
शैफालिका अनकहा सफ़र – 10
शैफाली के लिए घर में बंद होकर रहना ही अपने आप में कोई सजा जैसा था, वह किसी आज़ाद परिंदे सरीखी बन्धनों से परे थी लेकिन यहाँ आकर उसे भावना के निर्देशोंअनुसार काम करना पड़ता था जिसपर उनकी लगभग रोज़ ही जुबाँकशी होती थी| अभी अभी भावना उसे ढंग से कपड़े पहनने का निर्देश दे रही थी पर उल्टा शैफाली उसपर बरस पड़ी कि वह उसे बांध सकती है उसके तौर तरीको को नहीं|
भावना उसकी नूडल्स स्ट्रैप्स वाले नाभि से ऊपर के टॉप और मिनी स्कर्ट को देख मुँह बना लेती है|
“मैंने तो पहले ही कहा था कि मेरी डील मान लो इससे हम दोनों ही फायदे में रहेंगें – अभी भी मैं अपनी आज़ादी के बदले अपने हिस्से का 60 प्रतिशत तक दे सकती हूँ|”
भावना को हैरत हो रही थी कि वह भी बिल्कुल अपने पिता जैसी ही है, सब कुछ खरीदने पर अमादा रहने वाली लेकिन वह उसे समझाना चाहती थी कि दुनिया में हर चीज़ बिकाऊ नहीं होती| उसके लिए यहाँ रखना भलेहिं कोई डील जैसा हो फिर भी उसे यकीन था कि खून का रिश्ता कभी तो अपना असर दिखाएगा, इंतजार और विश्वास ही उसका बस एक मात्र सहारा रह गया था|
शैफाली गुस्से में फिर खुद को कमरे में बंद कर लेती है| लगातार दो सिगरेट फूंक देने के बाद तीसरी जलाते उसके ख्याल में कई सारी चीजे एक साथ मंडराने लगी थी| लन्दन में रोजाना की पार्टी और बाद में सबका अनजान की तरह तितर बितर हो जाना, कौन किसे पूछता तब वहां ? लेकिन यहाँ कैसे लोग है आपस में अनजानों का भी कोई रिश्ता होता है, भावना क्यों उसकी जिंदगी पर अपना अधिकार जमाती जा रही है ? क्यों नही उसकी डील मान लेती आखिर फायदा है उसमे उसका| सोचते सोचते खिड़की के मुहाने से हटती वह बिस्तर पर आकर लेट जाती है|
शैफाली कैसे भी बाहर निकलना चाहती थी लेकिन एक अनजान शहर में कैसे और कहाँ अकेली निकले यही बात उसे बेचैन कर दे रही थी| आखिर यही सोच वह फिर से भावना के पास लायी थी| शैफाली कमरे से निकलकर देखती है कि कोई भावना के बहुत पास खड़ी उससे अपनत्व से बात कर रही थी ये देख वह दूर ही ठिठकी खड़ी रह गई|
ये मानसी थी जो भावना को बातों की गुदगुदी से उसका मूड हल्का कर रही थी और वह भी मुस्कराती हुई उसकी बात सुन रही थी| अचानक उनकी नज़रे आपस में मिली तो मानसी चहकती हुई कह उठी –
“ओह हाय शैफाली – लगता है तुम्हें अभी यहाँ की आबोहवा की आदत नही लगी – थोड़ा बाहर घुमो शहर देखो तभी तो घुलमिल पाओगी यहाँ की फिज़ा में |”
आदतन मानसी अपने खिलंदड भाव से हँसती हुई शैफाली की बांह जबरन पकड़े उसे अपने साथ बैठा लेती है जिसपर भावना हैरान सी उन्हें देखती रही कि शैफाली मानसी के प्रति कही अभद्र न हो उठे पर शैफाली शांत बनी रही| उसके मन में क्या चल रहा था इससे बेखबर उसका साथ बने रहना इस पल भावना को क्षणिक खुश कर गया| उस पल वह शैफाली का चेहरा देखती रह गई, कितनी मासूमियत थी उसमे जिसे अपने अखड़पन के पीछे वह अकसर छुपाए रहती आखिर उसकी उम्र भी क्या है अभी सिर्फ उन्नीस साल और इस बेचारी ने इन उन्नीस साल में भी कितनी दुनियादारी देख ली| उसका अकेलापन ख्याल करके ही उसका मन उसके प्रति द्वित हो उठा| मानसी उसे बाहर ले जाना चाहती थी और शैफाली राज़ी भी हो गई| भावना को भी मानसी संग भेजने में क्या एतराज़ होता? शैफाली चेंज करने अन्दर चली गई तो भावना दबे स्वर में मानसी से अपनी मंशा व्यक्त करती हुई बोली जिसपर मानसी उसे आश्वस्त करती हुई कह उठी –
“यार भावना उसे बांध कर रखने से वह तुम्हारे प्रति नकारात्मक ही होगी – उसे बाहर निकलने दो तभी तो शहर को आत्मसात कर पाएगी खुद में – |”
“पर !!”
“पर वर कुछ नही – मैं अपने साथ बाहर ले जा रही हूँ – ऋतु से मिलवाती हूँ और डोंट वॉरी मैं खुद उसे शाम तक छोड़ जाउंगी|”
जब तक वे बातों में मशगूल रही शैफाली चेंज कर आ गई| वे साथ में देखती है कि शॉर्ट्स के ऊपर उसने बेकलैस टॉप पहन रखा था| एक दूसरें को देखती आखिर मानसी उसे साथ में लिए बाहर आ गई|
बाहर आकर शैफाली को मानसी स्कूटी में बैठाए शहर का चक्कर लगाती हुई उसे रास्तों की जानकारी देती जा रही थी और यही तो शैफाली चाहती थी ताकि कभी भी वह अपने हिस्से का अकेलापन जीती इस शहर में अकेले विचरण कर सके|
फिर घूमती हुई मानसी जय के घर तक आने से खुद को नहीं रोक पाई| अपने इन एक साल के प्रेम भरे रिश्ते में ये घर उसका अपना ही हो चुका था जहाँ वह जब चाहती तब सहजता से चली आती| जय, समर, इरशाद और मोहित का ये घर था, चार दोस्तों के अपनत्व और साथ ने इसे घर बनाए रखा था| जो सिर्फ प्रेम और विश्वास से निर्मित था इसलिए उनमे किसी भी तरह का कोई भेद नही था| उसी घर के पड़ोस में ऋतु का घर था, हालाँकि उसका परिचय बहुत कुछ था, एक साधारण, सौम्य, शांत लड़की के साथ भरतनाट्यम की पारंगत नृत्यांगना भी थी तो डॉक्टर समर की मासूम महबूबा भी लेकिन उससे भी कही बढ़कर वह उन चारों की पड़ोसन थी जो हर दम उनकी मदद को सर्वदा तैयार रहती इसी स्वभाव ने मानसी और ऋतु को भी आपस में मित्र बना रखा था|
ऋतु अपने माता पिता के आकस्मिक देहावसान के बाद अपनी छोटी बहन वर्षा और बुआ जी के साथ शिवाजी नगर के अपने इस घर में रहती थी जिसके पड़ोस में उन चार दोस्तों का घर था| पर ऋतु की सारी दुनिया तो उसकी रसोई की वो खिड़की थी जो चारों के घर की रसोई की ओर खुलती थी जहाँ सुबह शाम समर और ऋतु सबसे छुपकर अपनी आँखें चार करते थे|
मानसी घर के नीचे खड़ी देखती है कि ऋतु सीढियाँ चढ़ती हुई जा रही थी| वह सीढ़ियाँ भी नही चढ़ पाई थी कि पीछे से मानसी से उसे आवाज़ देकर रोका, ऋतु पीछे पलट कर देखती है| सीढ़ियों के नीचे मानसी के साथ कोई सुनहरे बाल वाली खड़ी थी| पहले पहल तो मानसी से मिलकर उनकी मुस्काने एक हुई फिर उसके एक ओर हटते ऋतु की नज़र शैफाली पर जाती है तो अचंभित भाव से वह उसे देखती रह जाती है|
“शैफाली ये है मेरी फ्रेंड भावना की सिस्टर|” उसपल जैसे बहन शब्द शैफाली और भावना के व्यक्तिव से मेल न खाने से वह सिस्टर कहकर उससे परिचय कराती है फिर आगे बढ़कर शैफाली का ऋतु से परिचय करा कर कहती है – “पता है ऋतु बहुत अच्छी कलासिकल डांसर है – मैं तो बस इसका डांस देखती रह जाती हूँ|”
“तुम भी मानसी – चलो घर चलो|” अचानक अपनी बात पर ही ऋतु शैफाली के छोटे किस्म के पहनावे को देख बुआ जी को याद कर अपनी बात यूँ पलट लेती है – “यहाँ इनलोगों से मिलाने लाई थी…!!”
“हाँ सबसे मिलाने आई थी – तुम्हारे पास ही आ रही थी लेकिन तुम्हे यहाँ आते देख पहले मैं यहाँ चली आई|” उनकी बातचीत से उबती शैफाली इधर उधर देख रही थी|
“हाँ हाँ क्यों नहीं – चलो ऊपर चल कर ही बात करते है|” ऋतु शैफाली को अपने घर नही ले जाना चाहती थी क्योंकि उसे पता था कि उसके कपड़े देख बुआ जी का मुंह जरुर बन जाएगा, उसे बुआ जी का मन जरुर भांपना पड़ता है|
तीनों अब सीढ़ियाँ चढ़ती ऊपर आ जाती है| आते ही कमरे की बदहाली देख मानसी ऋतु की ओर देख फुसफुसा कर हँस पड़ती है|
“ये लोग कभी नहीं सुधरेंगे|”
फिर दोनों मिलकर सोफे से लेकर टेबल तक का सामान समेटती है| जय की वर्दी समेट कर अन्दर ले जाती हुए मानसी शैफाली की तरफ मुड़ती हुई कहती है – “प्लीज तुम कुछ देर यहाँ बैठो हम अभी आती है|”
समर को न पाकर ऋतु का मन उदास हो उठता है अब शैफाली के साथ कुछ खास बातचीत समझ नहीं आने पर वह वर्षा की पुकार पर मानसी के आने का भरोसा देकर तुरंत घर से बाहर चली जाती है|
शैफाली कुछ पल तो मानसी का इंतजार करती है फिर इधर उधर तकती घर के अंदर की ओर मानसी को देखने चल देती है| उस हॉल से अन्दर की ओर निकलते उसे पहला कमरा बंद दिखता है फिर कुछ सोचती वह आगे कदम बढ़ाती है| अगले कमरे का दरवाज़ा पूरी तरह से खुला था| वही रूककर वह कमरे से अन्दर की ओर देखती है, उस बड़े कमरे के एक दीवार के बीचोबीच की खिड़की के सामने टेबल पर मोहित को बैठा पाती है|
मोहित जो शायद हॉल के एक किनारे पर अपना कमरा होने से बाहर की हर गतिविधि से बेखबर बैठा किसी किताब में मग्न था|
शैफाली बिना आहट के अन्दर आती उस कमरे को अपनी सरसरी निगाह से देखती है| उस कमरे में एक किनारे बेड तो दूसरे किनारे एक अदद टेबल चेअर और तीसरी ओर खाली दीवार और चौथी ओर खुलते दरवाजे के सिवा कुछ खास इस कमरे में नहीं देखती है| फिर कुछ अन्दर बढ़ते उसकी नज़र फर्श की ओर जाती है जहाँ बेड के एक निचले कोने से झांकते कुछ व्यायाम के डम्बल इत्यादि पर उसकी नज़र जाते फिर उसकी नज़र घुमती हुई मोहित के स्लीवलेस स्पोर्टस् टी शर्ट से झांकती मांसल बाजुओं पर टिक जाती है|
मोहित अभी भी किताब में मग्न अपने कमरे में मौजूद शैफाली से पूरी तरह से बेखबर था|
“द लेजंड …|” कहती हुई किताब के नाम को पूरा पढ़ने का प्रयास करती है|
उसकी आवाज़ सुन मोहित चौंककर उसकी तरफ देखता है|
“तो ये तुम्हारा घर है|” कहती हुई शैफाली वही बेड पर बैठ जाती है|
“ये हम चार दोस्तों का घर है|’ कहता हुआ उसपर से ध्यान हटाकर फिर किताब की ओर देखने लगता है|
“इंट्रेस्टिंग – |”
कुछ पल तक की कमरे की स्तब्धतता को तोड़ती शैफाली की लाईटर से सिगरेट जलाने की आवाज़ पर मोहित का ध्यान फिर उसकी तरफ जाता है| अपने एक पैर पर दूसरा पैर चढ़ाए वह एक गहरा कश लेती ही है कि मोहित उसकी तरफ देखता हुआ कहता है – “सॉरी फॉर अबाउट लेकिन यहाँ हमारे घर में सिगरेट एलाऊ नहीं है –|”
“ओह क्या सच में – चार मेल और सिगरेट नॉट एलाऊ|” शैफाली तिरछे होंठ कर पूछती है|
“हाँ ये नियम हमारे ही बनाए है वैसे भी हम में से कोई नहीं पीता|”
‘क्या सच में..!!”
“हाँ – जय इरशाद थोड़ा लेते है पर इसके लिए वे छत पर जाते है – घर पर तो ऐसा कुछ भी नही |” वह अब शैफाली की ओर बिना देखे कहता है शायद उसे लगा कि व्यसन की आदि वह भी छत पर चली जाएगी|
“ओह माय गोश – ऐसे भी लड़के है क्या इस दुनिया में|” हौले से हँसती शैफाली उठकर मोहित के पास जाकर सिगरेट खिड़की के चौखटे के किनारे मसलकर बुझाती हुई कहती है – “लो तुम्हारे घर का रूल नहीं तोड़ा मैंने|”
मोहित हलके से मुस्कराकर उसकी तरफ देखता हुआ फिर किताब की ओर देखने लगता है|
शैफाली कुछ कहने को ही होती है कि एक तेज़ क़दमों की आहट पर अब दोनों का ध्यान दरवाज़े की देहरी तक जाता है जहाँ अब जय और मानसी खड़े थे|
“अरे तुम यहाँ आ गई – सॉरी वो मैं…|” कहती कहती मानसी जय की ओर देख अपना निचला होंठ दांत से दबाती हँस पड़ती है|
“इस्ट्स ओके – तुम इसी साईड गई थी तो मुझे लगा यहाँ तुम होगी पर यहाँ तो..|” अबकि शैफाली अपना निचला होंठ दबाती हँस पड़ी|
मोहित इसपर अपनी चेअर घुमाकर शैफाली की ओर देखने लगता है|
“अरे अच्छा ही हुआ जो अपने आप ही एक दूसरे से परिचय कर लिया – मोहित अबकि सन्डे को तुम्हारे कॉलेज में जो फंग्शन है वहाँ शैफाली को भी ले जाना|” मानसी अन्दर आती हुई कहती है|
“क्या कह रही हो मानसी – मैं …|” मोहित जैसे अपनी कुर्सी से उछल पड़ा|
“प्लीज मोहित – देखो शैफाली हम सबकी गेस्ट है न – तुम्हारे बहाने वो यहाँ के कॉलेज भी देख लेगी|”
मोहित एक पल शैफाली को तो दूसरे पल मानसी की ओर देखता रहा पर कुछ कह न पाया|
“हाँ हाँ ले जाएगा |”’ जल्दी से आगे आकर मानसी के पास खड़े होते हुए जय कहता है|
“क्यों तुम घुमाओ न इन्हें शहर मैं ही क्यों..!!” दबी जबान में वह मानसी की तरफ अपनी शिकायत पहुँचाता है|
“प्लीज यार – एक दिन तो छुट्टी मिलती है फिर उस दिन हमारा कुछ खास प्रोग्राम है|” कहता हुअ जय मानसी की कमर पर अपनी एक बांह फैला लेता है|
मानसी भी बड़े प्यार से उसकी तरफ पीछे मुड़कर देखती है, वही मोहित मरमरी हालत में उनकी तरफ देखता रह जाता है|
और शैफाली वहाँ हो रहे उस अजब तमाशे को बड़े इत्मीनान से अब बेड के एक किनारे बैठी हुई देख रही थी|
——–क्रमशः….