Kahanikacarvan

शैफालिका अनकहा सफ़र– 14

मोहित शैफाली को ठीक उसकी बिल्डिंग के नीचे उसी स्थान पर छोड़ देता है जहाँ से लिवा कर गया था| कार रोककर वह उसी की तरफ देख रहा था| शैफाली अपनी ओर से उतरकर हवा में हाथ लहराती कह रही थी – “बाय एंड थैंक्स फॉर टुडे |” कहती एक सामान्य मुस्कान के साथ अपना पाउच कंधे पर टांगे आगे बढ़ जाती है|

उस पल मोहित सपाट भाव से उसे जाता हुआ देखता हुआ मन ही मन खुद से तय कर उठा कि ये उसकी और मेरी आखिरी मुलाकात रहे, फिर कभी शैफाली से न मिलने के अपने निजी वादे के साथ वह कार वापसी की ओर मोड़ लेता है|

शैफाली की वापसी पर बहुत कुछ पूछना चाहती थी कि शायद यहाँ के लोगों और जगह के बारे में जो भी उसकी राय बनी हो लेकिन शैफाली उसके हर प्रश्न पर उतनी ही उदासीन बनी रही मानों उसने एक लम्हा काटा पर उसमें फर्क कुछ नही पड़ा| जैसे किसी मूवी के साथ वह कुछ पल जी ली और फिर स्वता अपनी दुनिया में वापस आ गई| भावना उसकी निर्लिप्तता देख दंग रह गई|

कुछ दिन यूँही ऐसे ही रेत से फिसलते गए तब एक दिन मिस्टर चैटर्जी ने भावना को शैफाली के जन्मदिन की सूचना दी| उनके लिए सूचना थी पर भावना असीम ख़ुशी से भर उठी कि लैपटॉप में व्यस्त पवन से तुरंत कह उठी –

“पता है कल शैफाली का बीसवां जन्मदिन है – सोचती हूँ दोस्तों को बुलाकर एक पार्टी की जाए !!” वह रूककर सहमति का इंतजार करने लगी और पवन अवाक् उसका चेहरा ताकता रह गया कि भावना वाकई अपने नाम सरीखी है कितनी जल्दी सब भूलकर भावनाओं के समंदर में गोता लगाने लगती है, इस वक़्त वह उसे कुछ समझाकर उसका दिल नहीं दुखाना चाहता था तो बस मुस्कराकर हांमी भर देता है|

भावना उसी जोश से शैफाली के पास चल देती है| शैफाली सोफे में अधलेटी आईपोड लगाए आंख बंद किए कुछ सुन रही थी, भावना उसके पास बैठती उसे स्पर्श करती कहती है –

“शैफाली कल तुम्हारा जन्मदिन है – सोचती हूँ अगर तुम हाँ कहो तो घर पर एक पार्टी रख लूँ !”

उसकी आवाज से तो नही पर उसके स्पर्श से शैफाली का ध्यान भावना की ओर जाता है और उतने ही बेख्याली से वह कंधे उचकाकर कहती है – “सो व्हाट !”

“अच्छा लगेगा – तुम सबसे मिलना – उस दिन तो…|” कहते कहते भावना रुक गई जैसे उसके सामने उस दिन की बेहोश शैफाली सामने आ गई हो |”

“आई डोंट केअर – एज यू विश यू कैन डू|”

शैफाली के ठन्डे जवाब से भावना का जोश एकदम से कपूर सा उड़ गया, वह थोड़ा चिन्तितं स्वर में पूछ उठी –

“उस दिन की तरह क्या शामिल नही होगी तो पार्टी किसके लिए होगी !!”

“तो मैंने कहा है पार्टी के लिए |” एकदम से आईपोड खुद से अलग करती वह भमक पड़ी – “वैसे भी मुझे इन जैसी बोरिंग पार्टी में कोई इंटरेस्ट नही – मन होगा तो आ जाउंगी और हाँ |” वह तीखेपन से कहती हुई खड़ी हो जाती है – “और ऐसा कुछ अपने दिमाग से निकाल लो कि तुम सबमे मैं शरीक हो जाउंगी – मैं किसी तरह से अपने छह महीने काटना चाहती हूँ ताकि फिर से अपनी दुनिया में वापस जा सकूँ |”

“अपनी दुनिया !!” भावना भी तैयोरियां चढ़ाए उसके सामने खड़ी होती हुई कहती है – “किस दुनिया की बात कर रही हो – जहाँ नशे में डूबी पड़ी रहती हो – जहाँ तुम्हे अपना भी ख्याल नही रहता – उस पिता का भी नही जिनके आखिरी वक़्त में उनसे मिलने भी नही गई और आज उन्ही की जायदाद पाने के लिए यहाँ आ गई तुम |” गुस्से में बहुत कुछ कह गई भावना जिसका कुछ अफ़सोस उसके चेहरे परउतर आया था|

“बिकॉज दिस इज माय राईट – |” एकदम से शैफाली का चेहरा अंगार हो उठा था|

“बस यही रिश्ते की परिभाषा है तुम्हारे लिए – हक़ बस और कुछ भी नहीं |”

“हाँ तुम मेरी जिंदगी की कीमत भी समझ सकती हो जो उनके नाम के साथ मुझे मिली |” दांत पिसती हुई शैफाली कह रही थी|

यही वक़्त था जब शोर सुन पवन कमरे से बाहर निकल आया और भावना को शैफाली से उलझते हुए देखा पर बीच में न पड़ना ही उसने ठीक समझा|

“उनकी याद नही आती – वे पिता थे तुम्हारे और अपने आखिरी वक़्त तक तुम्हारा इंतजार करते रहे –  इतनी निर्मम कैसे हो सकती हो तुम आखिर कुछ सोचकर ही उन्होंने तुमको मेरे सुपूर्त किया – उसका ही कुछ मान रखो – |” भावना की आवाज अब कुछ दर्दीली हो चुकी थी|

“ओह तो तुम किसकी बात कर रही हो – आई थिंक मिस्टर सेन की – जिन्होंने तुम्हारी माँ को छोड़ कर पलट कर नहीं देखा – एम् अ राईट !!” कोई ज़हर सा हलक से उतारती वह अपने कमरे की ओर बढ़ गई और भावना अवाक् खड़ी उसे जाता हुआ देखती रही|

शैफाली अपने कमरे में आती अपने निजी फ्रीजर को खोल बिअर से अपना सुखा गला तर करने लगती है| एक के बाद एक वह दो बिअर पीकर वह बेड के कोने में बैठी अपना चेहरा अपनी हथेली में छुपा लेती है| बड़ी मुश्किल से वह अपने मन के उफनते बवंडर को संभाल पा रही थी, उसे बहुत बुरा लग रहा था पर क्या !! ये वह तय नही कर पा रही थी, लेकिन कुछ ऐसा भाव था जिसे बड़े गहरे से वह अपने अंतरस दफन कर चुकी थी जिसे भावना ने जाने क्यों छेड़ दिया| तभी उसे भावना से चिढ सी होती जो हमेशा उसे बदलना चाहती उसे जबरन रिश्तों के बंधन में बांधने लगती, जहाँ बड़ी मुश्किल से वह बचती हुई निकल जाना चाहती अपनी इसी अँधेरी गुमनाम जिंदगी में जहाँ कोई सवाल जवाब की कोई गुंजाईश नही थी बस मौन अँधेरे थे जो खुद में ही गडमड होते रहते|

उसी पल मौसम ने करवट बदली और दिल्ली की उमस भरी धरा बेहद तलब से आकाश की ओर निहारने लगी| बहुत देर तक बादल घुमड़ घुमड़ कर आकाश में इधर उधर घूमकर शोर करते रहे| शैफाली का मन भी कुछ यूँही घुमड़ रहा था जहाँ ढेर बेचैनी सी समा गई थी| उसकी आँखों से नींद नदारत थी इसलिए कमरे में टहलते वह रेड वाईन पी रही थी| बहुर देर जब मन यूँही बेचैन बना रहा तो बालकनी में आकर बैठ गई| आधी रात हो चुकी थी और शायद सारी दुनिया सो चुकी थी इसलिए उस घर के आस पास बेहद नीरव सन्नाटा पसरा था| उस सन्नाटे को चीरता बार बार बादल का एक टुकड़ा शोर मचा जाता तब नज़र उठाकर शैफाली आसमान की ओर देख लेती जहाँ ढेर घने अँधेरे में बिजली की मौन चमक के सिवा कुछ नज़र नही आता| वह एक लम्बा घूंट भरती गर्दन पीछे कर आकाश की ओर देखती रही तभी टिप टिप की बारिश शुरू हो गई| जल्द ही हलकी बारिश घनी हो उठी और शैफाली इस बारिश में कतई भीगना नहीं चाहती थी फिर भी अपने मन की चुक चुकी शक्ति से वह अपनी जगह से इंच भर भी नही हिली|बारिश तेज हो उठी शैफाली बोतल के मुहाने में अंगूठा रखे बीच बीच में उसे पी लेती पर वहां से हटी नही| अचानक तेज होती बारिश धीमी हो गई, फिर आकाश में सिवाए बिजली की चमक के कोई घना बादल नज़र नही आया| बारिश बंद हो चुकी थी| शैफाली धीरे से उठकर अब कमरे की ओर बढ़ गई| कमरे में पहुंचकर आखिरी घूंट भरती हुई वह किसी तरह से खुद को संभालती हुई गीले कपड़ों से खुद को अलग कर एक नाईटी डाल बिस्तर पर लेट जाती है|

भावना को याद था कि आज शैफाली का जन्मदिन है इसलिए अंतरस कुछ आस सी बन गई थी उस लम्हे से लेकिन दोपहर तक भी जब शैफाली कमरे से बाहर नही निकली तो संकोच को परे रखती वह उसके कमरे तक जाती है|

शैफाली अभी तक सो रही थी, उस पल उसकी बेख्याली पर उसे बड़ी तेज गुस्सा आया, मन किया जोर से झंझोड़कर उठा दे कि उसके मन के लिए ही सही उठकर आ जाती तो क्या हो जाता| हर वक़्त अपनी मनमानी ही करती है| ऐसी भी क्या जिद्द कि न कुछ खाना न पीना बस पानी की तरह शराब हलक में उतार लेती है और सारी दुनिया से बेखबर हो जाती है| मन को सख्त करती वह उसे जगाने आगे बढती उसकी बांह को हौले से हिलाती है कि घबराकर हाथ हटा बैठी, फिर उसकी बांह को छूती हुई उसका माथा छूती है जो किसी अंगारे की भांति जल रहा था| शैफाली उसी बुखार की अचेतन स्थिति में  थी|

पवन दोपहर ढलते अपने व्यस्त काम के बीच में से समय निकालते भावना को कॉल करता है|

काफी देर की कॉल के बाद वह फोन उठाती है तो उसकी ठंडी आवाज सुन पवन उसकी ओर से चिंतालू हो उठता है|

“क्या हुआ भावना आर यू ऑल राईट – मैंने तो इसलिए फोन मिलाया कि आज कुछ सेलिब्रेशन जैसा कुछ चाहती हो तो मैं सबको फोन से ही इनवाईट कर देता हूँ ?”

“शैफाली को हाई फीवर है – हाँ मैंने डॉक्टर को बुला लिया था – बेहोश सी है इसलिए डॉक्टर ने इंजेक्शन दिया है – मैं पट्टी कर रही थी इसलिए शायद फोन नही सुन पाई – |” वह पवन के टुकड़ा टुकड़ा सवाल का लगातार एक साँस में जवाब दे गई|

“देखो तुम बिलकुल परेशान मत हो – बोलो तो अभी आ जाऊ ?”

“नही – अभी मैं संभाल ले रही हूँ – बस उसे होश आ जाए |”

“डोन्ट वरी डिअर – कल रात की बारिश से मौसम बदलने से आ गया होगा फीवर – वैसे भी यहाँ के मौसम में सेट होने पर समय तो लगेगा – तुम बस परेशान मत होना – आज थोड़ा जरुरी काम है – थोड़ी देर हो जाएगी पर कभी भी तुम्हें मेरी जरुरत हो कॉल कर देना – सब छोड़छाड़ कर आ जाऊंगा तुम्हारे पास |” अपना आखिरी शब्द पवन कुछ इस तरह से प्रेम में डूबकर कहता है कि भावना के होंठों के किनारे उस पल न चाहते हुए भी मुस्करा उठते है|

ओके कहती वह फोन रखकर फिर शैफाली के पास चली जाती है|

क्रमशः………………..

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