
शैफालिका अनकहा सफ़र – 32
शैफाली को नही पता कि क्यों वह भी मोहित के संग जाने को बेचैन है, वह अपने ही मन की उथल पुथल को समझ नही पा रही थी| बस इतना ही खुद को बता पाई कि मोहित का उसके आस पास बना रहना उसे अच्छा लगता है कोई अज़ब सी पूर्णता का अहसास दे जाता उसका साथ| उसका साथ हर पल क्षणिक लगता कि उसके साथ का पल कितनी जल्दी बीत गया इससे उसके पास रहने की चाह और उसके अंतरस बलवती हो उठती| वह जानती थी कि मोहित सबसे अलग है उन लडको की भीड़ से भी जो लन्दन में हर पल उसके आस पास बनी रहती थी| वह मोहित को सोचती मन ही मन मुस्करा लेती|
अगली सुबह शैफाली जल्दी से चलने को तैयार हो जाती है, मोहित कार की तरफ बढ़ता हुआ जान कर अपनी ओर घूरती जय, समर और इरशाद की निगाहों से बचता हुआ चुपचाप कार की तरफ बढ़ रहा था तो उसी वक़्त घर की लड़कियां दौड़ती हुई आती उसे अपनी अपनी लिस्ट पकड़ाने लगती है, मोहित मरता क्या न करता चुपचाप सबकी लिस्ट अपनी जेब के सुपुर्द कर निकलने लगा तो ननकू तेजी से हवा को चीरता हुआ उसके सामने आकर खड़ा हो गया मोहित हैरत सा उसकी ओर देखकर कुछ पूछता उससे पहले ही वह कह उठ –
“मैं भी चालंगा त्वाडे सांग बाज़ार |”
मोहित ऑंखें फाडे उसको देखकर समझता हुआ कुछ कहता कि तेज हँसी का ठहाका उसके कानों से टकराया, वे तीनों अपना पेट पकड़े उसकी हालात को देखकर अपनी हँसी काबू नहीं कर पा रहे थे|
“तो चालूँ मैं !!”
मोहित ने उनको घूरकर देखा तो वे तीनों झट से वहां फुर्र हो गए तभी जोगिन्दर भाई जी ननकू को आवाज लगाकर बुला लेते है|
ननकू जाते वक़्त मरमरी आवाज में मोहित की ओर देखता हुआ कहता है – “मैनू भी कुरता चाहिदा सी|” तो मोहित उसके आगे हाथ जोड़ता हुआ कह उठा – “अबी जा तू – तेरा सामान भी ले आऊंगा बस|”
ये सुन ननकू झट से हँसता हुआ चला गया| अब अगली आहट पर फिर वह गुस्से भरे चेहरे से देखता है तो सामने से आती शैफाली वही ठहरी रह जाती है| फिर खुद के चेहरे को जल्दी से ठीक कर मोहित शैफाली को बैठने का इशारा कर खुद भी जल्दी से बैठ वहां से निकलने लगता है| लम्बा रास्ता और उनके बीच देर की ख़ामोशी में उनके शब्द मौन थे पर मन नही| मोहित अपनी उड़ती हुई नज़र से एक क्षण को शैफाली को देख लेता| उसके खूबसूरत चेहरे पर मानों सातों बसंत खिल आया हो वह लगातार मुस्कराती शीशे से पार का नज़ारा मन भर भर कर देख रही थी| तब मोहित के जेहन में एक आकस्मिक ख्याल उमड़ आया… क्या सच में वह शैफाली को ही देख रहा है !!! क्यों वह भी उसके साथ जाने को इंकार न कर सका बल्कि सुबह से ही वह जाने को तैयार हो गया| तभी तो अपनी छुपी नज़रों से जय, समर और इरशाद उसे एकटक देख रहे थे| क्या सच में वह बदल रहा है !!! लेकिन लगातार बढ़ती नजदीकी कही फिर से उसे किसी अकेलेपन के ब्लैक होल में न धकेल दे| नही !! वह इतना उसके पास नही जाएगा कि लौटना मुश्किल हो जाए, वह आज सिर्फ उसे ड्रेस दिलाने जा रहा है वो भी अपनी गलती के खामियाजा स्वरुप बस और कुछ नही….ये सोचते वह बाकी का ख्याल अपने मष्तिष्क से झटकता अब सामने के परिदृश्य पर अपनी नज़र जमा देता है|
तब से लुधियाना की बाज़ार में कितनी दुकान दिखा डाली पर शैफाली ने कुछ पसंद ही नहीं किया आखिर उकताकर मोहित झुंझला पड़ा|
“तुम्हे कुछ लेना भी है या नहीं !!”
“नही |” अपनी हलकी मुस्कान के साथ शैफाली कहती है तो मोहित उसका चेहरा देखता रह जाता है|
“तो तुम्हें कुछ नहीं लेना था ?”
मोहित के प्रश्न पर शैफाली चुप रहती है| फिर कुछ पल की ख़ामोशी के बाद वह उकताते हुए कहता है – “अब यहाँ आ गए है तो तुम्हें कुछ तो लेना पड़ेगा वरना ये सजा हमेशा मेरे सिर पर मंडराती रहेगी|”
मोहित उसका हाथ पकड़कर अब किसी नए शोरूम की तरफ उसे लाता है|
वे दुकानदार के सामने बैठे थे और वह इससे पहले कि कुछ पूछता मोहित कुछ भी नया पर शादी में पहनने लायक दिखाने को कहता अब सामने देखने लगता है| कुछ ही पल में ढ़ेरों ड्रेस उनकी नज़रों के सामने थी| शैफाली फिर भी कुछ नहीं चुन पा रही थी पर मोहित चाहता था कि उनमे से वह खुद कुछ चुने तो दुकानदार इसको भांपते झट से अपने एक कारिंदे को आवाज लगाकर पुकारता है ताकि वह सामने खड़ा होकर एक एक ड्रेस अपने शरीर पर लगाकर उन्हें दिखाए| वह जैसे की कुरता अपने शरीर से लगाकर दुपट्टा सर से ओढ़ता है शैफाली अपनी हँसी नही रोक पाती, ये देख मोहित भी मुस्करा देता है| पर सामने खड़ा लड़का हर ड्रेस अपने शरीर पर डालने लगा तो इस नाटक से बचने आपस में दोनों की निगाहे मिलती है और झट से वे एक ड्रेस पर अपनी सहमति दिखा देते है|
फिर पेमेंट के वक़्त शैफाली अपना कार्ड बाहर निकालती है तो मोहित उसे टोकता हुआ धीरे से कहता है – “इसका पेमेंट वह नहीं करेगा तो उसकी सजा कैसे पूरी होगी|”
ये सुन शैफाली कार्ड वापस रख लेती है| अब तक मोहित के साथ रहते शैफाली ने कही भी कुछ खर्च नही किया, मोहित हर बार आगे बढ़कर पेमेंट कर देता, शैफाली के लिए ये बेहद अजनबी अहसास था पर था दिल के करीब….
दुकान से दोनों बाहर आ जाते है, बाजार पूरी रौनक में थी, शैफाली तो चलती हुई आस पास से अपनी नजर ही नहीं हटा पा रही थी वह मोहित से कह उठी कि उसे तो लग रहा है कि जैसे वह किसी प्रदर्शनी में है जहाँ बस कपड़ों के सिवा कुछ भी नहीं है, जैसे दुनिया तमाम के रंग यही समा गए हो, वह इससे पहले कभी किसी मार्किट में नही गई थी|
मोहित हैरान उसकी बात सुन रहा था वह बता रही थी कि लन्दन में ऐसी मार्किट कहाँ पर वहां भी वह ज्यादा नही जाती थी, इससे पहले कही घूमने भी नही निकलती थी वह बस जो चाहा ऑनलाइन मार्किट से मंगा लिया पर इन बाजारों की रौनक में आकर उसे आज लग रहा है जैसे ये न देखती तो कुछ छूट जाता उससे|
इसपर मोहित को भी मन में ये सोच सोचकर हलके से हँसी आ गई कि इससे पहले वह भी कहाँ कभी किसी मार्किट गया था| अब वे चलते चलते रंग बिरंगी ओढ़नी की दूकान पर खड़े थे| वह अपनी जेब से एक एक करके पुर्जी निकाल निकालकर दूकानदार को देकर सामान ले रहा था, यहाँ से निकलकर अब वे चूड़ियों की दुकान पर खड़े थे| खरीदारी करते अब एक उकताहट सी उसके शब्दों में आ गई जिसे सुन चूड़ियाँ बेच रही अम्मा तिरछी मुस्कान से मुस्करा कर उसके हाथ से पर्ची लेती हुई कहती है कि वे फ़िक्र न करे इसमें चूड़ियों का रंग और नंबर सब लिखा है वह सब ठीक से पैक कर देगी|
ये सुन मोहित ने राहत की साँस ली|
अम्मा अपनी दुकान में बैठी अपनी पोती को पर्ची देकर झट से शैफाली का हाथ ये कहती हुई पकड़ लेती है कि शादी व्याह में कलाई खाली नहीं छोड़ते, शैफाली देखती रह गई और अम्मा ने पल भर में ही सतरंगी चूड़ियों का एक सेट उसकी कलाई में सरका दिया, ये देख शैफाली मुस्करा उठी|
लगभग सारी खरीदारी कर कार में सामान रखते हुए मोहित एक गहरी साँस छोड़ता हुआ कहता है –
“मुझसे आज वो काम करा लिया गया जो मैंने कभी नही किया – चलो पूरा तो हुआ नहीं तो अगर आज कुछ छूट जाता तो वे सब मेरा जीना दूभर कर देती|”
“क्यों आज ऐसा क्या ख़ास था !!” कहती शैफाली उसके चेहरे की ओर देखती रही और वह अचकचाता मौन रह गया तभी शैफाली की कलाई की चूड़ियाँ एक साथ खनक पड़ती है, वे साथ में देखते है कि कोई छोटी लड़की अपने नन्हें हाथों में कई लकड़ियों की गुड़ियों को लिए उसके पास खड़ी उसका हाथ हिलाकर उनका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर रही थी|
उसकी ओर मुड़कर शैफाली उसे देखती रह जाती है, मोहित जल्दी से उसके पास पहुंचकर झुककर उसकी नन्ही आँखों में झांकता है जहाँ वक़्त की मार को धता पढ़ाती कई गुज़ारिश थी, वह झट से जेब से दो बड़े बड़े नोट निकालकर उसे देता उसकी अंक में समेटी दो गुडियां उससे लेकर उसे जाता हुआ देखता हुआ कहता है – “जब खुद के पास कोई सपना न हो तो किसी और का सपना अपनी आँखों में सजा लो तो जिंदगी और खूबसूरत हो जाती है|”
फिर उठता हुआ मोहित अचानक बात बदलता हुआ कहता है – “तुम्हें भूख नहीं लगी – चलो आज असली पंजाबी कुलचे खिलाता हूँ|”
ये सुनते एक तीखापन उसके कानो में रेंग गया जिससे वह चुहुक उठी|
अगले ही पल वे किसी रेस्टोरेंट की भीड़ के बीच कोने वाली टेबल पर आमने सामने बैठे थे| तभी मोहित का मोबाईल बजता है तो वह स्क्रीन में भावना लिखा देखकर खुद उठा लेता है|
दूसरी ओर से भावना उसका हालचाल लेती हुई कभी समय मिले तो शैफाली से बात करने की बात कहती है तो मोहित को कहना पड़ता है कि इस वक़्त वह उसी के साथ है| उधर से भावना कुछ सोचती चुप हो जाती है वह शैफाली को मोबाईल देकर धीरे से आता हूँ कहकर बाहर चल देता है|
वह उसकी फ़िक्र कर रही थी, अपनापन जता रही थी| इस वक़्त भावना से बात करना शैफाली को भी अच्छा लग रहा था|
फोन कटने पर वह सामने से मोहित को आता हुआ देखती है, उसके हाथ में कोई पैकेट था वह भौं उचकाकर उससे पूछती है तो मोहित उसे पास की कुर्सी पर रखता हुआ कहता है – “ननकू के लिए कपड़े लाया हूँ आखिर वह क्यों छूट जाए !”
“ननकू वही जो हमारे यहाँ काम करता है – पता है ननकू को भाई जी ऐसे ही किसी बाज़ार से लिवा लाए थे – अनाथ बच्चा था तब से वे उसका बहुत ध्यान रखते है – घर की मदद के साथ साथ उसे पढ़ने भी भेजते है पर उसका ध्यान ही नहीं लगता पढ़ने में|” एक साँस में वह कह गया|
“अच्छा एक बात पूछूँ ?”
वह आँखों से सहमति देती है|
“तुम्हें मैंने शायद ही कभी मोबाईल रखते देखा होगा ऐसा क्यों !!”
मोहित का प्रश्न जैसे उसे मन की अतहा गहराई में ले गया| मोहित अभी भी अपने प्रश्न के उत्तर के इंतजार में उसकी ओर ताक रहा था|
“असल में एक आदत सी हो गई है खुद को खुद में ही समेटे रहने की|”
“समेटे रहने की या छुपाए रहने की !!” वह बेबाकी से पूछता है|
वह कंधे उचकाकर मुस्करा देती है|
उनकी बातों के बीच खाने की दो थालियाँ उनके बीच रख दी जाती है| मोहित शैफाली की प्लेट में रखी मिर्च हटाता हुआ प्लेट उसकी ओर सरकाकर खाना शुरू कर देता है|
“मैं भावना के लिए भी यहाँ से कुछ ले लूँ |”
खाते खाते उसकी तरफ देखता है|
“हाँ क्यों नहीं – खाने के बाद फिर चलते है|”
अब दोनों अपनी अपनी प्लेट की ओर झुक जाते है|
कार जैसे ही रूकती है मोहित के साथ लाए सामान का इंतजार कर रही सारी लड़कियां दौड़ी दौड़ी उसके पास आ गई और अपना अपना सामान लेकर आंधी तूफ़ान सी वापस भाग गई मोहित कार से निकल भी नहीं पाया ये देख शैफाली को हँसी आ गई, उनके बीच में से छोटी सी गुरमीत शैफाली को नजर आई जो शायद लड़कियों संग वहां आ तो गई पर शैफाली को देख वही ठहर गई, उसे देख मोहित कार से निकलकर उसे गोद में उठा लेता है| वे अन्दर बढ़ ही रहे थे कि ननकू दांत निपोरता मोहित के सामने प्रकट हो गया|
“हाँ भई तू भी ले |” मोहित साथ चल रही गुरमीत को शैफाली की गोद में देकर ननकू को कार तक आने का इशारा करता है|
शैफाली गुरमीत का सलोना चेहरा चूमती हुई उसके हाथ में वही गुडिया थमा कर अन्दर चलने लगती है जिससे उन नन्हे हाथों से कुछ सूखी मेहँदी झड़ जाती है| शैफाली देखती है गिरती साँझ में सभी व्यस्त थे, घर का हर कोना जैसे मेहमानों से अट सा गया था इसलिए उसे गोद में लिए गुरमीत जिधर का इशारा करती वह उसी ओर कदम बढ़ा देती|
गुरमीत जिस कमरे के सामने लाई उस ओर समझने शैफाली देख ही रही थी कि उसकी गोद से झट से उतरकर उसका हाथ खीँच कर वह उसे अन्दर ले आती है| वह अन्दर आती हुई देखती है कि पलंग पर ताई जी बैठी थी, जिनके पास दौड़कर अब वह अपनी हाथ की पकड़ी गुड़ियाँ दिखा कर शैफाली की ओर इशारा कर रही थी|
“वाडिया है – अरे पुत्तर जी – आना अन्दर|”
शैफाली ज्यों ही अंदर जाती है वे हाथ पकड़ कर उसे अपने पास बुला लेती है, उनके पास बैठने पर वह देखती है कि ताई जी के हाथों में कोई घोल था जिसे बड़ी तन्मयता से लगातार वे अपनी उंगली से घोल रही थी|
“तो कैसा रहा – बाज़ार देखा !!”
“हाँ बहुत अच्छा लगा – |”
“ये क्या है ?” शैफाली उनके हाथ की ओर इशारा करती हुई पूछती है क्योंकि वो चीज़ भलेहि उसे आकर्षित न लगी पर उनका इस तन्मयता से उसे घोला जाना उसे जरुर प्रश्न पूछने पर मजबूर कर गया|
“ये – मेहँदी का घोल है – |”
“मेहँदी !!” शैफाली की ऑंखें चौड़ी हो जाती है|
“होर क्या – ये कुडिया तो पीपे वाली लगनी फिरती है – मैनू समझ नई आन्दी ओ – मैनू तो ये असली पत्तियां का लेप तैयार कर राखा है हम स्त्रियाँ तो घार के काम कर रात में यही लगा लेंगी|” फिर शैफाली की हथेली अपने हाथों में लेती हुई कहती है -“ला मैं तेरी हथेली विच मेंहदी लगा दूँ|” कहती हुई वे शैफाली की हथेली अपनी हाथों में समेटती हुई कहती रही – “पता है पहले हम सब सखियाँ मिलकर ऐसे ही घोल बना कर इन तीलियों से लहरिया, फुलकारियाँ बनाती थी – फिर आराम से सुखा कर इन पर चिन्नी नीबू का घोल लगाती, कभी कभी रंग गाढ़ा करने पता है तवे पर तेल और लौंग का धुँआ भी देतिया तब जाकर जो रंग चढ़ता वो ही मेहँदी का असली रंग होता पर आज कल तो पता नहीं कोन सा केमिकल डालते है छूते हाथ काला हो जाता पर वो लाल रंग नई आन्दा जो हथेली से उठकर मन तक उतर जाता था|” वे कहीं खोई हुई सी मन की कहे जा रही थी और शैफाली भी चाव से एकटक बस उन्हें सुनती जा रही थी|
“गुरमिते |” परजाई जी गुरमीत को आवाज लगाती वही आ रही थी|
“अरे वाह किन्नी सोनी मेहँदी लगी है|” अपने हाथ में खाने की थाली लिए वे आती हुई शैफाली की हथेलियों पर लहरिया और फूल पत्ती की फुलकारी देख चहकती हुई बोली|
शैफाली भी अपनी हथेली में लग चुकी मेहँदी उनकी आँखों के सामने कर खिलखिला पड़ी ये देख ताई जी जल्दी से बोली – “ऐ कि मैं तो भूल गई – पुत्तर तूने रोटी न खाई !!”
शैफाली अचकचा उठी तो बगल में बैठी परजाई जो गुरमीत को खिलाने के लिए थाली लाई थी अब उसकी ओर एक कौर बढ़ाती हुई बोली – “तो क्या मैं आज अपनी दोनों धिया नू रोटी नही खिला सगदी|”
ये सुन उस कौर को अमृत की तरह अपने गले के नीचे उतार शैफाली आँखों से मुस्कराकर फिर गुरमीत को अपने पास बुलाती हुई बोली – “ये डॉल तुम्हे पसंद आई पर तुमने मुझे थैक्यू तो बोला ही नहीं |” गुरमीत चलती हुई चुपचाप शैफाली के पास आ जाती है|
“शैफाली गुरमीते बोल नई सगदी|”
ये सुन शैफाली का दिल धक् से होकर रह गया, वह गुड़ियाँ से खेलती मासूम गुड़िया को देखती रह गई|
“बचपना में निमोनिया होने से उसकी आवाज चली गई – लड़कियों के लिए यहाँ बड़ी मुश्किल है तभी तो हम भी चाहती है कि यहाँ जल्दी से दवाखाना और सकूल खुले – |”
ये सुनकर शैफाली को लगा कि उस पल सब कुछ उसे धुंधला दिखने लगा जिससे वह अपनी ऑंखें झपकाकर अपने आँखों की नदी को रोक लेती है|
———————— क्रमशः………………
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