
शैफालिका अनकहा सफ़र – 24
भावना दरवाजा खोलती है और उस पार शैफाली को देख खुश होती हुई बोली – “कितनी देर लगा दी – मुझे तो चिंता हो रही थी – कम से कम मोबाईल लेकर जाया करो |”
“क्या करूँ आदत नही है मोबाईल रखने की |” मुस्करा कर कहती शैफाली अन्दर आ जाती है|
“वैसे भी तुम मोहित के साथ थी इसलिए मैं रिलैक्स थी तो कैसा रहा आज का दिल्ली टूर |” वे साथ में अन्दर आती लिविंग रूम में बैठ गई थी|
शैफाली पानी पीती हुए एक गहरा श्वांस खींचती हुई भावना की ओर देखती हुई दो पल की ख़ामोशी में जैसे सारा दिन अपनी याद में खंगाल डालती है| बहुत कुछ मन की तलहटी से उभर कर आता पर स्वर नही बन पाता बस एक मुस्कान में ही सारा दिन सिमट आया था|
“टू गुड |”
“लगता है बहुत थक गई हो – चलो मैं डिनर लगाती हूँ |” शैफाली के सीमित शब्द को वह उसकी थकान मान लेती है|
शैफाली भी हाँ में सर हिलाती अपनी मूंदती आँखों से दिखाती है कि वाकई वह बहुत थक गई थी क्योंकि इससे पहले कभी वह इतना नही चली थी| वह अब फ्रेश होने चली जाती है|
भावना को अब शैफाली से कोई शिकायत ही नही रही आखिर एक अनजानी लड़की उसके जीवन का हिस्सा जो बन चुकी थी, अब शैफाली भी उनके साथ बैठती और भारतीय व्यंजन का लुफ्त उठाती और मन ही मन कुछ सोच मुस्करा उठती|
शैफाली के सामने कोई अलग की दुनिया परत दर परत खुल रही थी, कई बार सोचती कि ये देश सच में हर मायने में ब्रिट्रेन से अलग है| यहाँ लोग नही भावनाए रहती है, हर कोई किसी न किसी रिश्ते से कही दृश्य तो कही अदृश्य ही बंधा है तभी वहां जैसी कोई औपचारिका है ही नहीं|
“शैफाली !”
शैफाली के कमरे में आती भावना सहज ही उसके बेड के पास आकर बैठ गई तो लेटी शैफाली उसकी ओर करवट ले लेती है|
“दिन में चैटर्जी अंकल का फोन आया था तुम्हारा हाल चाल लेने – मैंने भी कह दिया कि खुश है और अच्छा लग रहा है अब तुम्हें यहाँ |”
कहकर भावना गौर से उसका चेहरा देखती है शैफाली हलके से मुस्करा रही थी|
“पता है तुमने शराब छोड़ दी मुझे बहुत अच्छा लगा और जब ये चैटर्जी अंकल को बोली तो पता है उन्होंने कहा कि इडिया में है तो ये संभव भी है –|”
शैफाली देखती है कि ये कहते कहते भावना के चेहरे पर अजब विश्वास चमक आया था|
“खुद को भूल जाने के लिए पीती थी – क्या बताऊँ वहां के अकेलेपन की दवा है ये शराब और कब पीते पीते जिस्म इसका आदि हो जाता है पता ही ही चलता |”
भावना हाथ बढ़ाकर उसकी हथेली अपने हाथ में भर लेती है, ऐसा करते भावना की आखें नम हो आई थी|
“मुझे एहसास है कि अकेले होना क्या होता है इसलिए तुमपर नाराज़ जरुर हुई पर तुम्हें कसूरवार कभी नही माना – आज अच्छा लगता है कि तुम रिश्तों को समझ रही हो मेरे लिए तो बस यही काफी है बाकि रही शिकायतों की तो वो अपनों से ही होती है परायों से थोड़ी न – |”
शैफाली मौन ही उसे सुनती मन ही मन गूंथ रही थी|
“पता है मैंने हर बार पापा से नफरत ही करनी चाही पर माँ ने कभी करने ही नही दी – वे हर दिन मेरे अन्दर विश्वास भरती कि एक दिन वे जरुर लौटेंगे भलेही ये विश्वास उनका मन बहुत पहले ही खो चुका था – अपने अंतिम समय में उन्होंने मुझे बताया था कि पहली बार जब पापा उन्हें छोड़कर लन्दन चले गए तभी उन्हें विश्वास हो गया था कि वे अब कभी नही लौटेंगे पर इसके बावजूद वे मुझे झूठी दिलासा देती रही – पता है क्यों !! क्योंकि वे चाहती थी कि मेरा रिश्तों पर से विश्वास न खत्म हो – उनका मानना था कि इन्सान जो भाव दूसरों को देता है वो भाव पहले उसके अन्दर उपजता है – अगर रिश्तों और प्रेम के प्रति मैं अविश्वास करती रहती तो कभी अपनी जिंदगी में आगे नही बढ़ पाती – यही विश्वास मैं तुम्हारे अन्दर उपजता हुआ देख रही हूँ……|”
अपने भाव में बहती भावना कहती कहती शैफाली के चेहरे की ओर देखती है कि वह उसकी तरफ ही लेटी लेटी सो गई थी, उस पल उसके चेहरे पर किसी बच्चों सी मासूमियत छाई थी, भावना प्यार से उनके माथे पर हाथ सहलाकर उसे चादर ओढ़ाकर उठ जाती है| शैफाली थकान से अब गहरी निद्रा में जा चुकी थी|
शैफाली तैयार होकर ठीक पांच बजे अपार्टमेंट के बेस में पहुंची बस उसी वक़्त मोहित कार लेकर वहां पहुंचा| उसके आते और शैफाली के बैठते वे जल्द ही दिल्ली की भीड़ भरी सड़क का हिस्सा बन गए|
प्रगति मैदान पहुँचते कई जगह भारी जाम का सामना करना पड़ा पर आखिर वे प्रगति मैदान पहुँच ही गए| इस बीच नामालूम बातचीत उनके बीच हुई| ऐसा लग रहा था मानों जितनी ज्यादा मुलाकात हो रही थी उतनी ज्यादा ख़ामोशी उनके बीच पसरती जा रही थी|
कार को पार्किंग में खड़े करने में भी भीड़ की वजह से मोहित को समय लगा फिर शैफाली के साथ गेट नंबर पांच से अन्दर प्रवेश कर गया| समय और भीड़ से बचने उसने ऑनलाइन टिकट ले ली थी| वेस्ट में अन्दर आते इधर उधर देखते बढ़ते रहे| चारो ओर बेतहाशा भीड़ थी, अच्छा खासा लोगो का हुजूम था| कितना बचने के बाद भी वे लोगो से टकरा ही जाते तब मोहित भीड़ की तरफ खुद को करता शैफाली को परे कर देता|
“आज पहला दिन है तो कुछ ज्यादा ही भीड़ है – मुझे पता तो था कि यहाँ भीड़ होती है पर इतनी ज्यादा होगी इसका अंजादा होता तो आज नही आते|”
शैफाली इधर उधर देखती चुपचाप चली जा रही थी|
कुछ ही स्टाल से गुजरते उन्हें वहां की भीड़ की अव्यवस्था का अंदाजा हो गया तो मोहित ने बाहर की ओर इशारा करते हुए निकल चलने का संकेत किया तो शैफाली ने भी मौन हामी भर दी, उसे भी इतनी भीड़ में बहुत उलझन हो रही थी|
वे अन्यत्र भीड़ भरे गेट से बाहर निकलने लगे| वे साथ में आगे पीछे हुए बाहर निकल रहे थे| एक बड़े भीड़ भरे हिस्से के साथ बाहर निकलते शैफाली अचानक अपने पीछे देखती है कि मोहित कही नही था| उस पल तेजी से वह अपने आस पास मौजूद हर सिर को देखने लगी पर मोहित कही नज़र नहीं आया| अब वह गेट से बाहर परेशान सी भीड़ के बीच खड़ी थी| उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या करे, जरुर भीड़ की वजह से मोहित अन्यत्र निकल गया और वह यहाँ फंसी रह गई| बाहर निकलते कृत्रिम रौशनी का टुकड़ा अब कम हो आया था और बढती रात का अँधेरा धीरे धीरे और गहरा होता जा रहा था, जिससे उस पल सबके चेहरे जैसे कोई काली परछाई स्वरुप हो चुके थे| उस वक़्त वह ऐसी भीड़ में फसी थी जिनके बीच इंच भर की दूरी मयस्सर थी| हर तरह के अजीब अजीब सी निगाह वाले लोग उसे घूर रहे थे मानों आँखों से ही उसे छू लेना चाहते हो इस भर अहसास से शैफाली के झुरझुरी सी दौड़ गई| इतनी अजनबी भीड़ में वह सर उठाकर गेट को देखती है गेट नंबर दस था, ये देख वह खुद पर ही भुनभुना उठी कि यहाँ से वह कैसे बाहर निकलेगी? क्यों उसने खुद मोहित का हाथ नही पकड़ा? क्यों वह आई ही? और मोबाईल न रखने की आदत पर आज उसे बड़ा गुस्सा आया| तभी कोई पुलिसकर्मी उसकी नज़रों से गुजरा और वह उसकी ओर लपकी पर असीम भीड़ ने उसे पीछे धकेल दिया और रुआंसी वह अपनी जगह जमी रह गई| न वह आगे ही बढ़ पा रही थी और न ही कुछ समझ आ रहा था बस लग रहा था कि वह रो ही देगी|
तभी किसी ने कसकर पीछे से उसे पकड़ा वह कुछ समझती कि उसे अपनी ओर खींचते वे हाथ वह पकड़कर उस चेहरे की ओर देखती है तो बस पल में उसकी ऑंखें डबडबा जाती है| ये मोहित था जो उसे भीड़ से बचाता अपनी बाँहों के घेरे में लिए आराम से उसे बाहर निकल रहा था| अब बाहर निकलते उसे कोई नही छू पाता पर मोहित के काफी नजदीक होने से उसके दिल की बढ़ी धड़कन वह साफ़ सुन पा रही थी, उसकी हांफती साँस से उसे अंदाजा हो चुका था कि किस बेचैनी से मोहित ने उसे खोजा होगा पर बाहर निकलते कार तक आते वह कुछ नही कहता| भीड़ से हटते वह अपना बाँहों का घेरा उससे हटाकर उसे कार में बैठाता है| अब दोनों अपनी अपनी सीट में बैठे अपनी भरपूर नज़र से एकदूसरे को देखते है| दो पल में ही एकदूसरे की जरुरत किस कदर उभर आई थी| शैफाली का उदास रुआंसा चेहरा तो भीड़ को चीरते निकलते मोहित का अस्त व्यस्त चेहरा| मोहित हौले से पूछता है – “आर यू ऑल राईट ?” इसपर शैफाली बस हलके से होंठों के किनारे फैलाते हाँ में सर हिला देती है|
ये सुन मोहित कार स्टार्ट कर सड़क पर दौड़ा देता है| अपार्टमेंट पहुँचते एक अजब सी ख़ामोशी उनके बीच पसरी रही, जैसे उनके बीच के सारे शब्द उनसे खो गए हो| जल्द ही मोहित अपार्टमेंट के पोर्च पर कार खड़ा करता है|
वह शैफाली को उसके घर छोड़ता जाते जाते अपनी गहरी मुस्कान से कह रहा था – “तो आज से आपका टूर समाप्त हुआ – तो हम अब नही मिलेंगे |” हाथ हिलाते हुए मोहित झट से कार मोड़ लेता है और शैफाली उसे जाता देखती रह जाती है, उसे उस पल ऐसा लगा मानों एक ही पल में वह फिर अकेली रह गई| वह उच्छ्वास छोड़ती हुई बिल्डिंग की ओर बढ़ जाती है|
अगले दिन से अब उसे कही नही जाना था तो शैफाली कमरे में लेटी खिड़की के बाहर देख रही थी, आज गर्मी के बाद की पहली बारिश से जैसे नीला आकाश धुलकर साफ़ हो आया था, दिन भर की तपिश के बाद शाम को अचानक से आसमान में भारी गर्जन के साथ बादलों का जमावड़ सा हो गया मानों पनघट से अपनी अपनी गगरी लेकर पन्हारिने तैयार हो कर आपस में बतियाती चली जा रही हो| शैफाली बिस्तर पर औंधी लेटी अपने पैर हवा के डुलाती देर से खिड़की के बाहर देखती किसी सोच में डूबी थी इससे बेखबर की उसके सामने पड़ी किताब कई पन्नो के एक साथ उड़ने से अब अपने आप बंद हो चुकी थी| एक बार तो उसका मन हो रहा था कि इस बारिश में बाहर निकल जाए पर उसका अलसाया मन भी उसकी देह की तरह बिस्तर से जैसे चिपक गया था और वह वही से पड़े पड़े अपनी आँखों से बारिश का मजा ले रही थी|
इस बेख्याली में उसे पता ही नही चला कि कब भावना उसे चाय देने आई और कई बार उसके आवाज़ लगाने पर भी उसकी तरफ न देखने पर उसे न टोकते हुए वापस चली गई|
“क्या हुआ सो रही है क्या !!”
बालकनी तक उसे कप वापस लाते हुए देख पवन ने प्रश्न पूछा तो जवाब में भावना मुस्कराती हुई उसके ठीक सामने बैठती हुई बोली – “खोई है कहीं |”
“मतलब – क्या तबियत खराब है उसकी !!” पवन उसके आँखों की पहेली अभी तक नही समझ पाए|
“इश्क के मर्ज से बड़ा कोई मर्ज है क्या |” कहती हुई भावना इस बार भरपूर मुस्कान से मुस्करा दी|
“तुम किसकी बात कर रही हो !!” संशय में पड़े पवन ने जल्दी से पूछा|
“और किसकी – शैफाली की बात कर रही हूँ – |”
“शैफाली !! अरे इतना घुमाफिरा कर क्यों बोल रही हो साफ़ साफ़ बताओ न |”
पवन की उत्सुकता चरम पर थी जिसपर आराम से अपनी बात कहने के अंदाज में भावना ईजी चेअर की पीठ से सटती हुई कहती है – “मेरी पारखी नज़रों ने तो पहले ही समझ लिया था कि ये बदलाव यूँही तो नही कोई तो है इसके पीछे |”
“तो कौन है हमे भी बता दीजिए |” चुहलबाजी से पवन ने पूछा|
“मोहित |”
पवन ने जैसे ही नाम सुना तो ऐसे उछल पड़ा मानों करंट छू लिया हो|
“नही होगा विश्वास पर मैंने देखा कल लेने भी वही आया और छोड़ने भी फिर मैं मानसी से भी क्म्फर्म कर चुकी हूँ कि इतने दिन ये दोनों ही आपस में मिल रहे थे – मैं तो ये सुनकर बहुत खुश हूँ – प्यार तो अच्छो अच्छों को बदल देता है |”
भावना ख़ुशी में लहकी जा रही थी पर इसके विपरीत पवन का चेहरा संजीदा बना रहा|
“अगर ये सच है तो शैफाली के लिए मोहित एक दम सही लड़का है|”
“और मोहित के लिए !!”
अचानक से पवन के प्रश्न से भावना हतप्रभ उसकी ओर देखती है|
“देखो डियर बुरा मत मानना – मुझे अच्छा लगा कि शैफाली के प्रति तुम बहन वाला स्नेह रखती हो पर इसी के साथ तुम्हें उसके अतीत को भी नही भूलना चाहिए |”
“मतलब !!”
“मतलब साफ़ है कि शैफाली जिस परिवेश से आई है वो स्वछंद लड़की कितना प्यार की गहराई को समझती होगी – याद रखो वो यहाँ कुछ निश्चित समय के लिए आई है और हो सकता है वो समय काटने के लिए ही मोहित के साथ हो बल्कि तुम्हें उससे बात करना चाहिए इस बारे में |”
“किस बारे में ?” भावना जैसे झल्ला उठी थी|
“कि ये खिलवाड़ मोहित के लिए कही महंगा साबित न हो जाए – मैं जानता हूँ मोहित जैसे संजीदा लड़के को इसलिए ये बात कह रहा हूँ कि जिस दिन मोहित सीरियस हो गया वह अपने कदम पीछे नहीं ले जा पाएगी और तब क्या होगा !!” बेहद तल्खी से पवन ने अपनी बात खत्म की|
पर भावना के चेहरे से लग रहा था जैसे वह पवन से बिलकुल भी इत्तफाक नहीं रखती हो|
“हम ऐसा भी तो सोच सकते है कि वह बदल रही है|”
“अच्छा तो क्या समय पूरा कर लेने के बाद भी उसका यहाँ कोई रुकने का प्लान है – ऐसा कुछ लगा है तुम्हेँ !!”
अबकि भावना वाकई निशब्द होती अपने होंठ चबाने लगी तो पवन अपना हाथ उसके हाथ पर रखते हुए कहता है – “तुम बहुत भोली हो – सब कुछ वही देखती हो जो सामने दिखता है पर हर बार ऐसा नही होता माय डियर – |”
कहते हुए पवन उसके चेहरे को गौर से देखता हुआ कहता है – “मैं खुद चाहूँगा कि जो तुम सोच रही हो वैसा ही हो पर…… |”
उसी पल आसमान में एक कड़कड़ाती बिजली चमकी और पवन के बाकी के सारे शब्द जैसे आखिरी आवाज़ में गडमड होकर रह गए| धीरे धीरे बारिश तेज होने लगी जिससे उनकी बातों का छोर मोहित शैफाली से सरकता बारिश पर केन्द्रित हो गया पर भावना मन ही मन फिर भी कुछ गुनती रही|
——————क्रमशः———