Kahanikacarvan

शैफालिका अनकहा सफ़र – 15

काम की वजह से पवन को देर हो जाती है, उसका आना भावना का दरवाजा खोलकर उसे यंत्रवत खाना दे कर शैफाली के पास चल देना| पवन भी उसे नहीं रोकता| भावना पूरी रात शैफाली के सिरहाने बैठी उसका तापमान चेक करती रही| ठंडी पट्टी करने से उसका तापमान धीरे धीरे सामान्य हो रहा था| गहरी रात होते होते जब उसका तापमान कुछ सामान्य लगा तब जाकर कही भावना को चैन मिला तब भी उसे अकेला न छोड़ने से वह वही दीवाल से लगी सेटी पर अपने शरीर को थोडा लुढ़काकर लेट जाती है|

थके शरीर से भावना लेटी पर जल्दी ही उसकी नींद खुल गई और फिर से वह शैफाली का माथा छूकर देखने लगी तभी शैफाली जो शायद जाग गई थी आंख खोलकर उसे देखती है| ये देख भावना मुस्कराकर उसकी ओर देखती हुई कहती है –

“अब फीवर बिलकुल नही है – उठ जाओ – कल से कुछ नही खाया तुमने मैं चाय और बिस्किट लाती हूँ – खा लो क्योंकि अभी दवा लेनी है तुम्हें |” भावना उसके चेहरे पर फ़ैल आई जुल्फों को उसके कानों के पीछे धकेलती उठ जाती है और शैफाली अवाक् उसे जाता हुआ देखती रही|

अभी रात का अंतिम पहर था सुबह होने को थी| भावना बड़ी तेजी से चाय चढ़ाकर मुंह धोकर खुद को चेतन में लाती उसके लिए उसकी पसंद वाला बिस्किट निकालने लगती है| ये बात अलग थी कि चाय कॉफ़ी दोनों ही शैफाली को कम लेते देखा था पर उसे अपने धुरवीय ज्ञान से इतना पता था कि इंग्लैड वालों को कॉफ़ी के मुकाबले चाय ज्यादा पसंद थी|

कप में चाय बिस्किट लिए वह कमरे में ज्योही प्रवेश करती है उसकी ऑंखें हैरान रह जाती है| शैफाली अधलेटी सिगरेट जला रही थी|

गुस्सा तो बहुत आया पर किसी तरह जब्त करती वह कप रखती उसके आगे हाथ जोड़ बैठी|

“प्लीज़ अभी के लिए मेरी विनती है ये मत पीओ – |” कहती हुई उसके हाथ से सिगरेट लेकर साथ लाई ट्रे में दबाकर बुझा देती है| शैफाली को ये सब नागवारा गुजरा पर जाने क्यों कुछ कह न सकी और भावना की बात मानती चाय भी पी और आधा बिस्किट भी लिया ताकि दवा देकर वह जल्दी से लेटकर भावना की ओर से आंखें मूंद ले वह|

सुबह जब शैफाली की आंख खुली तो कमरे में भरपूर रौशनी थी| वह नजर घुमाकर देखती है भावना नही थी तो उचककर बैठती वह खुद को काफी बेहतर महसूस कर रही थी पर बुखार के बाद से उसका बदन काफी थका थका सा लग रहा था| तभी वह एक आहट पर अचानक दरवाजे की ओर देखती है जहाँ से भावना आ रही थी, उसके  हाथ में पूजा की थाली थी| शैफाली औचक देखती रही, भावना शायद अभी अभी नहाकर आई थी जिससे उसके भीगे बाल अभी कंधे के बगल में एक पतले तौलिया में आधे बंधे हुए थे| वह पूजा की थाली लिए थी जिसमे एक दीया तेजी से जल रहा था| वह मुस्कराकर उसके पास आती थाली से टीका निकालकर उसके माथे के बीच में लगाती कह रही थी – “खूब भालो – खुश रहो सदा स्वस्थ रहो – अब तो बिलकुल ठीक लग रही हो – चलो बताओ क्या खाओगी – आज मैं तुम्हारे पसंद वाला सैंडविच बनाउंगी |”

भावना बेतहाशा मुस्करा रही थी शैफाली उतने ही हैरानगी से उसे देखती मन ही मन सोच रही थी – “क्या है ये – इसे बुरा नही लगता कि इसे और इसकी माँ को मिस्टर सेन ने अकेला छोड़ दिया !!”

अब शैफाली काफी बेहतर महसूस कर रही थी| पर भावना की अत्यधिक फ़िक्र उसमें झुंझलाहट भर देती वह उसे जितना झिड़कती वह उतना उसके करीब आती| जैसे दोनों ने अपना अपना स्थान तय कर लिया था और उससे लेशमात्र भी डिगना नहीं चाहती थी|

सुबह की चाय की प्याली लिए भावना और पवन अपने घर की बालकनी में बैठे वृक्षों की ऊँचाई पर अपनी नज़र टिकाए जैसे कोई बात पर मंथन कर रहे थे|

“आपको क्या लगता है हमे शैफाली से इस बारे में बात करनी चाहिए..?” भावना ने आखिर देर की ख़ामोशी तोड़ी – “आखिर कोई रास्ता तो निकालना पड़ेगा – अब उसे यहाँ रहते एक महीना होने जा रहा है वह अभी भी अपनी मनमर्जी करती जा रही है – पूरा दिन सिगरेट से शराब के बीच झूलती रहती है|”

पवन अब अपना कप बालकनी की मुंडेर पर रखते हुए अपनी कुर्सी भावना की ओर खीचते हुए बोले –

“क्या अभी तक टोकने का उसपर कोई भी फर्क पड़ा बल्कि उलटे वो तुमसे कुछ ज्यादा ही चिढ़ी रहती है|”

भावना के पास जैसे कुछ भी कहने को नहीं था वह फिर खामोशी से उन वृक्षों पर अपनी घूमती नज़र टिका देती है|

“भावना..|”

अचानक पवन के स्पर्श से उसका ध्यान अब अपने सामने बैठे पवन की ओर जाता है|

“मैं कई दिन से देख रहा हूँ कि तुम बहुत परेशान परेशान सी रह रही हो – तुम्हें इतना उदास मैंने पहले कभी नही देखा – तुम सच को स्वीकार भी तो करो – उसकी परवरिश एक दम से तो नही बदल जाएगी – मैं देखता हूँ कि रोज़ ही तुम उससे उलझ जाती हो – नही होता तो छोड़ दो उसे |” वह कहता कहता उसका हाथ अपनी हथेलियों के बीच दबाता हुआ कहता रहा – “बल्कि मैं तो कहता हूँ कुछ दिन के लिए हम बाहर चलते है – मुझे अभी ऑफिस के काम से गोवा जाना है तुम भी साथ चलो – फिर लौट कर कुछ सोचते है शैफाली के बारे में – तुम घर बैठे बैठे और उदास होती जा रही हो – मुझे बड़ी ग्लानि होती है जब तुम्हें ऐसे देखता हूँ – रोज ऑफिस से देर से आने के कारण मैं बिल्कुल तुम्हे समय नहीं दे पाता|”

अति संवेदना से भावना का मन भर आया, वह सर झुकाए अपनी भीगी पलकें पवन से छुपा ले जाती है|

शैफाली ने जैसे सुना कि वे दोनों बाहर जाने का प्रोग्राम बना रहे है ये सुनकर उसे बहुत सुकून लगा कि अब कम से कम अपनी तरह से वह रह पाएगी| पर ये बात भावना को परेशान कर गई|

शैफाली के पास पूरा दिन कोई काम नही था, पूरे दिन में वह या तो वाईन पीती पीती लीड कान में लगाए कुछ सुन रही होती या टैब में बाबरा का शो देख रही होती और बाकि का वक़्त यूँही सो कर उसका गुजर जाता| भावना कई बार कोशिश करती कि शैफाली उससे बात करे पर ऐसा मौका ही नही हाथ लगता| हाँ उसके जन्मदिन के बाद से वह भावना के मना करने पर बार नही गई पर इस बात की नाराजगी दिखाती ही शायद वह अपना लगभग समय कमरे के अन्दर बिता देती|

अभी भी वह जबरन उसके पास बैठी उसे अपना जाना बताती हुई कुछ हिदायत दे रही थी| बहुत देर से सुनती हिदायतों से शैफाली थोड़ा चिढ़कर बोल उठी –

“लिसेन – आई एम् नॉट अ स्माल गर्ल जो तुम बार बार मुझे गाइड करती हो |” वह लगभग दांत पीसती हुई बोली और काफी देर तक अपना चेहरा ऐसा बनाए रही जैसे बहुत कुछ उसने हलक तक रोक लिया|

भावना आगे कुछ नहीं कह पाई क्योंकि उसके हाथ में पकड़ा मोबाईल बज उठा| उसके स्क्रीन में पवन का नंबर देख वह फोन उठाने से पहले अपना आखिरी वक़्त बोलती वहां से उठ जाती है|

“कम से कम मोबाईल अपने पास रखना – मुझे तुम्हारी चिंता रहेगी|”

भावना कहकर बाहर निकल गई और शैफाली अपनी स्थिति में जड़ बनी देखती रह गई| उसकी कल्पना में भी ऐसा कोई चेहरा नही आया जो उसकी इतनी फ़िक्र करता रहा हो और क्यों !! वह खुद को संभाल सकती है, उसे क्या लगता है ये सिटी उसके लिए अनजान है तो अकेले निकलकर वह ये साबित भी कर देगी कि वह किसी भी हाल में अकेले रह सकती है हमेशा अपनी शर्तों पर|

भावना अब पवन के फोन पर मानसी से बात कर रही थी और उसे अपनी परेशानी बता रही थी –

“मानसी मैं शैफाली को अकेला बिलकुल नही छोड़ना चाहती पर पवन मान ही नहीं रहे – तुम समझ नही रही – आखिर कैसे वह खुद को यहाँ संभालेगी |”

“ओह्हो गोवा…जा न और यहाँ की ज्यादा फ़िक्र मत कर – तुमसे पहले वो लन्दन में जब अकेली रहती थी तो यहाँ की क्या फ़िक्र करना – यहाँ मैं हूँ न – रोज की उसकी खबर लेकर तुम तक पहुँचाती रहूंगी –  ओके|” मानसी उसे भरसक मनाती हुई कहती है|

आखिर मानसी की बात के आगे उसे मानना ही पड़ा और फोन रखकर जाने की तैयारी करने अपने कमरे की ओर बढ़ गई|

पवन और भावना के जाते शैफाली ने सच में एक ठंडी आह छोड़ी आखिर आज तक उसपर किसी ने ऐसा पहरा क्या हुक्म तक नहीं चलाया इसलिए कभी कभी उसे कुछ ज्यादा ही भावना के रवैया से विरक्ति हो जाती|

उसके जाते सबसे पहले वह बाहर निकली और बार जाने की इच्छा से कैब को बुलाया| वह कैब के इंतजार में बिल्डिंग के नीचे खड़ी पार्किंग एरिया की दीवार से टिकी सिगरेट फूंक रही थी| तभी हॉर्न की आवाज से वह थोड़ा और दीवार से सट जाती है| एक कार उसके पास से निकल जाती है| वह उस ओर नही देखती पर उसमें बैठे कुछ लड़के अपनी फेकी हुई नज़रों से उसे ताकते हुए निकल जाते है|

कैब के आते हौज ख़ास के लिए वह निकल जाती है| बार में पहुंचते अपना कोकटेल ड्रिंक ऑर्डर करती वह उड़ती हुई नज़र घुमाकर चारोंओर देखती है पर किसी के भी चेहरे की ओर नहीं देखती पर कोई नज़र शायद उसके यहाँ आने के समय से ही उसपर नज़र रखे थी|

शैफाली अकेली अपने में मस्त अपने ड्रिंक का मज़ा ले रही थी कि कोई उसके बहुत पास आता शैफाली का ध्यान अपनी ओर दिलाता है|

शैफाली अजीब नज़र से उसके चेहरे को घूरती है तक वह उसे बताता है कि वह अपने दोस्त के साथ जिस बिल्डिंग से निकल रहा था वह वही गैराज स्पेस में खड़ी थी|

तब जबरन एक फीकी हाँ के साथ वह दूसरी ओर मुंह घुमा लेती है|

“में आई ज्वाइन यू !” वह शैफाली की अगली प्रतिक्रिया का इंतजार किए बिना स्पेशल कोकटेल अपने और शैफाली के लिए ऑर्डर करता है|

नशे में सब दोस्त ही होते है, अगले कुछ पल में कम्पनी की चाह में वह उसका कोकटेल ड्रिंक ले लेती है| वह इससे खुश होता उसे अपने और दोस्तों से मिलवाता है| अब कई लड़के उसके आस पास खड़े उसे अपनी फनी बातों से उसका मनोरंजन कर रहे थे| शैफाली को भी सब अच्छा लग रहा था| फिर बात बात में टाकिया शॉट्स मारने की होड़ लगाते वे एक साथ हलक में उतारते कसकर हँस पड़ते है|

धीरे धीरे नशा जब चढ़ने लगा तो शैफाली जाने को उठी तो वे उसे अगले दिन की अपनी किसी पार्टी के लिए उसे इनवाईट करते है| शैफाली हाथ हिलाकर हामी भरती कल मिलने को कहती है|

कैब से फ्लैट में आकर शैफाली पूरा दिन सोती रही फिर शाम को शावर लेकर कुछ सैंडविच बनाकर लीड कान में लगाए बालकनी में बैठी रही| पूरा दिन निकलते नौ बजते वह उन अजनबी दोस्तों के साथ जाने के लिए अब बिल्डिंग के नीचे खड़ी थी|

वे शायद उसी का इंतजार कर रहे थे, कार ठीक उसके बगल में खड़ी हुई तो ड्राइविंग सीट के बगल में उसे जगह देता वह युवक कार आगे बढ़ा देता है| शैफाली के लिए अजनबियों संग पार्टी करना कुछ नया नही था हालाँकि इस देश में उसका ये पहला अनुभव था| शैफाली आराम से सीट से पीठ टिकाए बेरोक सिगरेट पी रही थी और उसे घूरते युवक की आँखों में कुछ बदल रहा था जिसे नाईट विजन चश्मे के पीछे वह आसानी से छुपा ले गया|

———————————क्रमशः

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