Kahanikacarvan

शैफालिका अनकहा सफ़र – 42

कल मंगनी थी जिससे तीनों जोड़े बहुत ज्यादा ही व्यस्त थे, मानसी और ऋतु साथ में शैफाली से मिलने निकल रही थी पर घर से फोन आते मानसी को आधे रस्ते से भी वापस जाना पड़ा जिससे उदास होती वह ऋतु से कह रही थी – “अब क्या करूँ ऋतु ?”

ऋतु उसे प्यार से समझाती हुई कहती है – “कोई बात नही तुम आराम से घर जाओ – मैं मिल आती हूँ शैफाली से – वैसे भी कल तो इंगेजमेंट में आएगी न वो |”

“हाँ कल आने दो उसको – इन दोनों को पकड़कर आमने सामने कर देंगे फिर देखते है कैसे एकदूसरे से नज़रे बचाते है – वैसे एक सीक्रेट बताऊँ – |”

आश्चर्य भरी आँखों से ऋतु देखती है तो मानसी उसके कानों के पास आती कहती है – “जय और मैंने दो अतिरिक्त अंगूठी ले ली है माहौल बना तो दोनों की इंगेजमेंट भी साथ में करा देंगे |”

ये सुन ऋतु के चेहरे पर भी ख़ुशी छा गई फिर दोनों मुस्कराती विदा लेती अपने अपने रास्ते चल दी| दरवाजा भावना ने खोला और सामने ऋतु को देख उसे गले लगा लिया| उसके मन में कोई उम्मीद का चिराग जला कि शायद शैफाली किसी से तो मन की बात कहे लेकिन तब वे दोनों हैरान रह गई जब शैफाली ने सर दर्द का कहकर कमरे से निकलने से इंकार कर दिया| वे मायूस सी एकदूसरे का चेहरा तकती रही| पर ऋतु का मन नही माना और वह उसके कमरे की ओर बढ़ गई और वाकई वह उनको लेटी हुई दिखी| ऋतु बढ़कर उसके पास आती उसका माथा जिस प्यार से छूती है इससे शैफाली अचानक चौंककर ऑंखें खोलकर देखती है, दो पल को तो वह ऋतु को देखती ही रह गई| ऋतु की अनबुझी ऑंखें भी बस उसका चेहरा ताक रही थी जैसे कुछ खोजना चाह रही थी उनमे, तब खुद को समेटती उठती हुई वह खुद को गाँव की तन्द्रा से वापिस ले आई, लगा सपना ही था जिसमे उसे कुछ पल को ये छुअन परजाई जी की लगी थी|

ऋतु की प्रश्नात्मक नज़रे बिन शब्दों के भी उसे झंझोड़े दे रही थी जिनसे बचने खुद को सयंत करती वह जबरन चेहरे पर मुस्कान लाती कह रही थी – “हाय ऋतु – यू आर लूकिंग गौजियस |”

“तुमसे मिलने आई थी |”

शैफाली जानकर उनके चेहरे के अनकहे सवालों से बचने नज़र घुमाती हुई कहने लगी – “एक्चुली हैडेक था इसलिए बाहर नही आई बट डोंट वरी कल इंगेजमेंट में डेफिनिटली आई विल कम |”

“पर उसके बाद क्यों जा रही हो ?”

एकदम से ये सवाल जैसे उसका अंतर्मन चीर गया जैसे मन खुद से पूछ बैठा कि जिसे पूछना था उसने तो कोई सवाल ही नही किया ?अपने मौन की कोटर में वह छुप जाना चाहती थी, क्या जवाब दे आखिर !! वह तो खुद प्रश्नों के झंझावत में खड़ी है|

शैफाली के चेहरे के मौन समंदर की उदास नीली लहरें आज बिलकुल ही शांत थी, ऋतु क्षण भर को उनमे देखती रही उन खामोशियों को पढ़ने का प्रयास करती रही|

“क्या इतनी ख़ामोशी के साथ तुम हमसे दूर जा पाओगी – ?”

कहती हुई ऋतु उसका कन्धा अपनी हथेली से थामती हुई कहने लगी – “क्या कुछ भी ऐसा नही जिसके कारण तुम यहाँ रुक सको |”

“जाने ले लिए तो आई थी और खाली हाथ थोड़े जा रही हूँ – इन पलकों पर यादों के इतने भार होंगे कि शायद पलके भी न बंद कर पाऊं |” कहकर जबरन चेहरे पर हँसी लाई पर उसका छुपा दर्द कुछ कुछ आँखों पर झलक आया जिसे छुपाने वह ऋतु के गले लग गई| अब सिर्फ वे उस पल की नीरवता को सासों के उतार चढ़ाव से महसूस कर पा रही थी|

एक वो दिन भी आ गया जिसका उन बेचैन दिलों को इंतजार था| गेस्टहाउस में सारे मेहमान जुटने लगे, सगाई में घर के अलावा खास लोगों को ही आमंत्रित किया गया था पर गाँव में दार जी की तबियत खराब होने से वहां से कोई नहीं आ सका था|

घर से तैयार होकर भावना पवन के साथ निकलने वाली थी और शैफाली को बुला रही थी| पर उसे तैयार न देख वह एकदम से चौंक जाती है|

“तुम तैयार क्यों नही हुई ?”

“मैं बाद में आउंगी – थोड़ा टाइम लगेगा मुझे |”

“अरे तो कुछ देर और रुक जाती हूँ मैं |” भावना अब शैफाली की ओर बढ़ती हुई कहती है|

“प्लीज़ यू गो मैं बाद में आती हूँ |” शैफाली शांत भाव से कहती वही लिविग रूम में बैठ जाती है|

“पर…!”

भावना ये सुन परेशान हो उठी थी, पवन जो तब से ये सुन रहा था बीच में आता हुआ कहता है – “ओके हम पहुँचते है और तुम जब तैयार हो जाना मुझे कॉल कर देना – मैं लेने आ जाऊंगा|”

भावना को शैफाली को छोड़ कर जाना अच्छा नही लग रहा था पर पवन उसे ज्यादा कुछ कहने का अवसर न देता अपने साथ लिए बाहर चल देता है|

फ्लैट से बाहर निकलकर वह उसे समझाता है कि हम किसी तरह से मोहित को शैफाली को लिवाने भेज देंगे | ये सुन भावना का चेहरा एकबार फिर खिल उठा था|

शैफाली उनके जाते दरवाजा बंद कर फिर अपने एकांत में आकर बैठ जाती है, उस पल उसका मन इतना उलझा था कि उसे खुद की हालत भी पता नही चल रही थी| वह अपने कमरे में परजाई जी का दिया लांचा निकाल कर रख आई थी पर उसे पहनने के लिए अपने मन को वह तैयार नही कर पा रही थी क्योंकि वह जानती थी कि अगले कुछ पल बाद मोहित और वह एकदूसरे की आमने सामने होंगे|

गेस्टहाउस में चारों ओर सजावट का वो आलम था कि देखने वाला एक बार उसे नज़र भर कर जरुर देखता, सभी के एकत्रित होते अब सबकी निगाहों को ऋतु, नूर और मानसी का बस बेसब्री से इंतजार था| वे साथ में पार्लर में मौजूद थी| उसके साथ भावना भी थी|

नूर ने गुलाबी शरारा तो ऋतु ने प्यासी रंग का लहंगा पहन रखा था, मानसी ने श्यामा तुलसी के रंग जैसा गहरे हरे व बैगनी के मिश्रित रंग का लॉन्ग स्कर्ट हलके दुपट्टे से लेकर खुद को सजा रखा था| वे तीनों साथ में तैयार एक दूसरें का हाथ थामे आईने में खुद को ही देख शरमा गई थी, वे नहीं जान पाई कि आज के खास दिन उनके चेहरों पर खिलकर आया है या पार्लर ने ही उन्हें कुछ ज्यादा खूबसूरत बना दिया है|

एक साथ मौजूद होते हुए भी कोई कमी सी उनके चेहरे पर तारी थी, भावना के कंधे को अपने दोनों हाथों से थामे मानसी कह रही थी – “आज देखना उन दोनों को पकड़ कर न कैसे मिलाती हूँ मैं –|”

“काश इस वक़्त शैफाली भी हमारे साथ होती|” ऋतु एक ठंडी आह के साथ कह गई|

“वो वापस जा रही है |” भावना अपने चेहरे की उदासी बहुत देर छुपाए न रखे रह सकी|

“ऐसे कैसे – हम जाने देंगे तब न |”

तभी मानसी के मोबाईल की मेसेज टोन जो कुछ कुछ पल बाद बार बार बज उठती जिसे वह देखती धीरे से मुस्करा देती|

“ओहो जरा कह दो बेक़रार दिल से अभी कुछ वक़्त है |” ये सुनती मानसी के चेहरे पर हया की लाली और गहरी हो उठती है|

पार्लर वाली अभी बस उनके बाल संवार रही थी, मानसी अपने बालों को बस हलके से किनारे समेटती हुई कहती है – “अब और ज्यादा तैयार किया न तो पक्का मैं चल भी न पाऊँगी|” ऋतु के लम्बे बालों को गूंथते गूंथते पार्लर वाली मुस्कराती हुई मानसी को देखने लगी थी|

कहती हुई मानसी चुपचाप उन सबकी नज़रों से बचती उनका इंतजार करने रिसेप्शन की ओर चल देती है|

बेसब्र निगाहों को इंतजार तो था फिर भी खुद को व्यस्त दिखाने मोहित तैयारियां करता करता एक बार को गेस्टहाउस के द्वार को जरुर देख लेता| भावना भी आ गई थी पर उसके साथ शैफाली नही आई, वह पूछना चाह कर भी खामोश बना रहा| सबको तो तीनों लड़कियों का इंतजार था यूँ तो उनका इंतजार उन बेकरार दिलो को कुछ ज्यादा ही था जो आज एक से कोट पैंट में बड़े सजीले दिखाई पड़ रहे थे| पार्लर से आती ऋतु, नूर और भावना को आते देख तब से इंतजार में बिछी सबकी ऑंखें उन्हें देख खिल उठी पर ये क्या जय को देख सभी मानसी की नामौजूदगी के बारे में पूछने लगते है| सबको लगा था कि पार्लर से जय ही मानसी को लिवा गया था जबकि जय तो तब से सबके साथ गेस्टहाउस में मौजूद था| अगले ही पल ख़ुशी के माहौल में जैसे गाज़ आ गिरती है, मानसी कहाँ है किसी को पता नहीं था, पार्लर से वह किसके साथ गई अब इसमें प्रश्न उठने लगा| वे सभी घबराकर एक दूसरें का चेहरा देखने लगे|

हँसते, खिलखिलाते चेहरों को जैसे खुद की ही नज़र लग गई, वे सभी उदास हो उठे, जय को कुछ समझ नही आया वह बस आनन् फानन मानसी को खोजने तुरंत वहां से निकल पड़ा| अब बीतते पल के साथ सबके चेहरों पर दहशत दिखलाई पड़ने लगी, कमिश्नर साहब ने भी अपनी बेटी की गुमशुदी पर पुलिस की पुलिस दौड़ा दी| एक ही पल में खुशियाँ हताशा में बदल गई| अब मोहित, इरशाद और समर के लिए भी वहां खड़े रहना मुश्किल था वे भी मानसी की खोज के लिए गेस्टहाउस से बाहर निकल गए|

पवन भी उनके साथ निकलने के लिए भावना को वापस फ्लैट तक छोड़ गया| शैफाली बस तैयार होकर निकलने को थी लेकिन वक़्त अब कुछ और करवट ले चुका था| पूरी रात जहाँ जश्न में बीतनी थी वो बेचैनी में बीती, सुबह मानसी खुद ही वापस आ गई पर अब तक मंगनी का वक़्त जा चुका था| मानसी के साथ वापस आई जय और मानसी के बीच ग़लतफहमी जिसने एक ही पल में उन दोनों को एकदूसरे से विरक्त कर दिया|

मानसी के घर वापस आते जय भी वापस अपने घर आ गया| दोनों के बीच की ग़लतफ़हमियों ने बाकी की दोनों जोड़ियों को भी उदास कर दिया था, इधर मोहित खुद की बेचैनी में लिपटा और एकान्तप्रिय हो चला था| शैफाली के जाने का दिन बस नजदीक ही था|  

बेचैनियाँ जैसे दिल से उतरकर अब देह में समा गई थी, मोहित की शक्ल देखकर लगता जैसे सदियों से उस चेहरे को धोया न गया हो, बढ़ी दाढ़ी, बिखरे बाल, बोझिल ऑंखें जैसे मोहित के लिए दिन और रात का फर्क खत्म हो गया हो, वह कब घर से जाता कब आता किसी को पता नही चलता, कभी कही उदास बैठा वह घंटो अपना समय काट देता ओर बेनतीजा फिर मन के धुंध में घिरा वापस आ जाता| वह बुरी तरह से उलझा था किसी अनजान प्रश्न को सुलझाने में पर हर बार वह और उसमे उलझ जाता|

समर काफी देर से उसे अख़बार के एक ही पेज को घूरते देख रहा था|

“कुछ खबरे अख़बार में नही छपती |”

समर की आवाज सुन मोहित जैसे चौंकता है मानों गहरी तन्द्रा से जागा हो|

“दो दिन बाद शैफाली हमेशा के लिए लन्दन वापस चली जाएगी|”

मोहित के हाथ से अख़बार सरककर फर्श पर गिर जाता है|

“मोहित मुझे नही पता कि तुम दोनों के बीच क्या हुआ पर यार चुप्पी हर रास्ते को बंद कर देती है – एक बार मेरे कहने पर खुद के लिए तुम खुद को एक मौका तो दो – कभी कभी जाने वाले को वापस लाना मुश्किल होता है पर उसे जाने से रोका जरुर जा सकता है |”

समर अख़बार उठाकर उसके हाथों के बीच रखता हुआ अपनी विश्वस्त आँखों से मोहित के हैरान चेहरे को देखता हुआ कहता है –

“एक बार कोशिश तो करो |”

समर देखता है कि मोहित के चेहरे पर कुछ बदल रहा था|

क्रमशः……….

One thought on “शैफालिका अनकहा सफ़र – 42

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!