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शैफालिका अनकहा सफ़र – 40

सुबह की रौशनी अभी तक उस कमरे में नही उतरी थी| शैफाली सब तरफ से कमरे को परदों की परतों से ढांपे अभी भी बिस्तर पर ऑंखें खोले पड़ी थी| अतिरेक सूनापन उसकी खुली आँखों में उतर आया था, जैसे बांध ने उफनती नदी को रोक रखा था आँखों के पीछे| फिर एक दम से कुछ ख्याल आते वह कमरे में कुछ खोजने उठ जाती है| कमरे में खोजते खोजते वह हर सामान उसकी अपनी जगह से हटा देती है, इससे अगले ही पल कमरे में इधर उधर कपड़े इत्यादि फ़ैल जाते है, आखिर काफ़ी खोजने के बाद उसके हाथों के बीच जिन की बोतल थी, जिसे अपनी हथेली के बीच संभाले कुछ पल तक वह उसे ताकती रही मानों खुद से किए वादे की वादाखिलाफी करने जा रही हो| वह बोतल लिए धप से बिस्तर पर बैठ जाती है| खुद को सही से बैठने में वह बिस्तर पर फैले कपड़े एक हाथ से हटाने लगती है तो एकाएक उसके हाथ किसी चीज से टकरा जाते है जिससे उस पल वह अपनी आंख उससे नही हटा पाती| वह परजाई जी का दिया वही फुलकारी वाला लांचा था| सहसा उसके चेहरे के भाव में बदलाव आते उसकी पलकें भिगो देते है| अगले पल वह उठकर बोतल को खोल सारा वाशबेसिन की नाली में बहा कर सिसककर रो पड़ती है फिर कब तक रोई और कब उसकी आंख लग गई उसे अहसास भी न रहा|

आहट पाकर इरशाद जो कमरे की सफाई में लगा था मोहित को देखते उसके पास लपकता आ पहुंचा – “चल भाई तेरा सवेरा तो हुआ – |”

“लगता है अपने भाई पर इश्क का नशा कुछ ज्यादा ही चढ़ गया – अब कुछ खुमारी टूटी हो तो कुछ पेट पूजा भी करेगा – आज का लंच मैंने तैयार किया है |” आवाज सुन मोहित एक हलकी दृष्टि से जय की ओर देखता है पर वह कुछ नही कहता बस वाशरूम की ओर बढ़ जाता है|

पर इरशाद जय को खींचने को पूरा तैयार बैठा था – “खा लूँगा तेरे हाथ का ज़हर भी यही सोचकर कि जल्द ही अच्छे खाने के दिन भी आने वाले है |” यही पल था जब समर कार धोकर बाल्टी लिए वही आ रहा था|

इस एक बात पर तीनों अपनी अपनी महबूबा को याद कर मन ही मन गुदगुदा उठे थे|

भावना बहुत देर तक शैफाली के खुद बाहर आने का इंतजार करने लगी, आज छुट्टी का दिन था पर पवन किसी काम से बाहर थे इससे उसका वक़्त और काटे नही कट रहा था, पहले उसे लगा कि शैफाली सफ़र की थकी है तो उसे सोने देते है पर दोपहर होते उससे नही रहा गया और वह शैफाली के रूम के बाहर खड़ी दस्तक देने लगती है|

बहुत देर की दस्तक के बाद शैफाली दरवाजा खोलती है| भावना अन्दर आते एक सरसरी निगाह से कमरे के अँधेरे में उस कमरे की उथल पुथल देख सन्न रह जाती है| शैफाली निढाल सी बिस्तर के कोने में घुटनों में मुंह ढांपे बैठी थी| ये देख भावना झट से उसके पास आती उसका चेहरा अपने हाथों से उठाती हुई पूछती है – “क्या हुआ ?” भावना उन नीली शुष्क आँखों को देख घबरा जाती है – “हुआ क्या शैफाली – तुम्हारी ऑंखें इतनी लाल क्यों है – रात भर सोई नही क्या – हुआ क्या है कुछ बताओ तो !!!”

शैफाली अपनी पलकें झुका लेती है|

“तुम तो खुश थी न वहां – कोई बात हुई है मोहित के साथ – या कुछ और – मुझे बताओगी तभी तो मैं समझूंगी |” भावना परेशान हो उठी थी|

शैफाली आंखे उठाकर भावना के चेहरे को देखती है जहाँ ढेर अपनापन था, चिंता थी उसके लिए, वह बेचैन होती एकदम से उसके गले लग कर उसके कन्धों के सुकून में कुछ अश्क बहा लेती है| कुछ पल तक भावना उसे अपनी पनाह में ऐसे ही रहने देती है फिर धीरे से उसका चेहरा अपने हाथों में समेटती उसकी रुआंसी आँखों को पोछती हुई गौर से देखती है जहाँ बहुत कुछ अनकहा ही उसे समझ आ रहा था और बहुत कुछ अनबूझा सा लग रहा था|

भावना उसकी आँखों में झांकती हुई आखिर पूछ लेती है – “तुम मोहित को पसंद करती हो ?” पूछने तक वह उन आँखों में भी उसका जवाब तलाशती रहती है पर शैफाली ख़ामोशी से बस देखती रही तो भावना फिर अपना प्रश्न करती है – “बोलो करती हो पसंद ?”

“करती तो मैं खुद को भी नही पसंद थी पर करने लगी न |” वह जैसे खुद पर ही हंसती हुई कहती रही – “खुद को खत्म कर रही थी धीरे धीरे – न जाने क्यों मेरे अनचाहे जीवन में मुझे जीने की चाह दे दी और फिर….|” वह कहते कहते खामोश हो गई|

“मैं बात करुँगी मोहित से |”

“नही |” जैसे करंट सा दौड़ गया उसकी नसों में – “शैफाली ने कभी किसी से न मिन्नतें की न किसी का  अहसान लिया – |”वह उठकर खड़ी होती अपनी हथेली से आंसू पोछती हुई कहती रही – “जब किसी को कुछ पूछना नहीं तो मुझे भी कुछ कहना नहीं इसलिए अब इस शहर में मुझसे नही रहा जाएगा |”

भावना उठकर उसके कंधे पकड़ जैसे झंझोड़ती हुई बोली – “क्या कह रही हो मुझे समझाओ तो !”

शैफाली भावना के हाथ अपने कन्धों से हटाती हुई कहती है – “बस अब अगर और मैं यहाँ रुक गई तो पुरानी शैफाली होने से खुद को बहुत देर नही रोक पाऊँगी -|”

“पर जाओगी कहाँ ?” भावना लगभग रुआंसी हो उठी थी|

“कहाँ !!” जैसे खुद कहकर अब सोचने लगी, फिर कुछ पल सोचकर कहती है – “लन्दन वापस चली जाउंगी |”

“तुम एडवर्ड के पास जाना चाहती हो !!”

“जिस राह से मैं गुजर जाती हूँ दुबारा वहां नही लौटती और रही बात लन्दन की तो बहुत बड़ा है वो शहर वो मुझे अपने अन्दर समा भी लेगा और छुपा भी लेगा |” कहती एक उदासी भरी मुस्कान उसके  होंठों पर जबरन फ़ैल गई|

 भावना उसका चेहरा देखती रह गई|

खाने की टेबल पर जबरन ही मोहित को सबके साथ बैठना पड़ा पर थोडा बहुत खाकर वह कुछ जरुरी काम का बहाना बनाकर घर से बाहर निकलने लगा तो जय उसे जाते जाते याद दिलाता है कि शाम को सबका एक साथ डिनर है तो वह डिनर के समय तक शैफाली को लेकर जरुर आ जाए| मोहित बिना कुछ कहे बाहर निकल जाता है| सभी अपनी मस्ती में इतना मशगूल थे कि मोहित के बदले व्यवहार पर किसी का ध्यान ही नहीं गया|

रात के खाने के समय में समर के पिता के साथ, समर, ऋतु, जय, मानसी, इरशाद और नाज़ के साथ खाने की महफ़िल सजी थी| हर बार की तरह उनके बीच अप्पी का दिया टिफिन था तो कुछ ऋतु का बनाया हुआ था, जिसका सभी लुफ्त उठा रहे थे|

समर के डैड की नज़र जब उनकी प्लेट पर रहती तो इरशाद झट से अपने हाथ का कौर नूर को खिलाकर उसके नर्म होंठों की छूअन से मुस्करा उठता, तो साथ साथ अगल बगल बैठा जय मानसी का हाथ कसकर पकडे था, जिससे जय अब उलटे हाथ से खाना खा रहा था| समर और ऋतु आमने आमने बैठे एक दूसरें की नज़रों में इस कदर खोए थे कि उनका खाना जस का तस रखा हुआ था|

समर के डैड अपनी छुपी ऑंखें से उन तीनों जोड़ों को उनमे गुम हुए देखकर मंद मंद मुस्करा रहे थे, इससे उनकी तन्द्रा को तोड़ने वे तेज स्वर में कहने लगे –

“वाह आज का खाना तो लाजवाब है – मुझे तो अपनी उंगलियाँ चाटने पर मजबूर कर दिया |” वे सच में अपनी उंगलियाँ चाटते हुए बोल रहे थे – “भई लकी हो जो इतना टेस्टी खाना रोज खाते हो|” समर के पिता उन सबको एक सरसरी निगाह से देख मुस्करा रहे थे|

इसपर जय तुरंत कह उठा – “अरे अंकल रोज़ रोज़ ऐसा कहाँ नसीब होता है – अकसर तो हमे डॉक्टर साहब के जले पराठे खाने पड़ते है |”

“हाँ जले ही सही पर मिलते तो थे तुम लोग से तो वो भी नही होता |”

समर की बात सुन सभी की हँसी छूट गई|

“हाँ भाई किचेन की खिड़की को थैंक्स कहना तो बनता ही है |” जय ऋतु की ओर देख कसकर हँस दिया तो ऋतु सबकी नज़रों से छुपती धीरे से मुस्करा दी|

“किचेन की खिड़की !!!” समर के डैड अब हैरत से सबकी ओर देखने लगे पर सब धीरे धीरे हँस रहे थे|

“अरे अंकल सुबह सुबह क्या व्यू दिखता है वहां से |”

“ओह्ह !!”

उस पल सबकी खिलखिलाहट से जैसे कमरा गूंज उठा| तभी जय के मोबाईल पर मेसेज टोन से सब उसकी ओर देखने लगे |

“मोहित का मेसेज है – कई कॉल किए तो अब जाकर मेसेज किया कि पांच मिनट में आ रहा है |”

“दिन से मोहित नही दिखा – है कहाँ ये ?” समर पूछता है|

“होगा शैफाली के साथ और कहाँ |”

“हाँ उसकी कमी बहुत खल रही है काश जल्दी से शैफाली के साथ आ जाए |”

ऋतु कहती है तो इरशाद उसकी हाँ में हाँ मिलाता हुआ कहता है – “कहा तो था जाते समय – |”

तभी कार रुकने की आवाज के साथ सबका ध्यान दरवाजे की ओर ठहर जाता है और उसके अगले कुछ पल में मोहित को देहरी पर खड़ा देख सबके चेहरे खिल उठते है, वे सभी उसके पीछे देखते अब शैफाली का इंतजार करने लगते है|

“कहाँ रहे मोहित बेटा – हम सब तुम्हारा ही इंतजार कर रहे थे|”

“कार की सर्विसिंग में टाइम लग गया –|”

बेहद सपाट भाव से कहता मोहित अन्दर जाने लगता है तो मानसी एकदम से खड़ी होती हुई पूछती है – “और शैफाली – वो कहाँ है मोहित ?”

“तुम गए नही उसे लेने !!” इरशाद भी उचकता हुआ पूछता है|

“बेटा लिवा लाते तो आज शैफाली से भी मिल लेता मैं – वैसे मैं तो कहता हूँ तुम भी इनके साथ निपट लो – देखो मुझे डेट्स की बड़ी प्रोब्लेम है |” कहकर वे हँस देते है|

“मेरे पास टाइम नही था – पूरे दिन मैं सर्विस सेंटर रहा|” सबके मुस्कराते चेहरों के विपरीत मोहित सपाट भाव से कहकर तेज कदम से अन्दर चला जाता है|

“इसको क्या हुआ !!” जय हैरान उसको जाता हुआ देखता रहा|

“पता होता तो मैं ही लिवा लाती उसे |” मानसी भी परेशान हो उठी थी|

वे सभी हैरान होते अब एक दूसरें का चेहरा देखने लगे, तो समर के डैड सबको सहज करते हुए कहते है – “हो सकता है मोहित ने हमारे लिए कोई सरप्राइज रखा हो – वेट एंड वाच |”

ये ऐसा लम्हा बन गया जिसे शैफाली न गले उतार पाई और न भूल पाई, उसकी आँखों के सामने हर एक लम्हा चलचित्र की भांति घूम गया जब मोहित उसके साथ था, क्या है उसके मन में !! क्या सोचा होगा मेरे बारे में !! हर किसी की बात रख लेने की आदत है या मेरे साथ चलना उसकी खुद की मर्जी थी !! क्यों नही पूछा कि वो कौन था !! क्यों बिना कहे चला गया !! पर इस काश के बाद भी बिछड़ा लम्हा कभी वापिस नही लौटता जैसे गया हुआ मोहित फिर नही लौटा| क्या दिन भर उसे इंतजार था कि वह लौट कर आएगा !! बालकनी के सूने एकांत में बहुत सारा वक़्त बिताने के बाद जाने कितनी देर वह बिस्तर पर निस्तेज पड़ी रही और लम्हा दर लम्हा बीतता चला गया|

एक दो बार भावना ने फिर कोशिश कि की शैफाली कुछ कहे तो वह उसका मन टटोल सके पर अब अजीब सी ख़ामोशी जैसे ओढ़ ली थी उसने| न कुछ कहा न कोई प्रतिक्रिया ही दी इससे भावना और परेशान हो उठी|

क्रमशः……………..

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