
शैफालिका अनकहा सफ़र – 46
“ये सर आप देख रहे है – खूबसूरत ताज पत्थरों की नगरी में दिल सा धड़कता है इसे आज सबसे ज्यादा मुहब्बत की याद के स्मारक के रूप में लोग याद रखते है – हर साल लाखों लोग जाने कहाँ कहाँ से आते है सिर्फ इसे एक नज़र भर देखने के लिए और महीने के ये चार दिन इस रात के नज़ारे के लिए बस चार सौ लोगों को ही पास मिल पाता है |”
हवाएं अपना रुख और मिज़ाज बदलने लगी थी….मोहित एक बारगी शैफाली की ओर देखता है…उसके चेहरे पर बार बार उड़ती जुल्फ़े उसके चेहरे पर लिपट जा रही थी…उसे लगा जैसे इन्ही जुल्फों ने शायद मौसम का मिजाज़ बदल दिया…हवा और ठंडी हो उठी…जिससे शैफाली खुदको और शाल में समेट लेती है…
“आज पता नही इस मौसम को क्या हो गया – सुबह कितना खुला मौसम था अभी जाने कहाँ से ये बादल आ गए ?”
वह अपनी धुन में कहता जा रहा था पर उन्हें कहाँ खबर थी वे तो अपने बीच की खत्म हो रही मोहलत की एक एक घडी गिन रहे थे और लम्हा लम्हा उनके हाथों से निकलता जा रहा था….ताज की ओर बढ़ते कदम साथ साथ उठ रहे थे, साथ साथ चलते वे हाथ एक दूसरे से टकराकर एक दूसरें को छू लेते पर न मोहित दाएं हटता न शैफाली अपने बाएँ हटती…
गाइड थोडा परेशान सा होता खुले आकाश में बादलों का जमावड़ ताकता हुआ कहता रहा – “आज पता नही क्यों ये बादल छा गए सुबह का मौसम तो बहुत साफ़ था |”
कि तभी अचानक बादल बरस पड़े…किसी को दिसंबर के महीने में ऐसी उम्मीद नही थी…वे काफ़ी आगे तक खुले स्थान में थे…अकस्मात की बारिश से हैरान सभी अब पार्किंग की ओर अपने कदम तेज कर देते है….मोहित शैफाली को देखता है जो खुद को शाल में लपेटे उनके साथ साथ चाहकर भी अपने कदम तेज नही कर पा रही…तो मोहित झट से उसकी बांह थाम लेता है अब मोहित की बांह का सहारा लिए वह अपने पैरों के बीच फंसती भीगी साड़ी सहेजती किसी तरह से कदम बढ़ाती बढ़ाती पार्किंग की ओर बढ़ने लगी|
जब तक वे कार तक आते है…वे साथ में चलने से पूरी तरह से भीग चुके थे…गाइड जल्दी से उन्हें अपनी कार में बैठाकर उनकी ओर देखता है –
“पता नही सर्दियों के मौसम में अचानक ये बारीश कैसे हो गई – अभी तक तो दिल्ली में बेमौसम बारिश सुनी थी आज आगरा में भी बेमौसम बादल बरस गए|” वह अब शैफाली की ओर देखकर जो बारिश से पूरी तरह से भीगी हलके हलके से कांप रही थी मोहित की ओर देखता हुआ कहता है – “सर क्या बताए ऐसा होता तो नहीं पर मौसम पर किसका जोर चला है !”
मोहित शैफाली की कांपती देह के ऊपर से अपना जैकेट ओढ़ाते हुए गाइड की ओर देखता है|
“सर मैम की हालत तो ज्यादा ही खराब हो रही है |”
मोहित के चेहरे पर भी अब परेशानी उभर आई| वह शैफाली को अपनी बाँहों के बीच अभी भी कांपता हुआ महसूस कर रहा था, वह हैरान सा गाइड की ओर देखता हुआ पूछता है – “ऐसी स्थिति में हमारा अभी लौटना तो मुश्किल है – क्या कही रात के लिए कोई रूम की व्यवस्था हो पाएगी?” कहते हुए वह गाइड की ओर ताकता रहा|
“हाँ सर क्यों नहीं – अभी ले चलता हूँ |” कहता हुआ गाइड स्टेरिंग की तरफ पलटकर कार स्टार्ट कर देता है|
अगले ही पल वे किसी फाइव स्टार होटल में थे….गाइड झट से उसकी एंट्री की व्यवस्था खुद कर चाभी लेकर लगभग दौड़ता हुआ उन्हें एक रूम की तरफ ले जाता हुआ कहता है – “सर चिंता मत करिए – पूरा आरामदायक रूम है – आप लोग वहां चेंज कर लीजिए फिर सुबह आराम से चेक आउट कर लीजिएगा|”
मोहित एकदम से सख्त नज़र से शैफाली को थामे थामे बढ़ता हुआ उसकी ओर देखता हुआ कहता है – “चेंज कहाँ से करेंगे – हम रुकने थोड़े ही आए थे |”
ये सुन गाइड अचकचा जाता है उस पल उसे सब उसी की भूल की तरह लगता है इसलिए वह स्थिति सँभालते हुए कहता है – “माफ़ कीजिएगा सर – क्या पता था सुबह का खुला मौसम रात तक ऐसा हो जाएगा – पर सर आप चिंता न करे – मैं साफ़ चादर भिजवाता हूँ आप उसमें कुछ देर रह लीजिए तब तक एक घंटे भर के अन्दर ही मैं सारे कपडे ड्रायक्लीन करवाता हूँ – |”
ये सुन मोहित कुछ परेशान सा होता अब शैफाली की बुरी हो रही हालत देखता है|
“सर बस एक घंटे की बात है – मैम की हालत ठीक नही लग रही – इन्हें रूम में ले चलिए |”
तब तक वे रूम के सामने आ जाते है, अचानक मोहित चौंक जाता है – “एक रूम !!”
“हाँ सर आप पति पत्नी है न !!”
गाइड औचक मोहित का चेहरा देखता रहा तो मोहित की नज़रे घबरा गई|
“सर मुझे पता नही था – इस होटल में अभी बस एक ही रूम खाली है – दूसरे में जाने में थोडा समय लगेगा पर आप चिंता मत करिए – आप मैम को यहाँ कम्फटेबल कर दीजिए और ये मेरा कार्ड रखिए जब जिस समय भी आप फोन करेंगे मैं हाज़िर हो जाऊंगा – तब तक मैं दूसरा होटल देखता हूँ |”
मोहित आखिर आश्वस्त होता उसकी ओर देखता अब शैफाली को थामे रूम के अन्दर आता उसका कार्ड बेतरतीबी से सेंटर टेबल में रखता उसे आराम से बैठा देता है| अगले ही पल रूम अटेंडेंट द्वारा चादर देने पर वह शैफाली की ओर चादर बढ़ाकर कुछ देर उसी भीगी हालत में रूम से बाहर चला जाता है|
कुछ देर बाद जब वह वापस रूम में आता है तो देखता है कम्बल ओढ़े शैफाली सो चुकी थी और उसके सभी गीले कपड़े वही पड़े थे, ये देख मोहित भी खुद को गीले कपड़े से अलग कर अटेंडेंट के हवाले कर चादर में लिपटा कोच में लेट जाता है|
रूम की गर्माहट और सर्द मौसम की तल्खी से मोहित की आंख लग गई| अभी कुछ पल बीता ही था कि किसी आवाज की सरगोशी से उसकी नींद उचट जाती है, वह झटके से उठकर शैफाली की ओर देखता है, उसमें कुछ हलचल देख वह दौड़ता हुआ उसके पास आता है|
कम्बल से बाहर निकली उसकी हथेली को वह ज्योंही थामता है उसके रगों में झुरझुरी दौड़ जाती है, वह बुरी तरह से ठण्ड से कांप रही थी, ये देख कोई डर उसके मस्तिष्क को घेरने लगता है कि लगता है डॉक्टर को बुलाना पड़ेगा, ये सोच वह उसे झंझोड़ता है, शैफाली अपनी आंख खोल कर अब उसे देखती है|
वह घबरा कर पूछ रहा था – “तुम्हें भीगने से एलर्जी है क्या – तुमने बताया क्यों नही ?”
“तो क्या करते ?” इस अजीब प्रश्न का और भला क्या उत्तर देती, वह मोहित की बांह कसकर थाम लेती है|
मोहित उसकी आँखों में देखता रह जाता है….उन आँखों में आए प्रणय के आग्रह उसे अवश करते उसकी ओर खींचते ले जाते है…..न वह रोकती है न वह रुक पाता है….तन बदन में जैसे कोई उन्माद सा हावी होता उनकी नसों में फड़क उठता है….उस पल में जैसे हजारों शिफालिका की खुशबू उनके जेहन में समा जाती है…..मोहित बढ़कर शैफाली की मांग चूम लेता है…..शैफाली अपनी ऑंखें बंद कर लेती है जिससे दर्द की कोई बूंद उसकी आँखों की कोरों से लुढ़क जाती है……मोहित उसे भी अपने लबों से पोछ देता है….मोहित के हाथ उसके बालों को सहलाते उसकी पीठ पर फिसल रहे थे…..शैफाली मोहित की बाहें थामे उसे अपनी ओर कसकर भींच लेती है…..लबो से होता प्रेम देह से होता हुआ ह्रदय की गहराईयों तक उतरा जा रहा था….जिस्मों में मानों कोई जलतरंग लहु सा दौड़ जाता है…रूहानी प्रेम जिस्म से होता रूह तक उतरता गया…मोहित आंख खोले शैफाली की बंद पलकों को चूमता हुआ उसके होंठों को चूमने लगा मानो आज खुद को उन नीले समंदर में डुबो देना चाहता था….उस पल उसके होठ अतिरेक प्रेम से कांप उठते है….वह मोहित के चौड़े सीने में समां गई थी…ये पूर्णिमा की खुली रात थी जिसमें समंदर बेचैन होता मानों चाँद को पूरी तरह से अपने अन्दर समेट लेना चाहता था….आज गुस्ताख हवाओं को भी उनके बीच से गुजरने की इजाजत नही थी…….
क्रमशः……………….
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