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शैफालिका अनकहा सफ़र – 23

मोहित कनाट प्लेस में रुकना चाहता था पर दो एक बार गाड़ी घुमाने पर भी उसे पार्किंग की सही जगह नही मिली, देर शाम होने से कनाट प्लेस असंख्य लोगों से गुलजार थी| उस पल वहां देखकर ऐसा लग रहा था मानों वहां सड़क हो ही न हो बस ढेरों सिर मौजूद थे| इतनी भीड़ मोहित को कभी रास नही आती और पार्किंग भी न मिलने से वह वापसी की ओर कार मोड़ लेता है| वह जाना लेफ्ट साईड चाहता था पर गलत मोड़ते राईट टर्न ले लिया और संसद मार्ग से घुमाकर वह बंगला साहिब मार्ग से अब निकल रहा था| शैफाली की नज़र बाहर की ओर टिकी थी, शाम के धुंधलके में हर शह रौशनी से नहाई हुई जगमगा रही थी, सड़क लोगों और गाड़ियों से अटी पड़ी थी| लन्दन की सडकों में शैफाली ने कभी इतनी भीड़ नही देखी उसे लग रहा था मानों पूरा लन्दन दिल्ली बन गया हो तो बाकि शहरों में कितनी भीड़ होगी ये सोचते हुए वह शांति से ड्राइव करते मोहित की ओर देखती है| तभी सामने के शीशे की ओर देखते वह नमन में ऑंखें झुकाता ड्राइव करता रहा, ये देख शैफाली उसकी आँखों की ओर देखती है जहाँ उसे सुनहरा गुम्बद दिखता है तो वह उससे पूछ बैठती है –

“योर वरशिप प्लेस !!”

पूछती हुई उसकी ओर देखती रहती है और मोहित सामने की ओर नज़र गड़ाए कहता है – “गुरुद्वारा है – श्री बंगला जी साहिब |”

“क्या मैं जा सकती हूँ ?”

शैफाली के प्रश्न पर एक पल वह नज़र घुमाकर उसके चेहरे के भाव पढ़ता है फिर सामने की ओर देखते हुए स्टेरिंग घुमा लेता है|

“क्यों नही – धर्म, आस्था, विश्वास न भी हो तबभी वह द्वार सबके लिए खुला है|”

“वैसे ये तुम्हारा वरशिप प्लेस है तो यहाँ अक्सर आते होगे !!”

“हाँ जब मन बहुत बेचैन होता है और उलझ जाता हूँ तब जरुर आता हूँ |”

“तब क्या तुम्हारी प्रॉब्लम सोल्व हो जाती है !!”

“कम से कम अपनी समस्या से सामना करने लायक हो जाता हूँ |” हौले से होठों के किनारे फैलाते हुए वह एक्सीलेटर से धीरे धीरे दवाब कम करने लगता है|

शैफाली देखती है कि कार को पार्किंग में सही से खड़ी कर अब मोहित अपने जूते उतार रहा था ये देख शैफाली भी अपनी सैंडील उतारने लगती है तो ये देख समझते मोहित फिर से जूते पहनने लगता है|

“तुम रहने दो – चलो अन्दर भी उतारने की जगह है |” कहते हुए वह अपनी साईड से तो शैफाली दूसरी ओर से बाहर निकलती उसके पीछे पीछे चलने लगती है|

मोहित जैसे जैसे जो करता आगे बढ़ता रहा शैफाली भी देखती वही दोहराती, जिसे चुपके से मोहित नोटिस करता आगे बढ़ जाता| साथ में जूते उतारकर सेवादार की ओर बढ़ाते वह उन्हें सहेजकर रखता तो हाथ धोते मोहित जेब से रुमाल निकालकर सिर पर बांधते हुए शैफाली को देखता है जो इस वक़्त अपने आस पास लोगों को निहार रही थी|

“सिर ढककर अन्दर प्रवेश करते है |”

मोहित की आवाज सुन वह उसकी तरफ देखती है कि उसने सर पर कानों के पीछे किए रुमाल बांध रखा था ये देख वह भी उसी तरह अपना स्कार्फ बांधने लगी तो मोहित उसके हाथ से स्कार्फ लेता ठीक से उसे उसके सर पर रखता उसे ओढ़ा देता है|

अब अन्दर जाकर मत्था टेकते वे साथ में पीछे की ओर निकलते ताल के सामने आ गए थे| रात की मध्यम रौशनी में नहाया वहां का नजारा वे अपनी आँखों से पीते चुपचाप खड़े थे| इस वक़्त बहुत ही कम लोग उस प्रांगण में मौजूद थे जिससे बैठने की जगह देख शैफाली बैठ जाती है| उसे बैठते देख मोहित भी वही बैठते फिर सामने की ओर देखता रहता है|

“कितना कूल है यहाँ का माहौल |”

“हाँ |” एक गहरा उच्छ्वास छोड़ते वह कहता है|

“मैं इससे पहले किसी वरशिप प्लेस में नहीं गई – बस एक बार केनी के साथ चर्च गई थी|”

इस पर मोहित बस अदनी मौन मुस्कान भर दे देता है जिससे शैफाली आगे कहती रहती है –

“एक्चुली मेरे लिए ये सब विजिट प्लेस भर है |”

“अच्छा है कम से कम क्लियर तो हो – वैसे कोई फर्क नही पड़ता कि हम किस आस्था, ईश्वर, धर्म या ग्रन्थ को मानते है बात सिर्फ विश्वास की है – जब हम आंख मूंदकर किसी पर विश्वास करते है तो सहज ही हमारे अन्दर खुद के प्रति भी विश्वास बढ़ जाता है – मेरे लिए यही आस्था है|” कहता हुआ मुस्कराकर शैफाली की तरफ देखता है जो उसी की ओर देख रही थी और बहुत कुछ उलझी सी भी दिख रही थी|

“ओके आई थिंक तुम चारों मतलब समर, जय, इरशाद और तुम अलग अलग रिलिजन से हो तो आखिर एक साथ रहते कैसे कम्फर्ट रखते हो खुद को ?”

ये सुन मोहित अपनी बात कहने अब शैफाली की ओर मुड़ जाता है, उस वक़्त उसके चेहरे पर एक अलग ही विश्रान्तिं छाई थी|

“हम जब साथ होते है तो हमारे बीच सबसे घनिष्ट रिश्ता होता है वो है दोस्ती का तब हम और कुछ नही होते इसलिए एकदूसरे के साथ हमेशा कम्फर्ट जोन में रहते है|” कहते कहते मोहित शैफाली के हाव भाव देख कर उसे और अच्छे से अपनी बात समझाने लगता है – “इस दुनिया में मेरे हिसाब से सबसे खूबसूरत रिश्ता दोस्ती का ही होता है – दोस्त जिसे हम अपने समकक्ष समझते उसके आगे खुले मन से हर प्रतिक्रिया कर लेते है दोस्त आईना जैसा होता है अब चाहे समझो वह हमारी तरह है या हम उसकी तरह इसलिए ये बराबरी का रिश्ता होता है तो सामने वाला भी सब आसानी से समझ लेता है – एक तरह से किसी भी रिश्ते की शुरुवात दोस्ती से ही होती है – अगर पेरेंट बच्चो के दोस्त बने तो उनके बीच कोई मतभेद नही होगा और वे आसानी से एकदूसरे की बात समझ पाएँगे – ऐसे ही पति पत्नी भी पहले एकदूसरे के दोस्त बनेगे तो कोई किसी पर हुकूमत करता नज़र नही आएगा बल्कि सहजता से एकदूसरे के साथ समायोजित हो जाएँगे – यही बात प्रेमी प्रेमिका में भी होती है इसलिए पहले दोस्ती जरुरी है |” अपनी ही रौ में कहते कहते मोहित अचानक रुक जाता है, शैफाली की ऑंखें अभी भी उसी पर टिकी थी जिससे वह अगले ही पल असहज होता उसके विपरीत गर्दन घुमाकर खुद को संयंत करने लगता है|

“अब चले बहुत रात हो रही है !”

मोहित की बात सुन शैफाली हाँ में सर हिलाती साथ में उठकर बाहर निकलने लगती है| पूरी ख़ामोशी से मौन ही जूते पहनकर वे पार्किंग की तरफ आ जाते है| कार अनलॉक करते मोहित की नज़र वाइपर पर लगे किसी कागज पर जाती है जिसे उठाकर देखते वह भुनभुना उठता है – “एड के लिए कहीं भी पैम्पलेट लगा जाते है|” वह कहता उसे फेकने ही जा रहा था तो शैफाली उसे उसके हाथ से लेती हुई देखने  लगती है|

“क्या है ये ?” देखकर भी उसे कुछ समझ नहीं आता |

“ये ट्रेड फेअर का विज्ञापन है |”

“ट्रेड फेअर !!”

कार में बैठते बैठते वह बताता है – “दिल्ली में हर साल इसी समय ट्रेड फेअर लगती है प्रगति मैदान में – जहाँ भारत से और बाहर से भी आकर काफी छोटी बड़ी कंपनिया अपना अपना सामान लगाती है – लोग देखने और खरीदने जाते है वहां|”

ये सुन शैफाली उत्साहित होती पूछ उठी – “क्या हम चल सकते है ?”

हम !!! मोहित के मष्तिष्क में शब्द रवानगी सा दौड़ गया, वह सोच रहा था कि आज उसे अलविदा कह देगा पर फिर से उनकी मुलाकात तय हो रही थी, वह मना करना चाहता था पर शब्द अपने आप मुंह  से निकलते रहे|

“पर अभी तो बंद हो रही होगी |”

“तो कल !!”

“ठीक है पर तुम कॉलेज मत आना मैं खुद तुम्हें लेने आऊंगा ठीक पांच बजे |”

मोहित को लगा ये उसके शब्द नही थे कोई चोर था उसके मन में जो चुपचाप उससे दगा कर जाता और वह कुछ नही कर पाता वह एक घूमती नज़र से देखता है कि शैफाली अब हलके हलके से मुस्करा रही थी|

वह उसे अपार्टमेंट तक छोड़ता उसे जाने को कहता कुछ पल रूककर उसे जाता देखता रहा और खुद को बता दिया कि वह बस अपनी जिम्मेदार निभा रहा है उसे सही से घर छोड़ने की| शैफाली के आँखों से ओझल होते वह मौन घर की ओर चल देता है|

………..क्रमशः………….

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