
शैफालिका अनकहा सफ़र -37
अब तक सब यही सोच रहे थे कि शैफाली भी मोहित के साथ होगी पर उन चारों की वापसी पर सब परेशान हो उठे जिससे सभी शैफाली को ढूंढने हर तरफ चल दिए| पर मोहित को अंदाजा भी नही था कि शैफाली अभी भी उसी भवन में होगी| वह उसे आवाज लगाता भवन की ओर बढ़ा तो बाकि सभी भी उसी के पीछे हो लिए| वहां जलते जीरो वाल्ट के बल्ब की मध्यम रौशनी में उसकी देह को निस्तेज पड़ा देख वह दूर से बेचैन होता तेजी से उन झाड़ियों की परवाह किए बिना उसकी तरफ बढ़ने लगता है| सभी की नज़रे इस दृश्य को अवाक् देखती रही कि मोहित अब उसे अपनी बाँहों में उठाए उतनी ही तेजी से वापस आ रहा था ऐसा करते शैफाली की हथेलियों के बीच फसे कुछ पारिजात के फूल झड़कर वही गिर जाते है|
घबराहट सबके चेहरे पर आवंटित थी| उसे कमरे में लेटाकर मोहित उसे झंझोड़ने लगता है| उसकी बेचैनी लगभग उसके रुंधे गले में बदल गई जिसकी कंपकपाती आवाज से अब उसका नाम भी बड़ी मुश्किल से निकल पा रहा था पर समर उसे संभालते जल्दी से अपना फर्स्ट एड बॉक्स के साथ शैफाली की जाँच कर सुकून से कहता है – “कोई चिंता की बात नहीं है – लगता है फिसल कर गिरने से बेहोश हो गई – बस माथे में ऊपरी चोट है|” कहता हुआ वह बैंडेज लगाकर अब मोहित की ओर देखता है, जिसे खबर ही नहीं थी कि बेतहाशा झाड़ियों से गुजरने से उसकी बांह से भी कई जगह से खून रिस रहा था|
समर जैसे उसे पकड़ कर झंझोड़ता हुआ उसका ध्यान उसकी बांह की ओर दिलाता है तो सभी अब उसकी ओर देखने लगते है|
समर उसके घाव पोछते पोछते उसकी आँखों को पढ़ने लगा था जहाँ बेचैनी की ढेर उफनती नदियाँ जैसे सिर्फ शैफाली की ओर मुडती दिख रही थी| वह उसे अब और न टोक सका बस चुपचाप उसकी भी मरहमपट्टी करने लगा|
शैफाली के सर के पास बैठी ताई जी अपने आंचल से उसका सर सहला रही थी तो परजाई जी उसके तलवे अपनी हथेलियों से मलती बार बार उसके चेहरे को देखने लगती| अगले कुछ ही क्षण में शैफाली को होश आ जाता है, वह धीरे से आंख खोलती सबसे पहले ताई जी की गोद को महसूस करती उनकी ओर देखती है फिर मौजूद सभी के चेहरे की परेशानी को सिलसिलेवार देखती हुई मोहित की आँखों तक पहुँचती जैसे ठहर सी जाती है|
“मुझे माफ़ कर दो मुझे पता नही था नही तो तुम्हें छोड़कर नही जाता |”
बेहद ग्लानी भरी आवाज धीरे से मोहित के गले से फूटती है जिसपर वह सहारा लेकर उठकर बैठती हलके से मुस्करा कर देखती हुई कहती है –
“देखा मुझे अकेला छोड़ दोगे तो मैं वापस ही नहीं आउंगी..|”
“शैफाली……|” मोहित की आवाज कांप गई|
“आई एम जस्ट किडिंग |” सबके चेहरे पर उग आए तनाव पर शैफाली अपनी हलकी हँसी की फुहार छोड़ती हुई कहती रही – “असल में मुझे वहां बहुत अच्छा लग रहा था तो समय का पता ही नहीं चला कि कब अँधेरा हो गया फिर अँधेरे में शायद मैं रास्ते चलते लडखडा कर गिर गई होगी -|”
“येह तेरी गालती है – जब लेकर गया था तो क्यों छोड़कर आया !!” भाई जी बुरी तरह से उखड़ते हुए बोले तो मोहित धीरे से सर झुका लेता है|
“माफ़ी तो मुझे मांगनी चाहिए – मेरी वजह से सब परेशान हो गए|” वह एक सरसरी निगाह से सभी के चेहरे देख डालती है|
“कोई बात नही शैफाली – वैसे तुम्हें कही कोई दर्द तो नही|”
समर की बात सुन शैफाली मुस्करा कर धीरे से न में सर हिलाती है|
इस पर सबका मूड हल्का करने जय तुरंत बोल पड़ा – “अब देखना शैफाली कभी मोहित कुछ न सुने तो सीधे ताई जी बताना वो ही इसको ठीक करेंगी – हमारी तो कुछ सुनता ही नहीं है|”
इससे एक हलकी हँसी की फुहार कमरे में गूंज उठी|
“तुम तो अब मोहित के संग ही वापस आओगी न – हम तीनों तो कल वापस लौट रहे है |”
इरशाद की बात सुन फिर घूमती नजर से शैफाली मोहित की ओर देखती है जो अभी भी सर नीचे झुकाए बैठा था|
“हाँ पुत्तर हमारे संग कुछ दिन रहोगी तो हमे भी बहुत अच्छा लगेगा|”
ताई जी अभी भी शैफाली का सर प्यार से सहला रही थी तो गुरमीत धीरे से उसके पास आकर बैठती उसके गालों को अपने नन्हे नन्हे हाथों से सहलाने लगी जिससे एक प्यारी मुस्कान उसके चेहरे पर खिल आई|
गाँव में सभी रिश्तेदार के जाते अब सिर्फ घर के लोगों के बीच थी शैफाली जिससे उनके बीच ज्यादा नजदीकी का उसे मौका मिला| अभी अभी बाहर से आते मोहित देखता है कि शैफाली हैपी को पढ़ा रही थी और अपनी गोद में बैठाई गुरमीत को बीच बीच में कुछ समझाती जिसे वह अपनी हाथ में पकड़ी कॉपी में पेन्सिल से बना कर उसे दिखाकर खुश हो जाती| कुछ पल तक दूर से वह ये नजारा देखता रहा| हैपी को इतनी देर बैठे पढ़ते देखने का उसका ये पहला तजुर्बा था जिससे मन ही मन वह मुस्करा उठा|
फिर उसके पास आने पर ही शैफाली का ध्यान उसकी ओर गया तो उनकी नजरे आपस में मिलती मुस्करा उठी|
“ओए हैपी कि होर रिया है ?” वह हैपी के पास आकर उसकी किताब में देखने लगता है|
“पढ़ रिया हा चाचू – |”
“वाह …|” मोहित चमत्कृत होता उसकी ओर देखता है पर वह फिर से अपनी किताब के खाली स्थान पर कुछ लिखने लगा था|
“तुमने इसको पढ़ा लिया तो समझो बहुत बड़ा काम कर लिया|” अबकि वह शैफाली की ओर देखता हुआ कहता है|
“हाँ ऐसे ही बुक देखी तो सोचा कुछ पढ़ा कर देखती हूँ – |” शैफाली उसकी किताब में देखती हुई कहती है|
“हाँ अच्छा है वर्ना तो ये बैठता कहाँ है – तुम्हारी बात सुन ली इसने !!!” वह कुछ ज्यादा ही मुस्करा कर शैफाली की ओर देख रहा था तो हैपी धीरे से मोहित का कन्धा पकड़कर अपनी ओर झुकाते हुए उसके कान में फुसफुसाता हुआ कहता है –
“चाचू बड़ा अच्छा पढ़ादी है तुसी शादी कार लो फिर पढ़ाने का पैसा वी न देना पडेगा|”
“हट्ट पाजी |” कहकर मोहित उससे छिटकता एक बार शैफाली की ओर छुपी नज़र देख मुस्कराया जो इशारे में ‘क्या हुआ’ पूछती अब उन्ही की ओर देख रही थी|
“कुछ नही बहुत शैतान है|” कहकर वह गुरमीत की ओर बांह फैला देता है तो वह झट से अपनी कॉपी पेंसिल पकडे अब उसकी गोद में बैठ जाती है|
वह ध्यान से उसकी कॉपी में खिंची लकीरों को देखता हुआ कहता है – “वाह ये सब तुमने बनाया – शैफाली तुम अपनी बात कैसे समझा लेती हो गुरमीते को !!!” वह आश्चर्य से फिर शैफाली की ओर देखता है|
“एक्चुली मैंने अपनी दोस्त केनी के साथ साईन लैंग्वेज का कोर्स किया था पर कभी नहीं सोचा था कि इसे मैं कभी अप्लाई भी कर पाऊँगी – यहाँ आकर तो जैसे मैं खुद से ही मिल ली|”
एक अजब ख़ुशी सच में शैफाली के चेहरे पर नज़र आ रही थी|
“ऐसे ही तुम्हें अपने जीवन का लक्ष्य भी मिल जाएगा फिर अपना जीवन तुम्हें सबसे मूल्यवान लगेगा|”
ये सुनते वह मोहित की ओर अनजाने भाव से देखती रही|
“जिंदगी हमे एक बार जरुर खुद को जानने का मौका देती है बस हमे उस मौके को समझना होता है – इसलिए तो मैं मानता हूँ कि कभी किसी का जीवन बेमकसद नही होता शैफाली |”
वे ऑंखें आपस में मिल कर और विश्वास से भर उठी|
इन कुछ दिनों शैफाली जैसे घर के हर कोने में समा गई थी मानों घर का जरुरी हिस्सा हो गई हो| ताई जी संग रसोई में खाने की सोंधी खुशबू संग चहकती तो परजाई संग डोर से कपड़े उतार कर उनके किस्सों में खो जाती| शाम के धुंधलके में गुरमीत और हैपी उसे घेर लेते और जाने क्या क्या खेल में फसा कर खूब खिलखिलाते| पूरा दिन वह किसी न किसी संग जुडी रहती तब कहाँ शाम की उदासी उसे पल भर को भी छू पाती| कभी कभी इसी बीच मोहित से नज़रे मिल जाती तब वे ख़ामोशी से मुस्करा कर खुद में सिमट जाते| अब अकेले ही वह तालाब तक चली जाती पर डूबता सूरज देख उदास न होती|
शैफाली तालाब के पास कुछ ऊँचे स्थान पर खड़ी दूर तक देख रही थी, शुरुआती सर्द मौसम से उसने खुदको सिर्फ एक शाल से ढांप रखा था वहां खड़ी वह जाने किस शुन्य को निहारती इतनी अपने में गुम थी कि मोहित का आना वह नही देख पाई जब तक उसने उसे कसकर पुकारा नही|
वह उसकी तरफ अपना मोबाईल बढ़ाते हुए कह रहा था – “तुम्हारा लन्दन से फोन है – शायद भावना ने नंबर दिया होगा|”
वह आगे बढ़कर मोबाईल लेकर कान से सटा लेती है| मोहित संकोच से कुछ दूर खड़ा रहता है| वह उनकी बात नही सुनना चाहता था फिर भी कुछ आवाज़े सहसा उसके कानों से टकराती रही जिससे उसे अंदाजा हुआ कि फोन के दूसरी तरफ शायद उसका वकील था, फिर दो नाम क्रमशः उसके कानों से टकराते है केनी और एडवर्ड, ये उसके रूम पार्टनर थे वह जानता था पर और कुछ न सुनने की चाह से वह जानकर उससे कुछ और कदम दूर हो जाता है|
वह पास के पेड़ की ऊंचाई को गर्दन उठाकर देखने लगता है वह ढेरों चिड़ियों की चहचहाहट पर अपना सारा ध्यान लगा देता है, तभी उसे पुकारती आवाज पर अब वह वही से खड़ा शैफाली को देख रहा था| जो उसकी ओर मुस्कराते हुए देख रही थी कि मोबाईल फिर बज उठा, अबकी वह मोहित की ओर बढ़ाती हुई कहती है – “जय का है |”
मोहित तेज कदमों से आगे आता मोबाईल लेते कान से लगाया ही था कि बरबस ही उसके चेहरे पर भरपूर मुस्कान तैर गई, वे सारे स्पीकर से मोहित से बात कर खुशखबरी दे रहे थे, जिसकी ख़ुशी उसके चेहरे पर भी अपना आसन जमा चुकी थी|
“वाह यार…..हाँ हाँ जल्दी आता हूँ….हाँ शैफाली भी साथ है..|” मोहित अपना आखिरी शब्द थोड़ा धीरे से कहता शैफाली के मुस्कराते चेहरे की ओर देखता है|
“जल्दी आओ मोहित हमे भी खुशखबरी सुननी है..|” बीच में मानसी आती जल्दी से कहती कसकर मुस्करा देती है|
शैफाली औचक अब उसकी तरफ देखने लगी|
मोबाईल अपनी पॉकेट के हवाले करते हुए वह बताता है – “अब हमे जल्दी वापस पहुंचना है – जय, समर और इरशाद की शादी फिक्स हो गई|” कहते कहते एक हलकी हया न चाहते हुए भी मोहित के चेहरे पर नज़र आने लगी|
“वाओ – दैट्स गुड…|”
फिर अगले पल तक उनके बीच ख़ामोशी छा गई, जिसे जानकर तोड़ते मोहित कहता है – “तुम्हें यहाँ हर शाम तालाब के पास अच्छा लगता है !!”
ये सुन शैफाली सच में एक गहरा उच्छवास हवा में छोड़ती हुई अपनी बांह हवा में फैलाती ऑंखें बंद करती हुई कहती है – “हाँ – यहाँ आती हूँ तो आंख बंद करते लगता है जैसे हैम्पटन ब्रिज पर खड़ी थेम्स को निहार रही हूँ – वही सुकून वही एकांत मिलता है यहाँ मुझे…|”
मोहित उस पल शैफाली को नज़र भर देखता रह गया, वह आंखे बंद किए अभी भी खड़ी थी, उसका जी चाह रहा था कि उसकी ओर अपना कदम बढ़ा ले पर किसी अनजान डर से उसके कदम वही जमे रह गए वह बस दूर से ही उसे नयन भर देखता रह गया|
क्रमशः………..
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