Kahanikacarvan

शैफालिका अनकहा सफ़र – 20

बड़ी अज़ब दुनिया से भेंट हो रही थी शैफाली की, समीपता का विशालकाय आकाश जिसमे बिंधा कोई भी  अजनबी लगता ही नहीं, मानसी घर से निकलते रास्ते भर शैफाली को बताती रही कि जब वह दस साल की थी तभी माँ के अचानक देहावसान के बाद उसे और उसके छोटे भाई मानव की देखरेख को आई सुनीता मौसी धीरे धीरे उसके जीवन का अभिन्न व जरुरी हिस्सा बन गई| उनका भी इस दुनिया में कोई नही था तो बस लगा ईश्वर ने उन्हें परिवार दे दिया| आखिर एक प्यार, स्नेह ही तो होता है जो अनजानों को भी गहरे से जोड़ लेता है| उसकी नज़र में रिश्ते खून से कही अधिक प्यार से जुड़े होते है और रक्त और मांस से सिंचित होने के बजाये विश्वास से पोषित होते है|

इसी अहसास के साथ बार बार भावना का अहसास उसके मष्तिष्क में तरंग सा दौड़ जाता जिसे चाहकर भी वह यादों से झटक नही पाती| इस बीच उसे सिगरेट की बड़ी तेज तलब लगती है पर स्कूटी पर पीछे बैठे होने से ये सुलभ नही हो पा रहा था| तभी बार बार की मोबाईल की रिंग से परेशान मानसी स्कूटी किनारे रोकती उतरकर बात करने लगती है तभी मौका लगते शैफाली सिगरेट सुलगा कर एक गहरा कश लिए ही थी कि मानसी आते उसके कंधे पर हाथ रखती हुई कहने लगी –

“अगर छोड़ना है तो शुरुआत इसी से करनी होगी |” कहती हुई झट से उसके हाथ से सिगरेट लेती उसे ज़मीन की ओर फेक देती है|

त्वरित प्रतिक्रिया से शैफाली कुछ झुंझला जाती है जिससे नाराज होकर उसकी भौंहे आपस में जुड़ जाती है पर इसके विपरीत मानसी सहजता से कहती हुई स्कूटी स्टार्ट करने लगी थी|

“एडिक्शन आसानी से नही छूटता पर जब तुमने सोचा है तो दुबारा इसमें फसने नही दूंगी तुम्हें – चलो बैठो |”

शैफाली को गुस्सा तो आ रहा था पर कह कुछ नही पाई बस स्कूटी पर चुपचाप बैठ गई| अगले दो तीन मिनट में ही वह देखती है कि मानसी एक जगह स्कूटी रोकती हुई कह रही थी – “यहाँ पांच मिनट का काम है उसके बाद तुम्हें फ्लैट तक छोड़ती हूँ – ओके !” सहमति के लिए क्षण भर उसका चेहरा देखती स्कूटी खड़ी कर अपने बैग से कुछ निकालने का उपक्रम करने लगती है| जिस जगह स्कूटी रोकती है वह कोई संस्था थी जहाँ अपने बैग से कोई कार्ड निकालकर दिखाती आसानी से अन्दर चली जाती है|

शैफाली नज़रे घुमा घुमाकर उस जगह को देखती मानसी के पीछे पीछे चली जा रही थी| पत्थर के पथ पर चलती एक बड़े हॉल में आते देखती है वहां कई लोग योग साधना मुद्रा में बैठे थे वो भी बिना किसी शिक्षक के, मानों वे सभी स्वयं का ही निरिक्षण कर रहे हो| मानसी रूककर शैफाली की ओर देखती हुई कह रही थी – “तुम यही रुकना मैं बस पांच मिनट में आई|” कहती फुर्ती से आगे चली जाती है शैफाली वही किनारे खड़ी रह जाती है|

उस पल उसके दिमाग में बहुत उथल पुथल सी मची थी, जहाँ थी वहां से जाना भी चाहती थी पर जा भी नही पा रही थी| मानसी का सिगरेट फेकना बुरा भी लगा पर दुबारा पीने की इच्छा दबा ले गई| कुछ था उसके अंतरस जो बदल रहा था और वही उसके अन्दर खीज भी उत्पन्न कर रहा था| मानवीय स्वभाव की सबसे जटिल स्थिति अंतर्द्वंद से उलझ रही थी वह तभी किसी आवाज पर उसकी तन्द्रा भंग होती है|

“गुरु जी नमस्ते |”

वहां अब कोई गुरु जी टाइप के आ चुके थे अब सभी का ध्यन उन्ही की तरफ था सभी को शांत बैठने का इशारा करते वे कथा प्रारंभ कर देते है| शैफाली उनकी नज़रों से छुपी थी पर आवाज साफ़ साफ़ उस तक पहुँच रही थी| शैफाली उनपर कोई ध्यान नही देती वह अब जाने को व्यग्र हो उठती बाहर की ओर चल रही थी पर उनकी आवाज जैसे उसके आस पास ही मंडराती रही| कुछ देर बाद मानसी आते उससे कहने लगी –

“तब से प्रेस से फोन आ रहा है – आज तो एडिटर खा ही जाएगा मुझे – चलो हो गया काम |”

मानसी की आवाज पर उनकी तन्द्रा भंग होती है| अब वह उसके साथ बाहर की ओर निकल गई थी पर कोई आवाज भी जैसे उसके साथ साथ ही चल दी थी|

गुरु जी ने उपद्देश देते हुए बहुत कुछ कहा हालाँकि शैफाली को काफी कुछ समझ नही आया पर मित्र पर कही बात उसके रोम रोम में उतर गई, आखिर कैसे पहचाने मित्र ? क्यों होते है मित्र ? क्या सच में मित्र दूध में पानी सा मिलकर अपने अस्तित्व को मित्र में घोलते मित्र का घनत्व बढ़ा देते है, सच्चे मित्र साथ नही आगे खड़े होते है मार्ग प्रशस्त करने तब क्यों बुरा लगना उनकी बात का, ये सोचते वह मानसी को एकबारगी देखती है| बड़ी उपापोह की स्थिति थी, खुद को खंगालती वह फ़्लैट में उतर गई और मानसी तुरंत ही वहां से चली गई एक आश्वासन छोड़ती कि खुद को अकेला मत समझना वह है न !! शैफाली मौन ही फ़्लैट में वापस आ गई|

मानसी ने अपने कहेअनुसार टिफिन भेज दिया जिसे कुछ खाया कुछ छोड़ कर शैफाली अपना एकांत पीती रही| नशे से दूर होने पर अपने आस पास की दुनिया कुछ ज्यादा ही विस्तार दिखने लगी थी उसे|

शैफाली का अगला दिन भी कैसे भी कट गया पर दुपहरी बीतते बीतते उसका मन उससे छूटने लगा तो घर में छुपाई रखी वोडका लेकर वह बैठ गई| ढलती दुपहरी की रौशनी खींचती हुई शाम दीवारों से सरकती सरकती अब बिलकुल ही लुप्त हो रही थी| वह जिस कमरे में बैठी थी अब वहां धीरे धीरे अँधेरा होने लगा था, पर मन की उदासी उसपर इतनी भारी गुज़र रही थी कि उसकी हिम्मत नहीं हुई कि उठकर कमरे की बत्ती जला ले| वह धीरे से बोटल अपने नजदीक सरकाती दो पल उसे एकटक देखती रही, जैसे खुद से किए कोई वादे की वादाखिलाफी करने जा रही हो, ऐसा करते उसके होठों पर दबाव आ जाता है, वह बोटल खोलकर होंठों से लगाने ही वाली थी कि सहसा एक आवाज़ उसके कानों में गूंज गई और घबराहट में उसके हाथों से बोटल सरक कर उसकी गोद में आ गिरी, बोटल सीधी गिरी फिर भी कुछ बूंदे उसकी स्कर्ट पर फैल गई| वह बोटल के गिरने की आवाज़ और अचानक आई आवाज़ को अपनी तन्द्रा में अलग अलग करके सोचने लगी कि आवाज़ फिर आवाज गूंज उठी और उसका दिमाग सुनिश्चित कर लेता है कि ये डोर बेल की आवाज़ है, वह तुरंत बोटल उठाकर किनारे रखती हुई उठ जाती है| उस पल के अपने अकेलेपन में किसी की मौजूदगी उसमें इतना उत्साह भर देती है कि वह तुरंत दरवाज़े के पास पहुँचती उसे झट से खोल देती है| सामने मोहित था…..मोहित का एक हाथ जैसे फिर कॉल बेल बजाने उठा ही रह गया, शैफाली तड़प कर उसके सीने से लग गई, वह भौंचक देखता रह गया| शैफाली बेचैनी से हौले से कह रही थी – “मुझसे मिलने आए हो – ग्रेसियस(शुक्रिया) !!!” शैफाली उसके सीने से लिपटी थी और वह किसी बुत सा खड़ा रह गया| दो धड़कने अनजाने की अब एक ही रिदम में धड़कने लगी थी| उस पल पता नही क्यों मोहित ठहरा रह गया, वह ऐसे कुछ के लिए बिलकुल तैयार नही था वह खुद तय नही कर पा रहा था कि क्या करे ? क्या कहे ?

“अरे तुम स्पोर्ट्स वाले भी न |”

मानसी की आवाज़ से उसकी तन्द्रा भंग हुई और वह झट से मोहित से छिटककर दूर हट कर गहरी गहरी सांसे लेने लगी| मानसी सीढियों की ओर से आती दिख रही थी| मोहित भी मौन खड़ा रह गया|

“ये देखो तुम मुझसे पहले पहुँच गए – इस कम्बख्त लिफ्ट को आज ही बंद होना था |”

मानसी अब देखती है कि मोहित किसी बुत सा वहीँ खड़ा है जबकि शैफाली अपनी अजनबी निगाहों से उसकी ओर देख रही थी|

“अरे भई यही खड़े रखना है कि अन्दर भी बुलाओगी |”

शैफाली बिन शब्दों के अपने चेहरे पर हलकी मुस्कान लाती अब दरवाज़े के किनारे खड़ी हो जाती है| अब उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी किसी भी चेहरे की तरफ सीधा देख सके जबकि वह सुनिश्चित हो चुकी थी कि उसे ऐसा करते किसी और नज़रों ने बिलकुल नहीं देखा था पर अपनी बदहवासी पर खुद ही हडबडा गई थी वह|

अपनी बेखुदी से हट कर अब शैफाली का ध्यान अन्दर आती मानसी की ओर जाता है जो लगातार कहे जा रही थी – “सोचा आज सन्डे है तुम अकेली बोर हो रही होगी – तो मिलकर कुछ पार्टी शार्टी करते है – तुम चिंता मत करो सारा इंतजाम मैंने कर लिया है – तुम बस कोई मूवी लगाओ – पिज़ा, कोल्डड्रिंक सब मंगा लिया है – मोहित तुम खड़े क्यों हो – और ये जय और इरशाद कहाँ रह गए – कहीं नीचे बैठे बैठे – अभी देखती हूँ |” कहती हुई मानसी मोबाईल निकालकर मुड़ती है तो शैफाली उसका हाथ थामती हुई कहती है –

“थैंक्स मानसी – तुम आज बिलकुल सही समय पर आई |”

मानसी को लगा उसकी उदासी मिटाने वह सही समय पहुंची|

“थैंक्स क्या – आफ्टर आल वी आर फ्रेंड्स यार – बिन कहे ही सब समझ लेते है – समर भी आता पर उसकी ड्यूटी है आज – और ये मोहित महाराज आ ही नहीं रहे थे मैं पकड़ कर लाई हूँ – मैंने कहा कि दो तीन घंटे बिताते है सब साथ – सन्डे का मज़ा आ जाएगा|”

मोहित की ओर इशारा कर अब वह जय को कॉल लगाती लगाती बुद्बुदाती है – “पता है मौका पाते दोनों हवा में छल्ले उड़ा रहे होंगे |”

मोहित अभी भी बुत सा बैठा जाने किस धुंध को निहारते खोया खोया शून्य को निहार रहा था इससे बेखबर की कोई नज़र अब उसी को ताक रही थी तबसे|

एक रात और ढेर बेचैनियाँ उसके दिल में उमड़ रही थी, उस एक पल के अहसास से मोहित का अतीत बीते वक़्त की सीमा लांघता जबरन उसके दिलोदिमाग में उमड़ आया| वहां सब हँस रहे थे, बात कर रहे थे पर मोहित अपनी ही खामोशियों में कहीं गुम होता जा रहा था, उसका पहला प्यार उसकी आँखों के सामने चलचित्र सा चल दिया| कितना अनजान था इस अहसास से लेकिन उसके आने से और उस चेहरे के दिल में समाते जैसे सारी दुनिया से पराया हो गया था मोहित|

अपनी नौकरी के पहले दिन वे दो जोड़ी ऑंखें आपस में मिली थी जब एक ही सीट के लिए संध्या को अस्वीकार कर उस सीट के लिए उसका चयन कर लिया गया था, तब कितना बुरा लगा था उसे, वह छोड़ भी देता ये जॉब पर उसने जाने कैसे समझ लिया और मुस्कराकर मोहित से कहा – “यू डिज़र्व इट |” वह चली गई और चाहकर भी वह उसे रोक न सका|

पर वक़्त ने उनकी मुलाकात शायद आगे भी सोच रखी थी तभी जब मोहित उसके ख्याल से लिपटा बस पर चढ़ा ही था कि सहसा उसी बस में वही चेहरा फिर उसे दिख गया, बस में कितनी भीड़ भी, जाने कितने चेहरे समाए थे पर उनमें से उसी चेहरे को जाने कैसे पहचान लिया उसने, वे मुस्काने दूर से एक दूसरे से गले मिल ली| वह अपने हाथ की पकड़ी फाइल उठाकर बताना चाह रही थी कि अभी भी नौकरी ढूंढना उसने छोड़ा नहीं है, वह मुस्करा पड़ा और आँखों से ही बेस्ट ऑफ़ लक कह दिया|

अब ये अनजानी मुलाकात सुबह सुबह अक्सर ही हो जाती जिससे उसकी सुबह और तरोताजा हो उठती तब उसका जी चाहता कि उसके बीच के ये सारे चेहरे गायब हो जाए, पर वह सोचता ही रह गया, न चेहरे गायब हुए न कभी वह अपने दिल की कह सका उससे| उस दिन भी क्यों नहीं गया बस से !!! उसे बहुत तेज़ बुखार था और चाहकर भी वह अपने बिस्तर से न हिल सका| पूरा दिन ऑंखें बंद किए जैसे उसकी यादों से लिपटा रह गया और सुबह जब नींद खुली तो डर और बदहवासी ने घेर लिया उसे, अख़बार की पहली खबर थी| वे चंद शब्द उसके दिल पर भूचाल से ले आए| उसकी रोजाना की बस का भयंकर रोड एक्सीडेंट हो गया था, काफी लोग हताहत हुए थे| असल में दो बसों की आपस में टक्कर हो गई थी| सवारियों से भरी बस टकराई तो कई बेबजह जाने भी चली गई, अखबर वालों ने मरने वालों की लिस्ट निकाल दी| न चाहते हुए भी वह उसमें उस एक नाम को नही देखना चाहता था फिर भी सारी  लिस्ट एक एक बढ़ती धड़कन के साथ देख गया| संध्या……नाम के साथ उसका सब वही जल कर राख हो गया, दर्द किसी दरिया सा दिल से बह निकला| एक ही पल में आबाद दुनिया बर्बाद भी हो गई थी| मोहित किसी तरह से दर्द को जब्त किए हुए देखता है कि इरशाद और मानसी किसी बात पर आपस में उलझ रहे थे तो शैफाली खिलखिला कर हँस रही थी|

वह धीरे से उनके बीच से उठता हुआ अपने लिए पानी लेने चल देता है|

——————क्रमशः…….

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