
शैफालिका अनकहा सफ़र – 17
अपनी अर्धचेतना में वह जिस छुअन को महसूस कर रही थी उससे उसके मानसिक तंतुओं में सहसा एक हलचल सी मचा दी| वह शैफाली के जबड़े को कसकर पकडे उसकी ओर झुक ही रहा था कि भरसक अपनी समस्त चेतना को इक्कठा करती वह उसके नीचे दबे अपने घुटने से उसके पेट के नीचे कसकर मारती है जिसके अगले ही पल वह बुरी तरह तिलमिला जाता है जिसके बदले में वह त्वरित प्रतिक्रिया स्वरुप उससे छूटे अपने हाथ से खींचकर उसके गाल पर तमाचा मार बैठता है जिसकी तीव्रता से वह झटके से कोच के नीचे गिर पड़ती है| थप्पड़ की तीव्रता से उस पल उसके नाजुक कपोल खून से झलझलाते गहरे सुर्ख हो उठते है| इस एक पल उसका नशा ग्रसित मष्तिष्क थोड़ा और चेतन में आता है और वह उल्टा खुद को घसीटती हुई उस कोच से दूर होने लगती है| शैफाली अपनी मूंदती आँखों को जबरन खोले तीक्ष्ण नज़रों से उस युवक की अगली हरकत पर नज़र भी रखे थी, लगातार टिकी उसकी नीली आँखों में समन्दर उमड़ आया जिसकी खारी बूंदे उसके गुलाबी कपोल पर गिर पड़ी जिसके नमकीन पानी से उसके घायल गालों में तेज सिरहन सी मच उठती है| पर हर दर्द को समेटे वह बस खुद को वहां से दूर करना चाह रही थी| वह युवक अभी भी अपना पेडू पकडे दर्द से कराह रहा था| उस वक़्त वहां इतना शोर था और सब अपने अपने में इतना मग्न थे कि किसी का उनपर कोई ख़ास ध्यान नही गया| शैफाली अभी भी खुद को घसीटती हुई पीछे बढ़ रही थी| उस एक पल के इस अपमानित व्यवहार से वह युवक इतना तिलमिला गया कि एक हाथ से खुद का पेडू पकडे पकडे ही वह भी नीचे की ओर चलता शैफाली का पैर पकड़ लेता है| नशा अभी भी उसके मष्तिष्क को बार बार अचेतन की ओर ले जा रहा था पर किसी तरह से खुद को झंझोड़कर वह अवचेतन की स्थिति में वह उससे दूर होती जा रही थी कि अचानक उसके पीछे आते युवक के चेहरे के भाव बदल गए और तेजी से वह खुद को खड़ा करता हडबडाता हुआ पीछे की ओर भागता हुआ हकलाते हुए चिल्लाता है – “प – पु लिस |”
ये शब्द अपने आप में इतना मुकम्मल था कि सबका नशा तेजी से काफुर होते सब इधर उधर भागने लगते है, एकदम से वहां अफरा तफरी सी मच जाती है| इस हलचल का फायदा उठाती शैफाली पास के दूसरे कोच पर टिकती अपनी देह छोड़ देती है|
“ए चलो चलो – पकड़ो सालो रईसजादों को |”
शैफाली अपनी गुम होती चेतना में बस कुछ शब्द और लोगों के भागने का शोर सुनती रही पर चाहकर भी अपना शरीर जरा सा भी वहां से न हिला पाई|
“पानी मारो – होश में लाओ – ले जाओ |” उस रेड की अगुवानी करना पुलिसवाला अब शैफाली के पीछे खड़ा महिला कॉन्स्टेबल को बुलाता हाथ में पकडे डंडे से उसकी देह के पास के कोच के हिस्से पर मारता हुआ उसे उठने को कहता है|
अब महिला कांस्टेबल शैफाली को झंझोड़ती उसे उठाने का प्रयास करती है तो शैफाली उसका हाथ झटक देती है, ऐसा करते वह अपनी गर्दन थोड़ा तिरछा करती है जिससे उसका चेहरा कुछ स्पष्ट होते वह पुलिसवाला चौंक जाता है और शैफाली के सामने आता गौर से उसके चेहरे की ओर देखता उसे पुकारता आवाज लगाता है लेकिन प्रतिक्रिया शून्य ही रहती है अबकी उसके कंधे को हौले से छूता उसे बुलाता है तो उस पल के स्पर्श से शैफाली बिफरती उसका हाथ तेजी से झटकती उसपर चिल्ला पड़ती है|
वह जय था और समझ चुका था कि शैफाली अपने होश में नहीं है इसलिए उस महिला कांस्टेबल से शैफाली को अलग रखने को कहकर बाकि की धरपकड़ करता हुआ उस बंगले से बाहर आता है|
वहां पर पुलिस की अच्छी खासी तादात मौजूद थी जो सभी को गिरफ्तार करती पुलिस वैन में ठूंस रही थी| सबके जाते जय उस महिला कांस्टेबल और शैफाली को अपनी जीप में लिए वहां से निकल रहा था| साथ ही साथ दूसरे हाथ से कॉल भी लगाता जा रहा था|
मोहित बहुत ही गहरी नींद में था| बेड की साइड टेबल पर रखा मोबाईल बार बार बज रहा था, आखिर अपनी उनींदी हालत में भी उसे मोबाइल उठाना पड़ा| नींद इस कदर हावी थी कि मोबाइल उठाकर वह बस उसे अपने कानों से सटा लेता है पर उस पार से क्या कहा जा रहा है उसे कुछ समझ नहीं आता|
फोन के उस पार जय था और घबराहट में जल्दी आने को कह रहा था, वह खुद को जबरन उठाता हुआ बस यही पूछ पाता है कि उसे करना क्या है, जय उसे अभी इसी वक़्त अपने थाने की ओर बुला रहा था, ये कहते फोन कट जाता है|
मोहित पर नींद अभी भी हावी थी फिर भी वह किसी तरह से टटोलता हुआ वाशबेसिन में जाकर अपनी अंजुली में पानी भरकर चेहरे पर मारता है फिर बेसिन के ऊपर लगे शीशे में अपना चेहरा देखता है, ऑंखें जैसे सूजी हुई बाहर को निकल आई हो ऐसी लग रही थी| फिर भी वह जितना जल्दी कर सकता था उतनी जल्दी बस टी शर्ट चेंज कर कमरे से निकलते हुए इरशाद के अधखुले कमरे की ओर झांकता है, जहाँ वह सबसे बेखबर घोड़े बेच कर सो रहा था|
कुछ ही पल में मोहित थाने के नजदीक कार रोककर जय को फोन लगाता है|
“अच्छा पहुँच गया – बस वहीँ रुक मैं आता हूँ|”
मोहित अभी भी नहीं समझ पाया था कि आखिर जय ने इतनी रात उसे अचानक से क्यों यहाँ बुलाया फिर भी वह इंतजार करने लगता है|
अगले ही पल उसकी निगाहें जो देखती है उससे उसकी ऑंखें फ़ैल का दोहरी हो जाती है| जय के पीछे पीछे चलती हुई एक महिला कांस्टेबल अपना सहारा देती हुई किसी को उसकी तरफ ला रही थी| मोहित जल्दी से कार से उतर कर उस ओर अपनी आंख गड़ा देता है|
जय उसके पास आता हुआ कह रहा था – “एक लेट नाईट पार्टी में छापा मारने गया था वहीँ बुरी तरह से बेसुध शैफाली उसे मिली – अगर नही पहुँचता तो पता नही क्या होता उस पल – पता नही किस टाइप की है ये लड़की – उल्टा मुझी से उलझ गई – बहुत ज्यादा ड्रिंक किया है – इसे यार तू घर पहुंचा दे क्योंकि इतनी रात मैं मानसी को तो बुला नही सकता – समझ रहा है न|” मोहित के चेहरे के सपाट भाव देख जय को लगा उसकी विस्तार पूर्ण बात मोहित सुन भी रहा है या नहीं|
“हाँ हाँ|” मोहित इतना भर ही कह पाया|
महिला कांस्टेबल मोहित की कार की पिछली सीट पर उसे लिटा कर वापस चली जाती है|
जय मोहित के पास आकर कहता है – “एक तो भावना बाहर है ऐसे में अगर इसका नामजद हो जाता तो इसे भी नही पता कि कितना पचड़ा फ़ैल जाता इसीलिए मैंने तुझे फोन किया अब यार आगे तू संभाल ले और जरुरत पड़े तो समर को फोन करके बुला लेना उसकी नाईट ड्यूटी है आज|”
जय जाते जाते कहता रहा और मोहित संशय में पड़ा उस पल कभी शैफाली की ओर देखता कभी जाते हुए जय की ओर|
मोहित को कुछ समझ नहीं आ रहा था वह बस यंत्रवत कार ड्राइव करता हुआ भावना के फ्लैट तक आता है| वह जल्दी से उतरकर शैफाली की तरफ झुककर उसे आवाज़ लगाता है पर बार बार आवाज़ देने पर भी उसमें कोई हलचल न होने पर वह घबरा कर उसे हिलाता है तो आधी तन्द्रा में वह उसका हाथ थामे शायद तकिया समझ करवट बदल लेती है|
मोहित धीरे से अपना हाथ छुड़ाता हुआ अगले ही पल शैफाली को किसी तरह से अपना सहारा देता हुआ कार से बाहर निकालता है|
एक बार शैफाली अपनी आंख खोलती देखती उसका हाथ झटकती फिर बेहोश हो जाती है आखिर मोहित उसे अपनी पुष्ट बाँहों का सहारा दिए हुए लिफ्ट तक आता है| वह समझ रहा था कि इस समय शैफाली अपने आपे में नहीं है उसकी हालात काफी बुरी है इसलिए किसी तरफ से उसे वह फ्लैट तक लाता है फिर फ्लैट की चाभी का ख्याल कर वह शैफाली के कंधे से झूलते एक पाउच को खंगालता है और कोई चाभी उसके हाथ लग जाती है|
लॉक खोलते एक आवाज़ पर उसका ध्यान दीवार से टिकी शैफाली की ओर जाता है| उसका शरीर कुछ तिरछा होने पर उसके मुंह से पानी जैसा कुछ पलट गया था जिससे उसका आधा शरीर बुरी तरह से तीक्ष्ण गंध से महक उठा| तब भी मोहित किसी तरह से उसे अपनी गोद में उठाकर अन्दर की ओर लाता है|
सबसे पहले वह समर को फोन कर जल्दी से आने को कहकर अब शैफाली को देखता है, उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या करे? वह बार बार शैफाली को हिला कर उसे होश में लाने की कोशिश कर रहा था पर अब वह पूरी तरह से बेहोश थी, फिर किसी तरह से न चाहते हुए भी उसे शैफाली के कपड़े खुद बदलने पड़ते है|
फिर उसे आराम से बिस्तर पर लेटा कर अगले कमरे में अधलेटा वह समर का इंतजार करने लगता है|
काफी देर बाद समर आता है| उसका चेकअप करने के बाद एक गहरा उच्छ्वास छोड़ता हुआ वह मोहित की ओर देखता हुआ कहता है – “बहुत ज्यादा ही ड्रिंक कर रखी है और मुझे तो लगता है जैसे शराब के साथ कोई ड्रग भी लिया है –|”
दोनों औचक एक दूसरे की ओर देखते है|
“खैर मैंने इंजेक्शन दिया है जल्दी ही उसे होश आ जाना चाहिए |”
मोहित निशब्द सा उसकी ओर देखता रहा|
“मैं चलता हूँ – तुम्हारा फोन आया तो किसी तरह से ड्यूटी के बीच में से आ गया – मेरे ख्याल से तुम यही रुको अब तो सुबह भी होने वाली है और सुबह तक मानसी आ ही जाएगी|”
समर मोहित की आँखों से उसका मन पढ़ता हुआ अपनी बात कहता हुआ झट से वहां से चला जाता है, अब मोहित शैफाली को एक नज़र देख तसल्ली करता है कि बिस्तर पर अब वह आराम से लेती है तब उसी कमरे में कुर्सी पर अधझुका बैठा अपनी पलके बंद कर लेता है|
रात बीतते आकाश में जब कुछ लालिमा उभरी तब शैफाली को होश आता है, होश में आते अपनी चेतन स्थिति से वह अपनी अवस्था को चेक करती है कि वह इस समय अपने कमरे में है और उसके बेड के सामने की कुर्सी पर कोई अधझुका बैठा है, अगले ही पल पिछली रात की सारी घटना उसके मष्तिष्क में रेल सी चल पड़ती है, उसकी नज़रो को वो चेहरा याद आता है जिसने उसे थप्पड़ मारा ये याद करते उसके तन में एक झुरझुरी सी मचल उठती है| वह हाथ से छूकर अपनी देह को टटोलती है| धीरे धीरे पिछली रात का सारा घटनाक्रम उसकी आँखों के सामने से गुजर जाता है उसे उस युवक के थप्पड़ के बाद एक झलक में मोहित का चेहरा ही स्मरण आता है तो गौर से अब सामने की ओर देखती अपनी आँखों से उसका वहां होना आश्वस्त करती है|
क्रमशः…….