबह नई ताजगी के साथ हम चंडीगढ़ खंगालने को तैयार थे| हरियाणा की बनिस्पत चंडीगढ़ बेहद हरा भरा और सुव्यवस्थित शहर है| चौड़ी सड़के और नियमो का पालन करते लोग आसानी से दिल्ली वालो को अंगूठा दिखा सकते है|
पास ही रोज़ गार्डन, रॉक गार्डन का मज़ा भी लिया| रॉक गार्डन सिर्फ एक गार्डन नही एक प्रवर्तन सोच है कि किस तरह से हम बेकार चीजो को सच में बिलकुल बेकार नही समझ सकते| बहुत ही इनोवेटिव रूप से इसे सजाया और संवारा गया है|
रॉक गार्डन आने की मेरी बहुत समय से इच्छा थी| और वाकई ये बहुत ख़ास निकला| ये आम पत्थर और टूटे सामान भर नही थे ये एक कहानी है जिसे हर कोई अपनी अपनी तरह से शब्दों से अपने मन में उतारकर जाता है| यहाँ ढेरो फोटो क्लिक करने की अद्भुत जगह है जी भर के आप अपने मोबाईल का स्पेस भर सकते है|
यहाँ से निकलते अभी भी आधा दिन शेष था हमारे पास क्योंकि बहुत जल्दी लौटने की कोई उत्कंठा नही थी हमे| इसलिए यहाँ से जू जाने का विचार बनाते वही से 30 किलोमीटर का रास्ता तय किया ये बिलकुल उतना ही है जितना कालका से कसौली और रॉक गार्डन से ज़ू पर फर्क है तो मैदानी और पहाड़ी चढ़ने का|
चंडीगढ़ के खूबसूरत शहर का फेरा लगाते आखिर हम मोहाली में स्थित महेंद्र चौधरी जूलॉजिकल
पार्क पहुँच ही गए| यहाँ सौ से ज्यादा किस्म के जीवो की उपस्थिति है| जिसमे सबसे आकर्षण सफ़ेद बाघ और गुलाबी पसीने वाला हिप्पो है| लेकिज प्रवेश में खड़ी मशीनों से हरकत करती मूर्ति द्वार में ही सबको अपनी ओर आकर्षित कर लेती है फिर लुप्त जीव यानी डायनोसोर की जानकारी वाला चार्ट समझदार पढने वालो का इंतजार करता है और बाकि उसे अनदेखा करते अन्दर निकल जाते है|
जू बाकी आम जू जैसा ही है पर इसे ख़ास बनाता है डमी डायनोसोर का लाजवाब म्यूजियम जिसमे बच्चे क्या बड़े भी आकर्षित हुए बिना नही रहते और उन सबके केंद्र है वह एक्टर जो पल भर की अपनी डायनोसोर कोस्टीयुम से सबका मन ही जीत लेता है| वहां उसके आस पास उपस्थित भीड़ बता रही थी कि लोकल लोग शायद इसी एक्टर से मिलने आते है| जो डायनोसोर की ड्रेस पहने हर किसी को उनके अद्भुत भयावह डर से डरा रहा था और लोग भी इस डर से आनंदित हो रहे थे| ये सच में सबसे अलग चीज थी|
ढेरो सरीसृप, जीवो और पक्षियों को निहारने के बाद लगा कि अगर ये छूट जाता तो पक्का बुरा लगता| वैसे अपने रख रखाव और तकनीक के आधार पर ये अब तक देखे मेरे कई स्टेट के म्यूजियम से सबसे अलग था| इसे जरुर देखा जाना चाहिए|
अब वक़्त था वापसी का| न चाहते हुए भी जाना तो था ही| लेकिन ये सच है कोई भी शहर या स्थान पल भर में कभी नही खंगाला जा सकता है| चंडीगढ़ को महासागर है फिर भी, समय को देखते हमे इसे अलविदा तो कहना ही था पर इतनी आसानी से भी नही|
बिना पंजाबी स्वाद चखे आखिर कैसे वापसी होती तो लंच पूरा पंजाबी खाने से करते मेरी जबान में चढ़ा तीखापन जैसे अभी भी तालू में शेष रह गया जैसे शैफाली भी कहाँ भूल सकी इस स्वाद को…आखिर हमारे देश की विविधता उसकी मिटटी से लेकर उसके हर स्वाद में जो है|
समाप्त….तब तक के लिए जब तक अगली यात्रा न लिखी जाए… मेरा यात्रा आख्यान लिखने का मकसद कोई जानकारी देने से ज्यादा अपनी यादों के हर क्षण को संग्रहित करते उस पल को शब्दों से वक़्त की इबारत में हमेशा के लिए अंकित करना भर है…..