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शैफालिका अनकहा सफ़र – 34

शैफाली कमरे की खिड़की से टिकी अपनी निगाह से सबको इधर उधर भागते हुए देख रही थी, सभी कितना व्यस्त थे| खिड़की के ऊपर लटकती फूलों की लड़ी बार बार हवा से झूम उठती कि शैफाली का ध्यान उधर ही चला जाता| अभी अभी जय और इरशाद उसके सामने से लड़ी लगाकर गए थे| तभी खिड़की के पार परजाई जी नज़र आई जिनके हाथ वह दिन भरे भरे ही देखती, कभी आटा सने हाथों से हवा में हाथ हिलाती किसी को बुला रही होती, कभी कोई साग तोड़ते तोड़ते साग की एक डंडी लिए वे किसी को कुछ समझाने आंगन तक आ जाती, अभी भी उनकी कलाई में बेरंग कपड़ा झूल रहा था और वे कही जाने को बड़ी आतुर दिख रही थी पर शैफाली को देखते अब कहती कहती उसकी ओर मुड़ आई थी|

“पुत्तर तैयार नई हुई – पूजा कित्थे है – ?”

जवाब में शैफाली मुस्करा कर बस कंधे उचका देती है|

“मैं अभी देखतिया – पुत्तर तैयार हो जा अभी चुडा की रस्म के लिए जाना है|” कहती कहती शैफाली की हथेली पकड़े उसकी मेहँदी देखने लगती है – “बड़ी गाढ़ी रची है – बड़ा प्रेम करने वाला मिलेगा पर पुत्तर बिगड़ी कैसे ?”

परजाई जी प्रश्नात्मक मुद्रा में अपनी ऑंखें शैफाली के चेहरे की ओर टिका देती है, जो अभी भी चुपचाप मुस्करा रही थी| कुछ क्षण वे उन आँखों को तकती रही मानों कोई रात की छुपी कहानी ढूढ़ रही हो| फिर प्यार से उसका गाल सहलाती अपना प्यार लुटाती बोल उठी – “तैनू खुस देख मैंनू बहुत अच्छा लग रहा है – तुम तैयार हो जाओ – मैं पूजा को अभी भेजतिया|” कहकर अपनी मुस्कान वहीँ छोड़ती वे जल्दी से बाहर चली जाती है, शैफाली देखती है कि वाकई वे बड़ी व्यस्त थी, उनके कमरे से निकलते कोई न कोई कुछ पूछता उन्हें घेर लेता|

अगले ही पल शैफाली फिर से कपड़ों में उलझ गई तभी पूजा वहां आ गई| आते ही वह शैफाली संग उसका बैग खंगालने लगी, वह तुरंत समझ गई इसलिए खुद ही उसके लिए उसके बैग से एक अन्यत्र लॉन्ग स्कर्ट निकालकर उसकी ओर बढ़ा देती है जिसे अपने फलोरर टॉप के साथ शैफाली पहन लेती है| फिर पूजा उसका हाथ पकड़े बाहर की ओर निकल जाती है| आगे आगे ज्यो ज्यों बढ़ती जा रही थी कोई स्वर लहरी उनके नजदीक आती जा रही थी|

सीसफूल तेरा सवा लाख का, बिंदियाँ ये अमर सुहाग रहे…

पल्लू में कामण चार बंधे, बिंदियाँ पर अमर सुहाग रहे….

बाबुल दी दुआ लेंदी जा, जा तुझको सुखी संसार मिले…

मैके दी याद न आए, ससुराल में इत्ता प्यार मिले….

शैफाली आंख भरकर अपने सामने के दृश्य को देखती हुई धीरे धीरे गुनगनाती औरतों की स्वर लहरी सुन रही थी अभी अभी सभी उठकर चूड़े को अपना अपना हाथ लगाकर आशीष दे रहे थे, गुड्डी की आंखे ताई जी ने अपनी हथेलियों से ढक रखी थी पर शैफाली उनकी भरी ऑंखें देख रही थी| सामने पूजा के माता पिता किसी सफ़ेद चीज में डूबी चीज निकाल रहे थे, उसी के बीच पूजा उसे बताती जा रही थी –

“आज चूड़ा की रस्म है – कच्ची लस्सी में डुबो कर अरदास करके मामा अपने हाथ से लाया चूड़ा पहनाते है – ये 21 चूड़ियों का लाल सफ़ेद चूड़ा भी न अपने अन्दर जाने कितने रंग समाए है – आज ये पहनते दुल्हन को अपने इस घर से पराए होने का अहसास होने लगता है – जहाँ वह बचपन में खेली सखियों संग अठखेलियाँ किया – वही घर अब से उसके लिए पराया हो जाएगा – जाने क्या विधि है विधाता की..|” कहते कहते पूजा का गला भी भर आता है इसपर शैफाली धीरे से अपना हाथ उसके हाथ पर रखती हुई उसकी भीली पलकों की ओर देखने लगती है इससे पूजा खुद को संभलती हुई हौले से मुस्करा देती है|

“पता है गुड्डी मुझसे बस एक साल दो महीना बड़ी है पर बचपन से हमारा ऐसा साथ है कि हम एक दूसरे के बिना रहती ही नहीं है – कभी मैं यहाँ आकर महीनों रह जाती कभी गुड्डी मेरे यहाँ आ जाती और फिर जाने कितनी दिन रातें हम बस बातें कर कर काट देती पर हमारी बातें खत्म नहीं होती – आज तो मेरा मन भी भरा आ रहा है अब गुड्डी चली जाएगी तो मेरा तो यहाँ मन ही नहीं लगेगा|” पूजा नजर भरकर सामने गुड्डी की ओर देखती हुई फिर अपना चेहरा झुका लेती है|

शैफाली पूजा का झुका चेहरा ठोड़ी से पकडती हुयी अपनी तरफ करती है तो पूजा एकदम से भीगी आँखों को सँभालती हुई कहती है – “इसीलिए तुमभी अपनी बहन को मिलने आई होगी न |”

शैफाली ने जाने कैसे न में सर हिला दिया तो पूजा उसका हाथ अपनी हथेलियों के बीच लेती हुई पूछती बैठी – “ क्यों !!! आखिर विदेश से लोग दो कारण से ही तो आते है या तो अपने रिश्तेदारों से मिलने या घूमने – फिर तुम क्यों आई ?”

शैफाली मौन उसका चेहरा देखती रह गई|

“अच्छा दिल्ली घूमा तो आगरा का ताजमहल तो देखा होगा न !!”

शैफाली धीरे से मुस्कराती हुई न में सर हिला देती है जिससे वह फिर चौंक उठती है|

“ताजमहल नही देखा – सारी दुनिया जाने कहाँ कहाँ से देखने आती है तुमने इतने पास होकर भी न देखा तो मैं कहती हूँ एक बार ताजमहल जरुर देखना – कसम से दिल आ जाएगा उस पर – मैं तो पता है कॉलेज की तरफ से टूर पर गई थी वहां – बहुत मजा आया – ऐसी नायाब खूबसूरती कही नहीं देखी – मैं तो कहती हूँ कि जरुर देखना उसे…..|”

अब वे देख रही थी कि चूड़ा पहना देने के बाद उसपर मामी सफ़ेद कपडा बांध रही थी और माँ के कन्धों पर झुकी गुड्डी को सँभालने वे कोई न कोई बात कर उसे हँसा दे रही थी|

“और कुड़ियों कलीरे बांधिया – जरा कस के बंधियां हुण वेखिया किसपर खनक़ कर गिरती है कलीरे|” मामी की आवाज जैसे वहां बैठी सभी लड़कियों में जोश सा भर देती है|

अभी कलीरे संग लड़कियां चहक ही रही थी कि ढोल की तेज आवाज सबके कानों से टकराई तो किसी का अब वहां बैठा रहना मुश्किल हो गया| पूजा भी शैफाली का हाथ पकड़े बाहर आती गलियारे में खड़ी सामने आंगन की ओर देख रही थी|

लाल पीली पगड़ीधारी गले में ढोल बांधें उसे जोर शोर से बजा रहे थे, ऐसी थाप पर बच्चों का रुक पाना नामुमकिन हो गया, सारे बच्चे आंगन में ढोल की धुन में उछल रहे थे, नगाड़े की धुन हो और पंजाबी के पैर न थिरके ऐसा संभव ही कहा था, जोगिन्दर भाई जी अब आंगन के बीच खड़े भांगड़ा करते बीच बीच में उंगली होठों के बीच रख आवाज निकालकर कसकर उछल पड़ते, ऐसे जोश में उनको नाचते देख वो तीनों बहने भी आंगन में कूद आई| फिर वो रंग जमा कि हर धुन पर बोल फूट पड़े…..

“लट्ठे दी चादर उत्ते सलेटी रंग माहिया…

आवो साम सामने कोलों दी रूस के न लंग माहिया..

नाचते नाचते अपने जोगिन्दर जीजा को घेर कर वे नाचने लगी, नाचते नाचते वे तीनो में से कोई आके अचानक से उनके ठुमका लगाती कि वे समझ भी नही पाते और हडबडा जाते, जिससे वे खिलखिला कर और उनके चारों ओर कस कर नाचने लगती| आस पास खड़ी भीड़ बढ़ने लगी, तभी उनको घिरा देख वे चारों जय, मोहित, इरशाद और समर भी वहां कूद पड़े| अब तो नजारा देखने वाला था, उन पाँचों के बीच अब वे तीनों घिर गई थी, ये देख शैफाली और पूजा कस कर खिलखिला पड़ी| अब वे पंच न उन्हें वहां से निकलने का मौका दे रहे और न नाचने का, वे अपना सा मुंह लिए धीरे धीरे किनारे सरकने की कोशिश कर रही थी| अभी तक जो सारी स्त्रियाँ गलियारे में इकट्ठी हो चुकी थी, वे एक साथ हाथ पकड़े उन्हें चारों ओर से घेरती हुई गिद्दा पाने लगती है|

चिट्टा कुक्कड़ बनेरे ते बोल…

चिट्टा कुकर बनरे ते..

कासनी दुप्पटा वालिए..

मुंडा सदाके तेरे ते..

कासनी दुपट्टा वालिये…

मुंडा सदाके तेरे ते………

“कि चल रेहा है !!”

अचानक सख्त आवाज पर चारों ओर एक ही पल में सन्नाटा छा गया, दार जी आंगन में खड़े अपनी सफ़ेद मूंछों के कोने मोड़ते हुए सबकी ओर देख रहे थे तो सबकी नज़र उनपर जमती जैसे जड़ हो गई थी, घर की स्त्रियों के गिद्दा करते पैर अपनी उसी स्थिति में थमे रह गए थे| ढोल वाला ढोल टांगे अपने खुले मुंह के साथ अब सामने दार जी की तरफ देख रहा था|

“सब नु बुड्डे पाई हो जो लोक गीता नु नाचते फिर रहे हो – ओए जोगिया कोई मुंडे लायक नगाड़ा नगाड़ा गाना लगाईया – फिर वेखिया इन हड्डियों का जोर |”

शैफाली ऐसा नजारा ऑंखें फाड़े देखती रह गई| अगले ही पल नगाड़ा नगाड़ा के गीत की धुन उन ढोल से निकलने लगी तो अब पूजा के लिए भी खड़ा रहना मुश्किल हो गया और वह शैफाली को अपने साथ खींचती हुई आंगन तक ले आई| अब एक साथ सारे पैर खिलखिलाते हुए झूम उठे| शैफाली तो हँस हँस कर दोहरी हो उठती आखिर कहाँ देखा था ऐसा नज़ारा उसने !! सब बस ख़ुशी से झूम रहे थे, न आपस में किसी के कदमताल मिल रहे थे और न भंगिमा पर वहां कहाँ इस बात की परवाह दिख रही थी, बस सब मस्त पवन से झूम उठे थे| उस एक पल ऐसा भी आया जब मोहित शैफाली के बहुत पास आ गया था और आपस में मिलती उनकी नज़रे चुपचाप खिल उठी थी|

घर मुस्कानों और खिलखिलाहट से भर उठा था| पूजा संग शैफाली इस दुनिया को समझ रही थी| शैफाली की बात सुन पूजा हँसते हँसते कह रही थी –

“अरे न – अभी शादी कहाँ हुई ये तो शादी से पहले की रस्मे चल रही है – ऐसे ही एक एक रस्मों के बाद कहीं जाकर शादी होती है – आखिर शादी दो लोगों का ही नहीं दो परिवारों का मिलन होता है – एक एक दिन दोनों एक दूसरे से जुड़ते जाते है – और गाँव में तो दो गाँव का भी मिलन होता है तभी देखो सारा गाँव खुद से ही आकर शरीक हो जाता है आखिर यही फर्क तो गाँव को शहर से बिलकुल अलग कर देता है|”

शैफाली वाकई किसी नई दुनिया को देखकर समझने की कोशिश कर रही थी जो उसकी दुनिया से बिलकुल अलग थी|

आखिर शादी का दिन भी आ गया| समर और जय जिस कमरे में थे वहां मोहित इरशाद संग प्रवेश करते उनकी नज़र सीधे जय के चेहरे पर पड़ी तो वे कह उठे – “ये तेरे चेहरे पर बारह क्यों बज रहे है !!”

अपने चेहरे का भाव बदलता हुआ जय बोल पड़ा – “बारह तो बज ही गए है – समय देखा है तुम लोगों ने – अभी तक तुम लोग तैयार भी नहीं हुए – घराती हो या बाराती |”

“अरे हमे क्या तैयार होना – तैयार तो खड़े है |”

अपना क्रीमी कुर्ता और जींस पर उनका ध्यान दिलाते हुए मोहित बोला तो जय अपने सर पर हाथ मारते हुए बोल पड़ा|

“हाँ शुक्र है – वरना तेरे जैसे तो सारी उम्र टी शर्ट में गुज़ार दे |”

वे सभी सकपकाते हुए देखते है कि जय अब अपना ट्रोली बैग उनके सामने खीँच कर उसमें से एक बड़ा पैकेट निकालता हुआ उनके सामने खोलता हुआ कह रहा था – “मुझे तुम जैसो महानुभावों से यही उम्मीद थी इसलिए मैंने पहले से ही सब खरीददारी कर ली थी|”

तीनों जय के हाथ में एक जैसी रंग की कई शेरवानी देख रहे थे, इरशाद तुरंत चहकते हुए बोला – “वाह यार |” और झट से एक शेरवानी लेकर अपने ऊपर लगाकर देखने लगा| उसे देख मोहित और समर एक दूसरे का चेहरा देखते हुए बोल पड़े – “यार तुझे यही कलर मिला – जामुनी रंग |”

“हाँ बहुत अच्छा रंग है – ज्यादा नाटक मत कर वरना तेरी शादी में तेरे लिए गुलाबी शेरवानी लूँगा|”

“हाँ तो मैं तुझे छोड़ दूंगा क्या – तेरी शादी में तुझे पीली शेरवानी पहनाऊंगा|”

सारे ये सुन एक साथ हँस पड़े| तीनों मोहित को पहली बार इतना खुलकर इस विषय बोलते देख उसमें कुछ बदलता हुआ महसूस कर रहे थे|

“अब ज्यादा चूं चपड़ किए बिना इसे पहन लो – सारे भाई एक जैसे दिखने चाहिए – मैंने तो जोगिन्दर भाई जी के लिए भी इसी रंग का लिया है – |” समवेत स्वर से सभी हँस ही रहे थे कि जोगिन्दर भाई जी वही आ गए|

“कि हो रहा है मुंडो – तैयार हुए कि नई |”

अन्दर आते चारों को एक जैसी जामुनी रंग की शेरवानी पहने देख उनकी भी कस के हँसी निकल गई – “इस मौसम में जामुन फले है कि !!”

उनको हँसते देख सभी एक दूसरे का चेहरा देख तिरछी मुस्कान से मुस्कराते हुए उनके साइज़ वाला शेरवानी लेकर साथ में आगे बढ़ते हुए एक ही पल में उनका हरा कुर्ता उतारकर उन्हें भी शेरवानी पहनाकर उनका अवाक् चेहरा देखकर कसकर हँस पड़ते है|

“अब हम सबमे से आप बड़े वाले जामुन है – वो भी डबल एक्सल साईज |”

ये सुन वे सबको एक साथ अपने बलिष्ट हाथों के बीच घेरते हुए कहते है – “कि तुम लोग मैनू मोटा केन्ह्दे हो |” ये सुन वे सब उनके पेट पर हाथ फिराते हुए हँस पड़े|

“भाई जी आप तो गजब दिख रहे हो – जरा परजाई जी को दिखाकर आओ |”

“तुसी मेरे दिल दी गल केह दित्ता |” कहकर वे सीना फुलाते बाहर की ओर निकल जाते है|

डेढ़ दो घंटे का सफ़र तय कर जालंधर से आकर बारात जनवासे में ठहरी थी, अब सभी गुरूद्वारे जाने की तैयारियों में लगे थे| सारी लड़कियां जैसे आंगन से गायब होकर कमरों की बंद खिड़कियों की चिड़ियाँ बन खिलखिला रही थी| बस कहीं कोई आवाज गूंजती कि किसी को लिपस्टिक नहीं मिल रही तो कोई अपना दुपट्टा मिलाने अपने बैग को पूरा खोल कर बैठी थी| कहीं चूड़ियों के रंग मिलाए जा रहे थे तो कहीं मस्कारा काजल से आंखे कजरारी बनाई जा रही थी|

वो तीनों बहने तो आज जैसे लड़ ही पड़ी, बहुत अच्छा दिखने की चाह में अपने साथ लाई हर ड्रेस को वे कई बार पहनकर ट्रराय कर चुकी थी पर हर बार दूसरे के शरीर पर पहनी ड्रेस उन्हें ज्यादा भा जाती और वे एक दूसरे से ड्रेस बदल लेती पर फिर वही सामने की बहन पर की ड्रेस उन्हें भा जाती और फिर से वे ड्रेस बदल लेती ऐसी ही झुंझलाती वे न तैयार हो पा रही थी और न एक दूसरे को होने दे रही थी|

इधर पूजा गुड्डी को तैयार होने में मदद करने गई तो शैफाली कपड़े लिए बैठी रह गई, उसे तैयार होने का कुछ तरीका समझ नही आ रहा था| मोहित के संग खरीदी ड्रेस उसके सामने रखी थी जिसे अचकचाती हुई वह देख रही थी तभी उसे देखने गुरमीत संग परजाई आ पहुंची|

“ऐ कि शैफाली पुत्तर तैयार न हुई !” वे अन्दर आती उसे अपने सामने खड़ा कर उसे ऊपर से नीचे देखती हुई बोली|

फिर जब शैफाली अपने सामने पड़ी ड्रेस की ओर इशारा करती है तो वे झट से ड्रेस को अलट पलट कर देखती हुई उसके सर पर हलकी सी टीप मारती हुई हँस ही पड़ी|

“अरे कपड़ा नु वही नाप नूप लई के ठीक कराना पैंदा है – कराया नई – ओहो दोनों बुद्धू जो गए थे |”

शैफाली अपना निचला होंठ दबाती अपनी निश्चल आँखों से उनकी ओर देखती हुई पलंग पर फैले अपने दूसरे कपड़े की ओर हाथ बढ़ा देती है| ये देख वे उन कपड़ों की ओर अपनी आंख गड़ाती हुई देखती है कि उन सबमें से कोई शादी के हिसाब का नहीं था तो वे शैफाली का चेहरा अपनी ओर करती हुई बोली – “शैफाली तू मेरा कपड़ा पहनेगी !!” कहती हुई वे अपनी प्रश्नात्मक नज़रों से उसका चेहरा ताकती रही|

शैफाली हाँ में सर हिला कर हौले से मुस्करा दी तो वे एक हाथ से शैफाली को तो दूसरे हाथ से गुरमीत को लिए बाहर निकल गई|

उनके कमरे में बैठी शैफाली अब उस ओर देख रही थी जहाँ परजाई जी कोई बड़ा संदूक खोलती हुई उसमें कुछ खंगाल रही थी| बहुत नीचे की तह से वे कुछ अपनी हथेलियों के बीच दबाकर लाती हुई उसके सामने आकर बैठती हुई उसे कपड़े दिखाती हुई कहती है – “ये लांचा गुरमीत के होने पर मेरी माँ ने दिया था पर कभी पहन नई पाई|”

शैफाली एक क्षण उस नारंगी कढ़ाईदार फुलकारियों से गुंथे लांचा को तो दूसरे पल उनकी नम आँखों को देखती रही|

“अब तो इस फूली देह पर आएगा भी नई पर माँ का प्यार बसा है जो तजता नही मोह इससे |” वे बड़े प्यार से उस पर हाथ फिराती हुई शैफाली की ओर देखती हुई कहती है – “ला मैं पहना देतिया |” कहती हुई वे उसे पहनने में उसकी मदद करती है|

अगले ही पल पलंग के कोने पर बैठी गुरमीत अपना नन्हा चेहरा अपनी हथेली पर टिकाए सामने देखती हुई ताली बजाकर अपनी ख़ुशी प्रकट करती है तो उन दोनों का ध्यान उस पर जाता है इससे दोनों साथ में मुस्करा पड़ती है|

वे करीने से दुपट्टा उसके कंधे से लगाती कई आलपिन की सहायता से चंद ही क्षणों में उसे लांचा पहनाकर उसे नजर भर कर ऊपर से नीचे देखती हुई उसकी बल्लियाँ लेती हुई माथा चूम लेती है| अब उसे बैठाकर उसके खुले बाल को गुत्थी हुई नारंगी रंग का परांदा उसके बालों में गुथकर लम्बी चोटी बनाकर उसके कंधे पर छोड़ती हुई फिर एक भरपूर मुस्कान से उसका चेहरा देखती हुई कहती है – “किन्नी सोहनी लाग रही है – त्वानू पहने देख मन खुश हो गित्ता – पुत्तर संभाल के चल लेगी न !” शैफाली की सपनीली नीली ऑंखें हाँ में कहती मुस्करा दी|

फिर वे गुरमीत के साथ शैफाली को गुड्डी के पास भेज कर कमरे में फैले कपड़े ठीक करने लगती है तभी जोगिन्दर जी आते पीछे से उन्हें अपनी बलिष्ट बाँहों में भरते लगभग उठा ही लेते है|

वे शरमा कर दोहरी होती नीचे उतारने का इसरार करने लगती है|

“ऐजी ये कोई उम्र है भला यूँ कारने की ?” प्रेम भरी झिड़की देती अधखुले दरवाजे को ताकती उनको हौले से धकेलती हुई शरमाई|

“ओ सोणियो – तुसी तो कमाल लाग रही है|”

“तुसी भी कम न हो जी |” वे अपनी भरपूर नजर से उनको जामुनी शेरवानी में ऊपर से नीचे ताकती हुई यूँ शरमाई कि वे सीने पर हाथ रख अपनी नजरे उनपर गड़ाए रह गए जब तक बाहर से कोई हलचल न सुनाई पड़ी जिससे वे एक एक करके जल्दी से कमरे से बाहर निकल गए|

उस बड़े कमरे में जैसे हर उम्र की स्त्रियाँ समाई हुई खिलखिला रही थी| शैफाली जब उस कमरे में दाखिल हुई तो फिर ढेर रंगों की चुन्नियाँ से ढके सर के सिवा उसे कुछ दिखाई न पड़ा, वह सबसे पीछे खड़ी अचकचा गई पर गुरमीत उसका हाथ पकड़े उसे भीड़ से अन्दर की ओर ले जा रही थी| वे आगे की आवाज पर नजर उठाकर सामने दुल्हन को देखती है तो देखती रह जाती है, एक पल तो वह पहचान ही नहीं पाई कि सुर्ख लाल जोड़े में क्या वही है जिसे उसने कल तक देखा था !! चेहरे पर हया की लाली में सुनहरी काया किसी भी चेहरे को भरमा देने की सामर्थ रखती जैसे वह अपने आप में कोई पूर्णता थी, कही कुछ भी न अशेष खलिश का नामोनिशान नही था| दुल्हन की आभा से उसके आस पास खड़ी सभी दमक रही थी|

दुल्हन की कलाईयों में सजे चूड़े आज स्वतंत्र हो मानों खिलखिला उठे थे, उगते सूरज की सी आभा लिए झिलमिल करती कलीरे पहाड़ों पर गिरती झील सी खनक रही थी| शैफाली देखती है कि बारी बारी से लड़कियां उस खनक के नीचे से गुजरती मायूस हो उठती थी| वे तीनों बहनें तो साथ में खड़ी जैसे एक दूसरे को धक्कामुक्की करती बार बार किसी आस में अपने सर पर हाथ फेरती मुंह बना लेती| आगे और भी लड़कियां आना चाहती थी पर वे हटने का नाम ही नहीं ले रही थी| आखिर कोई अधेड़ महिला आकर उन्हें परे करती बोल पड़ी – “ऐ कुड़ियों त्वाडा इस साल लगन न होहेगा |”

इस पर वे तीनों इतराती हुई – “फुआ हुण साल में दिन कित्ते बचे है !” कहती किनारे सरक ली इसपर भीड़ का बड़ा हिस्सा कसकर हँस पड़ा|

इन सबसे अलग किनारे खड़ी पूजा अपनी हथेलियों के बीच कुछ लिए मुस्करा रही थी तभी उसकी नजर शैफाली पर पड़ी तो आगे बढ़कर वह उसे गुड्डी के पास खीँच कर ले आती है| गुड्डी एक दम से सामने शैफाली को देखी तो देखती रह जाती है| वे तीनों बहनें भी शैफाली को देखती है तो अपने ढेर सारे मेकअप और गहने के आगे उसकी भव्यता में भी सादगी देख अपना मुंह बिचका लेती है पर गुड्डी शैफाली को एक दम से अपने गले लगाती हुई धीरे से उसके कानों में फुसफुसा पड़ती है – “आज मैनू तुसी परजाई कहन द जी चाह रहा है |”

गुड्डी नहीं देख पाई कि ऐसा कहते शैफाली का चेहरा कैसा हो उठा वह तो बस कुछ पल तक उसे अपने में समेटे ही खुश हो ली थी| *** क्रमशः

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