ये अनवरत यात्रा है स्वयं से स्वयं के लिए…जिसकी लम्बी उबड़ खाबड़ मानवीय संवेदनाओ की पगडंडियों पर चलता रहता है……एक खोया हुआ आदमी…निरंतर……
रामधन गरीब है, बेरोजगार है, भूखा है, दुखी है, हैरान परेशान है | पर वह रोता नहीं है | पता नहीं , क्यों वह नहीं रोता ? पर उसका हर पल अश्कों में डूबा हुआ होता है |उसका परिवार पूरा दिन ,पूरी रात सिर्फ अश्क पी पी कर जीता है | कभी कभी बच्चे ज़ोर ज़ोर से रोते है , पत्नी बिलखती है ,बूढ़े माँ बाप विलाप करते है , फिर भी रामधन नहीं रोता , शायद उसके पास अश्क है ही नहीं या वे सूख चुके है या फिर वह उन छुपे अंधेरों में अपना मन हल्का करता है , जिसमें एक हाथ को दूसरे हाथ की भी सुध नहीं रहती | जाने कितने समय से वह बेसुध सा नौकरी के लिये भटक रहा है |
रामधन स्नातक है ,वह गणित के सवाल चुटकियों में सुलझा लेता है ,पर अपनी ज़िंदगी की उलझन को वह कभी नहीं सुलझा पाया , वह रसायन को बड़ी तेजी से पहचानता है ,पर अपने ही तन से आती दुर्गंध को नहीं जान पाता ,वह अच्छी तरह से जानता है कि बल्ब का ,बिजली का आविष्कार कैसे हुआ? पर वह नहीं जानता कि आज रात के खाने का इंतजाम कैसे होगा ? उसे जानकारी है कि कितने ही पशु पक्षी दुर्लभ होने की कगार पर है, पर वह क्यों जी रहा है ? नहीं जानता | उसे तो अब याद भी नहीं रहा कि वह किन किन गलियों की ख़ाक छान चुका है , अपने शैक्षिक प्रमाणों के साथ |
जो कदम ढलती शाम के साथ बोझिल होते थे , अब वे कदम उगती सुबह के भार को भी नहीं सहन कर पा रहे थे | कहीं छोटा मोटा काम करके वह जो भी कमा पता उससे अगली भूख तक वह अधभरा पेट बिलख उठता |उसमें तेज मरोड़ महसूस होता | वह इसका दर्द अपनों के चेहरों पर नहीं सहन कर पाता | बूढ़े माँ बाप के चेहरे पर बढ़ती अभावों की झुर्रियां उसे अंदर तक कचोट देती | भूख , दरिद्रता ,आँसू उसके घर में आते ही अपने पावँ और पसार देते | इससे घबरा कर वह घर के एक कोने में दुबका पड़ा रहता | दिन पर दिन क्षीण शरीर और मन उसका साथ छोड़ता जा रहा था | उसे हर पल लगता जैसे हर कोई उसी की गर्दन के तलाश में तलवार लिये घूम रहा है |
पिछले हफ्ते से छोटा बीमार है, डॉक्टर कहते है उसे दवा नहीं भोजन चाहिये | पत्नी जो भावी जीवन अंदर पाले है, वह भी कड़ी धूप में पापड़ जैसी सूखती जा रही है | बूढ़ी माँ जो बरसों से अपनी टाँगो पर चलना भूल गई , अब और भी ढलती जा रही है | बूढ़ा बाप दिन भर खांसता रहता है | कल तो उसी के सामने खाँसते खाँसते उसने खून की उल्टी कर दी थी | घर पूरा तितर बितर रहता है | हर पल उसे लगता है जैसे अभी अभी यहाँ से कोई तूफान गुजरा है |
रामधन सोचता है, हाँ, काफी समय बाद आज सोच रहा है ‘ क्यों वापिस आता है इस घर में, क्यों अपनो का तिल तिल कर मरना वह देख रहा है, वह क्यों कहीं नहीं चला जाता , इतनी दूर की उसे अपनो की चीख तक न सुनाई दे |’ तभी मुन्ना रो दिया ,बड़े ने उसकी रोटी छीन ली थी , पत्नी चिल्ला पड़ी , बूढ़ी माँ ने अपनी रोटी बच्चों को दे दी , बच्चे आपस में लड़ दिये , छोटा अब भी रो रहा था | रामधन जो कोने में दुबका बैठा था, सब चुपचाप देख रहा था , वह फिर भी नहीं रोया |
वह अपने न बदले जाने वाली दिनचर्या की तरह आज भी काम की तलाश में घर से निकला | कंधो पर अपनी ही लाश ढोता अपने बोझिल, थके , भारी कदमों से वह चल रहा था | भोर का चला दोपहर तक वह न रुका | सांझ भी हो गई , वह चलता रहा | अब तक वह गंतव्य विहीन राह पर बेसुध सा चला जा रहा था | धीरे धीरे एक शाम और डूब गई, लेकिन उसे अभी भी बच्चों का शोर , पत्नी की चीखे, बूढ़े माँ बाप का विलाप सुनाई दे रहा था | उसके कदम और तेज हो गए | हवा के विपरीत चलते हुए भी वह शोर उसके कानों के काफी नजदीक था | रात हो गई , अंधेरों का साम्राज्य कोने कोने तक फैल गया | फिर भी वह चलता रहा, चलता रहा, उन्ही शिथिल, बोझिल, थके कदमों के साथ |
अगली सुबह तक उसका कहीं अता पता नहीं था | अब वह एक खोया हुआ आदमी था , जिसकी किसी को तलाश नहीं ,वह कहाँ है ? कैसा है? वह क्यों खोया ? किसी को पता नहीं ..|
@समाप्त..