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शैफालिका अनकहा सफ़र – 30

अब घर पूरी तरह से मेहमानों से भर गया था, शैफाली को जिस कमरे में ठहराया गया था अब वहां  उसके साथ पूजा आ गई थी|

बिस्तर पर औंधी लेटी शैफाली के पैर हवा में आगे पीछे डोल रहे थे, उसकी नज़रों के सामने खड़ी पूजा अपने बैग से कपड़े निकालकर सहेजकर रख रही थी, फिर एक पीले रंग का सलवार कुर्ता निकालकर उसकी आँखों के सामने नचाती हुई पूछती है – “शैफाली जी देखिए ..|” उसकी बात बीच में ही काटती हुई शैफाली उसे टोकती हुई बोल उठी – “ प्लीज़ डोंट बी फॉर्मल – शैफाली जी से भी मैं उतना ही सुनती हूँ जितना शैफाली से|”

इसपर वह धीरे से हंसती हुई बोली – “ ओके जी |” फिर अपने दांतों के बीच जीभ दबाती अपने सर पर हाथ मारती हुई फिर हँस पड़ी – “शैफाली ये देखो – आज की हल्दी रस्म के लिए ये ड्रेस अच्छी है न !!”

“हल्दी की रस्म – ये क्या है !!” भौं उचकाकर वह पूछती है तो हैरत में पड़ी पूजा उसके पास आकर बैठती हुई बोली – “अरे हल्दी की रस्म – मैं बताती हूँ – शादी से पहले लड़के लड़की के घर में ये रस्म होती है जिसमें उसके घर के सदस्य हल्दी लगाकर शगुन करते है – |”

शैफाली अब उठकर बड़े ध्यान से उसकी बात सुनने लगती है|

“शादी से पहले होने वाली दुलहन को सब मिलकर हल्दी लगाते है – पहले परजाई ही शगुन करती है फिर एक एक करके सब लगाते है हल्दी फिर परजाई जी कुँए से पानी लाकर उसी से उसे नहलाती है|”

पूजा के कहने के अंदाज से शैफाली के चेहरे पर रोचकता पसर जाती है – “अच्छा|”

“और क्या – अभी देखना सब हल्दी खेलेंगे – घर में किसी को भी नहीं छोड़ा जाएगा – बड़ा मजा आएगा – तो चलो तैयार हो जाओ – तुम भी कुछ पीला पहनना|”

“ओके |” कहती हुई शैफाली झट से पलंग से उठती हुई अपने बैग में कपड़े देखने लगी तो पूजा भी वही आती उसके बैग में से कोई पूरी पीली लॉन्ग स्कर्ट और नारंगी टॉप निकालकर उसके सामने करती हुई कहती है – “ये पहनो बड़ा अच्छा लगेगा इसके नारंगी पोल्का डॉट्स से तो ये और खिल उठा है और बाल खुले छोड़ देना – इन सुनहरे बाल पर पीली ड्रेस में बिलकुल विदेशन परी लगोगी|” ये सुन शैफाली खिलखिलाकर हँस रही थी पर पूजा जोश में कहे जा रही थी – “फिर देखना तुम्हें देख उन तीन बहने का मुंह कैसे खुला का खुला रह जाएगा|”

“कौन तीन बहने ??” हँसते हँसते शैफाली पूछती है|

“अरे खुद ही देखना – बिलकुल अगल सी दिखती है देखने में भी और जब अपना मुंह खोलतीं है तब भी |”

शैफाली उसे हैरत से सुन रही थी|

“परजाई जी के चाचा की है ये तीनों बहने – अपने आप को जाने क्या समझती है अपने बाल तीनों ने हलके भूरे करा रखे है और कपड़े भी तीनों एक ही तरह के पहनती है और रहती भी हमेशा एक साथ ही है पता है मुझे न उन्हें देखते सिंड्रेला की वो तीनों सौतेली बहने याद आ जाती है|” ये कहते पूजा कस कर हँस पड़ती है|

“अच्छा !!”

“हाँ तीनो जब किसी रिश्तेदारी में जाती है बस गिटर पिटर अंग्रेजी बोलती अपने को विदेशी दिखने की भरसक कोशिशे करती रहती – मुझे तो बड़ा गुस्सा आता है उनकी नौटंकी देख के – परजाई जी भी उन्हें पसंद नहीं करती पर क्या करे रिश्तेदार जो ठहती|” अबकि कहते कहते थोड़ी संजीदा हो उठी – “शैफाली देखना तुम्हारे सामने भी कितना बनेगी और पूरी शादी भर तीनों मोहित वीर जी के पीछे पीछे डोलती रहेंगी|”

ये सुन शैफाली की हँसी थम गई और शांत होकर वह पूजा की ओर देखती रही|

“मेरा बस चलता न तो इन्हें मजा चखाती – हमेशा हर बात पर हाँ हाँ मैं तो ये हूँ मैं तो वो हूँ कहती रहती है |” पूजा कहती कहती पलंग पर बैठती है तो कोई आवाज उनके कानो से टकराती है जिसमें उनके लिए बुलावे की पुकार थी ये सुन पूजा जल्दी से कहती है – “चलो जल्दी से तैयार होते है फुआ बुला रही है|”

फिर दोनों दरवाज़ा उड़ाकाकर एक दूसरे से पीठ कर कपड़े बदल कर तैयार होने लगती है तभी दरवाजे पर दस्तख होती है तो शैफाली को तैयार देख पूजा आ जाओ कहकर उस ओर देखने लगती है तो उसकी आंखे फैली रह जाती है तीनों बहनें एक साथ उस कमरे में प्रवेश करती है|

अब एक तरफ तीनों बहने तो दूसरी ओर उनके सामने शैफाली और पूजा थी जो एक दूसरे को देख अब धीरे से मुस्करा रही थी|

“हाय माई सेल्फ मीतू, शी इज मीता, एंड मीनू एंड आई थिंक यू आर शैफाली फ्रॉम लन्दन, ऍम अ राईट !!” भौं उठाती वह अंदाज में हलके से मुस्कराती उसकी तरफ हाथ मिलाने को हाथ बढ़ा देती है|

“ओला, कोमोडस्तास – इस्तो ई मोई बिएन – एरीस माला|” सर झुकाकर बड़ी प्यारी सी मुस्कान के साथ शैफाली कहती है|

शैफाली की सुन उनके चेहरे की हवाइयां उड़ती देख पूजा धीरे से हँस दी|

“थैंकू जी हमे भी बहुत सारी लैंग्वेज आती है पर वो है न कि हमे अपनी भाषा नही भूलनी चाहिए – अच्छा हम चलती है बस तुमसे इंट्रो करने आए थे – बाय|” झट से एक साँस में कहती कमरे से तुरंत तीनों चली जाती है|

उनके जाते शैफाली मुस्कराती हुई पलंग पर बैठ जाती है तो पूजा उसके पास आती हुई बगल में बैठती हुई पूछती है – “वैसे तुमने क्या बोला था !!”

“मैकसिकन स्पैनिश – ओला मतलब हाय और कोमोडस्तास मतलब कैसी हो – इस्तो ईमोई बिएन मतलब मैं अच्छी हूँ और एरीस माला मतलब तुम बुरी हो|”

“अगर इसका मतलब उन्हें पता चल गया तो आज के बाद से अपनी अंग्रेजी झाड़ना भूल जाएंगी तीनों|” कहती हुई पूजा और शैफाली हँसते हँसते दोहरी होती पलंग पर गिर पड़ती है|

“तुम तो अपनी बंगाली भी बोल देती तो भी इनकी समझ नहीं आने वाली थी|”

“बंगाली !!”

“हाँ शैफाली सेन बंगाली हो न – तो आती होगी न !!”

शैफाली न में सर हिलाती है तो पूजा हैरत से देखती है – “तो घर में भी कोई नहीं बोलता !!”

“मुझे भारत आए अभी कुछ महीने ही हुए है इससे पहले मैं लन्दन में अपने दोस्तों के साथ रहती थी |”

“अच्छा – !!’

वे साथ साथ बातें करती बाहर निकलने लगती है –

“मेरी फ्रेंड केनी और एडवर्ड हम तीनों साथ में रहते है – मेरी फ्रेंड केनी भाषाविद है उसी से मैंने हिंदी , स्पैनिश और थोड़ी बहुत जर्मन सीखी वो बहुत सारी भाषाए बोल लेती है|”

“अबकि जर्मन में बोलना तो देखना तीनों तुम्हारे सामने नजर नहीं आएंगी|” कहती हुई वे खिलखिलाती हुई बाहर तक आती है जहाँ से ढोलक की थापों की आवाजे आनी शुरू हो गई थी|

शैफाली देखती है लगभग लड़कियों ने पीले रंग के कपड़े पहन रखे थे, चारों ओर अजब सी खुमारी थी, गाँव के शाम के धुंधलके में सोंधी सोंधी खुशबू के साथ तंदूर की आंच की गर्मी वह आंगन से गुज़रते हुए महसूस कर रही थी, वहां एक कोने में खाने की व्यवस्था चल रही थी| शैफाली सब देखती हुई चली आ रही थी कि संगीत की आवाज के साथ एक तेज आवाज सुन उन दोनों का ध्यान आँगन के उसी हिस्से पर टिक जाता है| पूजा शैफाली का हाथ छोड़ उस ओर थोड़ा झुककर देखती है तो हैपी को वहां देख उस ओर चल देती है उसके पीछे पीछे शैफाली भी चल देती है माजरा जानने|

खाना बनने के हिस्से में इधर उधर बड़े बड़े बर्तन रखे थे, वही घर का पुराना नौकर ननकू पानी के पाईप लगा कर बर्तनों में रखी सब्जी धो रहा था तो उसके सामने हैपी खड़ा तेज तेज स्वर में उससे लड़ रहा था| ये देख पूजा झट से वहां आती हैपी को पुकारती हुई पूछती है –“कि गल है हैपी – ?”

छोटा सरदार अपनी कमर में हाथ रखे ननकू की तरफ इशारा करता हुआ कहता है – “साडी साईकिल गन्दी कार दी इसने|”

पूजा देखती है कि वही बगल में खड़ी उसकी साईकिल पर उसने कुछ मारकीन के गीले कपड़े डाल रखे थे और नीचे बैठा अब वह बर्तनों पर झुका हुआ था|

“ननकू कि होया ?”

“मैं काज कर रिया हा|”

ननकू अपनी बात पूरी भी नही कर पाया था कि बीच में ही हैपी जोर से बोल पड़ा – “मेरी साईकिल जान कर गान्दी कर दी|” कहता हुआ उसकी तरफ उछला तो पूजा जल्दी से उसको पीछे से पकड़ लेती है पर गुस्से में वह हवा में इधर उधर हाथ हिलाने लगता है|

“अरे हैप्पी छड न – ओह शरीफ है|”

वह हाथ पैर हवा में मारता रहा और ननकू धीरे धीरे हँसता हुआ देखता अपना काम फिर करने लग गया|

“कोई गल नही – चल हैपी – सबसे लड़ता फिरता है|”

आखिर मुंह बनाते मजबूर होता वह पूजा के साथ चलते चलते पीछे पलट कर ननकू को देखता हुआ कहता है – “मैं न छडनगा|”

छोटे सरदार का ये सारा नजारा दूर से देखती शैफाली हँस पड़ी थी|

हल्दी की रस्म ने जैसे सारे माहौल को ही अपने रंग में रंग लिया था, गुड्डी को चारों ओर से घेरे घर की सारी स्त्रियाँ उससे हँसी ठिठोली कर रही थी, पूजा भी शैफाली संग वही आकर बैठ गई| गुड्डी के होने वाले पति बिजली विभाग में अभियंता थे तो सभी इसी बात को लेकर तरह तरह से उसे चिढ़ाते ढोलक की थापों संग गा रहे थे….

“काला शाह काला, मेरा काला ई सरदार…..

गोरेआं नु दफा करो, मैं आप तिल्ले दी तार….

काला शाह काला….

“नाम दस |”

गाते गाते सखी नाम लेकर चिढ़ाने पूछा तो गुड्डी झट से बोल पड़ी – “बलवीर जी |”

इसपर सखियों के हँसते अपनी बेखुदी का ख्याल आते वह फिर शरमा कर छुईमुई सी सिमट गई|

इसी हँसी ठिठोली के बीच उसकी सखियों को किनारे कर परजाई हल्दी तेल लगाती लगाती उसकी नाक पकड़ कर हौले से हिलाती हुई बोली – “नाम नहीं लेंदे अपने उनका |” गुड्डी शरमा गई| शैफाली हैरत से सारा नजारा देखे जा रही थी| अब सखियाँ मिलकर उसे हल्दी लगा रही थी, पूजा संग शैफाली के हाथों में भी हल्दी का लेप देकर परजाई दोनों को उस ओर भेजती है| पूजा शैफाली को दिखाती हुई उसकी हथेली में भी हल्दी तेल का लेप देती उसे भी अपनी तरह लगाने का इशारा करती गुड्डी को लगाने लगती है| शैफाली लेप सँभालने अपने दोनों हथेलियों में लेप समेटती हुई उठती है तो खुद को संभालती उसकी ओर झुकी जिससे उसके खुले बाल सारे चेहरे पर पसर जाते है, उन्हें समेटने वह अपनी हथेली का लेप भूलकर झट से आँखों के पास के बाल हटाती है जिससे अगले ही पल उसकी आंखे कडुआ जाती है| पूजा उसी पल बढ़कर उसे संभालती है| उसके हाथों का लेप पोछती वह उसके बाल पीछे कर देती है तो परजाई जी अपने आंचल से उसके चेहरे पर लगी हल्दी पोछने लगती है लेकिन हल्दी का अंश आँखों में जाने से वह अपनी आँखों मलने को बेचैन हो जाती है तिसपर वे उसे अपनी आंख को धोने को कहकर पूजा को साथ जाने को कहती है, शैफाली उस रंग में भंग नही डालना चाहती थी तो पूजा को साथ चलने से मना कर अकेले खुद चले जाने को कहती स्त्रियों की भीड़ से निकलने लगती है तो परजाई जी अपनी छोटी सी बेटी गुरमीत को शैफाली के पीछे भेज देती है|

शैफाली जिस पल उस कमरे से अपनी एक आंख दबाए निकल रही थी उसी पल उसके पीछे वह तीनों बहनें खनकती हुई वहां आ पहुँची और गुड्डी से हंसीं करती हल्दी तेल उसे लगाकर उनमें से बची हल्दी और अच्छे से अपनी हथेली में फैला कर मीतू परजाई की ओर देखती हुई बाहर की ओर भागी और कमरे के बाहर के गलियारे पर बिजली की लड़ियाँ लगवाते मोहित के पीछे जाकर चुपके से उसकी पीठ पर कसकर थापे मार खिलखिलती हुई दूसरी ओर भागी|

मोहित जब तक कुछ समझता वह दूर खड़ी हँस रही थी तो कमरे से झांकती लगभग निगाहें उसकी इस खा जाने वाली निगाह पर कस कर हँस पड़ी थी|

मोहित फिर लड़ियाँ ठीक करवाने लगता है तो फिर किसी अन्यत्र धक्के से उसे पता चल जाता है कि अबकि उन तीनों में से मीता ने उसके पीछे हल्दी लगा दी है जिससे वह फिर उन स्त्रियों के झुण्ड की ओर घूर कर देखता है|

“लाला जी रस्म होन्दी है|”

मोहित देखता है कि सभी उसको देख देख कर हँस रही थी तो दूर खड़ी उन तीनों में से मीतू अपने अंदाज में मटकती हुई बोल रही थी – “मरजावां – असी सुनिया सी शहर वाले किसी का बकाया नई रगदे|”

अब तो उसका गुस्सा सर पर चढ़ जाता है वह खार खाया एक दम से परजाई को दूर से ही देखता हुआ चीखा – “परजाई जी वेखना अब जो होगा उसके लिए ये ही जिम्मेदार होंगी|”

कहता हुआ झट से अंदर आता हल्दी का एक कटोरा अपने हाथ में लेता हुआ उस कमरे से तेजी से बाहर निकलने लगता है तो कुछ नज़रे उस तमाशे को देखने उसके पीछे पीछे हो लेती है|

जब तक मोहित बाहर आता है तो मीतू उसकी नज़रों से नदारत हो चुकी थी तो वह उसी दिशा में कटोरा हाथ में लिए बढ़ता है| उसका चेहरा गुस्से में तना था और उसके पीछे पीछे चलती दर्शकों की नज़रे खिलखिलाती हुई उसका पीछा कर रही थी|

मोहित गुस्से में कटोरा लिए इधर उधर देख रहा था कि तभी पीली चुन्नी से सर ढके उसे कोई साया नजर आती है और झट से वह उसके सर से चुन्नी हटा कर कटोरे की सारी हल्दी उसके सर पर उड़ेल  देता है, एक दम से दम साधो नज़ारा हो जाता है| मोहित अपनी गुस्से भरी आँखों से अपने सामने वाली के सर से टपकता चेहरे पर फैले हल्दी के पीछे के चेहरे को गौर से देखा तो अगले ही पल उसका गुस्सा कपूर की तरह उड़ जाता है|

उस पल आस पास खड़े सभी उस दृश्य को देख कसकर हँस पड़े थे, उसके बगल में खड़ी छोटी गुरमीत अपनी हथेली से मुंह दाबे हँस रही थी| मोहित के हाथ में कटोरा जैसे चिपककर उसे स्तब्ध कर गया था| मोहित को बिलकुल अंदाजा नही था कि वो शैफाली होगी, शैफाली तो मूर्ति बनी रह गई अभी अभी वह अपने चेहरे की हल्दी धोकर निकली थी और गुरमीत द्वारा दी चुन्नी से चेहरा पोछ रही थी|

सबकी हँसी के बीच दूर खड़ी मीतू हाथ मलती रह गई क्योंकि वह तो चाहती ही थी कि मोहित उसे खोज ले पर उसकी जगह अब शैफाली थी और ये देख उसका चेहरा लटक गया था|

————————-क्रमशः

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