
शैफालिका अनकहा सफ़र – 13
कार्यक्रम अपनी रौ में था| मोहित को बीच बीच में उठकर कभी जाना पड़ता था, शैफाली उसकी साथ वाली सीट पर बैठी सामने देखने से ज्यादा वहां मौजूद लोगों को देखने में ज्यादा दिलचस्पी ले रही थी| कोई उसे किनारे खाता हुआ दिख रहा था, कोई सामने की सीट पर बैठा हुआ भी अपने मोबाईल में मग्न था, सब उसे रोचक लग रहा था| ऐसे ही उसकी नज़र कुसुमलता पर पड़ी जो अभी भी लगातार मोहित की ओर देखे जा रही थी इस पर वह बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोक पाई|
अब कार्यक्रम के पश्चात् पुरस्कार बांटे जा रहे थे| खेल प्रोत्साहन के अध्यापक के हिस्से की एक ट्रोफी मोहित के नाम की भी थी| तब शैफाली जोर से ताली बजा कर उसका उत्साह बढ़ाती है जिससे मोहित के चेहरे पर मुस्कान तैर जाती है| यही पल था जब ट्रोफी लाकर लौटते भीड़ से गुज़रते शैफाली आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ लेती है और उसे धीरे से झुकने का इशारा कर अपनी तरफ खींचती हुई कुर्सियों के बीच में से निकलने लगती है| मोहित औचक उसके साथ बंधा चला जा रहा था उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि शैफाली उसका हाथ पकड़े उसे कहाँ लिए जा रही है वहीँ कुछ संकोच था पहली बार किसी लड़की के ऐसे सअधिकार व्यवहार से| वह चाहकर भी उसे रोक नहीं पाया| कुछ जाने पहचाने चेहरों से बचता हुआ मोहित को नहीं पता क्यों वह उसके पीछे पीछे चला जा रहा था| जल्दी ही वे अब मैदान के पीछे के हिस्से की ओर निकल आए थे| मोहित के एक हाथ में अभी भी ट्रोफी थी| मोहित पीछे पलटकर देखता है उसे डर था कि कहीं उसके स्कूल की छात्राओं ने तो शैफाली का उसका इस तरह से हाथ पकड़े तो नही देख लिया ये सोचते ही उसके दिमाग में कौंधा कि वह उसका हाथ अभी भी पकड़े थी| वह उसकी ओर देखता है शैफाली एक हाथ से पेट पकड़े जोर से हँस रही थी| मोहित एकटक उसकी ओर देखता है, हँसते हँसते उसके गालों के डिम्पल और गहरे हो आए थे| वह अभी भी उसके हँसते चेहरे की ओर देख रहा था|
“बड़ा मज़ा आया – पता है वो तुम्हारी मैडम तुम्हे ढूंढती ही रह जाएगी|” अब धीरे से वह उसका हाथ छोड़कर अपना पेट दोनों हाथ से पकड़कर हँसती है, मोहित को भी जैसे अब बात समझ आती है जिससे उसका चेहरा भी हँसी के फुव्वारे से नहा उठता है|
“जब उसने बोला कि लास्ट प्रोग्राम में वह तुम्हेँ अपने साथ ले जाएगी तब तुम्हारा चेहरा देखने लायक था|” वह फिर हँस दी जिससे मोहित शरमा गया|
वह देखता रहा कि नशे में काबिज शैफाली और इस शैफाली में जमीं आसमान का अंतर था|
“अच्छा अब ये तो बताओ हम जाए कहाँ?”
“लो तुम लेकर आई हो अब तुम्हीं रास्ता भी बताओ|” जाने किस रौ में मोहित मुस्कराकर उससे कह उठा|
“ये मत भूलो मैंने तुमको बचाया है और मुझे तो जो रास्ता दिखा वहीँ से निकल आई – अब तुम बताओ हम पार्किंग तक कैसे जाएँगे?”
मोहित अपने चारोंओर देखता है वे मैदान के पीछे के हिस्से की तरफ थे अब वहाँ से निकलकर उन्हें कॉलेज के सामने की पार्किंग में खड़ी कार तक पहुँचना था|
“तो चलो |”
मोहित के पीछे पीछे अब वह हँसती हुई चलने लगती है|
मोहित उस मैदान की दीवार के पास खड़ा उस पार की पतली गली तक जाने के बारे में सोचता वही पड़ी कुछ टूटी फूटी कुर्सियों को किसी तरह से एक दूसरे के ऊपर रखकर खुद उसके ऊपर खड़ा होकर जब आश्वस्त हो जाता है तो इशारे से शैफाली को उसपर खड़ा होने को कहता है, शैफाली आश्चर्य से उसकी ओर देखती इससे पहले कि कुछ समझती मोहित झट से उसके ऊपर खड़ा होता उसका हाथ पकडे उसे अपनी ओर खीच लेता है जिससे अब दोनों उन चेअर के ऊपर थे| उनके एकसाथ खड़े होने के भार पड़ते मोहित तेजी से शैफाली का हाथ पकड़े दीवार की मुंडेर पर बैठता हुआ जल्दी से बाहर उतर जाता है| इस पल शैफाली संभलती हुई औचक उसकी ओर देखती है जो दीवार के पार उतरते पार्किंग की तरफ बढ़ गया था| शैफाली भी अब उसके पीछे पीछे चल देती है|
दोनों अब कार में बैठे थे, मोहित एक क्रोसिंग से गुज़रते हुए शैफाली की तरफ बिना देखे ही कहता है – “बस यहाँ से तुम्हारी बिल्डिंग पांच मिनट की दूरी पर है|”
शैफाली चौंककर उसकी तरफ देखती हुई कहती है – “इतनी जल्दी वापसी – मुझे लगा तुम्हारे शहर में इसके अलावा भी कुछ और है दिखाने के लिए|”
ये सुन मोहित एक दम से ब्रेक लगाकर कार खड़ी कर उसकी तरफ देखता है – “बिल्कुल है – ये शहर नही खजाना है पर मुझे लगा तुम्हेँ अब घर जाना होगा|”
“मैंने कब कहा|” कहती हुई वह अपने कंधे से टंगे पाउच की पॉकेट से सिगरेट निकाल कर उससे पूछने का इशारा करती है| मोहित आँखों से स्वीकृति दे देता है|
“अच्छा तो चलो |” फिर झट से कार स्टार्ट कर मोहित सड़क के दूसरी ओर मोड़ लेता है|
“यहाँ कोई हँज खास है क्या|” वह आराम से सीट से अपनी पीठ सटाती हुई पूछती है|
“हाँ हौज ख़ास है – वहां कई बार, रेस्टोरेंट्स वगैरह है – मैं वहाँ गया तो नही लेकिन आज मैं तुम्हेँ अपनी फेवरेट जगह ले चलता हूँ|”
रास्ते भर शैफाली रास्तों के बारे में पूछती रही और मोहित उसे उस जगह की जानकारी देता रहा फिर कुछ समय बाद दोनों किसी खाने के देशी ठेले के पास खड़े थे|
खाने का शौक़ीन मोहित शैफाली को जाने क्या सोच पानी के बताशे खिलाने ले आया| मोहित उसे दोने को ठीक से पकड़ना बता कर बताशे वाले को पानी के बारे के निर्देश देकर पहला बताशा उसके दोने में डलवाता है| शैफाली हतप्रभ सब देखती रही उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह उसे कैसे खाए? वह कभी उस बताशे की ओर देखती कभी मोहित की ओर और इसी क्रम में उसके दोने का बताशा पिघल जाता है| तब मोहित झट से अपने दोने का बताशा उसके मुँह में डाल देता है| शैफाली हँसती है और बताशे का पानी उसके होंठों के किनारों से हौले से निकल आता है, बताशे वाला ये देख मुस्कराते हुए अपनी छुपी नज़रों से उनको ताकता हुआ अगला बताशा उनकी तरफ बढ़ाता है| फिर उसके बाद शैफाली कितना पानी पी गई उसे अपनी सी सी करती जबान से पता भी नही चला|
अब दोनों किसी पार्क के सूने बैंच पर बैठे थे| सामने शाम का धुंधलका चारोंओर फैला था, निशा की आस में सूरज अपनी किरणें समेटता धीरे धीरे क्षितिज में गुम होता जा रहा था| मोहित पास की मालती की बेल पर बैठी चिड़ियाँ को देख रहा था, शैफाली उब कर फिर एक सिगरेट जला लेती है, इस आहट से मोहित का ध्यान फिर उसकी तरफ जाता है|
“लगता है तुम इसकी आदी हो चुकी हो|”
शैफाली मोहित की बात का जवाब सिर्फ एक अदनी मुस्कान से देकर एक गहता कश भीतर खीँचकर तेज़ी से बाहर की ओर छोडती है|
“तुम कभी अपनी इस जिंदगी से बाहर आने की नहीं सोचती!” मोहित अब पूरी तरह से उसकी तरफ मुड़ जाता है|
“क्यों..क्या बुराई है इस तरह बेफिक्री से जीने में….जब मुझे किसी से कोई शिकायत नही तो….|” वह जान कर अपनी बात अधूरी छोड़कर जलती सिगरेट का आखिरी गहरा कश खींचती है|
“बात तुम्हारी बेफिक्री जीने की नहीं बात तुम्हारे खुद को नुक्सान पहुँचाने की है – ये तुम्हारे लिए ठीक नही है|”
“तुम वो सामने देख रहे हो न डूबता हुआ सूरज|”
मोहित अब उसकी नज़रो से अपने सामने की ओर देखने लगता है|
“इसे पता है कि इसे इसी तरह डूब जाना है|” कह कर हौले से हँसी उड़ाने वाले अंदाज़ में हँसती हुई सिगरेट का जला टुकड़ा जमीन में फेंक सैंडिल से मसल देती है|
मोहित ख़ामोशी से उसकी ओर देख रहा था जहाँ सपाट चेहरे के भाव के पीछे असाब दर्द की सिलवटे सिमटती हुई उसे नज़र आई|
“तुमको पता है – मैंने अपनी पहली सिगरेट अपनी ग्यारह साल की उम्र में पी थी|” कहकर वह फिर एक सिगरेट सुलगाने लगती है इसपर मोहित झट से उसके हाथ से लाईटर छीन लेता है – “बस भी करो|”
“प्लीज् अब तुम मेरे ऊपर कोई हुक्म मत चलाने लगो|” वह हाथ बढ़ाकर मोहित के हाथ से लाईटर लगभग छीन लेती है पर सिगरेट नही जलाती|
“ये शामें मुझपर बहुत बोझिल गुज़रती है |” कहती हुई मोहित की तरफ देखती है जो अब सामने क्षितिज के पार देख रहा था|
“क्या तुम अब मुझे बार तक छोड़ दोगे…?”
“नही ..|”
मोहित का सपाट उत्तर सुन शैफाली हौले से हँस देती है – “पता था लेकिन फ्लैट तक तो छोड़ दोगे..!!”
शैफाली देखती है कि मोहित बात का जवाब देने के बजाय उठकर खड़ा हो जाता है और पार्क से निकास की ओर कदम बढ़ा देता है, शैफाली भी उसके पीछे पीछे चल देती है|
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