Kahanikacarvan

शैफालिका अनकहा सफ़र – 25

पवन नाश्ता करते जल्दी से बैग उठाए बाहर निकलने की तैयारी में था, भावना दरवाजे पर खड़ी हमेशा की तरह उसे मुस्करा कर विदा कर रही थी और पवन अपने तस्मे कसता हुआ बिना उसकी ओर देखे कह रहा था – “शाम को शायद देर हो जाए – इरशाद की तबियत खराब है तो उससे मिलता हुआ आऊंगा|”

“क्या हुआ उसे ?”

“कुछ नही बस…|” पवन जाने की जल्दी में था, तस्मे बांधकर खड़ा फिर भी कुछ पल रूककर उसकी ओर देख रहा था|

“तो मैं भी चलती हूँ शाम को – बहुत दिन हुए ऋतु से भी नही मिली |”

“ओके तैयार रहना – आते ही चलेंगे |” पवन एक मुस्कान उसे देता जल्दी से बाहर की ओर अपने कदम तेज कर देता है|

शाम को तैयार होते होते भावना पवन का इंतजार करती बालकनी में खड़ी थी जहाँ पहले से शैफाली बैठी कुछ पढ़ रही थी|

“शैफाली !”

वह आवाज पर चौंककर उसकी ओर देखती है|

“चलोगी साथ में – ऋतु से मिलवाऊगी |”

शैफाली शायद बोर होकर ही किताब पढ़ रही थी इसलिए तुरंत ही जाने को राजी हो जाती है| पवन आते ही झट से फ्रेश होकर दोनों के साथ इरशाद के घर के लिए निकल पड़ते है| पवन को जितना जल्दी थी अब उतनी ही देर हो रही थी, वे हमेशा ही दिल्ली में गुलजार रहने वाले ट्रेफिक में फंस चुके थे| लम्बी गाड़ियों की कतार देख पवन भुनभुनाते हुए एक पल को कलाई में बढ़ी घडी देखता हुआ कहता है – “लो अब हो गई छुट्टी – सोचा था जल्दी जाकर जल्दी वापस आ जाएँगे और ये…|”

“हम्म |” भावना मुड़कर अपनी ओर देखते पवन से पूछती है – “आखिर इरशाद को हुआ क्या है ?”

“इरशाद  !!” ये सुनकर पता नही क्या मन में सोचा कि रूककर पवन हलके से हँस पड़ा|

भावना हैरान सी उसकी ओर देखती रही|

“कल जो लगातार बारिश हुई थी उसी में इरशाद भाई साहब भीगते रहे तो बीमार पड़ गए|”

भावना अभी भी जैसे पूरी बात नही समझ पाई थी, ये उसके चेहरे के भाव से साफ़ पता चल रहा था|

“बीमार इरशाद हुआ और गुस्साई मानसी घूम रही है असल में नूर के इंतजार में महाशय उसके ऑफिस के बाहर भीगते रहे और बताया भी नही किसी को तब सुबह ये सब इसको वही से ढूंढ कर लाए तभी से मानसी उस पर बिन बारिश के बिजली की तरह बरस रही है |” कहकर पवन एक बार फिर हलके से हँस पड़े|

“ओह तो ये बात है -|” बात समझते भावना को भी हँसी आ गई – “इनकी दोस्ती भी बेमिसाल है – लड़ते भी है तो एकदूसरे के बिना रह भी नही सकते|” कहते हुए भावना अब अपने बगल में बैठी शैफाली की ओर देखती है जो बात समझने अनबुझी सी उनकी ओर देख रही थी –“तुम उन चारों में से इरशाद से मिल चुकी हो न – उसी की बात कर रहे है – असल में मानसी और इरशाद स्कूल से लेकर कॉलेज और अब प्रेस में भी साथ रहे है इसलिए किसी दूसरे को कोई तकलीफ हो जाए तो उल्टा उसी पर बरस पड़ते है – मानसी का गुस्सा तो वैसे भी सातवे आसमान में रहता है – समझ लो बहुत ही पक्की वाली दोस्ती है उनमे|”

हंसती हुई भावना देखती है अब ट्रेफिक धीरे धीरे खुलने लगा जिससे पवन ने झट से कार आगे बढ़ा ली| इरशाद के घर पहुंचकर वे उसके कमरे में बैठे उसकी ओर देख रहे थे| वही समर, जय और मोहित भी मौजूद थे|

पवन इरशाद के बगल में बैठता उसका माथा छूता है तो भावना जल्दी से पूछ बैठती है – “क्या अभी भी बुखार है ?”

“ये इश्क का बुखार है मैडम इतनी जल्दी कहाँ उतरेगा |” कहकर पवन धीरे से हँस दिया जिससे इरशाद झेंपता इधर उधर देखने लगा|

“ये तो है |” अबकि जानकर भावना एक नज़र से मोहित और शैफाली का चेहरा देख डालती है पर उनके चेहरे के भाव सपाट बने हुए थे|

“आखिर इश्क का रोग लगा ही लिया – अब जल्दी से ठीक हो जा – वैसे कब निकलना है तुम लोगों को ?” पवन मोहित की ओर देखता हुआ पूछता है|

“दो दिन बाद निकलना है लेकिन पहले इरशाद ठीक तो हो जाए |”

“अरे ठीक हो जाएगा और अगर नही भी हुआ तो गाँव की ताज़ी आबोहवा इसे ठीक कर देगी|”

“कहाँ जा रहे है ?” भावना बीच में ही पूछ पड़ी|

“पंजाब जा रहे है – मोहित के ताया जी की बेटी की शादी है|” पवन कहता है|

“अरे वाह पंजाब और वो भी शादी में – ये तो दुगने मजे की बात है – मेरा तो अभी से मन डोलने लगा|” भावना के चेहरे पर सच में एक हर्षोल्लास छा गया|

“अरे मैडम खुद को संभालो – अभी तो बाहर से घूम कर आए है|”

पवन की बात पर कमरे पर हलकी फुलकी हँसी तैर जाती है|

पर इसी बीच एक आवाज़ सबका ध्यान कमरे के उस कोने तक ले जाती है जहाँ शैफाली बैठी थी|

“क्या मैं जा सकती हूँ – मैंने गाँव नही देखा|”

सब इससे पहले कुछ समझते और कहते मोहित झट से बोल पड़ा –

“वो गाँव है – इतना आसान नहीं है वहां रहना – |”

“मैं रह लूंगी |”

शैफाली झट से कहती है तो इसपर मोहित भी कह उठता है – “पक्की सड़क पर तो चलते पैर दुःख जाते है – कच्ची मिट्टी पर कैसे चलोगी – !!”

“आई कैन मेनेज |”

“इतना आसान नही है वहां मेनेज करना |”

दोनों की तकरार से सभी चुपचाप उनकी ओर देख रहे थे इससे बेखबर दोनों आपस में उलझते रहे|

“लाईट भी नही रहती और मच्छर काट काट कर बुरा हाल कर देंगे|”

“मैं वो सब देख लूंगी |”

“अरे बस बस – |” जय जल्दी से उनके बीच में पड़ता हुआ कहता है|

“तो तय हो गया – शैफाली चल रही है हमारे साथ |”

“ऐसे कैसे!!” मोहित ने फिर विरोध किया|

“अरे वो हमारी गेस्ट है – इसी बहाने वह गाँव देख लेगी फिर ऐसा मौका कब मिलेगा|”

जय की सहमति में सबकी ओर अपनी गर्दन घुमाता है तो मोहित को छोड़कर सबके चेहरे पर मुस्कान तैर जाती है| इसपर मोहित भुनभुनाते हुए अब उसके विपरीत दिशा की ओर देखने लगता है|

इरशाद के पास पवन को थोडा और इंतजार करने को कहकर भावना शैफाली को लिए अब ऋतु से मिलने चली गई फिर जल्दी ही मिलकर वापिस आते वे घर की ओर निकला जाते है| भावना नोटिस करती है कि उनके जाने पर मोहित एक बार भी उनके सामने नही आता| ये बात उसके मन में अजीब भाव का जमावड़ कर देती है पर वह कहती कुछ नही|

अगले दिन शैफाली के साथ बैठी भावना उससे पूछने लगी – “शैफाली क्या सच में तुम गाँव जाओगी ?”

ये सुन अपने में खोई शैफाली अब हैरानगी से उसकी ओर देखती है मानों उसका प्रश्न समझ रही हो, ये देखती भावना कहती है – “नही मैं इसलिए पूछ रही थी कि गाँव सच में इतना आसान नही है – वहां एसी भी नही होगा और संभव है ऐसा कम्फर्ट बेड और बाकी की सुविधाए भी तब तो तुम्हें बहुत मुश्किल होगी न !”

भावना उसकी प्रतिक्रिया के इंतजार में उसके चहरे को तकती रही|

शैफाली शायद खुद भी कन्फ्यूज थी इसलिए खुद ही उससे प्रश्न कर बैठी – “तो क्या मुझे वहां नही जाना चाहिए ?”

“अरे नही नहीं ये नही कह रही पर बस सोच रही थी कि तुम कैसे वहां एड्जस्ट करोगी |” भावना अब अपनी बात समझाने उसके सामने बैठती हुई कहने लगी – “अब क्या सुविधा असुविधा होगी मैं नही कह सकती पर मेरा दिल कहता है कि ये तुम्हारे जीवन का कुछ अलग अनुभव रहेगा – भारत देश का असल ह्रदय तो आज भी गाँव में बसता है इसलिए एक बार गाँव तो तुम्हें जरुर देखना चाहिए |”

“हाँ सोच तो कुछ यही रही थी मैं अगर नही रह पाई तो वापिस आ जाउंगी |”

“नही होगा ऐसा मेरा मन कहता है और मोहित तो हर संभव हेल्प करेगा तुम्हारी |” भावना ने मोहित का नाम जानकर लिया पर दोनों रूककर एकदूसरे की ओर अजीब भाव से देखने लगे मानों अपनी ही बात पर इत्तफाक न रख पा रहे हो|

सुबह से ही चारों निकलने की तैयारी कर रहे थे जिसके कारण पूरा घर अस्त व्यस्त था| किसी को कुछ नही मिल रहा था तो किसी को कुछ| एक अज़ब ही हंगामा मचा था वहां| जय और मोहित किसी बात को लेकर आपस में उलझ रहे थे  इससे बेखबर अन्यत्र कमरे में समर और इरशाद सामान रख रहे थे|

“अच्छा देखा नहीं कि बेचारी जाने को कितना एक्साइटेड थी और सबकी रज़ा भी है इसमें|” कहते हुए समर और इरशाद को आवाज़ लगाता हुआ हाँ बोलने को कहता है, वे दोनों जो उनकी बातों से बेखबर अवाक् सर उठकर जय के कहेनुसार हाँ में सर हिलाते हामी भर देदेते है और फिर से अपने काम में लग जाते है, जिसे देख जय तुरंत कहता है – “देखा – सभी चाहते है |” कहते हुए जय के चेहरे पर भरपूर मुस्कान तैर गई जिससे और चिढ़ता हुआ मोहित एक दम से बैग जमीन पर लगभग पटकता हुआ कहता है – “तुमने जो रायता फैलाया है उसे तुम ही समेटो – मुझे इसके लपेटे में लेने की जरुरत नही है|”

अब दोनों ही बात समझने उधर ही चले आए थे सबको कुछ अलग लग रहा था क्योंकि कभी किसी ने मोहित को इतना उखड़ते हुए नहीं देखा था और अगले ही पल उन्हें बात समझते देर नही लगी कि शैफाली के साथ चलने की बात को लेकर दोनों आपस में उलझ पड़े थे| जय कह रहा था कि मोहित उसे लिवा कर लाए पर वह इसके लिए टस से मस होने हो तैयार नहीं था|

“तुम्हे ज्यादा समझ आता है तो तुम जाओ मैं नही जा रहा और जो तुम अपने मन में कोई खिचड़ी पका रहे हो न अच्छे से जान लो वहां घर पर ताई जी को भी तुम ही बताना कि क्यों और किसलिए आई है – मुझे इन सब लफड़ों से दूर ही रखना|”

“अच्छा मैं क्यों लिवाने जाऊ और रोज जो तू उसे दिल्ली घुमाता फिरता है उसका क्या !!”

“वो मैं मज़बूरी में जाता था क्योंकि उसने कहा और मैं मना नही कर पाया |” मोहित सरगोशी में कहता है|

पर ये सुन बाकि तीनो के चेहरे हँसने को हो आए| तभी खुले दरवाजे की देहरी में प्रेस किए कपडे लिए  एक सुकडे से आदमी की आवाज उनके बीच दखल देती है – “भैयाजी जी ये कपड़े |”

आवाज सुन जय मोहित से नज़र हटाकर अब उसकी ओर देखता तुरंत उसके पास आता हुआ उसके हाथ से कपडे लेता हुआ कहता है – “तू एकदम सही समय एंट्री मारा है – अच्छा चल बता तूने दिल्ली घूमी है?”

जय की बात सुन जहाँ प्रेस वाला आदमी अचकचा गया वही पीछे खड़े तीनों सपाट भाव से उसकी ओर देख रहे थे|

“बता !!”

“का भैयाजी – अतनी बड़ी दल्ली हम कहाँ घूम सकत है |”

“देख ये जो मोहित है न ये घुमाएगा तुम्हे दिल्ली – |”

जय की बात सुन आदमी मुंह फाडे बस खड़ा रह गया|

“क्या है न इससे कोई कह दे दिल्ली घुमाने को तो ये मना नही कर पाता  – बहुत बड़ा दिल है इसका – चलो इसको बोलो ये तुमको भी दिल्ली घुमाएगा – इण्डिया गेट – लाल किले की सैर और मुफ्त डिनर भी ..|” जय चिढ़ाती हुई आवाज में अब तिरछा होता मोहित की ओर देखता कहता रहा| इससे मन ही मन भुनता मोहित सामान वही पटककर अलमारी की ओर मुड़ जाता है| उसकी ये खिसियानी हालत पर अब जय के साथ साथ इरशाद और समर को भी हँसी आ जाती है और उनकी इस हँसी से झेपता हुआ वो आदमी चुपचाप नौ दो ग्यारह हो जाता है|

अब जय के पास कोई चारा नही बचता वह धीरे से कहता हुआ उठता है – “चल यार जय पता नहीं हमे किसकी किसकी नैया पार लगानी है|”

तभी समर जल्दी से आगे आता हुआ कहता है – “छोड़ो न मोहित – आखिर बस शैफाली घूमने ही तो जा रही है – इससे क्या प्रॉब्लम होगी|”

“हाँ वही तो |” जय के झट से कहते मोहित उसे अपनी घूरती आँखों से देखने लगता है जिससे बचने जय अब इधर उधर देखने लगता है|

“कहीं तुम्हारे मन में कोई चोर तो नही|”

अबकि इरशाद की बात सुन सब धीरे से मुस्कराते हुए अपनी अपनी नज़रे मोहित पर जमा देते है जिससे झेंपता हुआ मोहित अपने चेहरे को थोड़ा और सख्त करता दूसरी ओर बढ़ता हुआ कहता है – “तुम लोगों के जो जी में आए करो|” 

इससे बाकि तीनों एक दूसरे का चेहरा देखते बिन आवाज के धीरे से हँस देते है|

आखिर शैफाली के जाने की तैयारी भावना ने शुरू कर दी|

शैफाली की पैकिंग के लिए भावना को परेशान देख पवन उसके पास आता हुआ कहता है – “तुम तो ऐसे परेशान हो रही हो जैसे बहन की ससुराल को विदाई कर रही हो !!”

कपड़ों की तह लगाते लगाते वह आवाज की दिशा की ओर पलट कर देखती है – “एक वो दिन भी आएगा |”

भावना के होठों की गहरी मुस्कान देखते हुए पवन कहता है – “उफ़ इतना विश्वास !!”

“हाँ क्योंकि हर बार बातों में रहस्य नही होता – वे सीधी सपाट भी होती है|”

कहती हुई भावना पवन का गाल छूती हुई कमरे से बाहर निकल जाती है जिसपर पवन अपने गले में पड़ी टॉवल खींचता हुआ धीरे से बुदबुदाता हुआ बाथरूम की तरफ बढ़ता हुआ कहता है – “लेट्स सी |”

भावना ज्यों ही शैफाली के कमरे में प्रवेश करती है उस कमरे का हाल देख उसकी ऑंखें हैरानगी से फैली रह गई, उस कमरे को देखकर ऐसा लग रहा था मानों कोई तूफान वहां से गुज़रा हो, बेड पर कपड़ों के अम्बार पर अनमनी सी शैफाली बैठी थी|

“ये क्या है – तुम अभी तक तैयार नही हुई ?”

भावना की आवाज सुन तुरंत उसके पास आती हुई बिफ़र पड़ी|

“कैसे तैयार होऊं – कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या पहनूं !!” अतिरेक भाव में उसकी नीली ऑंखें कुछ पनीली हो उठी|

भावना उन आँखों में बहुत कुछ देख पा रही थी, उत्सुकता, आवेग, उलझन और नेह एक साथ उसके चेहरे पर अपना जमावड़ कर लिए थे जिसमें वक़्त से उसके लिए बहुतेरी उम्मीदों की चाह झलक रही थी, भावना को पता था कि वक़्त से उम्मीदों की गठरी से अभी दोनों अनभिग्ज्ञ है पर उसे दिख रहा था सामने विशाल प्रेम का अतहा समंदर जिसके एक ही छोर पर शैफाली और मोहित अभी कुछ दूर दूर खड़े थे, जाने किस वक़्त की उमड़ती लहर उन्हें एक साथ लाएगी ये सोच वह मन ही मन हौले से मुस्करा उठी !!!

भावना अपने सामने खड़ी शैफाली को देखती हुई उसका चेहरा देखती है – “कुछ खास पहनना है तुम्हें तो  चलो मेरे साथ |” कहती हुई शैफाली का हाथ पकड़कर कमरे से बाहर ले जाती है|

अब वह भावना के कमरे में खड़ी उसको अपनी अलमारी खोलते हुए देख रही थी| कुछ पल तक अपनी अलमारी को खंगालते दो तीन कपड़ो की तह अपनी दोनों हथेलियों के बीच दबा कर लाती वह उन्हें बिस्तर पर उझेलकर उसमें से एक नारंगी नीला मिश्रित शेड का एक बंधानी कुरता उसकी ओर बढ़ाती हुई कहती है|

“ये तुमपर खूब फबेगा वैसे तुमपर तो हर रंग खिलता है|” कहती हुई शैफाली के गुलाबी कपोल छूती हुई उसकी हैरान आँखों को देखती हुई अब आँखों से ही प्रश्न करती है|

“मुझे ये पहनना है|”

शैफाली भावना की देह पर लिपटी साड़ी को छूती हुई सपाट भाव से कहती है तो भावना हौले से हँस पड़ती हुई उसके हाथो के बीच में वो कुरता रखती हुई बोली –     

“जरुर पहनाती पर रास्ते में अभी तुम इसे संभाल नही पाओगी पर वादा है किसी रोज मैं अपने हाथों से तुम्हें साड़ी पहनाऊगी – अभी ये पहनकर आओ |”

ये सुन शैफाली के चेहरे पर एक संतुष्टि भरी मुस्कान तैर गई, वह झट से कपड़े लेकर कुछ ही पल में सलवार कुरता पहनकर उसके सामने खड़ी हो गई तो भावना एकटक उसे निहारती रह गई, रोजाना विदेशी परिधानों को उसकी देह पर देखती देखती उसे लगा ही नही था कि नया परिधान उसकी देह इतनी सहजता से आत्मसात कर लेगी कि एक पल को कुछ असहज नही लगेगा| भावना उसके कंधो को पकड़े उसे ऊपर से नीचे निहारती उसे ड्रेसिंग टेबल के स्टूल पर बैठा देती है|

अगले ही पल कानों में बाली, गले में छोटे मोती की माला पहनाती हुई उसकी कलाई रंग बिरंगी कांच की चूड़ियों से भर देती है, ऐसा करते भावना के मन में वही आवेग और उत्साह उदोलित हो रहा था जब  बचपन में वह अपनी नीली आँखों वाली बार्बी डॉल को भारतीय परिधान से सजाते हुए उसे महसूसती थी| शैफाली उस क्षण खुद को आईने में देख चौंक गई| वह बिलकुल बदल गई थी, नख से सिर तक वह कुछ और हो गई थी| भावना अगले ही पल उसके माथे पर एक चमकती बिंदी लगा कर उसका माथा चूमती हुई उसका चेहरा अपने दोनों हाथों में भरती हुई उसे अपलक कुछ पल तक निहारती रही|

तभी दरवाजे की कॉल बेल से उन दोनों की तन्द्रा भंग हुई, तो दोनों साथ में दरवाजे की ओर बढ़ी| दरवाजा भावना खोलती है और शैफाली झट से दरवाजे के बाहर देखती है पर वहां जय का चेहरा देख उसका चेहरा कुछ उदास हो जाता है|

अब तक पवन भी नहाकर आता हुआ देखता है कि बाकी के अपने कुछ कुरते शैफाली के बैग में रखती हुई भावना शैफाली को विदा करती है वहीँ सभी शैफाली के बदले रूप को ख़ामोशी से जितना देख रहे थे उससे कहीं अधिक समझ रहे थे|

क्रमशः……………….

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