
शैफालिका अनकहा सफ़र – 11
घर में आते पवन को पता चल जाता है कि शैफाली मानसी के साथ बाहर गई है तो शैफाली के कमरे में जाकर अपने बैग पैक से कोई रैपर में लिपटा सामान रखकर ज्योंही मुड़ा देहरी पर भावना को खड़ा पाया| उनकी आँखों की आपसी समझ थी जो देखकर भी अनदेखा कर रही थी|
भावना वापस बाहर निकल गई पीछे पीछे पवन भी बाहर आ गया| अब वे आमने सामने जैसे बिन शब्दों के ही एकदूसरे को आश्वस्त कर रहे थे कि जो हो रहा है उसपर उनका बस बिलकुल नही, पवन कहाँ चाहता है ऐसा करना पर खुद उसे उन सब चीजों को घर लाना पड़ता है जो उसके जीवन से नदारत है, वह आँखों से भावना को समझा रहा था कि अगर वह नही लाएगा तो शैफाली जो आदी है इन सबकी उसके लिए बार जाएगी जो वे दोनों ही नही चाहते है| भावना को न चाहते हुए भी सब स्वीकार करना पड़ रहा था क्योंकि यही वक़्त की मांग थी उस वक़्त|
फिर दरवाजे की आहट से शैफाली वापस आती है थकी सी और दोनों को अनदेखा करती तुरंत कमरे के अन्दर आती जिस चीज को उसकी ऑंखें तलाश रही थी, वो उसे बेड की साईड टेबल पर रखी मिल गई, वह बिअर की बोतल को पूरा का पूरा गले के नीचे उतारकर ही साँस लेती है| फिर बोतल को यूँही छोड़ अपनी बोझिल होती आँखों से बिस्तर पर सीधी पड़ जाती है, सीधी लेटती खुली आँखों से छत निहारती वह एक सिगरेट सुलगा लेती है|
भावना की चिंता में घुली आँखों की नमी देख मानसी हँसती हुई दोनों हाथों से उसका गाल खींचती हुई खिलखिला पड़ी – “तुमने चिंता करने का कोई कोर्स किया है क्या – तबसे कितने कॉल कर डाले तुमने – लो आ गई न वापिस शैफाली |”
भावना भी मुस्कराए बिना न रही|
फिर जाते जाते याद करती हुई मानसी उसे बताती है कि इस रविवार उसने तय किया है कि मोहित शैफाली को अपने कॉलेज के फंग्शन में ले जाएगा| ये सुनकर शैफाली के जाने से उसे मोहित के राजी होने पर ज्यादा आश्चर्य था|
“हाँ – मोहित ले जाएगा पक्का |”
“मुझे तो विश्वास नही हो रहा – राजी कैसे हुआ ?”
“बस करा लिया |” हवा में चुटकी बजाती वह मुस्कराई|
ये देख भावना खिलखिला उठी|
“चलो अब मैं घर चली – बाय|”
दोनों मुस्कराते हुए आपस में विदा लेती है|
***
छुट्टी के दिन मोहित को मानसी के कहेअनुसार शैफाली को लेकर अपना कॉलेज दिखाने ले जाना था| लड़कियों से दो गज की दूरी बना कर रहने वाला मोहित शैफाली के साथ अकेला नहीं जाना चाहता था ये सोच उसने समर और इरशाद को साथ ले जाने की सोची पर समर जैसे अनमना सा अपने आपको कमरे में बंद किए बैठा था और इरशाद को अभी अपनी आपा के यहाँ जाना था| थक हार कर मोहित को अकेले शैफाली को लेने जाना पड़ा|
मानसी को पता था कि मोहित आनाकानी करेगा इसलिए उसने भावना को पहले से ही शैफाली को तैयार रहने को बोल दिया| भावना भी चाहती थी कि शैफाली कैसे भी उसके दोस्तों संग अपना तालमेल बैठाए पर उसे डर था कि देर से उठने वाली शैफाली क्या दस बजे तक तैयार होकर जाने को राज़ी होगी ??
ये सोच भावना शैफाली को जगाने गई, सुबह के नौ बज रहे थे और शैफाली अभी भी नींद में डूबी थी, उसे हौले से हिलाती हुई उसके सर पर हाथ फिराती है जिससे शैफाली उनींदी में करवट ले लेती है, ऐसा करते उसका सर तकिया से लुढ़क जाता है, ये देख भावना उसके सिरहाने बैठती हौले से तकिया उसकी गर्दन के नीचे रखती उसके बेतरतीबी में फैले सुनहरे बालों को सहलाने लगती है जिससे अचानक शैफाली आंख खोले उठ जाती है| बिस्तर से आधा उठाए शरीर वह औचक भावना को देखती रही जो उसका गाल सहलाती ही कह रही थी – “माफ़ करना तुम्हारी प्यारी नींद तोड़ दी पर आज तुम्हें मोहित के साथ उसके कॉलेज जाना था न – मानसी ने बताया कि दस बजे तक तैयार हो जाना |”
कहकर भावना अपनी मुस्कान वही छोडती अब जा चुकी थी लेकिन बिस्तर पर अपने स्थान पर शैफाली जमी रह गई| उसका मन सोचने लगा कि कितनी अजीब है इन सबकी दुनिया, जहाँ बिना कहे अधिकार मिल जाता है इन्हें, वहां वह अगर चौबीस घंटे भी अपने कमरे से नही निकलती तो कोई उसे देखने या जगाने भी नही आता, आखिर ये बेअदबी जो मानी जाती पर यहाँ तो किसी का कोई पर्सनल दायरा नाम की चीज ही नही है, एक वक़्त का भी खाना न खाने उठे तो भावना कैसे भी मनाने आ जाती उसे तब उसकी हर बेजा बात भी मान लेती, मानसी के कहने भर से मोहित उसे लेने भी आ रहा है, खैर इन सब बातों से ध्यान हटाती वह आखिर उठ जाती है| क्योंकि वह भी इस घर की दीवारों से निकलना चाहती थी, आखिर कैसे भी उसे ये छह महीने का वक़्त काटना ही था जो घर के अन्दर रहकर काटना थोडा मुश्किल था|
मोहित ने सोचा कि शैफाली के जरा भी देर करने पर देर हो रही कह कर झट से वह निकल जाएगा पर उसकी सोच से कही परे शैफाली उसे अपार्टमेंट की बिल्डिंग के नीचे ही तैयार मिल गई| अब न चाहते हुए भी उसे शैफाली को ले जाना पड़ेगा, वह एक सरसरी नज़र शैफाली को देखता है, उसपल उसकी नज़र उसपर जम सी गई, उसकी सुन्दर काया पर फिरोजी रंग का घुटनों से ऊपर का फ्रॉक था जिस पर उसने एक ओर करके चोटी बनाई थी जिस पर उसी के रंग के मेल का एक स्कार्फ बंधा था| वाकई वह कुछ ज्यादा ही खूबसूरत थी पर इस बात को अपने दिमाग से झटकते उसे बैठने का इशारा करता है|
वह झट से उसके साथ वाली सीट पर बैठती हुई बोली – “चले..!”
मोहित हिचकिचाते हुए शैफाली के साथ अपने कॉलेज के सालाना स्पोर्ट्स डे के कार्यक्रम में आता है असल में स्पोर्ट्स का कार्यक्रम तो हो चुका था आज पुरस्कारों के वितरण से पहले कुछ सांस्कृतिक कार्यक्रम हो रहे थे| इसलिए आज वहाँ भारी तादात थी तो मोहित को लगा कि ज्यादातर का ध्यान उसकी तरफ नही जाएगा, असल में वह खुद को किसी लड़की के साथ दिखने से बचाना चाहता था पर अभी हालात का मारा वह कुछ कर भी नहीं सकता था|
वह एक किनारे की सीट पर पूरी तरह से आश्वस्त हो कर बैठा ही था कि किसी आवाज़ पर उसका ध्यान अपने पीछे जाता है, सामने से अपने ही डिपार्टमेंट की एक कुंवारी मैडम कुसुमलता को देख उसकी सांसे जैसे गले में ही अटकी रह जाती है|
“अरे बड़ी देर लगा दी आपने..|” वह जल्दी से उसके सामने आती हुई कहती है – “मैं तो कबसे आपका इंतजार कर रही थी|” अपने आखिरी शब्द वह कुछ ज्यादा ही शरमाते हुए कहती है|
ठीक बगल में बैठी शैफाली उसकी ओर देखने लगी लेकिन शायद उसका ध्यान शैफाली पर अबतक गया नहीं था|
“बड़े अच्छे लग रहे है आप – इस नीली शर्ट में जैसे भरपूर समंदर हो कोई आप|”
कुसुमलता की बात सुन मोहित से कुछ कहते नही बनता, वह बस अपनी बगलें झांकता रह जाता है|
“आज शाम को आपको मेरे साथ मेरे घर चलना है – खाने में कुछ ख़ास बनाया है मैंने आपके लिए|” वह अपनी दोहरी काया में कोमलांगी सी इतरा उठी – “मेरी मम्मी भी आपसे मिलना चाहती है|” कहते कहते कुसुमलता का ध्यान अब मोहित के ठीक बगल की सीट पर जाता है, वह उसे घूर कर देखती हुई कहती है – “ये कौन है – क्या आपके साथ है??” कहते कहते एक दम से जैसे उसके फूले गालों का गुलाबी पन स्याह हो उठा|
“ये मेरे फ्रेंड की दोस्त है यहाँ कॉलेज दिखाने लाया हूँ बस|” समय की नज़ाकत को भांपते हुए वह कहता है|
“ओह तब तो अच्छा है |” उसके गाल फिर गुलाबी हो उठे|
“अच्छा आप वहाँ चलिए न – मैंने आपके लिए वहाँ जगह ले रखी है|” उसका मनुहार इतना जबरन था कि उसका बस चलता तो वह मोहित का हाथ पकड़कर अपने साथ ले जाती|
“नही कोई बात नहीं|”
“चलिए न|”
शैफाली को ये सब देख हँसी सी आ रही थी पर किसी तरह से होठों के बीच वह हंसी दबाएथी|
मोहित को मामला बिगड़ता दिखा तो वह झट से बोल पड़ा – “अच्छा आप चलिए – इनके फ्रेंड जैसे आ जाएँगे मैं वही आ जाऊंगा|”
इस बात पर राज़ी होने के सिवा कोई चारा न देख वह एक गहरी मुस्कान वही छोड़कर चली जाती है, उसके जाते मोहित राहत भरी एक साँस लेता है जिस पर शैफाली आखिर धीरे से हँस पड़ती है|
कुसुमलता अपनी सीट से ही अब अपनी तिरछी नज़र से मोहित को बार बार देख रही थी| मोहित भी ऐसी जगह बैठा था जहाँ से उसकी नज़र न चाहते हुए भी कई बार कुसुमलता से मिल जाती तो उसे मुस्कराना पड़ जाता| आज तो कुसुमलता के चेहरे पर पूरा बसंत छाया था, पीले कलीदार सलवार कुर्ते में उसकी दोहरी देह आज उतनी फैली भी नहीं दिख रही थी| उसने अपने बाल जान के खुले छोड़ रखे थे| मैचिंग की एक कलाई में कतारबद्ध चूड़ियाँ तो दूसरी कलाई में दिल के आकार की घड़ी थी| आज तो मुस्कान उसके चेहरे से हटने का नाम ही नहीं ले रही थी|
कार्यक्रम अपनी रौ में था| मोहित को बीच बीच में उठकर कभी जाना पड़ता था, शैफाली उसकी साथ वाली सीट पर बैठी सामने देखने से ज्यादा वहां मौजूद लोगों को देखने में ज्यादा दिलचस्पी ले रही थी| कोई उसे किनारे खाता हुआ दिख रहा था, कोई सामने की सीट पर बैठा हुआ भी अपने मोबाईल में मग्न था, सब उसे रोचक लग रहा था| ऐसे ही उसकी नज़र कुसुमलता पर पड़ी जो अभी भी लगातार मोहित की ओर देखे जा रही थी इस पर वह बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोक पाई|
अब कार्यक्रम के पश्चात् पुरस्कार बांटे जा रहे थे| खेल प्रोत्साहन के अध्यापक के हिस्से की एक ट्रोफी मोहित के नाम की भी थी| तब शैफाली जोर से ताली बजा कर उसका उत्साह बढ़ाती है जिससे मोहित के चेहरे पर मुस्कान तैर जाती है| यही पल था जब ट्रोफी लाकर लौटते भीड़ से गुज़रते शैफाली आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ लेती है और उसे धीरे से झुकने का इशारा कर अपनी तरफ खींचती हुई कुर्सियों के बीच में से निकलने लगती है| मोहित औचक उसके साथ बंधा चला जा रहा था उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि शैफाली उसका हाथ पकड़े उसे कहाँ लिए जा रही है वहीँ कुछ संकोच था पहली बार किसी लड़की के ऐसे सअधिकार व्यवहार से| वह चाह कर भी उसे रोक नहीं पाया| कुछ जाने पहचाने चेहरों से बचता हुआ मोहित को नहीं पता क्यों वह उसके पीछे पीछे चला जा रहा था| जल्दी ही वे अब मैदान के पीछे के हिस्से की ओर निकल आए थे| मोहित के एक हाथ में अभी भी ट्रोफी थी| मोहित पीछे पलटकर देखता है उसे डर था कि कहीं उसके स्कूल की छात्राओं ने तो शैफाली का उसका इस तरह से हाथ पकड़े तो नही देख लिया ये सोचते ही उसके दिमाग में कौंधा कि वह उसका हाथ अभी भी पकड़े थी| वह उसकी ओर देखता है शैफाली एक हाथ से पेट पकड़े जोर से हँस रही थी| मोहित एकटक उसकी ओर देखता है, हँसते हँसते उसके गालों के डिम्पल और गहरे हो आए थे| वह अभी भी उसके हँसते चेहरे की ओर देख रहा था|
“बड़ा मज़ा आया – पता है वो तुम्हारी मैडम तुम्हे ढूंढती ही रह जाएगी|” अब धीरे से वह उसका हाथ छोड़कर अपना पेट दोनों हाथ से पकड़ कर हँसती है, मोहित को भी जैसे अब बात समझ आती है उसका चेहरा भी हँसी के फुव्वारे से नहा उठता है|
“जब उसने बोला कि लास्ट प्रोग्राम में वह तुम्हेँ अपने साथ ले जाएगी तब तुम्हारा चेहरा देखने लायक था|’ वह फिर हँस दी जिससे मोहित शरमा गया|
वह देखता रहा उसने शैफाली को अभी तक इतना हँसते हुए नही देखा था|
“अच्छा अब ये तो बताओ हम जाए कहाँ?”
“लो तुम लेकर आई हो अब तुम्हीं रास्ता भी बताओ|”
“ये मत भूलो मैंने तुमको बचाया है और मुझे तो जो रास्ता दिखा वहीँ से निकल आई – अब तुम बताओ हम पार्किंग तक कैसे जाएँगे?”
मोहित अपने चारोंओर देखता है वे मैदान के पीछे के हिस्से की तरफ थे अब वहाँ से निकलकर उन्हें कार तक पहुँचना था|
“तो चलो अब तुम मेरे पीछे|”
मोहित के पीछे पीछे अब वह हँसती हुई चलने लगती है|
दोनों अब कार में बैठे थे, मोहित एक क्रोसिंग से गुज़रते हुए शैफाली की तरफ बिना देखे ही कहता है – “बस यहाँ से तुम्हारी बिल्डिंग पांच मिनट की दूरी पर है|”
शैफाली चौंककर उसकी तरफ देखती हुई कहती है – “इतनी जल्दी वापसी – मुझे लगा तुम्हारे शहर में इसके अलावा भी कुछ और है दिखाने के लिए|”
ये सुन मोहित एक दम से ब्रेक लगाकर कार खड़ी कर उसकी तरफ देखता है – “बिल्कुल है – ये शहर नही खजाना है पर मुझे लगा तुम्हेँ अब घर जाना होगा|”
“मैंने कब कहा|” कहती हुई वह अपने कंधे से टंगे पाउच की पॉकेट से सिगरेट निकाल कर जैसे उससे पूछने का इशारा करती है| मोहित आँखों से स्वीकृति दे देता है|
“अच्छा तो चलो |” फिर झट से कार स्टार्ट कर मोहित सड़क के दूसरी ओर मोड़ लेता है|
“यहाँ कोई बसंत कुञ्ज रोड है क्या|” वह आराम से सीट से अपनी पीठ सटा लेती है|
“हाँ वहां कई बार, रेस्टोरेंट्स वगैरह है – मैं वहाँ गया तो नही लेकिन आज मैं तुम्हेँ अपनी फेवरेट जगह ले चलता हूँ|”
रास्ते भर शैफाली रास्तों के बारे में पूछती रही और मोहित उसे उस जगह की जानकारी देता रहा फिर कुछ समय बाद दोनों किसी खाने के देशी ठेले के पास खड़े थे|
खाने का शौक़ीन मोहित शैफाली को जाने क्या सोच पानी के बताशे खिलाने ले आया| मोहित उसे दोने को ठीक से पकड़ना बता कर बताशे वाले को पानी के बारे के निर्देश देकर पहला बताशा उसके दोने में डलवाता है| शैफाली हतप्रभ सब देखती रही उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे खाए? वह कभी उस बताशे की ओर देखती कभी मोहित की ओर और इसी क्रम में उसके दोने का बताशा पिघल जाता है| तब मोहित झट से अपने दोने का बताशा उसके मुँह में डाल देता है| शैफाली हँसती है और बताशे का पानी उसके होंठों के किनारों से हौले से निकल आता है, बताशे वाला ये देख मुस्कराते हुए अपनी छुपी नज़रों से उनको ताकता हुआ अगला बताशा उनकी तरफ बढ़ाता है|
अब दोनों किसी पार्क के सूने बैंच पर बैठे थे| सामने शाम का धुंधलका चारोंओर फैला था, निशा की आस में सूरज अपनी किरणें समेटता धीरे धीरे क्षितिज में गुम होता जा रहा था| मोहित पास की मालती की बेल पर बैठी चिड़ियाँ को देख रहा था, शैफाली उब कर फिर एक सिगरेट जला लेती है, इस आहट से मोहित का ध्यान फिर उसकी तरफ जाता है|
“लगता है तुम इसकी आदी हो चुकी हो|”
शैफाली मोहित की बात का जवाब सिर्फ एक अदनी मुस्कान से देकर एक गहता कश भीतर खीँच कर तेज़ी से बाहर की ओर छोडती है|
“तुम कभी अपनी इस जिंदगी से बाहर आने की नहीं सोचती!” मोहित अब पूरी तरह से उसकी तरफ मुड़ जाता है|
“क्यों..क्या बुराई है इस तरह बेफिक्री से जीने में….जब मुझे किसी से कोई शिकायत नही तो….|” वह जान कर अपनी बात अधूरी छोड़कर जलती सिगरेट का आखिरी गहरा कश खींचती है|
“बात तुम्हारी बेफिक्री जीने की नहीं बात तुम्हारे खुद को नुक्सान पहुँचाने की है – ये तुम्हारे लिए ठीक नही है|”
“तुम वो सामने देख रहे हो न डूबता हुआ सूरज|”
मोहित अब उसकी नज़रो से अपने सामने की ओर देखने लगता है|
“इसे पता है कि इसे इसी तरह डूब जाना है|” कह कर हौले से हँसी उड़ाने वाले अंदाज़ में हँसती हुई सिगरेट का जला टुकड़ा जमीन में फेंक सैंडिल से मसल देती है|
मोहित ख़ामोशी से उसी की ओर देख रहा था|
“तुमको पता है – मैंने अपनी पहली सिगरेट अपनी ग्यारह साल की उम्र में पी थी|” कहकर वह फिर एक सिगरेट सुलगाने लगती है इसपर मोहित झट से उसके हाथ से लाईटर छीन लेता है – “बस भी करो|”
“प्लीज् अब तुम मेरे ऊपर कोई हुक्म मत चलाने लगो|” वह हाथ बढ़ाकर मोहित के हाथ से लाईटर लगभग छीन लेती है पर सिगरेट नही जलाती|
“ये शामें मुझपर बहुत बोझिल गुज़रती है |” कहती हुई मोहित की तरफ देखती है जो अब सामने क्षितिज के पार देख रहा था|
“क्या तुम अब मुझे बार तक छोड़ दोगे…?”
“नही ..|”
मोहित का सपाट उत्तर सुन शैफाली हौले से हँस देती है – “पता था लेकिन फ्लैट तक तो छोड़ दोगे..!!”
शैफाली देखती है कि मोहित बात का जवाब देने के बजाय उठकर खड़ा हो जाता है और पार्क से निकास की ओर कदम बढ़ा देता है, शैफाली भी उसके पीछे पीछे चल देती है|
———————————क्रमशः