
शैफालिका अनकहा सफ़र – 49
उन दोस्तों के जीवन में एकाएक मायूसी सी घिर आई थी, न कोई सगाई की बात कर रहा था न आपस में मिलकर ही वे मुस्करा पा रहे थे|
आज छुट्टी का दिन था सब साथ भी थे पर उनके होंठों की खुशियाँ जैसे कही नदारत हो चुकी थी| सब मोहित के आस पास बैठे साथ में चुपचाप नाश्ता कर रहे थे, उनके बीच गहरी ख़ामोशी काबिज थी कि उनकी मौजूदगी में भी नामौजूदगी का अहसास था| मोहित उनके चेहरे देखता आखिर ख़ामोशी का तार तोड़ता हुआ पूछता है –
“आगे क्या सोचा है ?”
अचानक वे तीनों रूककर मोहित की ओर देखने लगते है|
“मेरा मतलब है शादी वादी नही करनी क्या तुम लोगों को ?” मोहित जिस मुस्कान से उनकी ओर देख रहा था उनका चेहरा उतना ही उदासीन बना हुआ था|
“देखो जो बुरा वक़्त था चला गया और मेरा इंतजार मत करो – अभी इस टांग में और बीस दिन लग जाएँगे तब जाकर कहीं मैं खड़ा हो पाउँगा – आखिर चल पाउँगा तभी तो जा पाउँगा न शैफाली के पास |” कहते कहते मोहित का चेहरा दर्द में भी खिल उठा पर ख़ामोशी से अपनी अपनी प्लेट में झुके उन तीनों के सर अपनी अपनी नम आँखों को उससे छुपा ले रहे थे, उनके पास अब कहने को कुछ नहीं था, वे उफनते मन से दर्द की लहरों को खुद पर से चुपचाप गुज़र जाने दे रहे थे|
“बुआ जी भी आई थी – वो भी कितना उदास थी – अब देखो मैंने सोच लिया है इस साल का काम इसी साल खत्म करना है और नए साल के जश्न के साथ तुम तीनों को भी मैं इंगेज होते हुए देखना चाहता हूँ और इसमें कोई आनाकानी नही चलेगी – |”मोहित खुद में ही खुश होता कहता जा रहा था – “और देखो मेरी चिंता मत करो अभी मैं सब काम संभाल लूँगा और जब मेरा नंबर आएगा तब तुम तीनों फ्री होगे न – तब मैं तो सिर्फ शैफाली का हाथ थामे बैठा रहूँगा |” कहते हुए मोहित हँस पड़ा और वे तीनों प्लेटों चम्मचों की खटपट में अपने अपने भावों को दबा ले गए|
वे जान रहे थे कि खामोश रहने वाला मोहित आजकल कुछ ज्यादा ही वाचाल हो गया था, मानों शांत ताल में ढेरों लहरे उमड़ आई हो|
वह बिस्तर के सिरहाने सर टिकाए मानों अनंत आकाश निहारता बस कहे जा रहा था – “बहुत देर से सीखा मैंने अपनी गलतियों से – जब वक़्त था तब कुछ न कर पाया इसलिए चाहता हूँ तुम लोग वक़्त का इंतजार मत करो अपने अपने हमनवां का हाथ थाम लो इससे पहले ये वक़्त फिर पलट जाए – बड़ा धोखेबाज़ होता है ये वक़्त भी – जाने कैसे चुपचाप हमारे हाथों से सरक जाता है और बस अफ़सोस के तट पर तनहा छोड़ जाता है बिलखने…..|”
वे तीनों अब खामोशी से अपनी अपनी खाली प्लेटों पर चम्मच घुमाते मानों उस लम्हें से शब्दों की गुहार लगा रहे थे, पर वक़्त उतनी ही ख़ामोशी से निकलता जा रहा था|
अपनी बात कहकर मोहित खामोश नहीं रहा वह सच में उनकी सगाई की फिर से तैयारीयों का बैठे बैठे ही प्रबंध करने लगा….कभी बुआ जी को फोन लगाता…..कभी नज़मा आपा को…वह सभी को दिलासा दे रहा था कि उन तीनों को वह मना ही लेगा और जल्द से जल्द सगाई का इंतजाम भी कर लेगा…
मोहित बिस्तर पर अधलेटा जय को वर्दी पहनते देख उसको मानसी से बात करने को कह रहा था|
“हाँ तो मैं थोड़े ही मानसी से नाराज़ हूँ – सही वक़्त आएगा तो बात भी होगी और मुलाकात भी अभी तो फिलहाल तुम मेरी बात सुनो मैं कहता हूँ तुम्हारे पास अभी समय है तो मानव को बुला लो – उसकी पढाई भी हो जाएगी और तुम्हारा समय भी कट जाएगा|” जय वर्दी पहन अब वहीँ बैठा झुककर अपने जूते के तस्मे बांध रहा था तो मोहित मोबाईल की स्क्रीन में नज़रे जमाए था| तभी तेज आहट के साथ वहां मानसी आती है|
दोनों जब तक कुछ समझते वहीं अपनी तेज आवाज में जय के ठीक सामने खड़ी बोल रही थी –
“समझते क्या हो तुम खुद को – मैं यहाँ पूरा दिन फ्री बैठी हूँ क्या जो बैठे बैठे पूरा दिन तुम्हारे भेजे ब्लैंक मेसेज देखती रहूँ – क्या मेरे पास कोई काम नही तुम्हें सोचते रहने के अलावा |”
जय देखता रह गया, मानसी उसके ठीक सामने खड़ी गुस्से से उसी को घूरती जाने क्या कह रही थी वह समझ नही पा रहा था, बस उसे अपने सामने बहुत करीब महसूस हो रही थी वह|
“ये क्या नाटक लगा रखा है – पूरा दिन थोड़ी थोड़ी देर में मोबाईल से मुझे ब्लैंक मेसेज भेजते रहते हो – क्यों भेजते हो मुझे – आखिर क्या होता है उसमें – |” वह गुस्से में भरी आँखों से जय को घूरती रही|
अब जय को मामला समझ आया वह एक बार पीछे पलटकर मोहित की ओर देखता है, जिसके हाथ में उसी का मोबाईल था, वह धीरे से मुस्कराता हुआ मानसी की ओर देखता झट से उसके गुस्से में तने होंठों को चूम लेता है|
“ये था उन ब्लैंक मेसेज में |” हँसता हुआ कहता जय अपनी कैप पहनता तेजी से वहां से निकल जाता है|
मानसी उस पल अवाक् रह गई, उसके होठ खुले के खुले रह गए, फिर बुलेट की आवाज सुनते उसकी तन्द्रा भंग होते वह होश में आती अब मोहित की ओर देखती है जो जानकर अपना सर ऊपर उठाए छत की ओर देख रहा था, ये देख वह गुस्से में पैर पटकती वहां से निकल जाती है|
मोहित समय काटने मानसी के छोटे भाई को पढ़ा लेता था, इस वक़्त उसी को पढ़ा रहा था तभी समर कमरे में आता उसे जाने को बोलता मोहित के पास आता है|
“चलो बच्चे जाओ अब तुम्हारे सर की ड्रेसिंग का वक़्त हो गया है|”
वह अब आवाज सुन दरवाजे की ओर देखता है जहाँ से अन्दर आते हुए समर कह रहा था| मानव धीरे धीरे अपना सामान समेटते वहां से निकल जाता है|
उनके जाते समर मोहित को अपने शरीर का सहारा देकर बेड का टेक लगाकर सीधा बैठाने लगता है जिससे तीव्र दर्द की एक लहर उसके पूरे जिस्म में दौड़ जाती है जिसका आभास उसके चेहरे के बिगड़े हुए भाव बता देते है|
“दर्द है कहीं ?’ समर उसका चेहरा गौर से देखता है जिसमें अब जबरन ही कोई मुस्कान झलक आई थी|
तभी जय ड्रेसिंग के लिए गर्म पानी लाता उसके बगल में बैठ जाता है| अब आदतन जय की उँगलियों के बीच सुलगी हुई सिगरेट फंसी थी| जिसे देखते मोहित झट से उसे अपनी उँगलियों के बीच लेता एक गहरा कश अपने भीतर श्वांस सा खींच लेता है, अनभिज्ञता के प्रभाव से उसे एकदम से खांसी आ जाती है, ये देख जय तुरंत उससे सिगरेट छीनता उसे फेंक देता है|
“पागल है क्या !!” जय जैसे उसे झंझोड़ता है|
इसके विपरीत दम भर खांसते के बाद अब वह धीरे से हँसता हुआ कहने लगा – “कोशिश कर रहा था – शैफाली की तरह जीने की पर एक सेकण्ड भी नही जी पाया और एक वो खुद को मेरे लिए बदलती किस कदर मेरी जिंदगी में घुलती चली गई – ये देख कर भी मैं कैसे अनजान बना रहा ?” कहते कहते एक तड़प सी उसके जेहन में बिजली सी दौड़ गई|
समर और जय उसकी तड़प देख सन्न भाव से उसे देखते रह गए| उनके सारे शब्द चुक गए थे, वे बस बेबस से उसकी बेबसी को देखते रहने को मजबूर हो गए थे|
समर शर्ट को उसके शरीर से अलग कर उसके शरीर में यत्र तत्र लगे बैंडेज निकाल कर आहिस्ते आहिस्ते उन्हें साफ़ कर रहा था और मोहित दर्द की बेबसी में लिपटा दिल का गुबार निकाल रहा था|
“कभी सोचता हूँ कि उसने अच्छा ही किया जो मुझे छोड़ दिया तड़पने – मैं इसी के लायक था – आखिर मैंने उसकी कद्र ही कहाँ की – यही तो इंसानी स्वभाव है जब सब कुछ खो देता है तब उसके होने की असल कीमत आँक पाता है|” कहते कहते मोहित की आंख के कोर से कोई धार सी बहती उसकी गर्दन से लुढ़कती कंधो के घाव के खून संग घुलमिल होती जैसे सीने में अपना जमावड़ कर लेती है, ये देख रुई थामे समर के हाथ कांप जाते है|
“वो मेरे कितने पास थी, हर एक पल में मेरे साथ थी – तब अपने अतीत में लिपटा मैं उससे दूर भागता रहा बिलकुल अपनी परछाई की तरह – देख रहा था, जान समझ रहा था कि उसने खुद को मेरे लिए कितना बदल दिया फिर भी मूक मैं सब देखकर भी अनदेखी करता रहा – हर बार वह अपनी नज़रे मेरी ओर जिस उम्मीद में करती उसे उतनी ही बेदर्दी से मैं वही छोड़ आगे बढ़ जाता – इसीलिए देखो आज ये उसी का ही दंड है कि शैफाली के बिना एक कदम भी आगे नही बढ़ा पा रहा हूँ मैं |”
“मोहित..!!!”
असीमित दर्द उसके पोर पोर में उठने लगा, जल्दी से पट्टी कर समर दर्द की दवा उसकी ओर बढ़ाता है जिसे हाथ से हटाता हुआ मोहित कह रहा था –
“होने दे जिस्म में दर्द शायद इसके नीचे रूह का दर्द दब जाए ..|” एक गहरी आह छोड़ता वह ऑंखें बंद कर अपना सर पीछे टिका लेता है| उसके सामने बैठे समर और जय भरे मन से उसे देखते रह गए|
मोहित को आराम से लेटा छोड़कर वे दोनों अन्य कमरे में बैठे निराशा से एक दूसरे को देख रहे थे|
“जैसे अन्दर से रिकअवर ही नही कर रहा उसका शरीर – प्लास्टर तो ठीक है पर इन घावों की वजह से कही उसे इन्फेक्शन न हो जाए, दवा भी नही ले रहा – ऐसे ही करेगा तो अब इंजेक्शन से उसे दवा देनी पड़ेगी – जल्द से जल्द उसे ठीक करना है |”
चिंतित स्वर में समर जय से कह रहा था और जय होंठ भींचे जैसे किसी शून्य में देखता हुआ कहता है – “क्या होगा जल्दी ठीक करके – जैसे ही ठीक होगा वह शैफाली को ढूंढने निकल पड़ेगा – तब क्या करेंगे हम – तब कैसे रोकेंगे उसे – हम कभी उसे इस स्थिति से बाहर भी निकाल पाएँगे ??”
जय के अव्यक्त प्रश्न उस पल दोनों के मन में ऐसा अंतर्द्वंद्व उत्पन्न कर देते है जिसके आगे उनके सारे शब्द बौने हो जाते है|
मोहित के आस पास बैठे जय, मानसी, इरशाद, नूर, समर और ऋतु की प्रश्नात्मक नज़रे अब उसी पर जमी थी, किसी को कुछ समझ नही आ रहा था कि उसने उन सबको एक साथ क्यों बुलाया ??
वे औचक उसकी ओर देख रहे थे और वह मुस्कराता हुआ एक नज़र उन सबका चेहरा देखते हुए अब उनकी तरफ कुछ बढ़ा रहा था|
वे हतप्रभता से उसके द्वारा दिया कार्ड बारी बारी से देख रहे थे|
“ये क्या है ??” एक साथ सब प्रश्न करते है|
“31 दिसम्बर जब पुराना साल नए आवरण में नवीनता की ओर अपना कदम बढ़ा रहा होगा तब तुम भी अपने अपने प्यार का हाथ थामे अपने नए जीवन की ओर पहला कदम रखोगे – तुम तीनों की एक साथ मंगनी का कार्ड है और कसम से इंकार किया न तो देखना अपनी दूसरी टांग भी तुडवा लूँगा मैं |” कहता हुआ मोहित आवाज कर कसकर हँस दिया|
“इसकी इतनी भी क्या जल्दी थी |” वे परेशान से उसकी ओर देखते है|
“जल्दी ही है मुझे – मेरा आखिरी फरमान समझ कर मान लो यारों |”
मोहित की बार सुन वे सब एकदम से उखड़ते हुए बोले – “पागल है क्या – कुछ नही कहते तो इसका मतलब जो जी में आएगा कहता रहेगा !”
इस पर एक बार फिर एक तेज हँसी से मोहित हँस पड़ा|
“चलो कार्ड पसंद है न तो आज से बाँटने का काम शुरू कर दो – बहुत सारे लोगों को बुलाएँगे – एक ग्रैंड पार्टी होगी|”
मोहित पूर्ण उल्लास में कहता जा रहा था पर बीच में ही मानसी टोकती हुई कहती है –
“कम से कम एक रिक्वेस्ट तो मान लो हमारी कि हम चाहते है ये इवेंट बहुत सादगी से हो – सिर्फ परिवारों के बीच |”
मानसी की बात सुन अब सब एक दूसरे की ओर पूर्ण सहमति से देखने लगे थे क्योंकि इस वक़्त मोहित की बात मानने की सिवा उनके पास कोई चारा नही था|
क्रमशः……………
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