Kahanikacarvan

शैफालिका अनकहा सफ़र – 33

रात घिर आई और दिनभर की थकान से बोझिल लगभग सभी सोने जा चुके थे पर कोई था जिसकी आँखों में नींद की जगह ढेर शैतानी उतर आई थी| कबसे मौके की ताड़ में आज अपने शैतान दस्ते के साथ हैपी आंगन की सीढ़ियों के नीचे के अँधेरे हिस्से में अपने साथियों को क्या करना है धीरे धीरे समझा रहा था| फिर अपने साथ लाया पाउडर का डिब्बा उन्हें थमाता मेजर की तरह सबको निर्देशित कर चुपचाप खुद सीढ़ियों के ऊपर छत की ओर चल देता है|

छत पर ननकू अभी पहुंचकर सोने का उपक्रम कर ही रहा था कि उसके कानों से कोई आवाज टकराती है, एक पल वह अपना सर झटककर उस आवाज को अनसुना कर लेटने लगा पर फिर वही आवाज सुन वह एक दम से उठ कर बैठता आवाज को ध्यान से सुनते हुए मन ही मन बुदबुदाया ‘घुंघुरू दी वाज’|

वह डर कर अपने आस पास देखता है, छत पर बाकी सब सो रहे थे ये देख डर लगने पर भी उसके गले से कोई आवाज नही फूटी, वह डरकर झट से चादर सर से तान कर मन ही मन बुदबुदाता लेट गया पर कानों में आवाज अब उसके बहुत नजदीक आने लगी तो झट से चादर हटा कर वह उठ बैठता हुआ सामने अँधेरे में अपनी ऑंखें फाड़े देखता है, आवाज आनी बंद हो गई| अब न उससे लेटा गया न बैठा गया तो डरते डरते सीढ़ियों के पास जाता धीरे धीरे नीचे उतरने लगा|

उसकी आंखे अभी भी अपने आस पास के अँधेरे को घूर रही थी तभी सामने अँधेरे में दो चमकती आंख दिखते उसके हलक से चीख निकल ही पड़ी जिससे वह कई सीढियाँ एक साथ घबरा कर उतर गया| तभी धप की आवाज जो ठीक उसके बगल से आई, वह चौंक कर पीछे देखता है तो वो चमकती दो आंखे अब उसके बिलकुल नजदीक थी ये देख वह डरकर गलियारे की ओर लडखडाता हुआ भागता है| उसकी सांसे ऊपर नीचे होती हुई ऑंखें डर से फ़ैल गई थी|

शैफाली जाने किस सोच में पलंग पर बस लेटी थी पर नींद उसकी आँखों से कोसो दूर थी, वह चाहकर भी दूसरी ओर करवट नहीं ले पा रही थी, उसके हाथों की मेहँदी ताई जी ने चीनी के घोल से गीली रख छोड़ी थी इससे अपने हाथों को पलंग के नीचे किए वह एक करवट लेटी थी कि गलियारे से आती कोई आवाज से उसका ध्यान उस ओर जाता है जिससे अब वह अपना सारा ध्यान उस ओर लगा देती है, कोई लगातार आती आवाज उसे उठने पर मजबूर कर देती है|

मेंहंदी लगने से उसे नींद भी नही आ रही थी| शैफाली उठकर देखती है कि उसके बगल में लेटी पूजा पूरी तरह से बेखबर सो रही थी तो वह न जगे इससे वह धीरे से बिन आहट के उठती हुई अपने पैर से स्लीपर टटोलने लगती है पर बहुत देर इधर उधर पैर मारने पर जब नही मिलती तो नंगे पैर ही वह धीरे से दरवाजा खोल बाहर गलियारे की तरफ बढ़ गई| चारों को घुप्प अँधेरा था| सर्दियों का शुरूआती दिन होने और खुले प्रांगण में कुछ शीतलता महसूसती उसने अपने शरीर पर एक सफ़ेद चादर ओढ़ रखी थी| उस अँधेरे गलियारे में बढ़ती हुई वह चलते चलते किसी को आता देखती है तो किनारे खड़ी होकर उस ओर कसकर अपनी आंखे जमा देती है| तभी उसे लगता है कि उसके पैर किसी चिकनी मिट्टी से सन गए हो जैसे वह झुककर अपने तलवे उठाकर देखती है कि हलकी खुशबू उसके नथुनों में समाने लगती है|

छीछ.. छीछ..  कोई आवाज उसे अपनी ओर ध्यान आकृष्ट करती है| वह खम्भे की ओट के पीछे छुपी परछाई को देखती हुई इससे पहले कुछ समझती कोई दो जोड़ी हाथ उसे दोनों ओर से धकेलते खंबे की ओट में ले आते है|

‘साडे किए कराए विच पानी फेरने कि !!!’

शैफाली देखती है कि ये तो शैतानों की पलटन का सरदार हैपी सिंह था जो उसे नीचे की ओर झुकाए सारा कुछ इशारे से समझा रहा था| शैफाली उसकी गोद में पकड़ी बिल्ली और उसके गले में बंधी घंटी तो  गलियारे में फैले पाउडर की सफ़ेद चादर पर अपने छपे पैर देख सारा माजरा समझ जाती है| बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी दबाती वह इशारे से अब क्या ?? पूछती है तो हैपी उसकी चादर उसके सर पर डालता हुआ उसे बस एक तरफ से दूसरी तरफ जाने के लिए मनाने लगता है| वही से बैठी बैठी शैफाली गलियारे के कोने में दुबककर चलते ननकू पर निगाह डालती है तो उसकी बस हँसी छूटने ही वाली थी पर किसी तरह से अपनी हँसी जब्त करती वह जाने क्यों उसकी बदमाशी में साथ देने यूँही तैयार हो जाती है|

ननकू की बुरी तरह से घिग्गी बंधी हुई थी वह किसी तरह से अपने चारों ओर नज़र डालता आगे बढ़ ही रहा था कि फर्श पर सफ़ेद पैरो के निशान और सामने से आता सफ़ेद साया देख उसकी आवाज गले में ही घुटी रह गई, वह हाथ जोड़े पीछे भागा कि किसी देह से टकराते धड़ाम से गिर पड़ा|

नींद शायद मोहित से भी रूठी थी वह गलियारे की तरफ आ ही रहा था कि ननकू उससे टकरा गया उसे किसी तरह से उठाते हुए वह उसका डर से पसीने पसीने हुए चेहरा देखता है|

“बाबा… जी बचाओ मैनू – भू… भूतनी…|”

“ओए ननकू पगला गया क्या –|” वह उसे पकड़कर झंझोड़ता है|

“भूतनी भूतनी….|” हाथ से अपने पीछे की दिशा की ओर इशारा कर वह सरपट सीढ़ियों की ओर भागा|

“अरे सुन तो – अभी देखता हूँ कहाँ है तेरी भूतनी..!|”

एक तरफ ननकू सर पर पैर रखे भाग गया था तो दूसरी ओर मोहित को आता देख शैफाली सहित सारे बच्चे खम्बे के पीछे छुप गए थे, मोहित अब उसी ओर आ रहा था उन्हें पता था ऐसे समय वे गलियारे में आए तो पक्का पकड़ लिए जाएँगे|

शैफाली भी खुद को चादर में समेटे खम्बे के पीछे छुपी सोच रही थी कि क्यों बच्चों के बचपने में आई !! मोहित के कदम लगातार उस ओर बढ़ रहे थे, गलियारे में नाम मात्र के लिए दूर से जलते बल्ब की रौशनी आ रही थी इसलिए आंखे फैलाए वह उस अँधेरे की ओर बढ़ रहा था| खम्बे के नजदीक आते उसे चादर का एक टुकड़ा लहलहाता दिखा तो वह उस ओर हाथ बढ़ाकर तेजी से उस चादर को अपनी ओर खीँच लेता है|

ये उस वक़्त के लम्हे को कहाँ पता था कि उन अंधेरों में उसका किस उजाले से सामना होने जा रहा है| चादर जमीं पर गिर गई थी और मोहित की हथेली शैफाली की हथेली को कसकर अपने में भींचे अब वे दोनों एक दूसरे के सामने थे| उस पल जैसे सारी कायनात स्थिर हो गई, देह मूर्ति बन गई और ऑंखें अपलक उस ओर ताकती रह गई| नीरव पल की स्तब्धता जैसे हवा को समेट ले गई| वे खामोश एक दूसरे के हाथ थामे जैसे जडवत हो गए, दोनों की पलके उस औचक पल में अपलक खुली ही रह गई और  मौके को तलाशती धमाचौकड़ी चुपचाप निकल भागती है नीरवता में इस लेश मात्र की आहट से अचानक दोनों की तन्द्रा टूटी और वे झट से एक दूसरे का हाथ छोड़ कह उठते है –

“वो मैं आवाज सुनकर आया था|”

“सेम मैं भी बस आवाज सुनकर आई थी|”

कहते हुए दोनों हडबडाते हुए विपरीत दिशा की ओर तेजी से चल देते है| उस पल वापस लौटते कोई अज़ब खुमारी सी उनमें थी जिससे मदहोश होते अपने अपने स्थान में पहुँचते वे लेटते ही सो गए|

देर रात नींद लगने से सुबह तक शैफाली सोती रह गई फिर कुछ आवाज के शोर से उसकी आंख खुली तो उठकर एक भरपूर अंगड़ाई लेती वह देखती है कि पूजा वहां नहीं थी फिर वापसी की सांसों में खुशबू से उसे अपने तलवे में लगे पाउडर से फिर रात की सारी घटना याद आते उसको मन में हँसी आ जाती है| वह अपने बेतरतीबी से फैले बालों का सर के बीचों बीच जुड़ा बनाकर बाहर की ओर चल देती है|

बाहर आते आवाजे और स्पष्ट होती उसे गलियारे से उस ओर ले जाती है जहाँ परजाई जी हाथों में छड़ी लिए अपने सामने खड़े हैपी को हड़का रही थी और वह कान पकड़े उनके सामने खड़ा था|

शैफाली माजरा समझने उसने ज्यों पूछती भर है वह सारी राम कहानी एक साँस में कहती हुई बताती है कि हैपी ने अपनी शैतानी से उनकी नाक में दम कर रखा है….वह अपने हाथ में लिए पाउडर में डिब्बे को दिखाती हुई बोले जा रही थी कि उन्हें उसकी सारी शैतानी का अता पता है..|

शैफाली एक नज़र उस डिब्बे को तो दूसरे पल हैपी के चेहरे पर छाई मासूमियत देखती हुई झट से बोली – “इसमें इसकी कोई गलती नही है – ये मैंने ही मंगवाया था |”

वे एकदम से चुप होकर शैफाली का चेहरा देखती हुई फिर बोली – “रेहन दे शेफाली इसके भोले चेहरे पर तरस खाने दी जरुरत नई है – मैं सब जानतिया – इसका पढ़ने लिखने के अलावा हर चीज में मन लगदा है – होर तुझे पता है घार में शादी के नाम पर एक महीने से सकूल से छुट्टी लेकर बैठा है पर किताबना नु हाथ भी न लगाया तब से – सारा दिन बस घार में धमाचौकड़ी कर शैतानी ही करनी फिरनी है इसे |”

माँ को शैफाली की तरफ देखता देख धीरे धीरे कान से उसकी उंगलिया फिसलने लगती है जिससे वे फिर कसकर उसे घूरती है तो फिर से वह अपने कान कसकर पकड़ता हुआ अपने चेहरे पर आई भरपूर मासूमियत से शैफाली की ओर देखता है|

“इस बार इसे माफ़ कर दीजिए क्योंकि इस बार पूरी गलती इसकी नहीं है पाउडर सच में मैंने मंगवाया था|”

“शैफाली तू न पुत्तर इसकी भोली भाली मटर सी आँखों में मत आ |”

तभी उधर से कोई उन्हें कुछ पूछने आवाज लगाती है तो वे बीच में ही रूकती एक पल उसकी ओर तो दूसरे पल अपने सामने खड़े हैपी को देखती हुई कहती है – “अबकि तू न शैफाली के कारन बच गया अगली बार कुछ किया न फिर वेखना |”

आवाज की पुकार फिर उनकी तरफ आती है तो वे हडबडाती हुई उस ओर चल देती है|

उनके जाते हैपी झट से कान छोड़ शैफाली की ओर देखते हुए कहता है – “थैंक्यू जी – अब तो मैं आपको अपनी गैंग में शामिल कर सगदा हूँ |”

ये सुन शैफाली हंसती हुई हैपी की ओर देखती है जो हाथ मिलाने को अपना हाथ उसके आगे बढ़ाता हुआ कह रहा था – “माई सेल्फ हैपी सिंह जी और मेरी गैंग है हसदे रहो अते हसानदे रहो|”

ये सुन उसका बढ़ा हाथ थाम शैफाली को बड़ी तेज हँसी आ गई|

फिर चलती हुई वही गरियारे में आती हलकी धूप के बीच मोहड़े पर बैठती हुई बोली – “शैतानी में तो खूब दिमाग चलता है फिर पढ़ते क्यों नहीं हो !!”

“मुझे पढ़ाई में सब आन्दा है पर वो मास्टर है न – वो साडा दिमाग खाता है|”

“अच्छा वो कैसे !!”

“होर क्या बिना समझाए कहंदे है रटो तो मैं नई कर सगदा – |”

“हाँ ये तो ठीक है |” फिर उसे समझाती हुई कहती है – “वैसे कोई भी चीज याद करनी हो तो बहुत आसान है उसे अपने माइंड में इमेज के साथ क्रम में रखते हुए याद करो फिर कभी कोई चीज नही भूलोगे और पढ़ने में मज़ा भी आएगा|”

“अच्छा अबकि मैं त्वाडे नाल पढूंगा फिर तुसी मैनू बताना|”

“ऐ हैपी सिंह जी कि गल है – त्वाडे दोस्त नू तुझे खोजते फिर रहा है |” वहां आती पूजा उसे आवाज लगाती हुई कह रही थी तो वह झट से अपने सर पर हाथ मारता वहां से चुटकियों में गायब हो जाता है ये देख दोनों कस कर हँस पड़ती है|

“हटो हटो..|” तभी आवाज लगाता मोहित फूलों से भरी बड़ी सी टोकरी थामे पूजा के पीछे से आता हुआ पूजा के सामने बैठी हुई शैफाली को देख एक पल सकपका जाता है फिर आंख बचाते हुए गलियारे की ओर बढ़ जाता है जहाँ गलियारे के छोर पर घुड़की पर चढ़ा इरशाद फूलों की लड़ियाँ लगा रहा था और घुड़की पकड़े जय बीच में थोड़ा हिला देता तो इरशाद चिल्ला पड़ता|

“मैं नीचे उतर रहा हूँ – |” घुड़की पर अपनी दुबली पतली देह सँभालते हुए इरशाद फिर कहता है|

“अरे अरे रुक जा क्यों जान ले रहा है पता नहीं है कि इसकी एक हड्डी टूटते किसी के दो दिल टूट जाएँगे|” वहां आते हुए मोहित कहता है तो जय को हँसी आ जाती है|

“हाँ इनकी महबूबा ट्विन इन वन जो है|”

टोकरी रख मोहित और जय एक दूसरे से हाथ मार कस कर हँस पड़ते है जिससे इरशाद फिर बच्चों सा तुनकता हुआ बोलता है –

“मैं अब पक्का नीचे आ रहा हूँ |”

“अरे चढ़ा रहे मेरे फूल |”

“फूल !!!”

“हिंदी वाला फूल बोला |” जय अपनी हँसी किसी तरह से रोकता हुआ कहता है|

“तो ठीक है |” बच्चों सा मुस्कराता इरशाद फिर लड़ियाँ लगाने लगता है जिससे जय और मोहित कस कर ठहाका लगा पड़ते है|

उनकी आवाजों से बेखबर उनसे कुछ दूर इसी गलियारे में अभी भी मौजूद शैफाली संग खड़ी पूजा के सामने अब तीनों बहने खड़ी अपनी अपनी मेहँदी दिखा दिखा कर शैफाली की मेहँदी देख उस पर हँस रही थी|

वह तीनों अपनी कोहनी भर तक की मेहँदी पर इतराती शैफाली की आँखों के सामने हाथ नचाती नचाती शैफाली की हथेली की आधी बिगड़ी मेहँदी पर हँस रही थी| पास खड़ी पूजा उन्हें आँखों से घूर रही थी पर शैफाली उनपर ध्यान न देती हुई दूसरी तरफ देखने लगी थी|

प्रसादा प्रसादा…..की आवाज से अब वे देखती है कि जोगिन्दर भाई जी हाथ में बड़ा सा थाल लिए उसमें से प्रसादा निकाल निकाल कर सबको देते जा रहे थे| वे भी हाथ बढ़ाकर प्रसाद लेती है|

अब वे मोहित के पास खड़े उसके बढ़े हाथ पर प्रसाद रखते हुए एकदम से कह उठे – “ए कि मोहिते किसकी छूटी मेहंदी पा के बैठा है |” कहकर कसकर हँसते हुए वे आगे बढ़ जाते है|

जय और इरशाद उससे कुछ दूर अपने काम में मग्न थे पर मीतू के कान इस सनसनी से शांत न रह सके, वह तुरंत दौड़ती हुई मोहित के पास आकर झट से उसकी हथेली पकड़कर देखती हुई दूसरे पल शैफाली की ओर देखती है, जो अब पूजा के साथ विपरीत दिशा की ओर जा रही थी|

“क्या है – |” अपनी हथेली खीँच कर खीजता हुआ मोहित अब जय की तरफ बढ़ जाता है जो इशारे से उसे और लड़ियाँ लाने का इशारा कर रहे थे|

मीतू होंठ सिकोड़ती अब अपनी बहनों की तरफ बढ़ जाती है|

—————————क्रमशः…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!