
शैफालिका अनकहा सफ़र – 27
चारों ओर लहलहाते खेत और शाम को लौटते ढोर डंगर के साथ खेतों पर उतरती धूप अब बहुत ही सुहानी लग रही थी, पीछे बैठी शैफाली की नजर तो सड़क के आस पास के परिदृश्य से जैसे हटने का नाम ही नही ले रही थी| बगल में बैठा समर बीच बीच में उसे गाँव के किसी न किसी दृश्य का बखान कर देता| शैफाली की नज़रों के लिए सारे दृश्य बेहद अनजाने थे, वह तो बस ऑंखें फाड़े ताके जा रही थी| बीच बीच में बोर्ड को पढ़ती तो समर बताता कि पंजाब के बरनाला से गुजरते वे मोगा जा रहे है|
अब शैफाली का ध्यान मोहित की ओर जाता है जो अभी अभी बगल से आगे निकला था वह पूछती है कि लम्बी ड्राइविंग से मोहित परेशान तो नहीं हो जाएगा !! तो जय बताता है कि मोहित के लिए लम्बी ड्राइविंग कोई नई बात नहीं है वह कई बार अकेले ही गाँव आ जाता है अपनी कार से, वैसे भी मोहित को कही भी जाना हो चाहे वह कितना भी दूर हो वह कार से ही रास्ता तय करता है पर किसी लोकल कन्विंस को यूज़ नही करता| ये सुनते पता नही क्यों शैफाली के मष्तिष्क ने संध्या वाली घटना से इस बात का लिंक जोड़ लिया| उसे अहसास था कि जीवन में घटने वाली घटनाओं से कभी कभी सम्पूर्ण जीवन उससे प्रभावित हो जाता है, वह अपने में सोचती अब खामोश हो गई|
अब धीरे धीरे अँधेरा होने लगा रास्ते भी अब संकरे हो चले थे, ऐसे ही किसी मोड़ पर इरशाद मसखरी में मोहित से कार आगे कर लेता है और फिर उसे आगे आने नही देता, जय और इरशाद एक दूसरे को देखते धीरे धीरे हँस रहे थे, उन्हें पता था कि मोहित को इस तरह परेशान करने पर वह किस कदर उखड़ जाता था| अब अँधेरा होते गाँव की गलियाँ सूनी हो चली थी, कहीं कहीं चौपाल में लोग झुण्ड में बैठे नजर आ रहे थे तो मिट्टी के घरों से साँझ के चूल्हे से धुँआ उठता हुआ दिखाई दे रहा था| एक भीनी भीनी सी खुशबू चारों ओर फैली थी जिससे उनके पेट के चूहे और जोर से उछलने लगे|
आखिर एक जगह इरशाद कार रोक देता है और आस पास देखता हुआ जय से पूछता है – “यही रोकना है न – आगे तो कार नही जा पाएगी|”
वे तीनों अँधेरे में कार की हेड लाइट से उस जगह का जब तक कुछ अंदाजा लेते कुछ चेहरे उन्हें अपने पास आते दिखे| समर और जय झट से कार से उतर गए फिर अन्दर बैठी शैफाली अँधेरे में उभरती कुछ आवाजे सुनती है|
पहले जय और समर की आवाज थी|
“पैरी पौना ताई जी|”
“जिन्दा रह पुत्तर |”
अब तक इरशाद भी कार से उतर चुका था|
शैफाली अन्दर बैठी बैठी ही कोई गूंजती हुई आवाज सुनती है|
“साहे घर परोहने आए हन |” (मेहमान)
“परोहने नही बेटे आए है |” कोई मरदाना आवाज गूंजी|
फिर सब मोहित को पूछते है तो पीछे आ रहा है बताते है वे|
फिर कुछ बच्चों का शोर सुनती हुई किसी को गाड़ी से सामान निकालने का सुनती है|
“जी अइया नूँ |”
इससे शायद जय को शैफाली का ध्यान आता है और वह कार की खिड़की से झांकता हुआ उसे बाहर आने का इशारा करता है| शैफाली बाहर आती है, तो पल में ही सबकी आवाज जैसे अँधेरे में समा जाती है, चारों ओर ख़ामोशी में बस धीरे से फुसफुसाहट उसे महसूस होती है|
“ओह कोन है !!”
“ये शैफाली है -|” शैफाली देखती है कि जय आगे बढ़कर उसका परिचय दे रहा था – “मोहित के कॉलेज के प्रिंसपल की भतीजी है – लन्दन से आई थी तो उन्होंने मोहित के साथ भेज दिया – गाँव देखने – अब बेचारा मना कैसे करता|”
“ए लो इसमें मना करने जैसी क्या बात है |’
शैफाली और बाकी दोनों भी जय की ओर औचक देखते रहे कि आखिर वह ऐसा क्यों बोल रहा है फिर भी सब ख़ामोश रहकर उसमें अपनी सहमति दे देते है| तभी दूसरी कार की हेड लाइट से सबका ध्यान उस ओर जाता है जहाँ अब मोहित कार खड़ी कर उनकी ओर बढ़ रहा था|
मोहित आगे बढ़कर सबके पैर छूता है तो आर्शीर्वाद की झड़ी सी लग जाती है, बच्चे उसकी ओर दौड़े आते है, वह शायद गुड्डी को ढूंढ रहा था जो हमेशा उसके आने पर दौड़ती आती हुई क्या लाए पूछती थी|
एक ही पल में उनका सारा सामान सबके हाथों में था और वे सब अन्दर की ओर चल रहे थे, चलते चलते मोहित शैफाली की ओर एक नजर देखता चलता हुआ धीरे से जय के कानों के पास आता हुआ फुसफुसाता हुआ पूछता है –
“क्या बताया ??”
“किस बारे में ?”
“अब ज्यादा अनजान मत बनो – शैफाली के बारे में !!”
“वो ऐसा है उसकी तुम चिंता मत करो – मैंने कहा था न कि मैं सब देख लूँगा तो चिल यार |” कहता हुआ जय तेजी से भीड़ में घुस जाता है|
पीछे चलता मोहित जय की खुडपेंच से अच्छे से वाकिफ़ था पर हालात को देख उसने चुप रहना ही मुनासिब समझा|
शैफाली ने जानकर यहाँ आने के हिसाब से प्लेटफार्म हील पहन रखा था ताकि आसानी से चल सके| अब वह सब एक बड़े लोहे के गेट से अन्दर आते है, वहां सामने एक खुला मिट्टी का आंगन था जहाँ इधर उधर छितरी पड़ी कई खाट पड़ी थी तो एक किनारे एक टुकड़ा टेंट के पास बड़ी की अंगीठी सुलग रही थी जिससे उठता धुँआ अपनी भीनी भीनी खुशबू से उन सबके पेट के चूहों में और उछल कूद मचा देता है| उस आंगन से जुड़ते कई कमरे या घर जैसे बने थे, जिसके अन्दर से आती बल्ब की धीमी रौशनी ढ़ेरों आवाज से साथ वहां मौजूद थी| सभी एक कमरे की ओर बढ़ने लगे तो शैफाली भी उसी ओर बढ़ने लगी पर साथ चल रही स्त्रियों ने उसकी बाजू पकड़ कर दूसरी ओर के लिए उसे अपनी ओर खीँच लिया| शैफाली देखती है कि वो भीड़ अब मर्द और औरतों के रूप में दो हिस्सों में बंट गई थी|
वे जिस कमरे की ओर बढ़े वहां बड़ी सी खाट पर दोनों हाथ जमाए उसके दार जी बैठे थे, वे सब मिलकर सत श्री अकाल कहते उनके पैरों की ओर झुकते है तो वे झट से अपने बलिष्ट बाँहों में एक साथ उन चारों को समेट लेते है और खूब आशीष देते उनका हालचाल पूछने लगते है| वे सभी उनके आस पास बैठ जाते है|
इधर शैफाली चारों ओर रंग बिरंगी ओढ़नी वाली औरतों से घिरी थी, सभी औचक उसका रंग रूप निहार रही थी| शैफाली के कितना भी देशी लिबास में होने पर भी वे उसकी विदेशी देह को अच्छे से जान पा रही थी| शैफाली उनको आपस में खुसुर पुसुर कर खिलखिलाते हुए देखती रही तो झट से भाभी आकर उसकी बांह थामती हुई सबकी तरफ देखती हुई बोली – “कदे नहीम वेखिया चिट्टी कुड़ी ?”
ये सुन सब एक साथ खिलखिला कर हँस पड़ी|
“गुरमिते पानी लेयाओ |”
उनके आवाज लगाते एक दो चोटी वाली प्यारी सी लड़की एक बड़ा सा गिलास लेकर उसकी ओर भागती हुयी आती शैफाली की ओर गिलास बढ़ा देती है तो वह भी भरपूर मुस्कान से गिलास लेकर झट से पी लेती है और आखिरी घूंट पीते हलके से उसके गले से एक आह फूटी तो सामने खड़ी लड़की अपना मुंह दबाकर हँस पड़ी जिससे शैफाली के चेहरे पर भी हँसी आ गई तभी वह देखती है कि औरतों की भीड़ को चीरती एक बड़ी लड़की उसे अपनी ओर आती दिखी, उसकी रंगत सबसे कुछ अलग सी थी वह उसका चेहरा गौर से देखने लगी तो उसे लगा कि उसकी देह हल्दी की रंगत से कुछ कम पीली थी| वह उसके पास आती झट से शैफाली का हाथ अपने हाथों के बीच लेती हुई बोली – “कि तुसी खाना खा लई है?”
शैफाली कुछ समझ नही पाती वह बस अपने आस पास के चेहरों की ओर ताकने लगती है| शैफाली जो कई विदेशी भाषाएँ अच्छे से बोल समझ लेती थी पर उसके लिए पंजाबी समझना थोड़ा मुश्किल हो रहा था|
“मेरे नाल आके बेठ जा|” ऐसा कहती वह उसे अपने साथ खींचती हुई खिलखिलाती अपने साथ ले चलती है तो पीछे से आवाज आती है – “शैफाली पुत्तर तुम गुड्डी के साथ जाओ मैं खाना भिजवाती हूँ |”
अब तक सब समझ गई कि वह उन सबकी भाषा को नहीं समझ पा रही है तो वह गुड्डी को शैफाली के लिए कमरा ठीक करने वह उसे हाथ मुंह धुला देने का निर्देश देती बाहर की ओर चल देती है|
शैफाली के लिए ये सब बिलकुल अलग ही अनुभव था, इससे पहले उसने कभी इतने सारे हँसते चेहरों को अपने आस पास कभी महसूस नही किया था, वह हैरान तो थी पर उतना ही उसे मज़ा भी आ रहा था, उनका बात बात में खिलखिलाते हुए ओढ़नी में मुंह छुपा लेना तो कभी बिना किसी हिचकिचाहट के उसके आस पास अपनों की तरह बना रहना| अगले ही पल वह कई लड़कियों से घिर गई थी, उनमें से कोई उसे कमरे के पास के छोटे हिस्से में मुंह हाथ धुलवा लाई तो कोई तौलिया लिए खड़ी थी उसके कमरे में पहुँचते उसके लिए खाने की भरी थाली इंतजार कर रही थी जिसकी भीनी भीनी खुशबू अब तक के किसी भी खाने से बिलकुल अलग थी| अब उनमें से एक लड़की मेज ढूंढने गई, शैफाली समझ गई| वह झट से थाली के सामने आराम से बिस्तर पर आलथी पालथी मारकर बैठ गई जिसपर सभी लड़कियां खिलखिला कर हँस पड़ी| आखिर इतने दिन भावना के पास रहकर उसने बैठने का ये तरीका भी अनजाने ही सीख लिया था जो यहाँ उसके काम आ रहा था|
सम्बन्धों के नाम होते है पर प्यार के रिश्ते सिर्फ प्यार से बंधे होते है उनका जुड़ाव एक अदद एक दूसरे को सिर्फ प्यार से जोड़े रखता है, ऐसा ही कुछ रिश्ता था उन तीनों का मोहित के परिवार से कि जब भी वे यहाँ आते तो मिलकर एक बड़ा परिवार बन जाते| सबकी आंखे जैसे उन्हीं की राह तक रही होती, वे भी एक एक करके सबसे मिल रहे थे, घर रिश्तेदारों से भर गया था| मोहित के बड़े भाई ने जब ये कहा कि अभी सिर्फ मंगनी की रस्म हुई है बाकि रस्में कल से शुरू होगी आखिर बिना भाईयों के कैसे बहन का ब्याह होगा तो सब भाई गले मिल गए|
गुड्डी अपने भाइयों के बीच खिलखिला रही थी, कोई चिढ़ा रहा था तो कोई बचा रहा था|
“अब न पूछेगी कि की लाए हो मेरे नाल वीर जी ?”
“हम तो जालंधर वालों के लिए सब लाए है|”
“जाओ मैं तुहाडे नाल बात नई करनी|”
गुड्डी झट से नाराजगी का अभिनय करती जाने लगी तो सब भाई उसे मनाते हुए रोकने लगे|
“अरे तेरे वास्ते भाइयों की जान भी हाजिर है अब बस बता देना सब तेरी पसंद की चीजें ला देंगें|”
यही समय था जब आंगन का हुल्लड़ सुन शैफाली उचककर अपने बिस्तर के पास की खिड़की के पार झांकती है| वहां का आनंद उसके मन को भी रोमांचित कर देता है| कुछ पल तो मुस्कराते वह हथेली से चेहरा टिकाए वही देखती रही पर कब सफ़र की थकान से बोझिल ऑंखें अपने आप तकिया पर डेह गई पता भी न चला|
“अरे पुत्तर रोटी तो खा ले आकर किनि दूर से सफ़र करके आए हन|” ताया जी वही आते दिखे तो गुड्डी “चलो न वीर जी|” कहती रसोई की ओर चल दी|
“पुत्तर जी तुम लोगों को देख कर ही मेरे कालजे में ठांड पड़ गई बस उम्मीद करवईया सभ वाडिया हो जाए|”
“ताया जी आप फ़िक्र छोड़छाड़ आराम से बैठ कर बस हमे निर्देश देते जाइएगा – फिर सारा गाँव देखेगा कि इतनी बढ़िया शादी न हुई होगी कहीं दूर दूर तक|” तीनों के मन की बात मुखर होकर जय के मुंह से निकली तो बाकि तीनों सहमति में मुस्करा उठे|
अबकि ताई जी की आवाज ने उन्हें फिर पुकारा तो उनके पेट के चूहे और तेजी से फुदक उठे|
“अब तो भूख सही नही जा रही |”
इरशाद, समर और जय रसोई की ओर बढ़े तो मोहित कह उठा –
“तुम लोग चलो मैं बठिंडा वाले मामा जी से मिल कर आता हूँ |”
“हाँ चालो मोहिते वे बीमार है कल्ल शायद चले जाए|”
मोहित बड़े भाई के साथ बाहर की ओर चल दिया|
रसोई पूरे लजीज खाने की खुशबू से तर थी तो तीनों झट से हाथ धोकर वही फर्श पर आलथी पालथी मारे बैठ गए और एक एक प्लेट अपनी तरफ सरका ली| घर के स्नेहमय भोजन में स्वाद से कहीं ज्यादा प्यार का लावण्य घुला था| चूल्हे की सोंधी सोंधी महक से लिपटा स्नेह भोजन के रूप में उनके सामने था| तीनो की प्लेट से जरा भी कम होता वे थाली भर देती, साथ साथ हाल चल भी लेती जा रही थी| गुड्डी फिर मोहित को बुलाने भागी चली गई|
“कुड़ी तो बहुत ही चंगी है अबी तो खाना खिला कर आराम से सुला दिया है पूछ लेना कोई और जरुरत हो तो मेनू दास्या|”
परजाई ठिठोली के मूड में उनकी तरफ देखती हुई बोली तो जय झट से बोल पड़ा|
“अब मुझे तो नही पता वो तो मोहित की मेहमान है उसी से पूछिएगा |”
“ओह !!” परजाई जी थमकर रोचकता से सुनने लगी, जय कह रहा था –
“हाँ परजाई जी – वो तो बाकायदा तीखा खाना खिला खिला कर प्रैक्टिस करा कर लाया है यहाँ|” फिर कहते कहते बाकियों की ओर देखता हुआ बोला – “क्यों भाई लोग सही कह रहा हूँ न – वैसे मुझे कुछ नहीं पता|” जय के कहने के अंदाज पर बाकि दोनों मन ही मन हँसते किसी तरह से अपनी हँसी पर काबू किए थे| अब तो ताई जी भी खाना परोसते परोसते रोचकता से सुन रही थी|
“मोहित को शैफाली के बारे में ज्यादा पता होगा आखिर दिल्ली भी उसी ने घुमाया – वैसे मुझे तो उनके बारे में कुछ नही पता |”
कुछ नही पता कह कह कर जय नमक मिर्च लगाकर खूब कहता रहा तो समर बीच में गला साफ़ करता हुआ उसकी तरह तिरछी निगाह से देखता हुआ कहता है –
“कुछ ज्यादा ही हो गया|”
“ऐसे कैसे पुत्तर अभी साग तो लिया ही नहीं|”
ताई जी सच में उसकी ओर परोसने बढ़ गई तो इरशाद जय की तरफ धीरे से झुकता हुआ कहता है – “
“अपनी पीठ मजबूत कर ले बेटा तूने ठुकाई का इंतजाम कर लिया है|” सुनकर जय के होठों के किनारे फ़ैल जाते है|
“चालो वीर जी रोटी खा लो|”
“अच्छा ठीक तू चल असी आंदे हन|”
जल्दी आने को कहती गुड्डी घर को वापस चल दी|
मिलने के बाद मोहित जोगिन्दर भाई के साथ घर वापस आते आते वे बात कर रहे थे – “चल मोहिते – बहुत देर हो गई – कल्ल तड़के से बहुत तैयारी करनी है – कनातें बी लगवानी है|”
“भाई जी तुसी फ़िक्र न करो – हम सब मिलकर कल से सारी तैयारी कर लेंगे |”
“वो तो है|” कहते हुए हँसते हँसते मोहित के कंधे पर हाथ रखते हुए आगे बढ़ते रहते है|
“ये कि है भाई जी |” चलते चलते मोहित का ध्यान घर से सटे एक नये मकान पर जाता है फिर थोड़ा गौर से देखता है तो उसके चेहरे पर दर्द मिश्रित मुस्कान आ जाती है – “निकुंज भवन !!!” शब्द होंठों तक आते आँखों को कुछ गीला कर गए, मोहित भाई जी की तरफ देखता है|
वे मुस्कराते हुए कह रहे थे – “तुसी इंकार कारन लाई भी जो रूपए भेजते थे उसी से यहाँ घार बनवाया है अभी तो मेहमान ठहरे है यहाँ फिर विआह के बाद इसके एक बड़े हिस्से में प्राथमिक स्कूल और दूसरे हिस्से में दवाखाना खुलेगा – इस वाडिया काम से चाची जी का नाम सदा याद में रहेगा – है न !”
मोहित के रुंधे गले से फिर कोई शब्द न निकल पाया, बस धुंधली यादों में माँ की तस्वीर उभर आई|
“लेकिन भाई जी वो रूपए तो मैंने घर की मदद के लिए भेजे थे|”
“ओए तू इसकी चिंता न कर – यहाँ सब चंगा है जी दूसरा ट्रेक्टर भी खरीद लिया है और इस बार तो पिछली बार से ज्यादा अच्छी फसल हुई है – कल्ल चालना तड़के खेत पर चलेंगे साथ – तब वेखिया |”
दोनों भाई बात करते करते अब घर तक आ गए थे|
“मोहिते पुत्तर हुना तक कित्थे सी?” रसोई में दोनों को आता देख ताई मुस्कराती हुई बोली – “दोनों भाइयों का अज्ज की बातों नु पेट भरना है कि!!”
मोहित के आते जय छुपी नज़र से उसे देखता हुआ तुरंत उठ जाता है तो जोगिन्दर भाई झट से बोल उठे – “चलो तुम लोग बहुत थके होगे मैं त्वाडे नाल सोने का प्रबंध करता हूँ|”
“भाई जी उसकी आप चिंता न करो हम अपना ठिकाना खुद बना लेंगे |”
फिर मोहित को देखते तीनों अपनी हँसी रोकते रोकते बाहर निकल आते है इससे मोहित का ध्यान उन पर जाता है तो उसे कुछ शंका तो होती है पर जल्दी ही उनसे ध्यान हटा कर वह खाने के लिए बैठ जाता है|
“अभी कार सही से पार्क करने और गाड़ी से सामान निकालने चलो|” इरशाद की बात सुन समर टोकता है तो बाकि दोनों सर पर हाथ मारते बाहर निकल पड़ते है|
अब भूख वाकई उनके बर्दाश्त के बाहर थी| वे जब दो थाली लगाने लगी तो मोहित कह उठा –
“भाई जी आपने भी नहीं खाया !!”
“त्वाडे नाल जो खानी थी रोटी |”
दोनों भाइयों को साथ में हँसता देख परजाई अपने सर की ओढ़नी ठीक करती थाली में परोसती हुई बोली – “लाला जी को किसी और के साथ खाने का इंतजार होगा पर वो तो खा कर सो गई पर तुसी फ़िक्र न करो असी उसका वाडिया ध्यान रखेंगे – |”
परजाई की बात सुन मोहित के गले में ही कौर अटककर रह गया, वह परजाई की ओर देखता है जो मंद मंद मुस्करा रही थी|
“क्या परजाई जी मैय्नु कुछ पूछया शैफाली के बारे में ?”
“एलो मैय्नु तो नाम बी न लिया |” वे इस तरह से बोली कि रसोई में मौजूद सबके एक साथ ठहाके गूंज उठे जिससे मोहित सर नीचा किए झेपता हुआ अगला कौर तोड़ने लगता है|
खाना खा कर रसोई से निकलते वह उन तीनों की खबर लेने इधर उधर देखने लगता है पर तीनों गधे के सींग की तरह गायब हो गए थे| मोहित छत की ओर जाने लगा तो भाई ने पुकारा – “कित्थे मोहिते – किसे ढूंढ रहा है – कुड़ी नू ?”
“कि भाई जी तुसी भी – मैं तो इन तीनों को देख रहा हूँ पता नही कहाँ छुपे बैठे है |”
“उनू छाड़ मेरे नाल डेरे चल तड़के वही से खेत पर चालेंगे|”
मोहित को पता था कि ये घर उन तीनों के लिए अजनबी नही है वे अपना ठिकाना आराम से ढूंढ लेंगे पर उनकी शैफाली और उसको लेकर पकाई खिचड़ी से बस उनको पकड़कर पीटने का मन हो रहा था उसका पर अपने गुस्से को अभी जब्त करता भाई जी संग चल देता है|
—————————–क्रमशः…………..