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शैफालिका अनकहा सफ़र – 44

वह दरवाजा खोलती है और सच में उसका डर सच हो जाता है…एक ही पल में कई चीजे एकसाथ होती है…उसकी धड़कनो का दो पल को रुक जाना, आँखों का सामने की ओर उठे रहना और उस चेहरे को बरबस देखते रह जाना| सामने मोहित खड़ा था उसके कदम भी जैसे वही बर्फ हो गए…उस पल उसे लगा जैसे सदियों बाद वह शैफाली की इन नीली आँखों को देख रहा है….ये नीला अताह भरपूर समन्दर…आखिर कहाँ से लाता है ये अपने अन्दर इतना बवंडर कि इन्हें देख वह खुद को डूबने से रोक नही पाता…देखने में रामेश्वरम के सागर सा खामोश और इनमें उतरने में पुरी के समन्दर सा तूफान….ये वक़्त ये लम्हा उसे डुबो रहा था…उसका अहम उससे छीना जा रहा था कि कोई ऑंखें ऐसी नही बनी जो उसे बहका सके…उसका साधू मन आज चोर हुआ जा रहा था…..

“शैफाली – कौन है..?”

अचानक उनके बीच आवाज की बिजली कौंधी और दोनों अपने अपने स्थान से थोड़ा हिल गए|

“अरे आ गए मोहित तो दरवाजे में क्यों खड़े हो – आओ न अन्दर |”

“नही देर हो जाएगी – शाम तक वापस भी लौटना है और कल की फ्लाईट जो है|” मोहित जानबूझ कर कोई तीर शैफाली के दिल के आर पार करता है और निशाना भी अचूक साबित होता है|

“हाँ ठीक है |” कहती शैफाली अन्दर आती झट से अपना पर्स उठाती मोहित के साथ बाहर की ओर चल देती है और भावना अनिमिख उन्हें जाता हुआ देखती रहती है|

ये सर्दियों की खुशनुमा सुबह थी जिसमे धूप के आगमन से जैसे सारा जग ही सड़क पर निकल आया था, लोगों की भीड़ चारोंओर नज़र आ रही थी| कितना कुछ कहते सुनते लोगों के मुंह ही नही थक रहे थे उनमें वे बिन शब्दों के अपनी घूमती निगाह से एक बार एक दूसरे की ओर देख लेते और जानकर अपने चेहरे के भाव और कठोर कर लेते| ड्राइविंग सीट पर मोहित तो बगल में शैफाली ख़ामोशी से बैठी थी| उनके बस लब ही खामोश थे वे बिन शब्दों के एक दूसरें से बातें कर रहे थे, जिसे सिर्फ वे नादान दिल ही सुन और समझ सकते थे| रिंग रोड से यमुना एक्सप्रेसवे तक आने से पहले वाली आखिरी क्रासिंग में ज्यों ही कार रूकती है एक महिला फूल की लड़ी लेकर उसकी खिड़की तक दौड़ आती है| ये खुशबू पारिजात की थी…शैफाली उन फूलों की खुशबू को कभी नही भूल सकती….वह उन्हें देख ही रही थी कि मोहित उन्हें लेलेता है और उसकी हथेली में देते अपनी आँखों से ही जैसे पूछता है क्या इन फूलों की तरह ही कुछ समय के लिए वह आई थी…प्रश्न निरुत्तर छोड़ कार फिर अपने रास्ते की ओर आगे बढ़ जाती है….शैफाली उन फूलों को अपनी हथेली में लिए अपनी सांसों से अंतरस खींचती ऑंखें बंद कर उनमें खो जाती है…ये पल मोहित की निगाह एक बार फिर दूर से ही जी भर के देख सदा के लिए अपनी आँखों में कैद कर लेती है….फिर रास्ता चलते हवाएं खुशबू संग उनके चारोंओर पसर जाती है….

तीन घंटे का रास्ता कब लबों की नीरवता में कट गया, वे समझ ही नही पाए ज्योंही ताजमहल की पार्किंग में कार रुकी त्योहीं वे अपने अपने ख्यालों से बाहर आ गए और अनिमेष एक दूसरें की ओर देखते रहे…ये लम्हा बड़ी तेजी से वक़्त की हथेली रेत सा सरकता जा रहा था…कितना कुछ कहने का बवंडर धड़कनों को चैन नही लेने दे रहा था फिर भी आखिर क्यों लब खामोश है…न कोई शिकायत न उलाहना बस निर्मम वक़्त से कुछ और मोहलत का निवेदन था उन आँखों में…

मोहित अपनी ओर से उतरकर शैफाली की ओर देखता है जो सीट बेल्ट में उलझे अपने पल्ले को निकालने में परेशान थी, उस एक पल यादें कुछ कदम पीछे चल दी और मोहित उसके पास पहुँचता धीरे से उस उलझन से उसका पल्ला छुड़ाकर एक बार फिर उसका चेहरा गौर से देखता है…ढेर आग्रह…थोड़ी जिद्द…तो थोड़ा अक्खड़पन था उनमें…उसकी ऑंखें मुस्करा दी….और फिर वे उसी ख़ामोशी से साथ साथ चल दिए….

रास्ते, दुकाने, लोगों की भीड़ कितना कुछ था उनके आस पास जिससे बेखबर वे बस साथ में आगे बढ़ते रहे…शैफाली के लिए साड़ी पहनकर तेज कदम उठाना उस पल दुश्कर था…वह अपने छोटे छोटे क़दमों से रास्ता चल रही थी..वह देखती है…उससे कहीं ज्यादा महसूसती है कि हमेशा की तरह उससे तेज कदम चलने वाले मोहित के कदम आज उसके क़दमों के हमकदम हो गए थे….वे कदम आज उसके साथ साथ चल रहे थे पर बेहद ख़ामोशी से….दूर से ही ताज खुले दिल से दिल वालों का स्वागत कर रहा था…उस पल को आँखों में कैद करने तो आई थी शैफाली पर जाने कहाँ डगमगा रही थी उसकी निगाह…वह देख तो सामने रही थी पर साथ साथ चलते मोहित का हर कदम जैसे उसकी धड़कनों से कदमताल कर रहा था…

विश्व के सांतवे अजूबे को देखने लोगों की भीड़ उमड़ी थी तो उन टूरिस्टों को सूंघते कई गाइड इधर उधर फैले थे, उन्हीं में से कोई एक जोड़ी आंख उन्हें अन्यत्र भटकते जैसे भांप लेती है और लगभग दौड़ती हुई उनके पास आते कह उठी – “गुड इवनिंग सर – आपको रात की बुकिंग लेनी है ?”

मोहित चौंककर उसकी तरफ देखता है, वह अभी भी कहे जा रहा था|

“सर आज पूरे चाँद की रात है मतलब कि पूर्णिमा की रात जब चांदनी रात में ताज के दीदार के लिए लोग दूर दूरसे यहाँ बुकिंग करा कर आते है पर सर आप चाहे तो मैं आज ही आपको चांदनी रात में ताज का दीदार करा सकता हूँ – |”

मोहित रूककर अभी भी हैरान उसकी तरफ देखता रहा जिससे गाइड कुछ समझते वह फिर जल्दी से कहता है – “सर मैं बिलकुल वाजिब रेट में ही टिकट दूंगा बस आप गाइड का जो चाहे दे देना – देखिए यहाँ आकर किसी को टिकट नही मिलता लोग नेट से बुकिंग करा कर ही यहाँ आते है –– अब हम पहले से ऐसे टिकट का इंतजाम रखते है – देखिए इससे आप जैसे टूरिस्टों का काम भी आसन हो जाता है और हमारा भी खर्चा पानी हो जाता है – सर ज्यादा सोचिए मत – सच में अगर आज आपने चांदनी रात में ताज का दीदार कर लिया तो याद रखिएगा आप उस पल को जीवनभर भुला नही पाएँगे – इतना खूबसूरत होता है ये नज़ारा |” अपना आग्रह वह कर चुका था अब रूककर मोहित की ओर अपनी बात की सहमति के लिए देखता रहा|

“नही भाई – हमे नही चाहिए |” कहकर मोहित आगे बढ़ने लगता है|

“अरे सर सुनिए तो – मैं कुछ भी एक्स्ट्रा चार्ज नही लूँगा जो वाजिब लगे दे दीजिएगा सर|”

मोहित रूककर उसकी तरफ देखता है – “भाई समय की समस्या है – कल इनकी फ्लाईट भी है |” अबकी जानकर वह शैफाली की ओर देखता हुआ कहता है जिससे उसके चेहरे पर कुछ बदल जाता है और वह जल्दी से कहती है – “कल दिन के ग्यारह बजे की फ्लाईट है |”

शैफाली की बात सुन अब गाइड की रूचि उसकी ओर मुड़ जाती है जिससे वह झट से पूरे उत्साह से उसकी तरफ देखता हुआ कहता है – “कोई दिक्कत नही – शाम सात से रात बारह तक का ही विजिटिंग आवर होता है – आप घूमकर आराम से वापस भी आ सकते है |” फिर कुछ ध्यान आते अपनी बात की साथर्कता के लिए वह पूछता है – “आप कहाँ से आए है ??

“दिल्ली |”

“अरे सर फिर तो कोई दिक्कत ही नहीं है – तीन घंटे का रास्ता है और गाड़ी वाड़ी सब मैं व्यवस्था करा दूंगा – उसकी आप कोई चिंता ही मत करिएगा|”

“हम अपनी गाड़ी से आए है |” मोहित जल्दी से कहता है|

“तो भी सर कोई बात नही है – ये तो बहुत अच्छा है आप आराम से रात में ही वापस जा सकते है और दिल्ली आगरा रूट तो सारी रात चलता रहता है|” वह भी उन्हें किसी तरह से छोड़ने को तैयार नही था| आखिर दोनों की सहमति का भाव उसे उत्साह से भर देता है|

वे दो दिल भी कहाँ कहीं जाना चाहते थे लेकिन अपने रुकने के फैसला का ठीकरा गाइड की जिद्द पर फोड़ खुश हो जाते है|

“सर अभी आप लोग यहाँ घूम लीजिए फिर आगरा शहर जरुर घूमिएगा – आप लोग राधास्वामी मंदिर चले जाईएगा – बहुत खूबसूरत है – 112 साल लग गए उसे बनने में – फिर आपको जो खरीददारी करनी हो वो करके शाम को मैं आपको फोन करूँगा – तब तक मैं आपकी बुकिंग कन्फर्म करके रखूँगा |”

गाइड के बहुत ज्यादा बोलने से अब दोनों के चेहरे पर उकताहट आने लगी थी, पर शायद ऐसे चेहरे देखना उसका रोज का काम था इसलिए वह उतनी ही फैली मुस्कान के साथ सब कहता रहा फिर मोहित से उसका नंबर लेने लगता है इससे उब कर शैफाली किसी बैंच में बैठ जाती है| उसे बुकिंग अमाउंट देकर मोहित नज़र घुमाकर शैफाली को खोजता अब उसकी तरफ आता है| उसे बैठा देख मोहित भी वही बैठा जाता है, विपरीत दिशा में बैठे वे एक दूसरे को देखने लगे कि तभी एक चमक से उसकी आंख कौंध जाती है|

“क्या पोज़ आया है बहुत खूबसूरत – डायना बैंच पर आसीन एक खूबसूरत जोड़ा |”

एक व्यक्ति अपनी भरपूर मुस्कान के साथ मोहित के सामने खड़ा अपना कैमरा दिखा रहा था जिससे अभी अभी उसने उन दोनों की एक तस्वीर उतारी थी|

“आप देखिए तो – बहुत खूबसूरत तस्वीर आई है – हमेशा ताज की याद जैसी ताज़ा रहेगी आपके साथ – बस दो सौ की|” वह झुक कर कैमरे का स्क्रीन मोहित की आँखों के सामने करता है, शैफाली भी कैमरे में तस्वीर देखती है तो पाती है कि तस्वीर में वे कितने नज़दीक दिख रहे थे…वह देखती रह जाती है|

“ले भाई तू भी ले|” मोहित पॉकेट से नोट निकालकर उसे देता है, शैफाली अनिमिख देखती रह गई…क्या ये तस्वीर मोहित के लिए अतिरिक्त भार की तरह है..!!! उसने तस्वीर की ओर से मुँह मोड़ लिया| अब वह अपने से कुछ दूर किसी वृद्ध जोड़े को बरबस देखे जा रही थी, वे दोनों एक दूसरे का हाथ थामे आहिस्ते आहिस्ते भीड़ से गुज़रते किसी जगह रुक जाते है, वृद्ध व्यक्ति वृद्ध महिला को अपना हाथ किसी खास एंगल में रखे रहने का इशारा कर रहा था और उसके सामने नीचे की ओर बैठकर वे जाने कौन का पोज़ बनाकर तस्वीर खींचकर खुलकर हँस पड़ा था| वह वृद्ध इशारे से बता रहा था कि ताज आज से उसकी उंगली में टिका रहेगा, ये सुन वृद्धा की झुरियां खिलखिला पड़ती है|

“शैफाली….शैफाली..!!”

“हाँ…!!!” वह चौंककर मोहित की ओर देखती है|

“चले !!” वह जाने के लिए पूछ रहा था, इससे वह चुपचाप उठकर चलती मोहित के हाथ में वह तस्वीर देख अब धीरे से मुस्करा देती है|

क्रमशः………

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