लन्दन में पली बढ़ी शैफाली एक बिगडैल और बिंदास लड़की है जो लन्दन में ही रह रहे अपने पिता से भी कई सालो से नही मिली| यहाँ तक कि उनके आखिरी वक़्त में भी उनसे मिलने नहीं गई तब उसके पिता उसे अपनी जायदाद पाने के लिए उसके लिए एक आखिरी शर्त रख कर जाते है कि उसे भारत देश में किसी अनजान संग पूरे छह महीने रहने होंगे !! क्या शैफाली अपने मरते पिता की आखिरी शर्त मानेगी ? या उसके जीवन में कोई नया ही मोड़ आएगा ? जानने के लिए पढ़े शैफालिका…..एक अनकहा सफ़र मेरे यानी अर्चना ठाकुर के साथ…
शैफालिका अनकहा सफ़र – 1 @Heart Touching
हॉस्पिटल के वार्ड के बेड पर लेटे लेटे अपनी जिंदगी की घड़ियों को मानों दीवार घडी की टिक टिक से वे गिन रहे थे, एक पल और बीत गया अब अगला पल भी…ऐसा करते करते हर पल मानों हर एक टिक टिक के साथ बीता जा रहा था और बेबस से वे हर लम्हें को गुजरते हुए देखे जा रहे थे| अब घडी से नज़र हटा कर वे दरवाज़े की ओर देखते है, शायद उनकी नज़र को किसी का इंतजार था…हर आहट पर मन बार बार दरवाजे की ओर भाग जाता और उतने ही शून्यता से निराश वापस भी लौट आता| अचानक दरवाज़ा खुला और जो चेहरा अन्दर तेजी से प्रवेश करता है उसे देखकर उनके मन ने गहरा उच्छवास खींचा पर इंतजार करती नज़र जैसे उस आगंतुक के पीछे ही निहारती रह गई|
आने वाला शख्स अन्दर आते एक नज़र उनकी बेचैन देह को तो दूसरी नज़र उनके आस पास चलती मशीनों को देखता हुआ पुनः अपनी नज़र उनकी अधीर होती नज़रों पर जमा देता है|
“तुमाको भालो दिखाचे !!”
वे धीरे से मुस्करा कर उसकी आँखों में अपनी ऑंखें डालते हुए कह उठे – “आखिर नहीं आई न !!”
अब आगंतुक के लिए उनकी नज़र से नज़र मिलाना मुश्किल हो गया, वे उनके इधर उधर नज़र फेंकते हुए कहने लगे – “दिन भर तुम्हारा दिया काम तो करता रहा – जा ही नहीं पाया – हो सकता है उसे तुम्हारी तबियत का सन्देश मिला ही न हो |”
वे अब उसके चेहरे से अपनी नज़र हटाकर अपना सर तकिया की खोह में और गहरे से समाते हुए कहने लगे – “पता है न चैटर्जी मरते आदमी से झूठ नही बोलते |”
“श्रीधर …!!” उनकी आवाज कांप गई|
“मुझसे कोई हमदर्दी मत रखो – सब मेरे ही पापो का कर्म है – सही कहते थे बड़े – स्वर्ग नरक सब यही है – अब मैं अपने ही हिस्से का नरक भोग रहा हूँ |”
“तुम पागल है क्या – तुम ठीक हो जाएगा |” वे जल्दी से उनके बेड के पास आते उनकी हथेली थामते हुए उनकी आँखों की झिलमिल पुतली को बेबसी से देखते रहे|
“डॉक्टर बोला कुछ – नहीं न – तुम हॉस्पिटल इलाज कराने आया है और जल्दी ही ठीक होकर जाएगा – समझा और रही बात तुम्हारी वसीयतनामा की तो दोस्त की बात नहीं टाल सकता तो ही बनवा रहा हूँ – समझा|” वे लगभग डांटते हुए उस पर बरसे|
इसके विपरीत वे अपनी धीमी आवाज में कहने लगे – “डॉक्टर क्या बोलेगा – मैं खुद अपनी खत्म हो रही सांसो को महसूस कर पा रहा हूँ – बस एक आखिरी बार शैफाली को सामने देखने की चाह थी पर लगता है अपने हिस्से का नरक लेकर ही जाऊंगा ऊपर |” कहते हुए उनके होंठो के किनारे अपनी बेबसी पर हलके से फ़ैल जाते है|
अब शायद दोस्त को बहलाने के लिए उनके पास के सारे शब्द चुक चुके थे, धीरे से अपने रुंधे लगे को थूक की गटकन ने सयंत करते वे कहते है – “ज्यादा न बोल – आराम कर – अमि आसी |”
वे अपने दोस्त का हाथ सहलाते सांत्वना देते उस चेहरे को देखने लगे जो कुछ समय पहले तक उनकी नज़रों में सबसे मजबूत चेहरा था आज उसे उसके हालातों ने कितना बेबस बना दिया कि ढेर संपति का मालिक जो हजारों की भीड़ से हमेशा घिरा रहता आज अपनी जिंदगी के इस अंतिम पल में बिलकुल तन्हा अकेला था, यहाँ तक की उसकी अपनी बेटी भी उसके पास नहीं थी|
तभी डॉक्टर नर्स के प्रवेश करते उसे बाहर जाना पड़ता है, पर जाते हुए वह फिर अपने दोस्त श्रीधर की आँखों में अपनी बेटी के आ जाने की आखिरी उम्मीद जैसे अपनी आँखों के सुपूर्त करता जिसे वह अपनी जिम्मेदारी मान चैटर्जी अपने अधेड़ शरीर को जितना तेज चला सकता था, उस रफ़्तार में वह हॉस्पिटल का कोरिडोर पार कर बाहर आ जाता है|
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लन्दन की सर्द हवा से बचने वह अपने लॉन्ग कोट का फीता और कसकर बांधते अब उस फ्लैट के सामने खड़ा था जिसके दरवाजे के उस पार उसके दोस्त श्रीधर की उम्मीद थी, एक इंतजार था अपनी बेटी शैफाली के लिए| वह दरवाजा खटखटाने जा ही रहा था कि दरवाजा तेजी से खुलते उस पार से एक लड़का और लड़की अपनी चिपकी देह के साथ झूमते हुए बाहर निकल रहे थे, अब दरवाजे की इस पार से ही वह अन्दर का सारा जायजा ले पा रहे थे|
अन्दर से तेज तेज म्यूजिक की जैश आवाज की गूंज पर मदहोशी से झूमते कई लड़के लड़कियां अपने में खोए बस नाचे जा रहे थे| इससे बेखर कि उनके चेहरे सिगरेट के धुंए से धुंधले हुए जा रहे|
सामने दिखने वाला हर चेहरा विदेशी था पर नशे की दुनिया में गुम होते इस नई पीढ़ी को देखना उनके लिए कभी सहनीय नही रहा भलेही ये चलन यहाँ की सरजमीं का अभिन्न्य अंग ही क्यों न हो पर वे तो शैफाली को उसके पिता की हालत पर बताने आए थे बल्कि वे उसे अपने साथ लिवाने आए थे| ये सोच वे तेजी से उस अधखुले दरवाजे से अन्दर की ओर प्रवेश करते हर चेहरे को गौर से देखते पहचानने की कोशिश करने लगे कि किसी बिखरे लम्बे बालों वाले लड़की के साथ नाचते एक लड़के को पहचानते वे उस लड़के को पुकारते उसके कंधे पर हाथ रखते हुए शैफाली के बारे में पूछते है तो वह भी झूमते हुए अपनी उंगली से एक ओर इशारा कर झूमता रहता है|
वे उस दिशा में बढ़ते हुए अब अपनी नज़रों के सामने कोच पर अधलेटी किसी काया को शायद पहचान जाते है जो अपनी मदहोशी में एक हाथ में बोतल थामे सिगरेट के बड़े बड़े छल्ले उगलती सबसे अलग लेटी थी|
वे उसके नजदीक जाते उसकी ओर झुकते हुए उसे आवाज लगाते है| वह अपनी नशे में डूबी देह को हलके से उठाती उनकी तरफ एक क्षणिक नज़र डाल जैसे सब अनसुना कर फिर सिगरेट होठों से लगा लेती है इस पर वे फिर कुछ तेज आवाज में उससे कहने लगते है – “शैफाली तुम्हारे पिता बर्मिघम के हॉस्पिटल में अपनी जिंदगी के आखिरी क्षण में तुमसे मिलना चाहते है |”
वह जैसे सब अनसुना करती उस तेज म्यूजिक में हलके हलके झूमती हुई एक बड़ा घूंट अपने गले के नीचे उतार लेती है|
ये देख फिर से वे और तेज आवाज में लगभग चीखते है –
“शैफाली तुम्हारे पिता मरने वाले है|’ यही पल था कि गाने की डिस्क खत्म होते कमरे में नीरव ख़ामोशी में उनकी आवाज गूंज जाती है और सभी ये सुन अवाक् उनकी तरफ देखते शांत खड़े हो जाते है|
अब वे शैफाली की ओर तो सभी की नजरे उन दोनों की ओर थी पर इसके विपरीत शैफाली अपने हाथ की पकड़ी बोतल पूरी खत्म करती झूमती हुई उठकर स्टीरियो की तरफ अपने लड़खड़ाते क़दमों से बढ़ती हुई डिस्क फिर से स्टार्ट कर वही खड़ी झूमने लगती है पर वहां मौजूद हर शख्स अब उनकी अगली प्रतिक्रिया पर अपनी नज़रे गड़ा देता है| वे भी अपना धैर्य खोते उसकी तरफ तेजी से आते उसका कन्धा पकड़कर झंझोड़ते हुए चीख पड़े –
“शैफाली तुम्हारे पिता एक आखिरी बार तुम्हें देखना चाहते है पिता न सही मरते आदमी की आखिरी ख्वाहिश समझ कर ही एक बार सिर्फ एक आखिरी बार तुम मेरे साथ चलो|’ उसके हरेक शब्द विनती से लबरेज था|
शैफाली उनका हाथ अपने कंधो से झटकती हुई अब अपनी झूमती देह को सयंत कर सीधे उनकी आँखों की ओर देखती है वे भी उसकी तनी नीली आँखों को हैरानगी से देखते रह जाते है वह दांत पीसती हुई कह रही थी –
“जाओ और अपने मिस्टर सेन को बोल दो मेरे पास टाइम होगा तो आ जाउंगी सो प्लीज् लीव मी|” कहती हुई उनके चेहरे से नज़र हटाती डिस्क का वैल्यूम थोड़ा और बढ़ाती फिर से झूमने लगती है, ये देख बाकि के मौजूद लड़के लड़कियां फिर से धुएं का गुबार उड़ाते झूमने लगते है अब इसके बाद उनके लिए यहाँ और देर खड़ा होना दुश्वार हो गया तो वे किसी तरह से खुद को जब्त करते बोझिल क़दमों से वहां से बाहर की ओर निकल गए|
उनकी ऑंखें जो देख रही थी वह किसी संस्कृति का दोष था या परवरिश का इस पर उनका चेतन मन कुछ न कहता अब ये सोचने लगा कि आखिर किस तरह से फिर से अपने दोस्त श्रीधर के सामने जाकर क्या कहेंगे कि उसके अंतिम वक़्त में भी उसकी बेटी उससे मिलने आने के बजाय पार्टी में मशगूल है| इसी सोच में वे सीधे कार लेकर फिर से दो घंटे का सफ़र तय करते बर्मिघम पहुँच कर उस वार्ड के सामने खड़े थे जिसके पार उनका दोस्त अपनी अंतिम घड़ियाँ गिन रहा था|
क्या शैफाली अपने पिता के पास जाएगी? या वक़्त उन सबके हाथों से फिसल जाएगा !!
क्रमशः……………