
शैफालिका अनकहा सफ़र – 21
मोहित से अब वहां और नही रुका गया तो कोई बहाना बनाकर किसी तरह से वहां से निकल गया| खुद को खींचकर वहां से निकालते एक बार भी वह पीछे मुड़कर किसी की ओर नही देखता|
पार्टी खत्म हुई और मानसी की हिटलरशिप के आगे किसी की न चली इरशाद को वैक्यूम क्लीनर के साथ लिविंग रूम में छोड़कर वह जय के साथ किचेन को अरेंज कर रही थी|
“ये ठीक नही – नाइंसाफी है |” वैकुम क्लीनर घुमाता घुमाता इरशाद मानसी को आवाज लगा रहा था – “ये कैसी पार्टी करवाती है बाद का सारा काम भी करवा लेती है – नही आऊंगा दुबारा तुम्हारी पार्टी में – सुन रही हो हिटलर मैडम |”
इरशाद को बच्चों का रूठता देख गिलास समेटती शैफाली को हँसी आ गई|
“चुपचाप काम करो जो तुमने मेरा एक्स्ट्रा पिज़्ज़ा छीना था उसकी सजा मान लो समझे |” मानसी की आवाज उसी जोश में रसोई से तैरती लिविंग रूम में आती फ़ैल गई कि एक बार को चिहुँककर वह पीछे पलटकर देखता है पर मानसी के बजाये शैफाली अभी भी ट्रे में गिलास रख रही थी तो उसे भी हलके से हँसी आ गई| शैफाली कोशिश कर रही थी कि एक बार में ही सारे गिलास प्लेट रसोई तक ले जाए वह इस तरह से सब के सब एक ट्रे में सेट कर रही थी|
आखिर किसी तरह से लगभग समेटती वह रसोई की तरफ बढ़ गई|
रसोई में मानसी स्लेप से पीठ टिकाए खड़ी जय को प्यारभरी निगाह से देख रहो थी और जय भी जैसे उसी प्रेम की मदहोशी में सिंक के बर्तन धो रहा था| शैफाली आती ट्रे सिंक के पास रखती खड़ी हो गई थी, ये देख जय नल में हाथ धोकर हटने लगा तो मानसी कह उठी – “और ये जानू|”
इतने मीठे शहद में डुबोकर मानसी ने कहा कि जय हट ही नही पाया और हाँ हाँ क्यों नही कहता बाकि के बर्तन भी सिंक में उझेल कर धोने लगा| ये देख अपनी हँसी दबाती मानसी शैफाली का हाथ पकडे उसे बाहर ले आई| शैफाली देखती है कि मानसी बिना आवाज के हँस रही थी अब माजरा समझती उसे भी हँसी आ गई| जय जो अपने घर पर समर के हिस्से किचेन का काम छोड़कर हमेशा कलटी मार लेता आज कैसे तल्लीनता से बर्तन धो रहा था| इरशाद बडबडाते मोहित का नाम ले रहा था कि काम के वक़्त बहाना मार के भाग गया अब देखना वह उसे छोड़ेगा नहीं|
आखिर मानसी की हिटलरशिप काम आ गई और घर फिर से सेट हो गया| जिसका इनाम जय को किचेन में अपने गाल पर मिल गया इससे उसकी आशिकाना मुस्कान बार बार मानसी से टकरा जाती| रात के आठ बज रहे थे अब वहां से विदा लेती मानसी शैफाली को जाते जाते कह रही थी –
“तुम खुद को अकेला कभी नही समझना जब जी करे मेरे या इन चारों के घर आ सकती है बस शम्भु भईया का नंबर घुमाना वो कैब लेकर हाज़िर हो जाएँगे |”
तीनों चले गए, उसके जाते जैसे घर की सारी आवाजे और हलचल भी चली गई| शैफाली तुरंत बिस्तर पर आती लेट गई| दूसरे दिन दोपहर तक शैफाली को फिर उकताहट ने घेर लिया तो शम्भू भईया का नंबर मिलाकर वह कैब बुला लेती है|
वह मोहित के घर जाने का सोचती हुई कैब में बैठ गई थी| वे उसे बताए पते पर उतारकर लौटने के समय कॉल कर बुलाने को कहकर चले गए| इस बार शैफाली ने मोबाईल अपने कंधे से झूलते पाउच में रख रखा था| वह सीढियां चढ़ती घर के ऊपर जाने ही वाली थी कि धप धप की आवाज से उसका ध्यान घर के पिछले हिस्से की ओर जाता है| कोई जानी पहचानी आवाज सुनकर वह खुद को वहां जाने से नही रोक पाई| घर के पीछे छूटे हिस्से को साफ़ कर मोहित ने बास्केटबाल कोर्ट जैसा बना रखा था अपनी प्रैक्टिस के लिए| शैफाली उसके मुहाने में खड़ी जय और मोहित को पसीना बहाते बास्केटबाल खेलते देख रही थी| पसीने से तरबतर जय अपना पसीना झटकते जल्दी से एक फाउल करने आगे बढ़ता है तो मोहित फिर उसके हाथों के बीच से बॉल लेता हुआ तेज़ी से ड्रिब्लिंग करता हुआ उस छोटे कोर्ट में भी जय से बचता हुआ चक्कर लगाने लगता है, जय उसकी तरफ बढ़ता है, दोनों मुस्करा कर एक दूसरे की ओर देखते है पर मोहित फुर्ती से ऐसा शोर्ट लगाता है कि एक बार में ही बॉल बास्केट के आर पार हो जाती है|
“अबे नहीं |” जय एक मुद्रा में खड़ा देखता रह जाता है, मोहित अपने घुटनों पर हाथ रखे अब तेज़ तेज़ साँस लेता धीरे से मुस्कराता हुआ जय की तरफ देख रहा था कि तेज़ ताली की आवाज़ से दोनों का ध्यान उस ओर जाता है जहाँ अब शैफाली खड़ी थी|
उसके चेहरे पर भरपूर मुस्कान थी, तो मोहित अपनी सांसो को सँभालते अपनी टीशर्ट को कंधे से थोड़ा उचकाता हुआ उनमे हवा भरता है, जो पसीने से तर होकर उसके शरीर से चिपक कर उसका मांसल शरीर अब बाहर झलका रही थी|
“चल अपना तो टाइम पूरा हो गया – मानसी मेरा वेट कर रही होगी मार्किट में – अगर अबकि देर हो गई न तो अपना कोर्ट मार्शल होने से कोई नहीं रोक पाएगा |”
जय कहता हुआ शैफाली को हवा में हेलो कहता तेज़ी से वहां से निकल जाता है| जय के जाते मोहित चाह कर भी वहां से न निकल पाया बल्कि मुस्करा कर उसे शैफाली का अभिवादन करना पड़ा जो उसकी ओर बस मुस्कराते हुए ताक रही थी|
जय के जाते मोहित बॉल को उठाने आगे बढ़ता है उससे पहले शैफाली झट से बॉल अपने पाश में लेती हुई कहती है – “मे आई !!”
उसकी नीली ऑंखें मोहित के चेहरे पर टिकी थी तो मोहित की निगाहे शैफाली को छोड़ अन्यंत्र जगह भटक रही थी|
“नो वे |” वह उससे बॉल न लेकर उसके पास से गुजरता घर की ओर बढ़ जाता है|
शैफाली अरे करती उसके पीछे पीछे आती है|
“मुझसे डर गए क्या ?”
मोहित सीढियाँ चढ़ते हुए पलटता है – “नही खुद से |” यही वो पल था जब शैफाली बॉल लिए नीचे खड़ी रह गई और मोहित की उड़ती नज़र उसके चेहरे पर टिक गई| चेहरे पर ढेर गुलाब खिल आए थे शैफाली के चेहरे पर, एक तरफ को किए पोनी में बंधा स्कार्फ हवा संग इठला रहा था|
अगली सांसो तक जैसे सारा तिलिस्म टूटता है और मोहित फिर पलटकर वापस चल देता है, पीछे पीछे शैफाली भी ऊपर आते आते बोल रही थी – “अजीब हो तुम और अजीब है तुम्हारा शहर – इस घर और तुम्हारे कॉलेज के अलावा कुछ और नही है इस धूल धुंए से भरे शहर में !!”
वे घर तक आ गए थे|
“बहुत कुछ है – इस एक दिल्ली शहर में सारा हिंदुस्तान समाया है और क्या चाहिए |” मोहित उसकी बात का जवाब देने उसकी ओर पलटता है|
“मुझे तो इस घर में सारा देश समाया लगता है |” वह यूँ मुस्कराकर कहती है कि मोहित भी मुस्कराए बिना नहीं रह पाता|
“फ़िलहाल मैं एक नंबर देता हूँ – रुको |”
शैफाली कुछ समझ नहीं पाती, वह बॉल नीचे छोड़ती हुई देखती रह जाती है कि मोहित अब बैठकर अपने मोबाईल से कुछ सर्च करके लिख रहा था – “ये टूर वाले का नंबर है इसे मिलाओ और पूरा शहर घूम लो|” कहकर मोहित उसकी तरफ कागज बढ़ाकर उठ जाता है|
मोहित उठकर आगे बढ़ा ही था कि उसका मोबाईल बज उठा| वह फिर पलट कर फोन उठाते हुए अब शैफाली को देखता है|
“क्या मुझे दिल्ली घुमा सकते है बदले में मैं बिलकुल परेशान नहीं करुँगी |”
शैफाली के चेहरे पर चंचल मुस्कान थी पर झेंपा हुआ सा मोहित उसकी ओर देख रहा था कि शैफाली ने उसी का नंबर मिला लिया था|
वह भौं उचका कर मानों फिर कोई सवाल करती है|
“कहीं ऐसा न हो कि मेरे संग तुम परेशान हो जाओ |” उसे टालने को फिर कोई दांव फेंकता है पर सब बेकार करती शैफाली कह उठती है –
“लेट्स ट्रराय |”
“ओके कल |”
“आज क्यों नहीं – तुम्हारा शहर जल्दी सो जाता है क्या !!”
मोहित तंग भरी नज़रों से उसे देखता हुआ कहता है – “चलो तुम्हारी ये भी तमन्ना पूरी कर देते है – बस पांच मिनट रुको – आता हूँ |”
शैफाली आँखों से हाँ कहती उसे जाते हुए देखती हुई वही बैठ जाती है|
शैफाली सच में घड़ी देखती रह गई और ठीक पांच मिनट में अपने सिम्पल लुक में मोहित तैयार खड़ा था बाहर जाने के लिए|
मोहित कार निकालकर जानकर पुरानी दिल्ली की गलियों की ओर चल देता है| कुतुबमीनार दिखाकर महरौली से वह चौक की भीड़ में ले आया था| दूर से लाल किला दिखाकर वे अब पैदल चल रहे थे| गर्मी की लम्बी शाम में हर सड़क, गली कूंचा लोगों से आबाद था, दिन भर की गर्मी से परेशान हैरान लोग बाग़ रौशनी भरी सड़क पर हर तरफ मस्ती करते नज़र आ रहे थे| हर तरफ भीड़ थी, लोगों का हुजूम सा बिखरा था, उसी में से गुज़रते मोहित जान कर शैफाली को भीड़ भरी जगह ले आया था जहाँ उसे कई जगह पैदल चलना पड़ता है| मोहित धीरे से मुस्कराते देख रहा था कि शैफाली अपनी हाई हील में किस तरह अपने छोटे छोटे कदमों से बार बार उसके पीछे रह जाती, फिर किसी तरह से दौड़कर उसके साथ साथ चलने लगती|
काफी देर चलते चलते शैफाली थक कर चूर हो रही थी पर मोहित के बार बार थक गई पूछने से उछलती झट से उठकर फिर चलने लगती और मोहित कंखनियों से ये देख धीरे से हँस देता|
खाने का शौक़ीन मोहित खाने की अपनी मनपसंद जगह आता है जहाँ शैफाली पहले झट से कुर्सी पर बैठती चैन की साँस लेती है| मीनू कार्ड शैफाली की तरफ बढ़ाने पर शैफाली उसे उसी की ओर धकेलती हुई कहती है – “आज मुझे कुछ बढ़िया अपनी पसंद का इंडियन खाना खिलाओ |”
“पक्का !!”
यहाँ भी मोहित जानबूझ कर पंजाबी मसालेदार खाने का ऑर्डर करता हुआ पहले ठंडी लस्सी मंगाता है| शैफाली लस्सी देख उसे किसी तरफ से आधा ही गटक पाती है पर मोहित उसे एक ही बार में खत्म कर अपने पंजाबियों वाली आह छोड़ता है जिसपर वह खिलखिला कर हँस पड़ती है| फिर दाल मखनी, पंजाबी छोले, बटर नान जैसे खाने से सजी मेज़ देखकर ही शैफाली का जैसे दम निकल जाता है, वह पूछ बैठती है – “ये खाना हम दो के लिए है !!”
“हाँ फुल पंजाबी खाना – अब तुम्हें खाना पड़ेगा |” कहते हुए वह उसकी प्लेट में खाना उझेलकर उसे
खाने के लिए कहता अब अपनी प्लेट में खाना डालता है|
शैफाली पहले कौर में ही आधा गिलास पानी पी जाती है| मोहित आँखों से बार बार उसे खाने को उसका कर खुद चटकारा लगाता खाने लगता है| शैफाली भी हार न मानती हुई किसी तरह से खाने को निगलती रहती है, कई बार नाक से कभी आंख से पानी आते टिशू से जल्दी से पोछकर जबरन चेहरे पर मुस्कान लाती फिर खाने लगती|
अपनी प्लेट का कुछ खाया कुछ छोड़कर हार मानती वह अपनी प्लेट सरका देती है जिसपर मोहित कह उठता है – “अरे ऐसे कैसे बिना पंजाबी हलुवा खाने मेनू कम्प्लीट कैसे होगा|”
“नही !”
शैफाली के चेहरे की उड़ी हवाइयों को अनदेखा कर मोहित अपना ऑर्डर दे देता है|
हलुवा झट से आ भी जाता है, एकदम गरम गरम हलुए से धुँआ निकलता देख शैफाली उसे घबराकर देखने लगती है|
“अब इसे नहीं खाया तो |” कहते हुए वह लगभग जबरन उसके मुंह की ओर चम्मच बढ़ा देता है|
मोहित ने भी अच्छे से ठान लिया था इसलिए शैफाली के लिए बचने का कोई रास्ता नहीं था लेकिन शैफाली भी किसी तरह हिम्मत कर उसे आधा ही खा पाई| अब उसकी वो हालत थी कि लग रहा था कि उसके पोर पोर में खाना भर गया है, अपने जीवन में पहली बार इतना मसालेदार और इतना सारा खाना उसने कभी नही खाया था, पर अपनी हेकड़ी में हद से अधिक ही गुजर गई थी वह|
उसकी मरमरी हालत पर मोहित को अन्दर से भरपूर हँसी छूट रही थी|
वहां से निकलते अब मोहित इंडिया गेट जाने के लिए निकलता है, शैफाली के लिए अब चलना दूभर था पर वह किसी भी तरह से मोहित के आगे हार मानने को बिलकुल तैयार नहीं थी|
अपने छोटे छोटे क़दमों से उसके साथ को लपकती वह अब इण्डिया गेट पर थी| चारोंओर की रौनक कुछ पल में उसमें अजब सी ताजगी भर देती है| रौशनी के बीच जगमगाते इण्डिया गेट को बरबस वह निहारती रही फिर अमर ज्योति को दूर से देखती वह अपने चारोंओर नज़र दौड़ाती है, बच्चे बड़े सब मिलकर मस्ती के मूड में थे वहां, मानों रात न होकर सुबह हो गई हो| तरह तरह के रेड़ी वाले, कोई गुब्बारे लिए जाने कितने चेहरे कितने भावों को समेटे लोग वहां मौजूद थे पर सब अपने में मस्त| कही जोड़े एक दूसरे का हाथ थामे टहल रहे थे| उन्हें देखते देखते वह आगे बढ़ रही थी कि किसी जोड़े पर उसकी निगाह ठहर जाती है, उसे लगता है वह उन चेहरों को पहचानती है, फिर झट से मोहित का ध्यान भी उसी ओर करती है|
जय और मानसी एक ही आईसक्रीम को साथ में बारी बारी से खाते एक दूसरे का हाथ थामे टहल रहे थे कि जय की पीठ पर मोहित का हाथ पड़ता है और वह झटके से पीछे देखता है|
अब वह चारों एक साथ खिलखिला रहे थे| वे बाहर की ओर निकल रहे थे कि स्टैंड पर उनकी नज़र और किसी से भी टकराती है और जय झट से उसे अपनी ओर करता हुआ पूछता है|
वहां इरशाद के साथ नूर थी जो सबको अपनी ओर देखते बुरी तरह से झेंप गई थी|
इरशाद सबको नूर से मिलवाता है तो झट से उसको कोहनी मारती मानसी कह उठती है – “तो इन्हीं नूर से तुम्हारी जिंदगी में नूर है|” मानसी धीरे से कहती है पर नूर इशारे समझ धीरे से मुस्करा देती है|
शैफाली को सब बहुत अच्छा लग रहा था, उसकी थकान कुछ पल के लिए जैसे गायब सी हो गई थी, सब एक दूसरे से ऐसे मस्ती कर रहे थे ये देख उसे लगने लगा जैसे वे कोई एक ही परिवार है, जिसका तो कभी वह सपना तक नही देख सकी|
“अच्छा नौ बज गए मैं जा रही हूँ|” मानसी झट से बोली तो नूर को भी समय का ख्याल आया|
“मुझे भी जाना है – मुझे टैक्सी लेनी है|” नूर भी जल्दी से बोली|
“मैं छोड़ देता हूँ !” इरशाद लपक कर बोला|
“लेकिन !!”
“एक मिनट एक मिनट – मैं बताता हूँ|” मोहित बीच में आते हुए कहता है – “इतनी रात टैक्सी से कैसे जाएगी नूर – मेरे ख्यालसे मानसी तुम इन्हें घर छोड़ दो – तुम तो स्कूटी से हो – इरशाद शैफाली को घर छोड़ देगा और जय मेरे साथ घर चला जाएगा – राईट |”
एक पल ये सब उलट फेर सुन जय और इरशाद मोहित का चेहरा देखते रहे तो मानसी और नूर के चेहरे पर मुस्कान थिरक उठी|
लेकिन सबको सोचता छोड़ता हुआ मोहित सबको जल्दी जल्दी करने को कहता है जिससे मानसी नूर के साथ चली जाती है, तो शैफाली को इरशाद के साथ जाते देख मोहित जय की ओर देखता उसके कंधे पर हाथ रखता हुआ कह रहा था – “सब चले गए अब हम भी चले !”
जय उसका हाथ झटकते हुए तुनक उठा – “अबे तुझे तो प्यार करने वालो की हाय लगेगी – सब उल्टा पुल्टा कर दिया |”
जय की हालत पर मोहित हँसते हुए आगे बढ़ने लगा|
————–क्रमशः…..