Kahanikacarvan

शैफालिका अनकहा सफ़र – 2

वे अन्दर जाने के बजाये बाहर खड़े उस दरवाजे को घूर रहे थे जैसे खुद को किसी गैस चैंबर में प्रवेश करने से पूर्व तैयार कर रहे हो, वे एकटक उस दरवाजे को तकते अतीत की गलियारे में दौड़ लगा देते है जब अपनी परेशान हालत में वे भारत से लन्दन अपनी वकालत का सपना लेकर आए थे उस दौरान सिर्फ श्रीधर सेन ही था जिसने एक इंडियन की तरह या बंगाली आपना मानुष जान उसकी मदद की, उस एक मदद ने लन्दन में उसका धरातल तैयार करने में जो सहायता हुई वो आज तक एक मजबूत बुनियाद की तरह खड़ा है, शायद यही अहसान उतारने के प्रयास में वे कई बार श्रीधर की गैर पसंद बातों को भी अपने गले के नीचे उतार लेते| यही कारण था कि एक अपराध बोध उनका हरदम पीछा करता रहता जिससे बचने कई बार वे श्रीधर से कुछ समय की दूरी बना कर उसकी दुनिया से खुद को विरक्त कर अपने अवचेतन मन को संतुष्ट कर लेते पर फिर उन्हें श्रीधर की जिंदगी में आना पड़ता और उसका सारा किया कराया अपने गले उतारना भी पड़ता|

जब श्रीधर ने अपनी भारतीय पत्नी सुमित्रा को बिना तलाक दिए ब्रिटीश मूल की एंजिला से शादी कर ली तब भी वे खामोश रहे….जब एंजिला बीमार रहने लगी तो शैफाली को सँभालने के बजाये उस सात साल की बच्ची को हॉस्टल के हवाले कर अपनी जिम्मेदारी से हाथ झाड़ लिया तब भी उनकी जुबान तालू से चिपकी रह गई…अपने बिजनेस को आसमानों की उंचाई तक पहुँचाने में एंजिला के आखिरी वक़्त में वह पेरिस से अपनी बिजनेस मीटिंग खत्म किए बिना नहीं आए….तब भी उनकी ऑंखें श्रीधर पर कभी सवालियां नहीं हुई….फिर कैसे वे एंजिला और श्रीधर की बेटी शैफाली को सवालों के कटघरे में खड़ा कर सकते है….वो भी तो अपने पिता की तरह अपनी जिंदगी अपनी शर्तो पर जी रही है पूरी तरह से स्वार्थी हो कर…फिर से ये सोचते उनके माथे की नसे तन गई और वे निढाल होते बैंच पर गिर से पड़े| वहां मौजूद लोगों ने एक बारगी उनकी तरफ नज़र डाली फिर अगले ही पल अपने अपने रास्ते चल दिए| वैसे भी इस व्यस्त शहर को कहाँ किसी के दर्द पर हाथ धरने की फुर्सत है !!!

***

“मिस्टर चैट्जी प्लीज़ कम इन साइड |” वे डॉक्टर की पुकार पर उनकी तरफ देखते है तो बाकी की स्थिति उनकी झुकी हुई ऑंखें बता देती है कि उनके मरीज के पास लगातार वक़्त कम होता जा रहा है|

वे जल्दी ही खुद को संयत करते अपने सधे क़दमों से उस वार्ड के अन्दर समाते फिर से अपने मित्र के सामने किसी अपराधी की तरह हाथ बांधें खड़े उसे देखते है श्रीधर की बुझी हुई आँखों में अब कोई इंतजार नही था, वे एकटक उसे देखते इशारा करते अपने पास बुला रहे थे|

वे उसके नजदीक आते उसका कांपता हाथ थामते हुए अब उसकी आँखों के समन्दर में मानों डुबकी लगा देते है|

“तुम किस लिए ग्लानि में डूबते हो – ये तो मेरा कर्म है और हर आदमी को अपना कर्म तो खुद ही भुगतना रहता है|”

“बस बस श्रीधर – तुम आराम करो – कुछ मत बोलो |” वे हाथों के दवाब से उसे रोकते है|

“नहीं चैटर्जी – आज मुझे मन का गुबार निकाल लेने दो – बिन कहे तो कम से कम ये दुनिया नही छोड़ना चाहता मैं |”

ये सुन उनकी ऑंखें भी नमकीन पानी से भर उठती है|

“मुझे ही झूठी उम्मीद थी कि शैफाली मुझसे मिलने आ जाएगी – इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं – बस दिल कर गया था कि जिस बेटी को अपने सामने दो साल से नही देखा तो आज अंतिम समय उससे मिल तो लूँ |” कहते कहते उनके आखिरी शब्द होठों पर आते थरथरा उठे|

“श्रीधर वो आ जाएगी अब लन्दन से बर्घिम आने में… !!’ वे अभी भी हौसले से उनका हाथ थामे थे|

“तुम वकील साला सारी दुनिया के सामने झूठ बोल लेता है अपने दोस्त से भी |” वे धीरे से दर्द भरी मुस्कान से मुस्कराए तो चैटर्जी अपनी नज़रे नीची कर लेते है|

“देखो मेरे पास वक़्त कम है तो मैं जो कह रहा हूँ उसे ध्यान से सुनो – मेरे बाद मुझे पता है शैफाली की जिंदगी और तबाह हो जाएगी आखिर मैं खुद जीते जी भी तो उसे संभाल नही पाया – चैटर्जी… |” वे अपनी गर्दन मोड़कर अब उसकी आँखों की सीध में देखते हुए कहने लगते है – “अब जो मैं नही कर पाया वो कागज करेंगे इसीलिए तुम मेरी वसीयत में ये टर्म और कंडिशन करा दो कि जब तक शैफाली उस कंडिशन को पूरा नहीं करेगी उसे मेरी दौलत का एक कतरा भी नहीं मिलेगा – अब यही आखिरी तरीका है उसे सँभालने का |”

चैटर्जी मूक उनकी सुनते रहे और श्रीधर एक एक शब्द जैसे हलक से निकालते हुए कहते रहे – “मुझे पता है मैंने सुमित्रा के साथ जो किया उसकी माफ़ी तो ईश्वर भी नही देंगे – आखिर एक पतिव्रता को अपने स्वार्थ के लिए त्याग कर मैंने लन्दन में अपने बॉस की बेटी एंजिला से शादी की पर देखो मैं तो उसका भी ख्याल नही रख सका – अपनी बीमारी के अंतिम समय में एंजिला मुझे पुकारती रही और मैं उसे भी अनदेखा कर दौलत की मंजिले खड़ी करता रहा – हूँ – देखो अपार दौलत के साथ आज मैं बिलकुल अकेला खड़ा हूँ पर पता नही तुम कैसे मुझसे जुड़े रह गए जबकि मैंने कभी किसी रिश्ते को नहीं संभाला |”

“श्रीधर …!!” एक दर्द की लहर उनके जेहन से गुजर जाती है|

“अब मेरा आखिरी एक काम कर दे – भारत में सुमित्रा और मेरी बेटी भावना है – उस तक मेरा एक आखिरी सन्देश पहुंचा दो |’ कहते हुए वे थोड़ा अपने शरीर को टेढ़ा करते तकिए के नीचे से एक कागजो का बण्डल उनकी ओर बढ़ाते हुए कहते है – “ये भावना को लिखी मेरी एक मात्र चिट्ठी है – जिसके जरिए अपनी बेटी से माफ़ी मांगते हुए भी उससे कुछ चाहने की उम्मीद कर रहा हूँ – यहाँ भी मैं कितना स्वार्थी हूँ – साथ ही ये वे कुछ पत्र है जो भारत से सुमित्रा ने मुझे लिखे थे – अपनी विरासत की तरह आज मैं उन्हें उसी भूमि में लौटा देना चाहता हूँ क्योंकि उसके अनमोल समर्पण भरे शब्दों का भी मैं अधिकारी नहीं – बस चैटर्जी तुम इसे भारत में भावना तक पहुंचा दो – और किसी भी तरह से शैफाली को भी…|” अपने अंतिम शब्द को किसी तरह से सांसो की अनियंत्रित गति के साथ कहते उन्हें खांसी आ जाती है और लगातार खांसते कुछ खून की छींटे सफ़ेद चादर पर बिखर जाती है, जिसे देख चैटर्जी की ऑंखें नम हो उठती है|

श्रीधर को वे सँभालते उसके कंधे और सीने पर वे हथेली फेरते हुए उसकी उखड़ी सांसो को नियंत्रित होने तक उसका चेहरा एकटक देखते रहते है|

***

घर वापस आकर चैटर्जी अपने स्टडी रूम में बढ़ता हुआ कोड्लेस फोन से भारत फोन मिलाता है, दो तीन बार की लम्बी लम्बी घंटी जाने के बाद उधर से फोन उठा लिया जाता है| उस तरफ की झुंझलाहट से उन्हें समय का आभास होता है कि बिना समय देखे बस अतिरेक भाव में उन्होंने भारत में फोन मिला लिया, आखिर सही तो कह रहे है, ये कोई समय है फोन मिलाने का, यहाँ लन्दन में शाम के छह बज रहे है तो भारत में आधी रात होगी, ये तो उन्हें अपनी बेख्याली में ध्यान ही नहीं रहा| पर वे समझाते है कि जो कहना था उसके लिए समय का इंतजार भी तो नहीं किया जा सकता| आखिर भावना का पति फोन अपनी पत्नी को दे देता है|

“भावना मैं लन्दन से तुम्हारे पिता श्रीधर सेन का वकील बोल रहा हूँ – वे बस अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में है – वे अपने किए पर शर्मिंदा है इसलिए तुमसे खुद बात करने की कभी हिम्मत भी नहीं जुटा पाए – तुम भलेहि उन्हें पहचानने से इनकार कर दो पर बेटी खून के रिश्ते पानी में लाठी मारने जैसे ही तोड़े नही जा सकते – अब उनकी एक आखिरी ख्वाहिश है कि उनकी और एंजिला की बेटी की जिम्मेदारी तुम्हें सुपुर्द करना चाहते है – हाँ शायद नहीं जानती होगी तुम पर उनकी एक बेटी है – नाम है शैफाली – उसे तुम्हारे पास भारत भेजना है बस तुम्हारी रजामंदी चाहिए थी – |”वे एक साँस में सब कहते भावना के जवाब की प्रतीक्षा करते हुए कुछ पल को रुक जाते है पर उधर से सिर्फ सिसकने की आवाज के अलावा जब कोई आवाज नही आती तो वे फिर कहना जारी रखते है – “उन्होंने तुम्हारे नाम एक चिट्ठी भी छोड़ी है जिसे पीडीऍफ़ से मैं आज ही तुम्हें पोस्ट कर दूंगा और बाद में डाक के जरिए उस चिट्ठी के साथ तुम्हारी माँ सुमित्रा जी की भी कुछ चिट्ठियां है उन्हें भी तुम तक पहुंचवा दूंगा – बेटी कभी कभी बड़ो से भी गलतियाँ हो जाती है तब छोटों को बड़ों की तरह आगे आकर उन्हें माफ़ कर देना चाहिए – शैफाली तुम्हारी छोटी बहन है उसे अपना लो वे बस तुमसे यही चाहते है – उन्हें अपने देश की मिट्टी पर और तुमपर भरोसा है कि अगर तुम उसे अपना लोगी तो उसका बर्बाद जीवन संवर जाएगा – अब मैं क्या उसकी हालत बताऊँ – दिन रात पिता के पैसों से दोस्तों संग पार्टी करना, शराब सिगरेट पीना यही उसका काम है – बहुत मुश्किल है उसे संभालना इसलिए शायद इतनी बड़ी जिम्मेदारी के लायक वे तुम्हें ही समझते है.. बेटी..|” अपने अंतिम शब्द को कहकर वे फोन रख देते है| पता था जो उन्हें कहना था कह दिया अब भावना की ओर से क्या जवाब आएगा ये जानने उन्हें प्रतीक्षा तो करना ही पड़ेगा तब तक पता नही उनका दोस्त ठहर पाएगा या नही ये ख्याल आते वे तुरंत अपनी जिम्मेदारी पूरी करने कम्पूटर पर उनकी लिखी चिट्ठी टाइप करने लगते है|

एक चिट्टी क्या अनजानों को पास ला पाएगी…..??

क्रमशः……….

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