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शैफालिका अनकहा सफ़र – 41

सुबह समर के डैड के जाते जय अपनी नाईट ड्यूटी से वापिस आया ही था कि मोहित को बहुत सुबह बाहर निकलते देख उसे टोकते हुए पूछता है – “इतनी जल्दी कहाँ जा रहे हो ?”

“कॉलेज और कहाँ |”

वह सपाट उत्तर देता अपनी कार की तरफ बढ़ जाता है तो उसे रोकते जय तेजी से उसके पास आता उसके कंधे पर हाथ रखता हुआ कहने लगा –

“मोहित हुआ क्या है – जब से वापिस आए हो हमसे कटे कटे रह रहे हो – बात क्या है ?”

“बात क्या होगी !!”

“हाँ वही तो पूछ रहा हूँ – हमे लगा कि शैफाली और तुम्हारे बीच कुछ बात बढ़ेगी पर अब लग रहा है बात वही की वही है – आखिर बात क्या हुई ?”

“कोई बात क्यों होगी – वो कुछ पल बिताने आई है बस और क्या और अब वो अपने रास्ते और मैं अपने बस – |” कंधे से हाथ हटाते वह कार की ओर बढ़ जाता है तभी दूर से आती मानसी उन्हें आवाज़ देकर रोकती है|

मोहित अब रूककर मानसी की ओर देखता है जो उन्हीं की ओर चली आ रही थी, इससे पहले वह कुछ कहती मोहित उसकी ओर देखता हुआ कहने लगा – “मानसी मानव को भेज देना – रोज दो तीन घंटे समय देकर उसकी पढाई भी कवर करानी है|”

मोहित ने बड़ी गंभीरता से कहाँ मानसी उतने ही हलके लहजे में चहकती हुई बोली – “मानव आजकल वापिस कोचिंग जाने लगा है पर हाँ तुमसे पढ़ने को बड़ा उत्साहित रहता है – सुनेगा तो भागा चला आएगा तुम्हारे पास |”

“ठीक है |” सपाट भाव से कहता मोहित झट से कार में बैठकर निकल जाता है और दोनों अवाक् देखते रह जाते है|

“इसे क्या हुआ !!” मोहित की ओर इशारा कर मानसी अवाक् जय की ओर देखने लगी|

“पता नही परसों से यही लटका मुंह देख रहा हूँ – कुछ बताता ही नहीं कि शैफाली और इसके बीच हुआ क्या है ?”

“अरे कुछ नही – मैं जानती हूँ कि हुआ क्या होगा |”

मानसी की बात सुन जय अब हैरानगी से उसकी आँखों में देखने लगा|

“अब प्रपोज नही करोगे और मन ही मन कुढ़ते रहोगे तो यही होगा न पर मोहित को ये कौन समझाए कि लड़की देशी हो या विदेशी खुद तो आगे आकर नही कहेगी न कि मुझसे शादी करो – ये मोहित भी न प्यार के मामले में बिलकुल बुद्दू ही निकला – लगता है अब शैफाली से मिलकर उसे ही समझाना पड़ेगा |” एक ठंडी आह छोडती हुई मानसी जय की ओर देखती है जो अब उसकी ओर देखता मन मंद मुस्करा रहा था|

“कोई हम सा कहाँ – हम तो आपके पीछे दीवाने हुए घूमते है|” कहते कहते जय एकदम से बढ़कर उसका गाल चूम लेता है जिससे वह एकदम से उछल पड़ती है|

“ये क्या था !!”

“जो भी था अब उसे वापिस करो |” अपनी दिलचस्प नज़रे उसके चेहरे पर गड़ा देता है |

“बिलकुल नही |” वह खिलखिला कर उससे पीछे हटती हुई चहकी|

“देखो ये गलत है मैं उधारी पसंद नही करता |”

“उधारी तो सगाई वाले दिन चुकाउंगी वो भी सूद समेत |” कहती हुई वह वापिस जाने लगी तो जय सीने पर हाथ बांधें अपनी भरपूर नज़र से मुस्कराते हुए उसकी ओर देखने लगा|

मोहित का इंतजार ग्राउंड में हो रहा था और वह दोपहर तक भी वहां नही पहुंचा, उसे कॉलेज में हर जगह ढूंढा जा रहा था पर उसका कोई अता पता नही था, वह न स्टाफ रूम में मिला न मदन को उसके बारे में कुछ पता चला| आखिर ये बात प्रिन्सिपल तक जा पहुंची तो कई कर्मचारी कॉलेज में उसे खोजने लगे क्योंकि उसकी कार अभी भी कॉलेज की पार्किंग में पार्क थी| आखिर मदन को मोहित वहां मिला जहाँ उसे उम्मीद भी नही थी| वह लाइब्रेरी के उस हिस्से में सुबह से बैठा था जहाँ कोई नही जाता था| वह किसी किताब में झुका हुआ था और मदन उसे पुकारता हुआ अब ठीक उसके सामने खड़ा था|

आखिर प्रिंसिपल के सामने उसकी पेशी हो रही थी| वे नाराज़ थे क्योंकि स्टेट लेवल की तैयारीयों में वे कोई कोताही नही बरतना चाहते थे पर अब उस तैयारी में से एक दिन बेवजह चला गया था| मोहित बिना किसी प्रतिक्रिया के उनके सामने खड़ा रहा|

“मोहित मुझे आपसे ये उम्मीद नही थी – इतने जिम्मेदार टीचर होते हुए भी आप ऐसा करेंगे – अगर आपको नही आना था तो बता देते हम किसी अन्य टीचर को भेज देते कम से कम आज की प्रेक्टिस तो प्रभावित नही होती|”

उनकी तल्खी पर भी मोहित कोई ख़ास प्रतिक्रिया नही करता तो प्रिंसिपल उसके चेहरे की ओर गौर से देखते हुए कहते है – “एनी प्रोब्लेम मोहित ?”

इसपर वह बस न में सर हिलाकर फिर ख़ामोशी से सर झुकाए खड़ा रहता है|

“मोहित |” वे उसकी हालत से थोड़ा चिंतित हो उठे थे इससे वे उसके पास आते उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहते है – “मोहित मैं जितने समय से तुम्हें जानता हूँ तुमने कभी कोई शिकायत का मौका नहीं दिया पर शायद तुम किसी समस्या में हो – अगर सही लगे तो मुझसे कह सकते हो |” वे कुछ पल रूककर अपने मौन में उसे बोलने का स्थान देते है लेकिन उसकी ओर से कोई प्रतिक्रिया न देखकर वे आगे कहते है – “ठीक है लगता है आपको कुछ समय के रेस्ट की जरुरत है – मैं आपको तीन दिन छुट्टी देता हूँ फिर गेस्टेड हॉलिडे है इस तरह से आप मंडे से ज्वाइन कर सकते है |” कहते हुए वे अपना हाथ उसके कंधे से हटा लेते है|

मोहित भी चुपचाप कमरे से बाहर निकल जाता है| उसके बाहर निकलते वे घंटी बजाकर प्यून को बुला लेते है|

शैफाली ने अपनी ख़ामोशी में चुपचाप जैसे अगले दिन भी मोहित का इंतजार किया पर उसे नही आना था और वह नही आया, इससे उसके हाव भाव में और एकाकीपन तारी हो गया| कुछ समय पहले भावना उसे मानसी, ऋतु और नाज़ की सगाई का इन्वेटेशन कार्ड देकर गई थी जिसपर उसने कोई खास प्रतिक्रिया नही दिखाई| भावना कुछ समय तक शैफाली को लैपटॉप पर उंगलियाँ घुमाती देखती रही फिर जब उससे नही रहा गया तो वह उसके पास आकर खड़ी हो गई|

इससे पहले कि भावना कुछ कहती शैफाली बिना उसकी ओर मुड़े कहने लगी – “नेक्स्ट ट्यूसडे मैं लन्दन वापिस जा रही हूँ |”

ये सुनते भावना चौंक ही गई, उसे अपने कानो पर विश्वास नही हुआ तो वह उसकी ओर झुकती हुई उसकी क्लांत आँखों के मौन समंदर में देखने लगी|

“ये क्या कह रही हो तुम – क्या सच में तुम चली जाओगी पर क्यों – हम सभी को तुम्हारे साथ की जरुरत है – अभी ऐसा करने की क्या जरुरत आन पड़ी जबकि तुम्हारा विजिट टाइम अभी शेष है|”

“डोंट वरी मैं उनकी इंगेजमेंट के बाद ही जा रही हूँ |” शैफाली भावना की नज़रों से बचती हूँ स्क्रीन पर अपनी नज़रे जमाए रही|

“हुआ क्या है शैफाली कुछ बताओ तो – तुम नाराज़ किससे हो और अगर मोहित से तो मुझे छोड़कर क्यों जा रही हो बल्कि मुझे तो लगा था कि शायद तुम अब हमेशा के लिए मेरे साथ रहोगी – फिर अचानक क्या ऐसा हो गया कि लन्दन वापसी का तुमने फैसला ले लिया?”

शैफाली कुछ नही कहती वह स्क्रीन पर ऑंखें जमाए भावना की आँखों से बचती रही| भावना भी चुपचाप खड़ी उसकी ओर देखती जैसे उसके अंतरस कुछ खोजने लगी थी|

मोहित कॉलेज से निकलकर घर वापिस नहीं गया, वह जाना कहाँ चाहता था और उसके मन ने उसे कई बार सड़क पर उस रोड पर से कई बार गुजारा जहाँ भावना का अपार्टमेंट था पर उस ओर वह रुका नहीं| आखिर अपने बेचैन मन के साथ वह इधर उधर घूमता रहा, उन सभी जगह जहाँ कभी शैफाली को लिए हुए वह उसके साथ था| उसके साथ का अहसास वह अपने मन से हटा भी नही पा रहा था| भर कोशिश कई बार खुद को समझाता कि वह एक ख्वाब ही तो है पर उस सराब से उसका मन जरा भी नही डिगता| देर रात तक बंगला जी साहिब गुरुद्वारा में ताल के पास यूँही बैठा रहा, मानों किसी का इंतजार हो उसे| देर रात जब वह वापिस आया तो सभी सो चुके थे और एक बार फिर वह सभी की नज़रों के प्रश्नों से खुद को बचा ले गया|

फिर से अगली सुबह मोहित को घर पर न पाकर सबके कान खड़े हो गए कि जरुर कोई बात है जिसका सामना नही कर रहा वह, जय ड्यूटी जाने को तैयार होकर उसके कॉलेज के लिए निकल जाता है| कॉलेज पहुंचकर उसके डिपार्टमेंट के बाहर ही कुसुमलता हवा में लहलहाती लता सी उसके सामने डोलती हुई बोल रही थी –

“अरे आपको नही पता – मोहित जी तो कल से ही छुट्टी पर है !”

वह आश्चर्य से जय का चेहरा ताकती रही तो जय अवाक् रहने पर भी खुद को सँभालते हुए कहता है – “ओह हाँ मैं दो दिन से ड्यूटी में बिजी था उसने बताया तो था मैं ही भूल गया |” कहकर जय चलने को हुआ पर कुसुमलता की अनचाही बातें उससे चिमट गई|

“वही तो मैं कहूँ – आप दोनों तो साथ ही रहते है फिर कैसे नही पता होगा – इतनी गहरी इतनी अच्छी दोस्ती है आपकी – सुना है आपकी इन्गेजमेंट है कल – लगता है उसी तैयारीयों में लगे होंगे इसलिए आपको नही पता होगा – बड़े प्यारे है मोहित जी अब उनको भी अपनी इंगेजमेंट कर ही लेनी चाहिए ..|” अपना आखिरी शब्द इस तरह लजा कर वह कहती है कि जय अपने स्थान पर खड़ा खड़ा ही हिल जाता है, किसी तरह बस मुस्कान छोड़ते वह सर पर पैर रखकर वहां से भागता है|

पीछे वह अरे सुनिए तो!! पुकारती रह जाती है|

मोहित कहाँ है इस वक़्त पता करना उसके लिए मुश्किल था आखिर जो कॉलेज से सीधा घर आ जाता था हमेशा, कभी कही इधर उधर तफरी नही करता उसे वह ढूंढता भी कहाँ !! घर पहुँच कर मानव उसे घर के बाहर मिला शायद मोहित का इंतजार करके वह वापस लौट रहा था, जय उसे लिए अन्दर आता हुआ कह रहा था – “मानव तुम अपने मोबाईल से मेसेज करो कि कल तुम्हारा इम्पोर्टेन्ट टेस्ट है इसलिए इस वक़्त घर पर तुम उसका इंतजार कर रहे हो |”

मानव संशय से जय की ओर देखता हुआ पूछता है – “पर मेरा तो कोई टेस्ट नही – मैं तो बस भईया से मिलने आया था नही मिले तो कोचिंग जा रहा था |”

“बस तुम कर दो मेसेज क्योंकि मैं कह रहा हूँ |” जय जानता था कि इस समय वह किसी का फोन नही उठाएगा पर मेसेज तो जरुर पहुँच जाएगा और मानव का पढाई को लेकर किए मेसेज को वह नज़रन्दाज भी नही कर पाएगा|

और हुआ भी वाकई यही चन्द मिनट बाद ही मोहित की कार रुकने की आवाज वे साथ में सुनते है| मोहित आते मानव के साथ जय को पाकर भी पूरी तरह से उसे अनदेखा करता कह रहा था – “मानव बताओ किसका टेस्ट है ?”

मोहित उसके बैग की ओर आँख गडाए वही बैठ जाता है तो जय झट से बोल उठता है – “बड़ी जल्दी आ गए कॉलेज से – कैसी चल रही है प्रैक्टिस ?’

“बढ़िया |” सीमित शब्द कहता मोहित खामोश हो जाता है|

“ओह ग्रेट मैंने भी देखा इनफैकट अभी मैं तुम्हारे कॉलेज से ही आ रहा हूँ |”

ये सुनते मोहित झटके से जय की तिरछी मुस्कान की ओर देखता फिर आँख घुमा लेता है इससे उनके बीच हैरान बैठा मानव तय नही कर पा रहा था कि बैग से किताबे निकाले या नही !! जय मानव की ओर देखता अब कहता है – “तुम जाओ – तुम्हें कोचिंग जाना था न |”

हाँ में सर हिलाता मानव चुपचाप वहां से चला जाता है|

इससे मोहित भी उठकर अन्दर कमरे की ओर जाने लगता है तो जय उसका कन्धा पकड़ते उसे रोकते हुए कहता है – “प्रॉब्लम क्या है भाई – चल क्या रहा है तेरे दिमाग में !!”

“कुछ नही |” सपाट भाव से कहता उसका हाथ अपने कंधे से हटाता हुआ आगे बढ़ने लगा|

“अच्छा तेरी कुसुमलता मिली थी – बड़ी चहक रही थी कल इंगेजमेंट में बुला लूँ क्या !” जय मोहित को जेर करंता उसे उसकाना चाहता था पर मोहित फिर भी उसकी ओर नही मुड़ता तो जय आगे कहता है – “कुसुमलता भी नही, शैफाली से भी बात नही करनी – लगता है कोई नई सेटिंग हो गई है तेरी – हाँ भाई दिल्ली में धमाको की कौन सी कमी है !”

कहकर जय जानकर कसकर हँस पड़ा तो मोहित गुस्से में उसकी ओर मुड़ते उसे अपनी खा जाने वाली निगाह से कसकर घूरता हुआ फिर बिन कुछ कहे आगे बढ़ जाता है|

“जा बे तुझे कल देखता हूँ |’ जय बडबडाता हुआ अपनी कलाई में समय देखता बाहर की ओर निकल जाता है|  

क्रमशः……….

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