
शैफालिका अनकहा सफ़र – 45
पार्किंग से कार लेकर मोहित रास्ता पूछता पूछता राधास्वामी मंदिर तक जाता है, वहां कार पार्क कर वे साथ में मंदिर में प्रवेश करते है| मंदिर में समाते जैसे उनके अन्दर कोई सुकून सा प्रज्वलित हो उठता है उनके मन में| वे साथ साथ चलते उस प्रांगण में समाते चले जाते है, जहाँ मंत्रो की प्रतिध्वनि उस कलात्मक अद्भुत मंदिर के पोर पोर से टकराती मानों वहां आते हर श्रद्धालुओं के क्लांत मन को गतिशील कर देने की सामर्थ रखती थी| वे कदम साथ साथ दर्शन कर अब बाहर को वापस आ जाते है| आगरा का राधा स्वामी मंदिर पत्थरों पर किया पेंटिंग की तरह लगता है|
“बहुत खूबसूरत मंदिर है अगर यहाँ नही आती तो कुछ छूट जाता|”
“हाँ सच में छूट जाता |” मोहित शैफाली की बात का जवाब देता दो पल को उसकी ओर देखता रहा और सोचता रहा कि कितना कुछ छोड़कर तो जा रही हो…पर शब्दों से कह न सका|
“राधे कृष्ण राधे कृष्ण |”
आवाज सुन दोनों आवाज़ की दिशा की ओर एक साथ देखते है, उनके सामने गेरुआ साड़ी में एक कमर झुकाए हाथ में कमंडल लिए एक वृद्धा अपनी आशा पूर्ण आँखों से उन्हें देख रही थी|
जब तक वे कुछ समझते वह अपने कमंडल के किनारे लगे टीके से टीका लेकर मोहित के माथे की ओर अपना हाथ बढ़ा देती है पर उसके कद तक पहुँचते की असमर्थता देख मोहित उसकी ओर झुक जाता है|
“राधे कृष्ण तुमदोनों पर कृपा बनाए रखे |” कहती हुई शैफाली की ओर देखने लगती है जो खुद हतप्रभ उनकी ओर देखे जा रही थी|
“ये आज कल की लड़कियां कोई सुहाग का चिन्ह नही लगाती – जाने कैसा है ये जमाना|” वे लगातार बोलती हुई मोहित के हाथ में टीका देकर उसे शैफाली के माथे पर लगाने का निर्देश देती है, मोहित सकपका जाता है वह कुछ कहना चाहता था पर लगातार बोलती माई उसकी कुछ नहीं सुनती|
“लगाओ मांग में – अरे नहीं सिखाओगे तो कैसे सीखेगी – कल को बच्चे होंगे तो उन्हें क्या सिखाएगी – ये आजकल की लड़कियां भी न – हम तो सुहागन होने पर कितना सजे संवरे रहते थे |”
मोहित का इंकार कमजोर था या माई का हुक्म मजबूत वह टीका शैफाली के माथे के ऊपर लगा देता है और शैफाली किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ी रह जाती है|
“बेटा कुछ खाने के लिए दस बीस दे दो |” वह लाचारी में अब उनके सामने अपना हाथ पसारती है, मोहित झट से बिन देखे कुछ नोट निकालकर उनके कमंडल में डाल देता है|
“जुग जुग जियो बेटा – अब तो मांग मांग कर ये बुढ़ापा कटे किसी तरह वरना अपनी औलाद तो अब पहचानती भी नहीं – कृपा करो राधा कृष्ण |” वे बडबडाती हुई उनकी पहुँच से दूर होती रहती और वे दोनों वही खड़े बस देखते रह जाते है|
मोहित अब शैफाली की मांग की ओर देखता रहा…उसका जी हुआ कि फिर एक बार और छू ले उसे और अपनी पनाह में सदा के लिए ठहर जाने दे ये लम्हा…..उसका अधिकार और पुष्ट होता रहा…..वह धीरे से खुद में मुस्करा दिया|
“चलो |”
वह कहता है और शैफाली साथ चल देती है, न वह पूछती है कहाँ न मोहित जताता है कहाँ|
“रात को थोड़ी ठण्ड हो जाएगी – चलो यहाँ से तुम्हारे लिए कुछ लेते है|” अब वे किसी कपड़ों की दुकान के बाहर थे| किसी अधिकार सा वह कहता हुआ साथ में अन्दर आ जाते है, मोहित का मन मयूर हो उठा था…उस पल अपने धड़कते दिल को वो समझाता है कि अब किसी उपयुक्त लम्हे में अपने दिल की सारी बेचैनी उसके सामने रख देगा…फिर चाहे वो जो समझे..!!
सेल्सगर्ल उस जोड़े को आता देख झट से उनका स्वागत करती अपनी बातो की झड़ी लगा देती है|
“आइए आइए मैम सर क्या दिखाए शाल !!! – एक से बढ़कर एक है – पश्मीना शाल भी है….एकदम पहली ऊन से तैयार….सीधा कश्मीर से आता है हमारे यहाँ…ये देखिए आपकी चिकेन की साड़ी संग क्या खूब खिलेगा ये ट्यूलिप के फूलों वाला शाल….सर आप ये जैकेट एक बार पहनकर तो देखिए आप लेने से इनकार नही कर पाएँगे..|” उनके सामान बेचने की कला पर शैफाली को हँसी आ गई|
जब शैफाली ने शाल और मोहित से जैकेट लेलिया तो दूसरा सेल्समेन बोल उठा – “सर और कुछ दिखाए – चादर – कम्बंल – अकसर नए जोड़े हमारी दुकान से लेकर जाते है|”
वे दोनों अचकचा जाते है और इंकार का आखिरी वाक्य बोल साथ में बाहर आ जाते है|
कुछ पल तक कोई अनचाहा मौन उनके बीच पसरा रहता है तब तक जब तक वे किसी रेस्टोरेंट में नही आ जाते| मीनू कार्ड पर नजर दौड़ाते मोहित को ख्याल आता है कि आज तक उसने कभी शैफाली की पसंद तो पूछी ही नही…वह मीनू कार्ड उसकी तरफ करता हुआ कहता है – “आज तुम ऑर्डर करो |”
वह एक सरसरी निगाह से कार्ड के सभी हिस्से को देख डालती है और वेटर के आते पंजाबी खाने का ऑर्डर देरही थी, मोहित अवाक् उसे देखता मंद मंद मुस्करा दिया…ये देख शैफाली आँखों से सवाल करती है – “क्या कुछ कहना है ?”
वेटर रूककर अब उन दोनों को देखने लगता है| मोहित धीरे से न में सर हिला कर मुस्करा कर टेबल के फूलदान पर अपनी नज़र गड़ा देता है|
वेटर चला जाता है पर शैफाली उन गहरी मुस्कान से नज़र नही हटा पाती मानों उसका दिल मन ही मन उससे पूछ रहा था तो वो क्यों नही कहते जो सुनना चाहता है दिल….!!
अब मोहित उसकी ओर नज़र उठाकर देखता है तो शैफाली जानकर अन्यत्र देखने लगती है|
इसी बीच खाना उनके बीच सज जाता है, वे खाना शुरू करते है| मोहित कनखियों से शैफाली को देख रहा था जिससे उसका मन एक शरारत करने को मचल उठा और दो गिलास पानी उसकी ओर सरका कर होठों के किनारों से मुस्करा देता है जिसे समझती शैफाली के होठों के किनारे तंग हो उठते है| वह गिलास उसकी तरफ सरका कर जबरन एक तीखा कौर जल्दी से अपने मुंह में डाल लेती है जिससे उसके अगले ही पल उसके मुंह से एक आह सी निकल जाती है|
ये देख मोहित फिर से गिलास उसकी तरफ बढ़ा ही रहा होता कि वह झट से उससे लेती एक ही घूंट में उसे गले से नीचे उतार किसी निरीह मृग की तरह उसकी ओर देखने लगती है जिससे मोहित अपनी हँसी नही रोक पाता इससे शैफाली नाराजगी में अपने होठों सिकोड़ लेती है|
तभी उसी वक़्त गाइड का फोन आ जाता है..
रात के दस बजे मौसम में हलकी नमी उतर आई थी, लेकिन लोगों की मौजूदगी से दिन और रात का फर्क करना मुश्किल हो रहा था| जब तक मोहित आया काफी कार पार्क हो चुकी थी इससे बाहर की ओर अपनी कार पार्क कर अब वहीँ वह गाइड का इंतजार कर रहा था, इसी इंतजार में वे अपने चारोंओर देख रहे थे, आने वाले आगंतुकों में हर उम्र के लोग थे, पर मोहित की नज़र बरबस ही किसी न किसी जोड़े पर ठहर जाती, कोई हाथों में हाथ डाले अपने में खोए चला जा रहा था, तो कोई एक ही आइसक्रीम खाते खाते अपना प्रेम का इजहार कर रहा था, ये देख मोहित जाने क्या सोच एक आइसक्रीम वाले की ओर दौड़ गया…
लौटा तो उसके हाथ में एक आइसक्रीम थी जिसे वह शैफाली की तरफ बढ़ा रहा था|
शैफाली आइसक्रीम लेती आँखों से उसकी आइसक्रीम का पूछती है|
“वो….|” उसकी लड़खड़ाती जुबान से दिल में कोई जुम्बिश सी हुई और हाथों से दिल फिसलने लगा…कि तभी…
“सर….|”
एक आवाज़ कौंधी और उन दोनों का ध्यान उस ओर चला गया जहाँ से अब गाइड लगभग दौड़ता हुआ उनकी तरफ आ रहा था|
मोहित की बात अधूरी रह गई अब वे अपने सामने खड़े गाइड की बात सुन रहे थे|
“अपनी गाड़ी यही छोड़ दीजिए – मेरी गाड़ी को परमिट मिला है तो उसी से मैं आपको काफी अन्दर तक ले चलता हूँ – चलिए |”
आगे आगे गाइड तो पीछे पीछे साथ में वे चलते उसकी बातोंसे बेखबर एक दूसरें की मौजूदगी में खोए रहे| वे यंत्रवत कार के पिछले हिस्से में बैठ गए, एकदम नजदीक साथ साथ कि एक दूसरें की देह की गंध उन्हें अपने में घेरने लगी जिससे उनकी धड़कने तेज हो उठी…
गाइड द्वारा कार स्टार्ट करते रेडियो भी बज उठता है…रेडियो में उस वक़्त चल रहे गीत में उनका दिल डूबने लगता है….इसके बीच गाइड अपना बोलता रहता है….
“आपने अच्छा किया सर जो देर रात के ग्यारह बजे का बैच लिया – इस समय चाँद ठीक आसमान के बीच में रहता है और तब ताज का व्यूह देखने लायक होता है|”
वक़्त की नजाकत मौसम की तन्हाई में लिपटी गीत के रूप में उनके दिलों में नशे सी समाने लगी.
लग जा गले…..हंसी रात हो न हो……लग जा गले….फिर ये हंसी रात हो न हो शायद फिर इस जन्म में मुलाकात हो न हो……लग जा गले…
“सर देखिए यही से कितना अच्छा लग रहा है |” गाइड उन दो दिलों की बेकरारी से बेखबर अपना बोलता रहा|
हमको मिली है आज ये घड़ियाँ नसीब से…..जी भर के देख लीजिए हमको करीब से….फिर आपके नसीब में ये बात हो न हो….शायद फिर इस जन्म में मुलाकात हो न हो….लग जा गले…
पास आइए की हम नही आएगे बार बार….बाँहे गले में डाल के हम रो ले ज़ार ज़ार आँखों से फिर ये प्यार की बरसात हो न हो….शायद फिर इस जन्म में मुलाकात हो न हो….लग जा गले..
वे सबसे बेखबर कब कार से उतरकर ताज के पथ पर साथ साथ चलने लगे…उन्हें अपनी बेखुदी में पता ही नही चला…
क्रमशः……………..
😍😍😍😍😍😍very🤔😊😊👍👍