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शैफालिका अनकहा सफ़र – 43

भावना पवन की बाँहों में थी पर मन उसका शैफाली में लगा हुआ था|

“शैफाली को देखकर मन टूटा जाता है – इससे तो वो पहले ठीक थी – कम से कम हँसती तो दिखती थी अब तो उसे देखकर लगता है जैसे अभी अभी रोकर उठी हो – मुझसे तो देखी नहीं जा रही उसकी हालत – काश… काश उनका एक बार तो सामना हो जाए – काश उस दिन मानसी के साथ ऐसा कुछ न होता तो उनका सामना हो जाता तो कम से कम एक दूसरे की हालत तो देखते कि इश्क कैसे उनके रोम रोम से बयां हो रहा है बस ये दोनों ही चुप बैठे है |”

वे बेचैन होकर उसकी बांह में और सिमट जाती है|

“अच्छा बड़ी पहचान है इश्क की – किसी से है क्या !”

पवन की बहकी आवाज पर अब भावना के चेहरे पर भी मुस्कान आ जाती है – “हाँ है तो किसी से जिसे आजकल फुरसत नही रहती मेरे लिए |”

“ओहो फिर शिकायत – अब क्या करे काम ही ऐसा रहता है पर आज तो हम है न आपकी पनाह में जितने चाहे गुनाहों की सजा दे दो |” कहकर वह तन कर अंगड़ाई लेता उसे अपने पाश में और घेर लेता है इसपर वह खिलखिला उठती है|

तभी कमरे में रखा फोन बजता है|

“ओहो अब कौन कबाब में हड्डी आ गया|”

भावना पवन की हालत पर हँसती हुई फोन उठाकर कान से लगाती है|

“हेलो हेलो…|” वह हैरान फोन को देखती है फिर पवन को देख जैसे आखिरी बार हेलो कहती तो कोई आवाज उसे सुनाई देती है जिसपर वह चौंक उठती है – “मोहित – हाँ |”

उधर की बात सुन जैसे भावना अपनी ख़ुशी पर काबू नहीं रख पाती फिर जल्दी से कहती है – “मैं शैफाली को बुलाती हूँ – रुको तुम उससे खुद बात करना |”

तभी शायद उधर से फोन रख दिया जाता है, वह हैंडसेट हाथ में थामे रह जाती है|

“पता नही किस अहम् में डूबे है ये – ऐसे न कोई कुछ कहेगा और न उनके बीच कोई बात बनेगी |”

“हुआ क्या !!”

भावना हैंडसेट रख पवन की ओर मुड़ती हुई कहती है|

“मोहित का फोन था – कहा कोई वादा हुआ होगा उनके बीच ताजमहल दिखाने को लेकर तो उसी के लिए कल सुबह उसे तैयार रहने को कहा है और जब मैंने कहा कि शैफाली को बुला दूँ तो कहा तुम बता देना और रख दिया फोन |”

“अरे तो ये सोचो आखिर उनके बीच मिलने का कोई रास्ता तो बना आखिर यही तो तुम चाहती थी – हो सकता है जब एक दूसरें को सामने देखे तो मन की कह सके|”

“हाँ काश ऐसा ही हो |” गहरा शवांस लेकर छोड़ती हुई कहती है – “मेरे लिए तो यही बहुत होगा कि शैफाली मेरे पास रुक जाए बस|”

“हाँ मैं भी यही चाहता हूँ|” पवन होंठ मोड़ता हुआ ये बात कुछ तरह कहता है कि भावना उसकी तरफ देखती रह जाती है|

“हाँ भई – साली है मेरी – आधी घरवाली भी |”

कहकर पवन भावना की हालत पर कसकर हँस पड़ा तो भावना की भी हँसी छूट जाती है|

जय मानसी के बीच की दूरी ने जैसे पूरे माहौल को वीरान कर दिया था| जय अब अपना ज्यादातर समय थाने में बिताता जिससे नाराज़ इरशाद उसे घर चलने के लिए लिवाने आया था| जय नहीं जाना चाहता था पर इरशाद की जोर जबदस्ती से उसे घर जाना पड़ा| घर पहुंचकर दोनों देखते है कि मोहित की कार शीशे सी चमक रही थी, ये देख दोनों एक दूसरे की ओर देख धीरे से मुस्करा देते है| फिर सीढियों से चढ़कर आते वे मोहित के कमरे से गुजरते चुपचाप उसे देखते है, वह उनके आने से अनजान अपने में व्यस्त खुद को तैयार करने में लगा था, इससे पहले उन्होंने कभी उसे ऐसे तैयार होते नही देखा था, उनकी नज़र बिस्तर पर तितर बितर पड़ी कई शर्ट पर जाती है जिन्हें शायद वह पहले ट्रराय कर चुका होगा| ये देख जय इरशाद को धीरे से इशारा कर अपने साथ अपने कमरे तक ले जाता है, वहां झट से अलमारी से कोई नई पैक शर्ट निकालकर उसे देता धीरे से कुछ समझा कर उसे भेज देता है|

इरशाद फिर उस कमरे की देहरी पर खड़ा मोहित को बार बार शीशे में अपना चेहरा निहारते हुए देख मन ही मन मुस्करा देता है फिर जान कर जैसे उसे अनदेखा कर उसे आवाज देता हुआ कमरे में आने लगता है|

“यार मोहित एक प्रॉब्लम है|”

मोहित इरशाद की आवाज सुन जल्दी से शीशे से हटता हुआ तुरंत अपनी मेज की किताबों को ठीक करने लगता है| इरशाद भी ऐसे दिखने का प्रयास करता है जैसे उसने मोहित को नोटिस ही नहीं किया|

“यार ये शर्ट अपने पास रख ले – मैं तंग आ गया हूँ इससे|” शर्ट उसके सामने किसी बेकार सामान की तरह रखते हुए कहता रहा – “इस रंग की मेरे पास दो शर्ट है – अब अप्पी ने भी वही रंग की और दे दी अब इसे तुमने अपने पास नही रखा तो कसम से इस रंग से मुझे नफरत हो जाएगी|”

“तो खरीदते क्यों हो तुम लोग इतने कपड़े ?”

“ले ली न यार तो अब क्या करूँ ?” इरशाद जान कर किसी बच्चे सा मुंह बनाते हुए कहता है फिर झट से कुछ याद करते कहने लगता है – “यार ऐसा कर तू ही पहन डाल |” कहते हुए झट से पैकेट खोलने लगता है – “मैं तो कहता हूँ – आज ही पहन ले – वैसे भी कोई ख़ास वक़्त के लिए बिलकुल भी नही है ये|” ये बात जानकर कहता इरशाद शर्ट को पैकेट से अलग करता उसे जबरन पहनाने भी लगता है|

“अरे अभी क्यों !!”

“पहन लो न यार – कोई ख़ास वक़्त थोड़े है आज|”

इरशाद मन में मंद मंद मुस्कराता उसे शर्ट पहनता छोड़ बाहर निकल जाता है| मोहित को जब यकीन हो जाता है कि कोई उसे नही देख रहा तो एक बार फिर उस शर्ट के साथ खुद को आईने में वह देखता है| धानी रंग की चेकदार शर्ट उसकी देह में खूब खिल रही थी, ये देख वह धीरे से मुस्करा देता है और उसकी मुस्कान इरशाद चुपके से देखता वहां से निकल जाता है|

भावना का अधीर मन आज की सुबह का बेसब्री से इंतजार कर रहा था पर ऐसी कोई बेसब्री उसे शैफाली के चेहरे पर नही दिखती, वह सिंपल कपडे पहने बालकनी में बैठी थी, उसे देख भावना पुकारती हुई उससे पूछती है – “तुम तैयार नही हुई !!”

“तैयार ही हूँ मैं |” शैफाली धीरे से कहती है|

“ये तुम तैयार हो – इतने सिंपल कपडे !!”

“कोई ख़ास दिन नही है आज – और वैसे भी मैं सब पैक कर चुकी हूँ – कल ही निकलना है |” अपने आखिरी शब्द में वे जानकर जोर देती हुई कहती है|

ये सुन भावना के मन में जैसे कोई हूक सी उठ आती है| वह जानती थी कि इस वक़्त शैफाली को कुछ भी समझाना कुछ काम नही आएगा तो झट से जबरन अपने होंठों पर मुस्कान लाती हुई कहती है – “अच्छा शैफाली तुम तो कल चली जाओगी तो मैं भी अपना एक वादा निभा लूँ !”

शैफाली हैरान आँखों से अब भावना को देखने लगी|

“तुमसे कहा था न कि एक दिन मैं तुम्हें अपने हाथ से साड़ी पहनाउंगी |”

शैफाली कुछ नहीं कह पाती और भावना इसे ही सहमति मान उसका हाथ पकड़कर उसे अपने साथ ले जाती है| अलमारी से वह एक साड़ी को अपने हाथों के बीच बड़े करीने से लाकर उसे अपने हाथों से उसे पहनाती हुई कहती रहती है – “देखना ये शिफोन की साड़ी तुम संभाल लोगी – लखनवी चिकेन के काम की है  – पता है गोवा में खरीदी थी ये साड़ी – अब तुम्हें तो गोवा और लखनऊ की दूरी तो पता नही पर मैं तुम्हें बताती हूँ – दोनों बहुत दूर है इसलिए मुझे वहां के एक इम्पोरियम में ये साड़ी देख बड़ा आश्चर्य हुआ पर सच कहूँ तो जब मैंने इस साड़ी को देखा न तो बस तुम्हारा ही ख्याल आया कि ये साड़ी तुमपर कितना फबेगी |” अपनी बातों के साथ साथ भावना शैफाली को साड़ी पहना भी देती है और खुद को साड़ी में एक पल को शैफाली देखती रह जाती है|

“लखनऊ के बारे में एक मजेदार बात बताऊँ – लोग वहां चिकेन खाते भी है और पहनते भी है|” कहती हुई भावना जानकर खुलकर हँसती रही, भावना अपनी बातोंसे उस वक़्त को हल्का बनाए रखने की भरसक कोशिश करती रही और शैफाली खुद को तैयार पाया देख जैसे कुछ बदलाव सा अपने अन्दर महसूस करने लगी, एक लम्बा कपड़ा उसकी देह में कितनी परतों में समा गया, कहीं चुन्नट के रूप में कमर से नीचे लहंगे सा बन गया तो सीने से पल्ले सा चिमटा जैसे गुलदावरी सा उसकी देह से लिपट गया, वह बरबस खुद को निहारती रह गई और भावना उसे नज़र भर कर देखती रही मानों फिर कब ऐसा आमना सामना हो, ऐसा करते उसकी आँखों में हलकी नमी उतर आई|

“पता है इसमें कोई चटक रंग नहीं होता पर मुझे ऑफ़ वाइट रंग की ये साड़ी बड़ी भालो लगी – इसके संग मोती के टॉप्स क्या खूब जचेंगे – इन चिकेन के कपड़ों में ये बड़ी खासियत है इसे कभी भी किसी वक़्त पहन लो अच्छा लगता है – सम्भालना भी आसान है वैसे तुम चिंता मत करो मैं जितना साड़ी पहनने में एक्सपर्ट हूँ उतनी पहनाने में भी हूँ – एक पिन से सारी साड़ी सधी रहेगी और तुम्हें चलने में कोई दिक्कत भी नही होगी|”

भावना कहती रही पर खुद में खोई शैफाली अभी भी खुद की छाया से अपनी नज़र नही हटा पाई थी| वह कहाँ आज तैयार होना चाहती थी, फिर भी तैयार होने से खुद को नहीं रोक पाई, वह मोहित से दूर ही तो जाना चाहती थी फिर भी उसके एक बार कहते वह आज उसके संग जाने को राज़ी भी हो गई, क्यों!!!! वह खुद से ही सवाल कर जवाब में चुप हो गई….

तभी दरवाजे की कॉल बेल बजी तो शैफाली का दिल आज पहली बार डरकर धड़क गया, उस धक धक में उसने कम्पन भी महसूस की…उस पल उसके दिल ने उसे आवाज देकर रोकते हुए कहा कि काश कोई कह दे कि वह उसके सामने बिलकुल भी नही जाएगी…बिलकुल भी नही…

“शैफाली जरा देख लो दरवाजे पर कौन है – मैं ये कमरा समेट कर आती हूँ -|” भावना जानकर जो कहती है शैफाली भी जानकर उससे इंकार नही कर पाती और अपने धड़कते दिल के साथ एक एक कदम मानों बादलों पर अहिस्ता अहिस्ता रखती दरवाजे की ओर बढ़ने लगती है…उसे नही पता कि बाहर कौन होगा पर मोहित हुआ तो..!!!

क्रमशः………..

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