
शैफालिका अनकहा सफ़र – 31
ज्यों ज्यों साँझ ढलने लगी सभी अब वहां आने लगे जहाँ पंगत में बैठ कर भोजन कराया जा रहा था| शैफाली के दुबारा नहाकर आने के बाद पूजा उसको उस पंगत में बैठाकर अभी गई ही थी कि मीतू शैफाली को देख उसके पास आ कर बैठ गई और बात करने लगी|
“बड़ा बुरा हुआ तुम्हारे साथ – मोहित जी ने अच्छा नही किया – मैं होती न कभी उनकी तरफ मुड़कर भी न देखती|”
शैफाली अब उसकी ओर देखती हुई फीकी सी हँसी हंसती फिर सामने देखने लगती है|
“पता है मेरे बाल भी तुम्हारे जैसे थे पर वो क्या है न जी यहाँ इंडिया में धूप बड़ी तेज होती है – उसी से थोड़े गहरे हो गए – नहीं तो बचपन में मुझे सब अंग्रेजन ही बुलाते थे|” गर्व से कहती वह अपनी आंखे झपकाती हुई मुस्कराई |
“मेरी मॉम तो कहती है कि एनआरआई से शादी होगी तुम्हारी|” कहती कहती अपने में ही शर्माती हुई वह शैफाली की ओर देखती है जो उसकी बातों की ओर कोई ख़ास दिलचस्पी नही ले रही थी|
तभी बाकि की दोनों बहनें भी उसके पास आकर बैठती बारी बारी से कुछ न कुछ शैफाली से पूछने लगती है|
“लन्दन ब्रिज देखा है !!”
“स्टैचू आफ लिबर्टी !!”
अबकि शैफाली की हँसी छूट गई जबतक वह उन तीनों को बताती कि स्टैचू आफ लिबर्टी न्यूयॉर्क में है तब तक ननकू हाथ में बाल्टी लिए आता सबके पत्तल में सब्जी डालने लगता है| अब शैफाली उनकी तरफ से पूरी तरह ध्यान हटा कर पूजा को देखने सामने देखती है तो उसके कानों में फिर उनकी आवाज गूंजती है वे ननकू पर चिल्लाती हुई इतरा इतराकर बता रही थी कि सब्जी बहुत ऑयली है| शैफाली सच में उनका नाटक देखकर त्रस्त हो उठी थी तभी जोगिन्दर भाई जी वहां आते है| वे उनके सामने और इतराने लगी तो वे जाते हुए ननकू को आवाज लगाते हुए कहते है –
“ओए ननकू – कुड़ी नू सब्जी धो कर लाना |” जोगिन्दर भाई जी के ऐसा कहते पंगत में बैठे आस पास के सभी लोग हँस पड़ते है, ये देख दोनों मुंह बिचकाकर पत्तल की ओर झुक जाती है|
पूजा देर से आई तब तक शैफाली खाना खाकर उठ गई| शैफाली अब तक सीख चुकी थी कि पंगत से उठते उसे अपना पत्तल खुद उठाना है, ये देख जोगिन्दर भाई जी मुस्करा रहे थे पर कहा कुछ नहीं|
शैफाली आंगन के कोने वाले उस हिस्से की तरफ गई जहाँ पत्तल डाल वह हाथ धोकर मुड़ी ही थी कि किसी आवाज ने उसके कदम रोक लिए| वह आवाज की दिशा की ओर बढ़ती आँगन के नीम के पेड़ के नीचे की छाया को गौर से देखने लगी|
“सॉरी कहना था मुझे|” उस अँधेरे से निकलकर मोहित अब उसके सामने था|
शैफाली हैरत से उसे देख रही थी| वह अब समझी कि हल्दी के बाद से आखिर तब से मोहित क्यों उसके सामने नही पड़ा, वह उसकी हालात देख धीरे से मुस्करा दी| मोहित फिर माफ़ी दोहराता उसकी तरफ देखता है तो शैफाली होठों को तिरछा कर कह रही थी|
“मेरी बहुत प्यारी ड्रेस खराब कर दी – कैसे माफ़ कर दूँ|”
“अब जो हो गया वो वापस तो नही कर सकता पर..|” मोहित कुछ सोचता उसकी तरफ देख जैसे सोचने लगा|
शैफाली भी उसके पर के आगे को सुनने उसकी तरफ देखती रही|
“पर मैं तुम्हारे लिए दूसरी ड्रेस ला दूंगा|”
शैफाली कुछ पल मौन उसकी आँखों की ओर देखती रही मोहित भी खामोश खड़ा जैसे उसकी हाँ सुनने के बाद ही जाना चाहता था|
“माफ़ी तो नहीं सजा दे सकती हूँ|”
मोहित चौंक जाता है|
“ड्रेस लेने मुझे भी साथ ले जाना पड़ेगा|”
मोहित उस पल समझ नही पाया क्यों वह झट से हाँ कह बैठा और कल शाम तक जाने की बात कह तुरंत वहां से चला गया| शैफाली भी अब किसी की आहट पाकर वहां से चली गई|
अगले पूरे दिन मोहित कोशिश करता रहा कि किसी तरह से कोई बाजार जाने का काम उसे सौंप दे और शैफाली की बात वो पूरी कर सके पर सभी उसके बाजार न जाने की मंशा को समझते हुए घर के अन्दर के काम बता रहे थे| वह बातों बातों में जय और इरशाद से भी गुज़ारिश कर चुका था क्योंकि सीधा वह कह नहीं सकता था और वे सभी उसे अनसुना कर बाहर निकल गए|
आखिर ढलती दुपहरी को उसे मौका मिला जब एक कमरे से उसे परजाई जी अकेली दिखी तो झट से उनसे कह सुनाया कि गलती से शैफाली की ड्रेस खराब होने से अब उसका फर्ज है कि वह उसे ड्रेस खरीद कर दे तो वह बाजार जाना चाहता है, ये सुन कुछ पल तक तो वे उसका चेहरा देखती रही फिर दुपट्टे का कोना दबा कर भी अपनी हँसी न रोक पाई|
“अच्छा तभी सुबह से बाजार का काम पूछा जा रहा था – शैफाली को जो ले जाना है – लाला जी बड़े छुपे रुस्तम निकले|”
“परजाई जी आप तो मेरी परेशानी समझो – मैं कौन सा जाना चाहता हूँ पर जो गलती हुई है उसका भुगतान तो भुगतना पड़ेगा न – अब शैफाली खुद खरीदने जाना चाहती है तो क्या करूँ मैं !”
“बड़ी खूबसूरत सजा मिली है|” कहकर वे हँसी तो मोहित झेंपता उनकी तरफ सर उठाकर न देख पाया|
“आपको कुछ मंगाना हो तो बता दीजिए मैं निहाल सिंह जी तहसील जा रहा हूँ लेकर उसे|”
“ये लो वहां न मिलेगा शैफाली लायक कुछ – ऐसा करो कुड़ी को लेकर लुधियाना चले जाओ – कल सवेरे सवेरे निकल जाओ एक घंटे की दूरी पर तो है शाम तक वापस आ जाओगे – |”
यही वो पल था जब पीछे से आती पूजा और गुड्डी अपनी अपनी कमर पर हाथ रखे मोहित को घूरती हुई कह रही थी|
“कौन जा रहा है लुधियाना !!”
फिर जैसे ही मालूम पड़ा कि मोहित शैफाली को ले जा रहा है तो दोनों शिकायत कर बैठी –
“अच्छा हमे तो न ले गए बाजार कभी वीर जी |”
“होर क्या – मैनू तो कभी वीर जी मोगा तक न ले गए कुछ खरीदवाने|”
सभी की शिकायत की पोटली खुलते देख मोहित थोड़ा स्थिति सँभालते हुए बोला –
“अरे तो चलो न साथ – जो जो लेना है लेलेना – मैंने कब मना किया|”
“वाह वीर जी आपके तो स्वर ही बदल गए – पर तुसी फ़िक्र न करो हम न जाएंगी साथ|” कहकर सभी एक साथ हँस पड़ी जो मोहित को उस पल लगा कि कहाँ भाग जाए यहाँ से|
बात और बिगड़ गई जब वे तीनों बहने भी हँसी फुहार के बीच झट से टपक पड़ी|
“हमे भी जाना है बाज़ार – आप जा रहे है तब तो हम भी चलेंगे साथ|”
तीनो का समवेत स्वर जैसे एक साथ सबके होश उड़ा ले गया| अब मोहित को कुछ कहते न बना तो परजाई जी तुरंत बात संभालती हुई बोली – “कल तो मेहँदी का सगना है – मेहँदी वाली तो शाम तक चली जाएगी – ओह फिर तुम लोग आपस में लगवा लेना मेहँदी|”
ये सुन तीनों एक दूसरे का चेहरा देखने लगी और मन ही मन सारा गुणाभाग लगाने लगी कि वे आपस में मेहँदी एक दूसरे को लगाएँगी तो कोई किसी को अच्छी मेहँदी नहीं लगाएगी और मेहँदी वाली चली गई तो शादी में खूब भर भर कर मेहँदी लगाने का ख्वाब उनका चूर चूर हो जाएगा और रही बात मोहित के संग जाने की तो और किसी दिन मनवा लेगी अपनी बात अभी कल मेहँदी तो लगवा ले ताकि शादी में उनकी मेहँदी सबसे खूबसूरत लगे|
उनकी चुप्पी देख परजाई जी समझ गई कि तीर निशाने पर लगा है तो वह फिर मोहित को कहती है – “तो ठीक है ले जाना इनको साथ|”
“न जी कल न जा सकेंगे पर अगली बार हमे जरुर ले चलिएगा|”
उनके ये कहते मोहित को ही नही बाकि के दिल को भी सुकून आ गया था|
*** क्रमशः हल्दी के बाद मेहँदी लगा के रखना……