
शैफालिका अनकहा सफ़र – 35
वो स्त्रियों की भीड़ थी जो एक साथ गुड्डी के साथ चल रही थी| साथ साथ चलती ताई जी गुड्डी का एक हाथ अपनी हथेली के बीच दबाए मानों दिल पर हाथ रखे अपने उमड़ते जज्बातों को रोके थी| घर के मंदिर में एक कलीरे चढ़ा कर गुड्डी ऑंखें बंद कर मानों आज का मंजर सदा के लिए अपने मन में तस्वीर बना कर रख लेना चाहती थी| अब स्त्रियों की सारी भीड़ घर से निकलने को तैयार होने लगी थी|
गाँव में ही बने गुरूद्वारे के बाहर बड़े से प्रांगण के आस पास कुछ दूरी पर जहाँ तक खेत थे वहां तक कनातें लगी थी जिसमें अब सभी लोग गुरुद्वारे के लिए इक्कठे हो रहे थे इससे एक साथ चलते बाराती घराती सब एकसार हो चले थे| शैफाली भीड़ से अलग गुरमीत संग उस प्रांगण के किसी सूने किनारे पर बैठी थी| वह बिन शब्दों के ही तरह तरह के हाव भाव से अपनी बात कहती जिससे गुरमीत खिले फूल सी खिलखिला पड़ती फिर दोनों की हँसी एकसार हो उठती|
बारात संग आए कुछ लड़कों का ध्यान उनकी खिलखिलाहट पर ज्योंहि गया उनकी नज़रे वहीँ ठहरी रह जाती है| वे अपनी घूरती ऑंखें शैफाली पर गड़ाए धीरे धीरे उसके पास सरकने लगते है| वे आपस में पहले कौन बात करेगा जैसे इशारे करते होठों के किनारों से मुस्करा रहे थे पर इस सबसे बेखबर वे दोनों अपनी की दुनिया में मग्न थी| वे तीन चार लड़के उसके काफी करीब आ कर खड़े हो गए| ऐसा होते किसी और की नज़र देखती हुई ज्यों सब माज़रा समझती है वह अपने कदम उस ओर के लिए तेज कर देती है|
वे लड़के अपनी नज़र शैफाली पर लगातार गड़ाए उसकी ओर बस बढ़ने ही वाले थे कि उनके बीच के एक हाथ के फासले पर मोहित झट से आकर खड़ा हो गया इससे अचानक वे वही ठहर कर सकपका गए| मोहित उनकी तरफ अपनी घूरती आँखों से देखता अपनी शेरवानी की आस्तीनें ऊपर करने लगता है जिससे उसकी कसरती मांसल रेखाएं स्पष्ट होते वे वही थमे रह जाते है| शैफाली की पीठ उनकी तरफ थी जिससे उसे आभास भी न हुआ कि वे लड़के कब उसकी तरफ आए और कब उनके बीच की दीवार बनते मोहित को देख वे झट से वहां से निकल भी लिए| उनके जाने तक खड़ा मोहित पूरे आक्रोश में उनकी ओर देखता रहा|
अचानक उसके नाम की पुकार पर जब वह ‘आता हूँ’ कहता है तो शैफाली का ध्यान अपने पीछे खड़े मोहित पर झट से गया तो वह अपनी भरपूर मुस्कान से उसके सामने खड़ी हो जाती है|
एकाएक मोहित के चेहरे के भाव बदल जाते है, वह नजर भर कर अपने सामने खड़ी शैफाली को देखता है जो उसे कुछ नही बल्कि बहुत अलग दिख रही थी, बगल में खड़ी गुरमीत अभी भी शैफाली की उंगली थामे खड़ी अब मोहित की ओर अपने खिले चेहरे से उसकी ओर देख रही थी पर इससे बेखबर दोनों कुछ पल तक अपलक एक दूसरे को देखते रह गए|
गुरमीत शैफाली का हाथ खींचती है जिससे वह उसकी तरफ देखती है तो मोहित भी जैसे होश में आ जाता है| मोहित खुद में ही मुस्कराता वापस जाने को मुड़ने वाला था पर अचानक उसके कदम शैफाली की तरफ बढ़ जाते है, अब उनके बीच बहुत कम फासला था, मोहित को ऐसे आते देख शैफाली भौंह उचकाकर उससे कुछ पूछती हुई देखती है कि मोहित के बढ़े हाथ अब उसके बालों की ओर थे, वह औचक उसकी ओर देखती रह गई पर जल्द ही वह हाथ उसके बालों की गुथ में फंसी कोई चीज निकालकर उसकी हथेली के बीच में रख रहे थे|
वह हतप्रभ कभी मोहित की ओर देखती तो कभी अपनी हथेली के बीच चमकती उस चीज को| मोहित धीरे से उसके कानों के पास फुसफुसाते हुए कह रहा था – “कलीरे….|” फिर गुरमीत को दो पल गोद में लिए उसका माथा चूमते हुए कहता है – “तुसी भहुत सोणी लाग रही हां |” फिर एक घूमती नज़र शैफाली के आस पास छोड़ता अपने तेज कदमों से भीड़ में गुम हो जाता है|
शैफाली अवाक् खड़ी उसकी ओर देखती रही जब तक पूजा की आवाज उसके कानों में न गूंज गई|
“अरे वाह कलीरे – लगता है गुड्डी हम दोनों का ब्याह करा कर मानेगी |” कहती हुई अपनी हथेली की कलीरे भी दिखाती हुई खुद में ही शरमा गई पर इसके विपरीत शैफाली सपाट भाव से उसकी तरफ देख रही थी|
“तभी तो तीनों पागल हुई जा रही थी पर देखो बाबा जी की मेहर नहीं थी तो इतना खनकाने पर भी उनपर न गिरी कलीरे – बड़ा शुभ होता है कुंवारी लड़की के सर पर कलीरे गिरना – पर तुमपर कब गिरी|” फिर खुद ही याद करती हुई – “लगता है तुमपर बाबा की कुछ ख़ास ही मेहर है तभी गुड्डी के गले लगाते मिल गई कलीरे |”
अबकि एक हलकी हँसी शैफाली के चेहरे पर भी खिल उठी|
‘तेरा सब सदका वाहे गुरु तेरी सब रचना वाहे गुरु…….’ के स्वर कानों में गूंजते हुए शैफाली पूजा संग अन्दर प्रवेश करती है| अब तक सारी भीड़ गुरूद्वारे के अन्दर अपना अपना स्थान ग्रहण कर चुकी थी| शैफाली नज़र भर पर अपने आस पास का मंजर देख रही थी| आगे की ओर बीच में अपने जोड़े संग बैठी गुड्डी थी उसके एक तरफ रंग बिरंगी ओढ़नी से सर ढके स्त्रियाँ थी तो दूसरी तरफ पगड़ीधारी पुरुष बैठे थे उनमें जो पुरुष बिन पगड़ी के थे वे रुमाल से अपना सर ढके थे| पूजा उसका तो वह गुरमीत का हाथ थामे अपने स्थान पर आकर बैठती उनका सर भी चुन्नी से ढक देती है| अब वे सामने की ओर देखती है जहाँ फेरा लेने वे जोड़े खड़े हो गए थे| जोगिन्दर भाई जी गुड्डी का हाथ थामे उसे चौकी की ओर ले जा रहे थे जहाँ चौकी के आस पास चारों कोनों पर जय, मोहित, समर और इरशाद खड़े बारी बारी से गुड्डी का हाथ थामे उसे फेरे लेने उसे आशीष देते भाव से आगे की ओर बढ़ा रहे थे| उस पल का दृश्य हर किसी के मन को आद्र कर दे रहा था| उस पल बेटी के हर एक फेरे से नए रिश्ते की ओर बढ़ते उसके कदम हर क्षण अपने मायके के मोह से उसे दूर करते जा रहे थे|
शादी की रस्मों रिवाज के बीच एक अनजाना रिश्ता कब दिल के करीब हो गया ये बस मुस्कानों में दर्ज होकर रह गया| दुल्हे के आस पास जमी दोस्तों की महफ़िल अब कसकर मुस्करा रही थी| सामने खड़ी लड़कियों की अगुवानी करती पूजा इठलाती हुई अपनी जूता चुराई की योजना पर मुस्करा रही थी| पूजा ने गिफ्ट के पैकेट में जूता छुपाकर रखा था, जो अब गिफ्ट के पैकेट संग मिलकर दुल्हे की दोस्तों की आँखों के सामने था| उनकी जिद्द थी कि पहले जूते लाए जाए तो वहीँ पूजा अपनी मांग पर अड़ी थी| पीछे बलवीर जी मंद मंद मुस्करा रहे थे| मामला पूरी तरह से निकल चुका था| पूजा परेशान सी अपने आस पास देखती हलकान हो रही थी, सामने दोस्त थे कि उनका हँसना रुक ही नही रहा था| तभी दोस्तों और पूजा के बीच मौजूद भीड़ में शरीक होती चौकड़ी जाने कहाँ से प्रकट हो कर उन दोस्तों की नज़र में आए बगैर अपने हाथ के पीछे छिपाए डिब्बे को पूजा तक पंहुचा कर चुपचाप निकल गए| पूजा हैरान सी उस डिब्बे को ज्योंहि खोलती है उसमे बलवीर जी के जूते देख ख़ुशी से फूली नहीं समाती, बस एक ही पल में बाज़ी पलटते उन दोस्तों का मुंह लटक जाता है और पूजा ख़ुशी से लगभग नाच ही उठती है| ये दृश्य देख बलवीर जी अभी भी मंद मंद मुस्करा रहे थे|
सब मन मुताबिक होने पर भी पूजा के मन का प्रश्न वही का वही रह गया कि आखिर उन गिफ्ट के पैकेट में छुपाए जूते का सही पैकेट जब वह नहीं पहचान पाई तो उन चारों ने कैसे पहचान लिया| दुल्हे दुल्हन की विदाई से पूर्व परिवार संग रस्में करते जब बलवीर जी अपनी ससुराल वालों के संग थे| गुड्डी छुईमुई सी शर्माती बैठी हुई बीच बीच में अपनी घूमती नज़र से अपने आस पास का जायजा लेती उन्हें देख लेती| पूजा अभी भी उलझी हुई सी बैठी थी| शैफाली कभी पूजा की ओर देखती कभी हंसती हुई उस चौकड़ी की ओर जो दूल्हा दुल्हन और पूजा के बीच के स्थान पर जमे कहते कहते अपनी हँसी नही रोक पा रहे थे| लेकिन पूजा खुश थी कि उस समय वे चारों नही आते तो जीजू के दोस्तों के सामने उसकी फज़ियत ही हो जाती| इस पर जय बलवीर जी की ओर इशारा करता हुआ सारा माज़रा समझाते हुए बताता है कि ये सब तो इनका कमाल है तो उस चौकड़ी के अलावा मौजूद सभी ऑंखें आश्चर्य से बस वही जमी रह जाती है| तब आगे बढ़कर वे चारों बारी बारी से सारा राज़ खोलते हुए बताते है कि असल में छुपाए हुए जूते तो अभी भी उसी गिफ्ट के पैकेट में होंगे वो तो उन्हें मिले ही नही, और जो पूजा को दिए वो तो बिलकुल वैसे ही लेकिन दूसरे जूतें थे| मौजूद परिवार उनकी बात बड़े ध्यान से सुन रहा था|
“असल में बलवीर जी ने शादी से पहले अपनी दुल्हे के रूप में तैयार तस्वीर मोहित को शेयर की थी तब हम उस पल समझ नहीं पाए फिर जब दिमाग के घोड़े दौडाए तो वैसे ही जूते लेकर पहले से ही रख लिए – बलवीर जी बुद्दिमान तो है ही साथ ही रिश्तों का मान भी रखना जानते है – एक तरफ दोस्तों की बात भी रह गई तो दूसरी तरफ हमारा मान भी कम नही होने दिया |”
गुड्डी अपनी छुपी नज़र से चुपचाप बलवीर जी को देखती है तो उनकी छुपी नज़र चट से उसे पकड लेती है जिससे वह फिर अपने में ही शर्माती सिमट जाती है इधर उन दोनों की नज़रों की लुकाछिपी से अलग शैफाली हतप्रभ सारा माजरा समझती बस एकटक उधर देखती रह गई इसके विपरीत उस पल तेज हँसी की फुहार से कमरा गूंज उठा|
इन्हीं रस्मों के साथ शैफाली नयन भर कर सब देखती रही| विदाई शैफाली की आँखों तले भी कुछ कुरेद गई जिससे उस पल उसके मन में जाने किन भावों ने सहसा कोई करवट ली और पलके मूंदते एक बूंद उसके सुर्ख गालों से लुढ़क गई| हर एक पल शैफाली के अन्दर कुछ बदलता जा रहा था| रिश्तों का बहाव उसे जाने किस ओर बहाए लिए जा रहा था इससे घबरा कर शैफाली चुपचाप अनजाने एकांत में खुद को समेट ले गई| सभी उसको पुकारते रहे पर वह वहां दो पल आई और गुड्डी के गले लगते फिर ख़ामोशी में चुपचाप चली गई|
बेटी के विदा होते जैसे आंगन की सारी हँसी भी वह अपने साथ समेट ले गई| आंगन की नीरवता बस पत्तों की सरसराहट कुछ पल तोडती तो ताई जी झट से दरवाजे की ओर अपनी गरदन घुमा लेती पर सूना दरवाजा उनमे और नीरसता भर देता तो फिर वे अपने हाथ में पकड़ी थाली में से कंकड़ चुनने लगती, वही बैठी परजाई जी गुरमीत के बालों में पटिया गूँथ रही थी तो हैपी किताब लिए बैठा कबसे एक ही पन्ने में अपनी नज़रे गड़ाए था| सब यूँ बैठे थे मानों दुनिया जहाँ से सारे काम खत्म हो गए और किसी को किसी बात की जल्दी नही थी| खिलखिलाता आँगन एकदम से सूना हो गया था| लग रहा था जैसे एक ही दिन में दार जी चेहरे पर असंख्य झुरियां उभर आई हो|
उदासी उन चारों के चेहरे पर भी थी, जय कल ही वापस जाना चाहता था पर मोहित उन्हे एक सप्ताह और रुकने के लिए कह रहा था|
“सच में यार बहुत जरुरी नहीं होता जाना तो साथ ही वापस लौटते|”
जय की बात सुन मोहित समर की ओर देखता है|
“मेरा भी यही हाल है – कह रहे है ज्वाइन करने के बार दुबारा छुट्टी मिल सकती है पर अभी तो बिलकुल भी नही – मैं भी जय के साथ ही निकल जाऊंगा|”
“मुझे कोई प्रोब्लम नही है|” सभी का ध्यान इरशाद की ओर जाता है|
पर उसकी बात सुन जैसे जय को कुछ याद आता है तो वह धीरे से इरशाद के कान में फुसफुसाता है – ‘चल न हमारे साथ क्यों कबाब में हड्डी बन रहा है !!’
जय की फुसफुसाहट पर मोहित तैयोरियां चढ़ाए उसकी तरफ देखता है| इस पर जय तुरंत चेहरे पर हँसी लाता कहता है – “याद दिला रहा था – ये रुक गया तो मानसी मेरी जान लेलेगी और नूर..!!”
नूर का नाम आते इरशाद जैसे सब कुछ भूल बस उस मृगनैनी की मोहनी में खोता हुआ कह उठा – “हाँ मेरा भी लौटना बहुत जरुरी है|”
“ये क्या यार तुम तीनों चले जाओगे तो मैं अकेला रह जाऊंगा |”
“अकेले कहाँ हो !!” एक शरारती मुस्कान से जय मोहित की ओर देखता है तो मोहित झेंप जाता है पर कहता कुछ नहीं|
तभी इरशाद जल्दी से कहता है – “यार कल निकलना है तो आज शाम वही करते है न जो हर बार करते है – तालाब तक चलते है|”
इरशाद की बात सुन जहाँ जय और मोहित के चेहरे चमक उठते है वही समर बिदक उठता है – “बिलकुल नही – तुम सालों बहुत धोखेबाज हो – पता है मुझे तैरना नही आता फिर भी मुझे पानी में धकेल देते हो |”
“कसम से अबकि धक्का नही देंगे |” कहते हुए वे तीनों छुपी मुस्कान से एक दूसरे को देखने लगते है|
क्रमशः……………..
Very very nice👍👍👏👏😊😊😊