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शैफालिका अनकहा सफ़र – 36

शादी होते सभी मेहमानों के साथ पूजा भी चली गई, वह जाने से पहले कुछ पल रुकी और शैफाली को चंडीगढ़ आने का निमंत्रण भी दिया पर दोनों को नहीं पता कि अब अगली बार वे कब मिलेंगी !! कम समय में भी एक जुड़ाव सा हो गया था उनमें, पूजा के जाते शैफाली और अकेली हो गई| उसकी उदासी मोहित की नज़रों से छुपी न रह सकी जिससे वह खुद को उसके पास जाने से न रोक सका| मोहित की मौजूदगी में वह उसी उदासी में उससे कह बैठी – “तुम सही थे शायद मुझे यहाँ नही आना चाहिए था – कभी कभी कुछ न जानना ही ज्यादा बेहतर होता है – मैं किसी के लिए बिलकुल महत्वपूर्ण नही थी वही स्थिति मेरे लिए सही थी…..|” एक उदास नज़र के पीछे ढेर समंदर की लहरें थी जिन्हें मोहित छेड़ना नही चाहता था| वह बस उसे अपने साथ बाहर टहलने चलने के लिए कहता है|

अब वे ख़ामोशी से साथ साथ चलते निकुंज भवन के सामने रुकते है| निर्माणाधीन भवन के आस पास झाड़ियों को पार करते दोनों अन्दर की ओर आते है| शैफाली देखती है मोहित की नज़र उसी ओर थी, इससे पहले कि वह कुछ पूछती वह अन्दर की ओर कदम बढ़ाते बढ़ाते कहता रहा और उसके पीछे पीछे शैफाली चलती ख़ामोशी से सुनती रही|

“ये मेरी माँ के नाम की याद पर भाई जी ने बनवाया है – यहाँ आते मुझे लगता है जैसे माँ के आंचल की छांव में आ गया हूँ मैं – माँ चाहे जिस देश की हो अपने बच्चों को जाने के बाद भी अपने प्रेम की ऊष्मा ने सिंचित करती रहती है – बस सब महसूसने की बात है |”

मुख्य गेट से प्रवेश कर वे आंगन के चौबारे पर बने एक पेड़ के चबूतरे पर रुक जाते है| 

शैफाली दूसरी ओर नज़रे घुमाए देख रही थी इससे वह नही देख पाई कि मोहित उस पेड़ से कुछ फूल तोड़ कर उसकी तरफ बढ़ाते हुए उसे पुकारता है – “शैफाली |”

वह मुड़कर उसकी हथेली के फूलों को देखती रही जिसे मोहित उसकी हथेलियों के सुपूर्त करते कह रहा था – “ये तुम हो – |” वह शैफाली के चेहरे के आश्चर्य पर धीरे से मुस्कराया|

“पता है ये पारिजात के फूल है और बंगला में इन्हें शेफालिका कहते है – यानीं तुम – विदेश में भी रहते हुए जब तुम्हारे पिता ने तुम्हे ये नाम दिया होगा तो यकीनन इन फूलों का ख्याल उनके जेहन में रहा होगा – बहुत ख़ास फूल है ये – ये जहाँ होते है अपनी खुशबू से अपनी मौजूदगी का अहसास करा देते है -|”

कुछ किरचे शैफाली की आँखों ने महसूस की इससे डबडबाई आँखों को वह मोहित से छुपाती अन्यत्र देखने लगी|

“कभी कभी कुछ बाते कही नहीं जाती बस उनका होना महसूस कर लिया जाता है – तुम उनके लिए ख़ास थी तभी तो देखो उन्होंने तुम्हे यहाँ भेजा सोचो अगर तुम यहाँ नहीं आती तो कैसे जिंदगी को इतने करीब से देखती !!”

“क्या तुम इस सबके लिए उन्हें माफ़ नही कर सकती !!!”

शैफाली कुछ नही कहती बस उसकी गहरी गहरी सांसो के भीतर जैसे हथेली के फूलों का इत्र उसके अंतरस उतरता जा रहा था|

“यादें इन्सान के जीने का सहारा बनती है शैफाली – बस तुम महसूस नहीं करती – तुम्हे यहाँ भेजने का मकसद ही यही रहा होगा कि जिंदगी को तुम करीब से देखो और महसूस करो जो वे शायद अपनी व्यस्तताओं के कारण कभी शब्दों से नही कह पाए होंगे |”

शैफाली एक नज़र फूलों से लदे घने पेड़ की छांव की ओर नज़र घुमा कर देखती है|

“पता है इस पेड़ की एक खासियत और है कि इसके फूल हमेशा अपनी जड़ों से दूर गिरते है |”

शैफाली देखती है कि सच में पारिजात के फूल पेड़ की जड़ों से हटकर चारों ओर बिखरे थे, शेफालिका !! तो क्या मैं भी अपने स्थान से दूर खिलूंगी !!! ये अनजाना प्रश्न उसके मन में कौंध गया वह देखती है मोहित अब नयन भरकर उस स्थान को देख रहा था, वह एक गहरी साँस से फिर उन फूलों की महक अपने अंतरस रूह में उतार लेती है|

मोहित घूमती नज़र से अब उसकी तरफ देखता है – “लक्ली तुम इस मौसम में आई क्योंकि पूरे साल के इन्ही जाड़ों के शुरूआती मौसम में ये फूल खिलते है सोचों अगर इस वक़्त तुम यहाँ नही आती तो कैसे मिलती !!!”

“किससे !!!” प्रश्न पूछते उसकी ऑंखें अचानक चमक उठी|

मोहित जानकर एक भरपूर नज़र से उसकी आँखों को देख कर भी अनदेखा करता है, यही पल था जब दोनों की ऑंखें जैसे किसी अनजाने पुल का निर्माण कर रही थी जिनसे भावों की अनजानी नदी की हिलोरे उनके मन में उठने लगी जिससे उनके चेहरे पर हलकी मुस्कान आ गई|

वह मोहित की ओर देखती फिर प्रश्न पूछती है – “बताया नही किससे !!”

“भावना से, मानसी से, इस परिवार से …|”

“और…?” वह जान कर अपनी नीली आँखों का समन्दर उसके आँखों में उतारती हुई पूछती है|

“और….इन शेफालिका से..|” उसके कहते मानिंद कोई हवा का झोंका आता है और पारिजात के फूल उनके ऊपर नौछावर हो उठते है जिससे बरबस ही वे मुस्काने एक सार हो उठती है|

शाम का धुंधलका होने लगा था मोहित बाहर निकल रहा था पर शैफाली कुछ देर और वहां बैठना चाहती थी| कुछ समय बाद उसे वापस लिवाने का कहकर मोहित वहां से बाहर निकला ही था कि जल्दी में नही देख पाया कि सामने से आते वे तीनों अब उसे अपनी नज़रो से कसकर घूर रहे थे|

मोहित उसी पल वहीँ ठिठक गया|

“तो अभी तुमको कहाँ होना था ??”

उनके कन्धों में टंगी तौलिया देख वह एक दम से सकपका गया|

“साले हम घंटे भर से तालाब में तुम्हारा इंतजार कर रहे है और हुजुर यहाँ आराम फरमा रहे है..|” 

तीनों अपनी अपनी तौलिया लेकर लगभग उस पर जुट ही पड़े उनसे बचने मोहित हँसता हुआ तालाब की ओर भागता है तो उसके पीछे पीछे तीनों भी दौड़ लगा देते है|

गाँव आने पर ये उनका सबसे खूबसूरत लम्हा बन जाता अब चारों मिलकर तालाब की मचान पर बैठे दूर दूर तक का नयनाभिराम नज़ारा ख़ामोशी से ताकते रहते| उस पल वहां का हर लम्हा उनकी दोस्ती का मौन गवाह बन जाता तो उनकी मस्ती का छुपा पिटारा भी खोल बैठता जब समर उनकी तरह तालाब में बिलकुल नही कूदना चाहता और वे जबरन उसे अपने साथ लिए पानी में कूद जाते| फिर ढेर हँसी और गुदगुदाहट से भर उठता वहां का माहौल….

तीनों समर की हालत पर कस कर ठहाका लगाते हुए वापस आ रहे थे|

“कहा था न धक्का नही देगे….इस बार उठाकर फेकेंगे |”

तीनों के ठहाके पर समर चेहरे पर गुस्सा लाता अपने सिर से पानी की बूंदे झाड़ता हुआ उन्हें घूरता हुआ कहता है –

“कमीनों इस बार तुमसे से कोई बीमार पड़ा न तो देखना तुम लोगों को घोड़े वाला इंजेक्शन लगाऊंगा |” समर अपनी मरमरी हालत लिए आगे बढ़ने लगता है तो बाकी उसे मनाने उसके पीछे चल देते है|

लेकिन मोहित की नज़र ज्योंहि अपनी ओर आती परेशान सी परजाई पर जाती है वह ये देख जल्दी से उनकी तरफ चल देता है|

वे मोहित से पूछ रही थी कि शैफाली उसके साथ गई थी तो अभी तक वापस क्यों नही आई| ये सुनते मोहित के पैरों तले जमीं ही सरक जाती है| चारों ओर घिरते अँधेरे से उसकी चिंता और बढ़ गई जिससे  वह आनन फानन वापसी की ओर भागता है|

क्रमशः………

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